Do Shabdon Ke Beech Mein Chhuti Hui Jagah By Hargovind Puri

 


दो शब्दों के बीच में छूटी हुयी जगह  

द्वारा : हर गोविन्द पुरी 

विधा : कविता 

New World Publication द्वारा प्रकाशित 

प्रथम संस्करण 2025

मूल्य : 250 

समीक्षा क्रमांक : 189





   प्रकाशित कृतियों कि दृष्टि से अथवा कविताओं के विषय एवं पाठकों के बीच उनकी लोकप्रियता को पैमाना मानें तो हरगोविंद जी को खासा स्थान प्राप्त है . अब तलक उनके कई कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमे "पिता की नींद", “उदास आंखों के सपने”, “कविता बोलती है”, “मां का आंचल” आदि प्रमुखता से उल्लिखित किये जा सकते हैं वहीँ , समय समय पर उनकी रचनाएं विभिन्न स्थापित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित  होती रहती हैं अतः सहज ही स्पष्ट है कि उनके सृजन को पाठकों का अच्छा प्रतिसाद प्राप्त होता है. एवं मेरी दृष्टि में इसका मूल भूत कारण उनका सामान्य जन का कवि होना ही हैं .  एक आम इंसान के भाव ही उनकी कविता में हमें शब्द रूप में दीखते हैं . उनकी कविताओं में उनके जमीन से जुड़े हुए होने की तस्दीक अमूमन हर रचना करती  है और चूंकि वे सामान्य जन कि बात उन्हीं कि भाषा में व्यक्त करते हैं इसीलिए उनकी रचनाएं सरल सहज एवं बोधगम्य हैं कही किसी भी प्रकार की क्लिष्टता  नहीं है, न ही शब्दों में, न ही विचारों में  और फलस्वरूप हमें बेहद सरल भाषा, सामान्य भाव एवं भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति उनकी कविताओं में देखने को मिलती है। अधिकतर कविताएँ  भावनात्मक एवं संवेदनशीलता से लबरेज़ हैं बस सरल बात कही गयी है बिना किसी लाग लपेट के .  



जैसा कि मैंने पहले कहा उनकी कविता उनके लिए सिर्फ आम जन कि भावनाओं कि अभिव्यक्ति का माध्यम है .  और संभवतः यही कारण है जिस से उनका पाठक से बेहतर संवाद स्थापित होता है। उनका जुड़ाव इस लिए भी अधिक नज़दीकी होता है क्यूंकि उनकी कविताओं के विषय आम आदमी के जीवन के रोजमर्रा के मुद्दे ही हैं। 

भावनाओं की अभिव्यक्ति उसमें भी विशेषतौर पर प्रेमासिक्त कविताओं  में वे तुकबंदी जैसी बाध्यताओं से दूर ही दिखलाई दिए हैं . और इस कारण  से ही उनके विचार यथार्थ रूप में सामने आते हैं सामान्य शब्दों में तथा किसी भी प्रकार कि व्याकरणीय क्लिष्टता से बचते हुए.

यूं तो सभी कवितायेँ पढने का अपना अलग अलग आनंद देती  हैं अतः अनुरोध तो यही होगा कि समस्त कविताओं को पढ़ कर उनका रसास्वादन करें किन्तु अपने स्तर पर उनकी कुछ कविताओं के विषय में कुछ लिखूंगा ताकि उनके विभिन्न भाव का एक इशारा मिल सके इस कढ़ी में सबसे पहले ज़िक्र "तुम्हारे लिए लिखना " शीर्षक से प्रेम और प्रेम से जुडी जिज्ञासा और बेचैनी दर्शाती कविता है वहीँ उनकी विभिन्न कविताओं में जीवनसंगिनी के प्रति प्रेम समर्पण विशवास एवं उनके त्याग के प्रति आभार भी बहुतायत में नज़र आता है यथा "हे मेरी तुम" या फिर "तुम्हारे प्रेम में" वहीँ प्रेम पर भी अन्य कवितायें अत्यंत भाव परवान हैं तथा प्रेम कि हलकी फुहार थोडा सा तो ज़रूर ही भिगो जाती है . 

पुरी जी कि कवितायेँ पढ़ते हुए यह स्पष्ट दीखता है कि उन्हें किसी विषय विशेष कि दरकार कतई नहीं है उनकी कविताएं यथा "हवाई चप्पल", "मुझे नहीं आता बीड़ी पीना',  "बेंड  बजाने वाले" या फिर 'कठपुतली" महज़ कुछ बानगी हैं कि कैसे वे कविता के लिए विषय के मोहताज़ नहीं होते . वे किसी विषय विशेष , घटना अथवा प्रसंग पर उसी अधिकार से अपने विचार रखते हैं जैसे कि प्रेम कि कवितायें अथवा ज़मीन और मज़दूर से जुडी आम आदमी कि कवितायें.      

इसी संग्रह कि कविताओं से कुछ पंक्तियाँ उधृत कर रहा हूँ गौर कीजिएगा ;

आदमी के पसीने से सुन्दर हुयी रोटी सब्जी का स्वाद 

इन्हें जाने बगैर नहीं हो सकता पूरा 

मैं जीवन गुज़ारना नहीं चाहता 

पूरा जीवन ऐसे ही जीना चाहता हूँ.

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तुम्हारा नाम नहीं था पहल्रे कभी

और ना अब आयेगा 

ईश्वर तब भी चुप था और अब भी 

 जब उसके नाम पर शिल्पों से गुज़र कर 

जा रहा है सत्ता की  ओर  

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*.प्रेम के लिए निकाल लेना समय

और रखना पूरा ख्याल 

कहाँ आ पता है कविता में पूरा .

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* किसी भी घर का विभाजन 

नहीं है आत्मा के विभाजन से कम

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*प्रेम भाषा से नहीं 

मनुष्य से प्रेम करना सिखाता है 

प्रेम की भाषा 

मौजूद है दुनियां कि हर भाषा में

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*जमीन से परिचित लोग 

नहीं जानते जमीन कि भाषा  

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*मैं दूब हूँ 

आता है जीना मुझे 

कुचले जाने से नहीं खोटी अस्तित्व 

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* उनके पास रीढ़ नहीं थी 

केंचुआ हो जाना बहुत सरल है 

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*धरती का सीना फाड़ कर 

निकालते हैं कोयला हीरा सोना 

उनके द्वरा निकाली गयी चीज़ों कि चमक के आगे

हमेशा रहती है उनकी आभा फीकी 

 सफाई कर्मियों को समर्पित कविता "कब बजेंगे पांच" सरल है  किन्तु भाव प्रभावित करते हैं . और भी कवितायें अपने भाव अपनी सरल भाषा शैली और तार्किक किन्तु केन्द्रित कहाँ से प्रभावित करती हैं . संग्रह में तकरीबन १०० कवितायें प्रस्तुत कि गयीं हैं एवं कहना अतिश्योक्ति न होगा कि सभी  श्रेष्ट हैं एवं संग्रहणीय काव्य संग्रह है. 

अतुल्य  


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