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Gantantra Ke Tote By Dharampal Mahendra Jain

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  गणतंत्र के तोते द्वारा : धर्मपाल महेंद्र जैन   विधा : व्यंग्य रचना संग्रह   किताबगंज प्रकाशन द्वारा प्रकाशित   प्रथम संस्करण: २०२३ मूल्य : २५० धर्मपाल जी की प्रस्तुत पुस्तक “गणतंत्र के तोते” जिसमें 50 के लगभग चुभती हुई व्यंग्य रचनाएं सँजोई गई   हैं , और ये   सभी रचनाएं वरिष्ठ व्यंग्यलेखक ,व्यंग्यलेखन की एक विशिष्ट शैली के पुरोधा महेंद्र जैन जी, जो अपने व्यंग्य के माध्यम से कहीं भी अव्यवस्था, कुप्रथा एवम सत्ताधीशों के सुकृत्यों एवं   सदाचरण (?) को बक्शते नहीं हैं , की चुनिंदा रचनाएं कही जा सकती हैं हालांकि लेखक द्वारा ऐसा कोई दावा प्रस्तुत नहीं किया गया है। इस संग्रह की अमूमन प्रत्येक रचना आकार में बहुत बड़ी तो नहीं है किंतु   अपने अपेक्षाकृत   संक्षिप्त रूप में भी,   घाव करे गंभीर वाली उक्ति को चरितार्थ अवश्य करती है। महेंद्र जी यूं तो अपनी बात खरी खरी कहने में ही यकीन रखते हैं किन्तु फिर भी बहुतेरे व्यंग्य कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना भी हैं।     सर्वप्रथम बात शीर्षक “गणतंत्र के तोते “ की, जो जहां एक ओर ध...

NAYA SURAJ BY RAMESH GUPT

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  नया सूरज द्वारा : रमेश गुप्त विधा : उपन्यास विश्व बुक्स द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण : 2010 मूल्य : 75.00 पाठकीय प्रतिक्रिया क्रमांक : 1 79 रमेश गुप्त 1950 – 70 के दशकों में हिंदी पत्र पत्रिकाओं में स्थायी रूप से नज़र आने वाला नाम हुआ करता था . विशेषकर 1960 के दशक में हिंदी कि स्थापित पत्रिकाओं में उनके द्वारा लिखी गई कहनियों का प्रकाशन अमूमन निरंतर ही हुआ . उसी दौर में उनके उपन्यासों का प्रकाशन भी हुआ. उनकी तकरीबन   40   से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुयी. 1986 में हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा “ बैसाखियों पर टिका इंसान” नामक पुस्तक पर साहित्यिक कृति का सम्मान प्राप्त हुआ. अभी amazon पर उनकी चंद पुस्तकें ही उपलब्ध हैं यथा “उन्माद” “गलतफहमी” और “भटकाव” जिनके विषय में बात होगी , आज बात “ नया सूरज” की, जो कि नारी विमर्श पर एक सुंदर रचना कहे जाने की शत प्रतिशत हकदार है . “नया सूरज” कथानक नारी विमर्श पर आधारित होते हुए अत्यंत ख़ूबसूरती से एक कामकाजी   महिला की   हर रोज़ की मुश्किलात से भरपूर जिंदगी और उन सबके बीच पारिवारिक दायित्वों को निभाने के बंधनों से जकड़ी ...

MITHILA BY AMRIT TRIPATHI

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  मिथिला   विधा : उपन्यास द्वारा : अमृत त्रिपाठी   लोक भारती प्रकाशन द्वारा प्रकाशित   पृष्ठ : 95 मूल्य : 300 प्रथम संस्करण : 2019 समीक्षा क्रमांक :  178                     सामान्य भाषा शैली से ऊपर उठ कर यदि कुछ ऐसा जो सुंदर पठनीय   तो हो किन्तु क्लिष्ट न हो   , ऐसी   भाषा में यदि एक श्रेष्ठ साफ सुथरी रचना पढ़नी हो तो उन पाठकों के लिए प्रस्तुत पुस्तक   एक श्रेष्ठ एवं सुंदर चयन है ।                         लेखक   युवा प्रशासनिक अधिकारी हैं एवं यह कहानी , जो एक प्रेमकथा है जिसे अधूरी लिखना   शायद उचित न हो क्योंकि सीमित पात्रों के साथ जहां सारा भाव बहुत कुछ आत्मिक प्रेम पर केंद्रित है, जिसमें शारीरिक आकर्षण को कोई स्थान नहीं फिर क्या शारीरिक मिलन को ही प्रेम की पूर्णता   कहना ठीक होगा , यह मतांतर   विषय है अतः   विचार पाठक स्वयं करें , तो इस कहानी का नायक भी   एक सुशिक्षित उच्च पदासीन अधि...

Dear Tum Budhhu Ho By Arun Arnav Khare

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  डियर , तुम बुद्धू हो विधा: व्यंग्य द्वारा : अरुण अर्णव खरे इंक प्रकाशन द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण : 2025 मूल्य : 220 पाठकीय प्रतिक्रिया क्रमांक : 177 व्यंग्य लेखन एक ऐसी कला है जिसमें लेखक समाज , राजनीति , संस्कृति और अन्य विषयों पर कटाक्ष करता है , किन्तु अपने आदर्श रूप मे, आक्षेप व्यक्तिगत न हों एवं किसी की भावनाएं आहात न करते हों वही व्यंग्य श्रेष्ट माने जाते हैं। व्यंग्य लेखन में लेखक को अपनी बात कहने के लिए शब्दों का चयन अत्यंत सावधानी पूर्वक करना होता है जो तीखे और प्रभावी हों , लेकिन अपमानजनक या आहत करने वाले न हों। वरिष्ट व्यंग्य लेखक एवं अनेकोनेक बार विभिन्न साहित्यिक सामाजिक संस्थाओं एवं मंचों द्वारा सम्मानित एवं विशिष्ठ पुरस्कारों द्वारा नवाजे जा चुके अरुण अर्णव खरे आज पैने धारदार व्यंग्य लेखन के क्षेत्र में एक मिसाल बन चुके हैं एवं   साफ सुथरे किन्तु असरदार व्यंग्य हेतु बखूबी जाना पहचाना   नाम हैं।         अरुण जी के लेखन में हमें व्यंग्य की अमूमन समस्त विशेषताएं यथा व्यंग्यात्मक भाषा शैली , हास्य , कटाक्ष एवं स...

MAN CHANCHAL CHANCHAL BY ARVIND KAPOOR

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  मन चंचल चंचल विधा : कविता द्वारा : अरविन्द कपूर प्रखर गूंज पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण : 2025 मूल्य: 250.00 पाठकीय प्रतिक्रिया क्रमांक : 176 कविता , कवि की भावनाओं का शब्द रूपी विस्तार है। कविता के माध्यम से कवि अपनी भावनाओं , विचारों और अनुभवों को शब्दों में पिरोकर व्यक्त करता है। कविता में कवि की आत्मा की गहराइयों का प्रतिबिंब होता है , जो पाठक के साथ जुड़कर उसे भी भावनात्मक रूप से प्रभावित करती है। कवि अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने हेतु उपयुक्त शब्दों का चयन करके अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है , भावनाओं की यह शाब्दिक अभिव्यक्ति अपनी भावनाओं को सबके सम्मुख प्रस्तुत करने का श्रेष्ट माध्यम है, एवं अपने मनोभावों को व्यक्त करने हेतु कवि अरविन्द कपूर द्वारा सुंदर अभिव्यक्ति इस काव्य संग्रह के रूप में प्रस्तुत की गई है। यह अरविन्द जी का प्रथम कविता संग्रह है एवं प्रतीत होता है की हाल फिलहाल तो किसी निश्चित शैली में बंधे नहीं हैं। संग्रह में कुल जमा 85 कविताएं संग्रहीत की गई   हैं जिनमें से कुछ तो अवश्य ही बेहतर कही जा सकती हैं। उनकी   कविता ...

ROTI MAN BY BHARAT GADHVI

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  रोटी मेन (उपन्यास) द्वारा : भरत गढ्वी   प्रथम संस्करण : 2025 FLYFREAMS  द्वारा प्रकाशित मूल्य : 199.00 पाठकीय प्रतिक्रिया क्रमांक : 175   युवा मित्र भरत गढ़वी जी की पुस्तक "रोटी   मैन" , उस पर अपनी प्रतिक्रिया लिखने के अनुरोध के संग प्राप्त हुई थी। पूर्व में भी उनकी तीन पुस्तकों पर मैंने अपनी प्रतिक्रिया से आप सभी को अवगत करवाया था।    यह युवा लेखक गढ़वी जी की चौथी कृति है, जहां   भिन्न   विषय है जो आवरण पृष्ठ एवम परिचय से कुछ कुछ स्पाइडर मैन की थीम को फॉलो करता हुआ प्रतीत होता है। रोटी मेन , एक नेकदिल युवा की कहानी है जो मुंबई आता तो हीरो बनने है किंतु यू ट्यूबर   बन कर रह जाता है और कुछ छोटे मोटे रोल्स प्ले वगैरह में  कर अपना जीवन बसर करने का साधन बना लेता है। उपन्यास की शुरुआत है जब वह यू ट्यूब पर डाले गए एक कंटेंट के कारण एक अनाथ बच्ची को   लेकर स्वयं के लिए परेशानियां खड़ी कर लेता है। उद्देश्य भलाई का होने के बावजूद कैसी कैसी मुश्किलात पेश आती हैं इसका अच्छा खाका खींच गया है। बाद में काफी धक्के खाने के ...

GUNAHON KA DEVTA BY DHARMVEER BHARTI

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  गुनाहों का देवता उपन्यास द्वारा : धर्मवीर भारती भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित 74 वां संस्करण 2019   मूल्य : 260.00 पाठकीय प्रतिक्रिया क्रमांक : 174 सुप्रसिद्ध लेखक ,  संपादक, पद्मश्री धर्मवीर भारती जी का सबसे प्रसिद्ध और व्यापक रूप से पढ़ा जाने वाला कालजयी उपन्यास है “गुनाहों का देवता” ,   जिसका पहला प्रकाशन 1949 में हुआ था और उपलब्ध जानकारी के मुताबिक इसके सौ से अधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं , जो इसकी साहित्यिक महत्ता एवं लोकप्रियता को रेखांकित करते  है। पहली बार इसे पढ़ा था तब, जब हम नए नए कॉलेज में पहुंचे थे और नए नए शौक लगने शुरू हुए थे उन्हीं में से एक शौक लायब्रेरी जाने का भी हुआ और तब शायद यह सबसे पहला पढ़ा गया उपन्यास था संभवतः इसका एक कारण इसकी प्रसिद्धि था और दूसरा भारती जी के नाम से साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग की वजह से परिचित होना रहा जो की उस समय प्रति सप्ताह घर में आता ही था और भारती जी उसके संपादक थे ,  निश्चय ही उस समय पढ़ कर कितना समझ में आया होगा नहीं कह सकता क्यूंकि अभी भी पात्रों के बदलते हुए भाव बार बार उलझन में डाल गए और...