Do Dooni Ishq By Sahity Sagar Pandey

 "दो दूनी इश्क' 

द्वारा : साहित्य सागर पाण्डेय 

flydreams द्वारा प्रकाशित 

प्रकाशन वर्ष : 2020

मूल्य : 150  .00

समीक्षा क्रमांक : 192


"दो दूनी इश्क", युवा लेखक साहित्य सागर पाण्डेय कि सहज सरल भाषा शैली में लिखी गयी एक कुछ कठिन सी किन्तु पूरी दिखने के बावजूद एक अधूरी प्रेम कहानी है . शीर्षक थोडा चौंकाता है किन्तु विषय गंभीर तो अवश्य था पर उसका जिस शैली में बखान किया है उस से सहज ही जुडाव होता है एवं विषय कि जटिलता सहज सी होती प्रतीत होती है. पुस्तक का वर्तमान  कवर लेखन के स्तर से हल्का प्रतीत होता है उसे बेहतर बनाया जा सकता था 

 वाक्यांश को उनके क्षेत्रीय भाषा के ही अंदाज़ में प्रस्तुत किया है एवं हाल फिलहाल आम तौर पर जो युवा लेखकों कि शैली में देखा जाता है कि कथन को विशिष्ट बनाने हेतु सहज भाषा शैली को व्यर्थ ही तोड़ मरोड़ कर क्लिष्ट शब्दों का अनावश्यक प्रवेश करवा कर उसे कठिन बना दिया जाता है भले ही वह पूर्णतः अनावश्यक एवं कथानक के लिए घातक ही क्यूँ न हो किन्तु इस प्रेम कथा के लेखक ने इस हालिया चलन से अलग हट कर  भाषा को अत्यधिक  सरल एवं क्षेत्र कि भाषा तथा शैली में ही रखा है. एवं कहीं भी उसे कुछ विशिष्ठ बनाने का प्रयास नहीं किया है तथा यह मौलिकता अंत तक बनी रहती है जो सम्पूर्ण कथानक को पाठक संग बाँध के रखता है. 



 .

घटना क्रम का प्रवाह भी कथानक के अनुरूप है एवं एक आम शहरी युवा कि शुरूआती रूमानी जिंदगी का अच्छा प्रस्तुतीकरण है. 

बचपन में स्कूल में टिफ़िन शेयरिंग से शुरू हुयी मित्रता समय के साथ साथ कैसे प्रेम में बदल  गयी मूल आधार यही है किन्तु विजातीय प्रेम कहानी में सब कुछ तो आसन हो ही नहीं सकता था कुछ तो समाज ने करना ही था वह सब बहुत विस्तार से आसान सी भाषा में कहा गया है , आज भी हमारे समाज में आम तौर पर एक सामान्य सरल  प्रेम कहानी विवाह तक पहुच जाये यही मुशिकिल होता है फिर यह तो विजातीय लड़की से रिश्ता था और वह भी ब्राम्हिण लड़के का मुस्लिम लड़की से और उस पर खास ये कि  लड़के के पिता राजनीति पार्टी के नेता , विधायक . सो बवाल तो होना ही था  जो हुआ और भरपूर हुआ जिसका वर्णन रोचक अंदाज़ में प्रस्तुत किया है. .

यह माना  जाता है एवं देखा भी गया है कि बचपन की मित्रता अक्सर गहरी और स्थायी होती है, जिसमें कोई पूर्वाग्रह नहीं होता है और जब यह मित्रता प्रेम में बदलती है, तो यह रिश्तों का  एक स्वाभाविक और सुंदर विकास होता है वहीँ समय के साथ साथ  किशोर अवस्था में पहुंचकर , प्रेम की भावनाएं अक्सर तीव्र एवं अनियंत्रित  हो उठती हैं और वह तरुण अथवा तरुणी अपनी भावनाओं को समझने और व्यक्त करने की कोशिश करते है जिसे इजहारे इश्क कहा जाता है अक्सर वह भाव सबसे प्रबल इसी समय होता है और अभिव्यक्त करना भी सबसे कठिन उम्र के इसी दौर में होता है उसका वर्णन अच्छा है. वहीँ आगे चलकर  युवावस्था में, व्यक्ति अधिक मैच्योर और आत्मविश्वासी हो जाता है और  इस उम्र में, वह अपने प्रेम को व्यक्त करने के लिए अधिक तैयार होता है,  साथ ही आने वाली चुनौतियां का सामना करने को भी । किन्तु  प्रेम का इजहार करना एक बड़ा कदम होता है, जिसमें नकारे जाने का जोखिम  होता है लेकिन स्वीकार किये जाने पर यह सुंदर और यादगार अनुभव बन जाता है जिसे लेखक ने विस्तार में सरल रूप से पूरे भाव के संग प्रस्तुत किया है.  


इस कठिन सफ़र में परिवार और समाज का दबाव, सबसे बड़ी चुनौती होती है . हालाँकि प्रस्तुत कहानी में परिवार तो नहीं किन्तु समाज ने अपनी सांप्रदायिक मानसिकता का परिचय दिया क्यूंकि आज भी हिन्दू लड़के का मुस्लिम लड़की से प्रेम  एक जटिल और संवेदनशील विषय है, कथानक में व्यक्तिगत संबंधों और सामाजिक दबावों के बीच के संघर्ष को बखूबी दर्शाया गया है। आज भी हम अक्सर देखते ही हैं कि , जब सांप्रदायिकता की आंच इस रिश्ते को प्रभावित करती है, तो यह एक बड़ी  चुनौती बन जाती है।  सांप्रदायिकता के कारण  समाज और समुदाय का दबाव इस रिश्ते को स्वीकार करने में भरसक बाधाएं उत्पन्न करते हैं और दोनों ही पक्षों को अपने अपने  परिवार और समुदाय के दबावों का सामना करना पड़ता है। उन्हें अपने रिश्ते को बचाने और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। जिसका अंजाम कभी सुखद तो कभी दुखद होता है. प्रस्तुत कहानी में उक्त सभी बिन्दुओं को बखूबी दर्शाया गया है कहानी का अंत जिस तरीके से किया गया है वह विस्मित करता हुआ कुछ नया है  . 

अतुल्य   

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