Morpankh By Praveen Banzara
मोरपंख
विधा : कहानी
द्वारा: प्रवीण बंजारा
हिन्दी साहित्य सदन द्वारा प्रकाशित
प्रथम संस्करण : 2025
मूल्य : 200
समीक्षा क्रमांक : 186
प्रवीण बंजारा सृजित कहानी संग्रह “मोरपंख” पुस्तक में नाम के अनुरूप ही सात सतरंगी कहानियाँ प्रस्तुत करी गई हैं । कहानियाँ सरल कथानक आधारित हैं तथा हमारे आस पास के रोजमर्रा के जीवन में दिखने वाले पात्रों की कहानियाँ हैं, जिन्हें लेखक ने कुछ अंदर पैठ कर उन्हें और बेहतर समझने का प्रयास किया है। सभी कहानियों का भाव अलग अलग रूप लिए हुए है जो इस कहानी संग्रह के शीर्षक को पूर्णतः सार्थक बनाता है।
कहानी “दो एकांत”, हमारे जीवन के एकांत और उस से जुड़े बहुत सारे अनुत्तरित प्रश्नों के साथ क्या हम अपने स्वार्थवश, मूक प्राणियों के संग, उनकी स्वतंत्रता के संग, उचित न्याय कर पाते हैं, और क्या समय रहते उचित निर्णय न लेना भी हमारी कोई विवशता या कमजोरी नहीं है, विषयों को अत्यंत भावुकता के संग प्रस्तुत किया है एक सुंदर एवं रोचक कथानक के माध्यम से, कहानी के द्वारा अपने नि:सन्तान होने के दर्द और उसे एक मूक प्राणी के साथ बाँट लेने के भाव को लेकर अत्यंत सरलता से मूक प्राणियों के प्रति प्रेम एवं सद्व्यवहार को भी दर्शाया गया है एवं बहुत हद तक प्रेरित भी करता है ।
वहीं कहानी “पहलवान की बकवास” एक अलग भाव लिए हुए मनोविज्ञान पर आधारित है जिसमें एक सहृदय व्यक्ति के द्वारा एक मानसिक रूप से परेशान व्यक्ति पर उसकी अवस्था को समझने एवं बहुत हद तक समझ पाने के प्रयासों का सफ़र दर्शाया गया है साथ ही एक संदेश भी लोगों से जुडने एवं उन्हें समझने का ।
कहानी "प्रेमिका" मूल रूप से एक प्रेम कहानी भी कही जा सकती थी किन्तु कहानी में आगे चलकर जो मोड दिए गए हैं वे उसे आम प्रेम कहानी से जुदा करते हैं । दो भिन्न परिवेश एवं आर्थिक स्तर के वाशिंदों के करीब आने, किंतु एक के द्वारा अपने मूल आधार एवं संस्कारों के विपरीत आधुनिकता में भीगी, दिखावे और पाश्चात्य जीवन शैली अपनाने की धुन एवं दूसरे की पारंपरिक जीवन शैली को जीने की ललक, या उस ओर झुकाव के चलते अपना सर्वस्व नाश कर लेने और तब, जब पछताने के सिवा कोई चारा नहीं रह जाता, का विस्तृत बखान है ।
कहानी "भुतहा गांव" एक पहाड़ी व्यक्ति की कहानी है जो चोट के कारण अपनी शिक्षक की नौकरी गवां बैठता है और यहां से कथानक अविश्वसनीय तरीके से आगे बढ़ता है जहां वह शिक्षक स्टेशन पर भीख मांगने लगता है मूल बात है उसके गांव वापस आकर अपने गांव को भुतहा न बनने देने की । कहानी का चित्रण अच्छा है, किन्तु कई बिंदुओं पर कथानक सामान्य न होकर नाटकीयता से भी ऊपर जा बैठता है जहां पाठक को उस से जुड़ना सहज नहीं रह जाता । कहानी का मुख्य टर्निंग पॉइंट अर्थात शिक्षक का मात्र एक चोट लग जाने के कारण नौकरी गंवा देना व फिर भीख मांगने लगाना असामान्य है एवं असहज करता है ।
तो वहीं कहानी “चैंपियन”, बाल सुलभ सहज, जिज्ञासा, प्रतिक्रिया एवं तद्जनित बाल मन की आशंकाएं एवं किसी अनहोनी के लिए स्वयं को दोषी मान लेने जैसे, बाल मनोविज्ञान पर आधारित है जो बाल मन को बहलाने उनकी परेशानियों को सुनने समझने एवं तभी उसका उनके स्तर पर हल दे पाने जैसे सुझाव भी दे जाती है ।
“बिसेसर का संसार” यूं कहने को तो कहानी है किंतु प्रतीत होता है लेखक के अंदर बहुत कुछ है बताने को जो वे विधा कि मर्यादाओं में रहते हुए सीमित विस्तार कि परिपाटी को बढाते हुए हुए पूर्णतः अभिव्यक्त नहीं कर पा रहे अस्तु भविष्य में लेखक द्वारा कहानी के स्थान पर यदि उपन्यास लिखा जावे तो संभवतः अधिक श्रेयस्कर होगा एवं उनके प्रस्तुतिकारण के दृष्टिगत पूर्ण संभावित है कि पाठक वर्ग द्वारा भी पसंद किया जाएगा। यह बड़ी कहानी दरसल एक युवक के जीवन संघर्ष की कहानी है जो वह बिना माँ बाप एवं किसी के सहयोग अथवा मार्गदर्शन के अकेले ही लड़ता है एवं साथ ही अपने दुधमुंहे भाई का पालन पोषण भी अपने पुत्र के सामान ही आजीवन करता है, किंतु कालांतर में भाई की पत्नी के अमानवीय व्यवहार के चलते वह अपनी जीवन संगिनी से अंतिम समय में भी नहीं मिल पाता।
लेखक की सभी कहानियों के कथानक सुंदर है एवं भाव अभिव्यक्ति भी सरल तथा भाषा शैली सहज ग्राह्य है किन्तु कुछेक स्थानों पर अनावश्यक क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग भाव की सहज ग्राह्यता में अवरोध उतत्पन्न करता है वहीं भाषा की सहज प्रवाह के विपरीत जोड़ी गई क्लिष्टता आम पाठक को कथानक से जुड़ने में कुछ मुश्किल बनाती है।
अतुल्य


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