Dyodhi Se Vyom Tak By Dr. Monika Sharma

 "ड्योडी से व्योम तक" 

द्वारा : डॉ . मोनिका शर्मा 

विधा : लघुकथा 

श्वेतवर्णा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 

प्रथम संस्करण : 2025 

मूल्य : 249.00

समीक्षा क्रमांक : 187

लघुकथा एक ऐसी साहित्यिक विधा है जिसमें एक छोटी और संक्षिप्त कथा के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया जाता है। यह एक ऐसी विधा है जिसमें लेखक अपने विचारों और भावनाओं को एक संक्षिप्त और प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करता है।  हाँ यहाँ यह  कहना युक्ति युक्त होगा कि कहानी की तुलना में लघुकथा आकार में छोटी  होनी चाहिये किन्तु यह ज़रूर स्मरण रखा जाना चाहिए कि लघुकथा अपना मूल उद्देश्य ही न भूल जाये . कह सकते हैं कि लघुकथा एक ऐसी साहित्यिक विधा है, जिसमें लेखक अपनी रचनात्मकता और अभिव्यक्ति कि श्रेष्ठ कला का प्रदर्शन करता है।


हिंदी साहित्य में लघुकथा की जड़ें प्राचीन काल में देखी जा सकती हैं, जब लोग मौखिक परंपरा के माध्यम से कहानियाँ सुनाते थे फिर वर्तमान में भी देखें तो लघुकथा के द्वरा विभिन्न लेखकों ने अपने विचारों और भावनाओं को प्रस्तुत करा  है जब लेखकों ने संक्षिप्त और प्रभावशाली कथाएँ लिखना शुरू किया।

यदि लघु कथा को विचारों के त्वरित एवं प्रभावी सम्प्रेषण के माध्यम के रूप में ध्यान में रखा जाता है तो निश्चय ही कथा कि  जीवन्‍तता, उसकी उपयोगिता और प्रासंगिता को भी बनाये रखना होगा और उस  के लिये आवश्‍यक है कि उसका  आकार लघु हो और विषय कि नवीनता  और विचारों कि प्रभावशीलता बरकरार रहे  । 

                                                              


 लघुकथा में जहाँ उसकी संक्षिप्तता सर्वप्रमुख है वहीँ उसके कथानक एवं भाषा शैली का प्रभावी होना अत्यंत आवश्यक है तभी पाठक उस के साथ स्वयं को सम्बद्ध कर पाता है . अमूमन कहानियां परिवेश परिवार एवं रिश्तों पर केन्द्रित होती हैं एवं लघुकथाएं भी इसी मानक के अंतर्गत ही सर्वाधिक लिखी जाती हैं वहीँ उनमें जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी पूरा पूरा ध्यान केन्द्रित किया जाता है. किन्तु आम कहानियों कि अपेक्षा पात्र संख्या एवं घटना क्रम कि श्रृंखला देखने में नहीं आती अपितु किसी एक द्रश्य विशेष पर केन्द्रित करी जाती है.  

आज कि  व्यस्त जीवनशैली  में जबकि लोगों के पास समय कम है, तो लघुकथा की संक्षिप्तता इसे पढ़ने के लिए उपयुक्त बनाती है वहीँ  लघुकथा में सामाजिक बुराइयों, जातीय भेदभाव, राजनैतिक पैंतरेबाजी और नैतिक पतन जैसे मुद्दों पर प्रभावी ढंग से चर्चा की जा सकती है और सोशल मीडिया से उकताया हुआ एक वर्ग सहज ही इस और आकृष्ट हो रहा है , वहीँ संक्षिप्तता के कारण लघुकथा में लेखक को अपनी रचनात्मकता और विचारों को व्यक्त करने की भी स्वतंत्रता होती है जो आम तौर पर उपन्यास एवं बड़ी कहानियों में लेख के विस्तार के चलते अपेक्षाकृत कम होती है  अथवा नहीं होती. 

बात करें इस संग्रह कि कुछ लघुकथाओं कि तो निश्चय ही शीर्षक कथा "ड्योडी से व्योम तक" बहुत कम शब्दों में मां और बेटे दोनों कि ही भावनाओं को सशक्त रूप में अभिव्यक्त करने में सफल हुयी है किन्तु पिता पुत्री के भावना एवं प्रेम से भरे रिश्ते पर भावनात्मक रूप से बहुत गहराई तक छू जाती है कहानी "कुछ छूटे  नहीं" तो कहानी "विशवास का सेतु' आभासी दुनिया के कुप्रभावों का दंश झेलती बेटी पर पिता के विशवास को दर्शाती है .  कहानी 'पक्की दीवार" में देखते हैं कि भाइयों के बीच बटवारे के फलस्वरूप आँगन में खड़ी दीवार कैसे मन पर बोझ डालती है तो 'गुडिया' फिर मां बेटी के मध्य प्रेम स्नेह कि गहरी भावनाओं को दर्शाती हुयी कुछ छूते नहीं के सामान ही आँखों के कोर भिगो जाती है. कहानी 'सम्मान कि सीख", 'हरी चूड़ियाँ' और "लांक्षन" भी बढ़िया हैं .  

पुस्तक के द्वितीय खंड में कहानी "प्रतीक्षा " ,  घर ,पत्नी, बच्चे का त्याग कर विदेश गए व्यक्ति के पछतावे को बेहतर तरीके से अभिव्यक्त कर ती है. कहानी "अपनापन" अपने सीमित विस्तार के साथ भी   अविश्वास एवं परवाह के बीच के बारीक अंतर को समझाने में सफल रही है. तो कहानी एक नए ही तरीके के दहेज़ के विषय में बतलाती है साथ ही सादगी एवं आदर्शवादी चेहरे के पीछे छिपे दोहरे चरित्र को भी उजागर करती है तो बेटी और बहू के प्रति सामान परिस्थितियों में  भिन्न भिन्न रवैया "दोहरा  वर्ताव" में अत्यंत स्पष्ट और प्रभावी दिखा है. वहीँ दोहरा चरित्र जीते लोगों पर तंज़ करती है कहानी "आदर्श युगल" और 'नकली".    तो परिवार में बुज़ुर्ग सदस्य कि महत्तता को अपनेपन के भाव के संग दर्शाती एवं आने वाली पीढ़ी को समझाइश देती कहानी है 'उम्रदराज़ पेड़".    तो इसके विपरीत कुछ बच्चों का बुजुर्गों के प्रति उपेक्षा पूर्ण व्यवहार दर्शाती है  "कैसा बदलाव" अत्यंत प्रभावी कहन  तथा अल्पतम शब्दों में बहुत बड़ी बात कही गयी है. बुजुर्गों के प्रति आजकल कि तथाकथित व्यस्त पीढ़ी का रवैया दिखलाती है "मदद' तो  जहाँ घरेलू सहयोगी महिला के प्रति सहानुभूति एवं सद्व्यवहार का सुन्दर सन्देश देती है "स्वाभिमान" वहीँ  जहाँ गृह स्वामिनी से सारे परिवार को सिर्फ अपेक्षाएं ही हैं  वह कैसे अपनी स्पेस कि मांग  करती है और अपने समय पर अपने हक कि बात करती है दिखलाती है कहानी "रेज़ोल्युश्न्स" . कहानी संग्रह के खंड" मन जीवन और पर्वों के रंग" में संग्रहीत कहानियां नितांत पारिवारिक रिश्तों और पर्वों को और मजबूती से परिभाषित करती नज़र आती हैं यथा दीपदान जहाँ देवरानी जेठानी के रिश्ते को नयी परिभाषा दी है तो 'शगुन" "कच्ची डोर" और 'गुलाल" भी नयी परिभाषाएं लिख रहे हैं बस रिश्ते अलग हैं . अंतिम खंड से कहानी "चुप्पी" भी अपने कथानक और संक्षिप्त  किन्तु प्रभावी सन्देश से प्रभावित करती है. ,           

वर्तमान में मनोरंजन के अनेकानेक साधनों के चलते पाठकों के बदलते मिजाज़ को देखकर सहज ही कहा जा सकता है कि वर्तमान समय साहित्‍यिक एवं सांस्‍कृतिक विकास की दृष्‍टि से परिवर्तन देख रहा है  और भविष्‍य में  यही परिवर्तन लघुकथा ही नहीं हिन्‍दी साहित्‍य की अन्‍य विधाओं के विकास में भी मील के पत्‍थर साबित होगे।  वह दिन दूर नहीं होगा जब एक बार पुनः  पाठक बनने को आतुर होंगे और वे फिर एक बार  हाथों में हिंदी साहित्य कि गौरव शाली परिपाटी को आगे बढाने में योगदान देते हुए पुस्‍तकें ले गौरवान्वित महसूस करेंगे। साहित्‍य के विकास की दृष्‍टि से वह स्‍वर्णिम काल होगा  विश्‍वास के साथ कहा जा सकता है कि मोनिका जी का यह प्रयास भी लघुकथा के उज्‍जवल भविष्‍य में बहुमूल्य एवं अविस्मर्णीय योगदान होगा.

अतुल्य  



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