MRIGTRISHNA BY SUDHA MURTY
मृगतृष्णा
विधा
: उपन्यास
द्वारा
: सुधा मूर्ति
अनुवादक
: दीपिका रानी
संस्करण
: 2019
प्रभात
प्रकाशन द्वारा प्रकाशित
मूल्य:
400.00
पाठकीय प्रतिक्रिया क्रमांक : 158
वर्तमान में नारी जागरूकता एवं सशक्तिकरण का जो प्रचार प्रसार और प्रभाव देखने में आ रहा है पिछले दशक में यह बात नहीं थी एवं जो थी भी वह भी काफी कम एवं एक निश्चित वर्ग तक ही सीमित थी। प्रस्तुत पुस्तक सुधा मूर्ती जी द्वारा लिखित पुस्तक का हिन्दी अनुवाद “मृगतृष्णा” बहुत हद तक इसी विषय से संबद्ध है । यह एक सरल किन्तु सामाजिक परिवेश की उस दौर की नारी स्थिति की गहन समीक्षा करता हुआ नारी केंद्रित उपन्यास है। सुधा मूर्ती जी इंफ़ोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष हैं एवं उन्हें किसी भी परिचय की दरकार नहीं है , वे आम तौर पर अपने आस पास विशेष तौर पर ग्राम्य जीवन एवं सामाजिक संबंधों की बात करती हैं एवं सुधा जी का अधिकतर लेखन उनके समीपवर्ती परिवेश एवम सामाजिक मुद्दों पर होता है किंतु वे आपसी रिश्तों को अत्यंत अहमियत के साथ देखती हैं और अपने लेखन में शामिल करती है । उनकी लेखन शैली अत्यंत सहज सरल किन्तु प्रभावशाली है।
उपन्यास मृगतृष्णा में मूलतः एक ग्राम्य महिला
के जरिए उनकी सारी कहानी कही गई है सो कह सकते हैं की स्त्री विमर्श उनका मूल है किंतु कहीं न कहीं यह उस आधे समाज की भी बात
करती है जो अक्सर घर गृहस्ती चूल्हे चौके तक ही सीमित मानी उसकी आकांक्षाएं ,
प्रतिभा कहीं दबे रह जाते हैं बाज दफ़ा वह स्वयम को दोषी मान घुटती रह जाती है और कोई
तो डिप्रेशन का भी शिकार हो जाती हैं।
नारी स्थिति पर केंद्रित रहते हुए सहवर्ती अनेक विषयों के चलते उनके कथानक द्वारा हमें काफी कुछ जानने और समझने का अवसर मिलता है यथा ग्रामीण परिवेश , सहज, पारिवारिक एवम अपनी पुत्री को अत्यंत प्रेम करने वाले भीमन्ना वहीं पैसे को ही सब कुछ समझने वाली रतनम्मा और उनका डॉ बेटा संजय जो कालांतर में मृदुला का पति बनता है वे बखूबी दर्शाती हैं की कैसे पैसा आ जाने पर संजय जो एक बहुत सीधा साधा सरकारी अस्पताल का डॉ. था सफल होकर किस तरह बदल जाता है । वहीं मृदुला के भाई शंकर और संजय के दोस्त एलेक्स का चरित्र भी आज के लोगों की भौतिकतावादी सोच को बखूबी दर्शाता है । मृदुला का बेटा जो रईस घर में पैदा होने के कारण मृदुला की संस्कारी एवम सीमित व्यय आदि की सलाहों को व्यर्थ मानता है वहीं संजय बेटे की ही तरफदारी कर मृदुला का उपहास बना रहा है जो मृदुला को पीड़ा देता है ।
सुधा जी की खासियत है की वे अपनी बात सरलता से अपनी ही रो में कहे चली जाती हैं एवम अपनी बात को अधिक स्पष्टता से कहने की अथवा उसे सुंदर व्याकरणीय टच देने के अतिरिक्त या बारंबार प्रयास नहीं करती इसी कारण से उनके कथानक में सहज प्रवाह मिलता है किंतु जैसा मेने पहले भी लिखा यह उनका पहला उपन्यास है जिसे मैंने अनुवादित पढ़ा एवम यह आभास हुआ की सुधा जी का मूल लेखन पढ़ना ही अधिक आनंददायी है अनुदित कार्य में प्रतीत होता है मानो वाक्य बार बार तोड़ कर लिखे जा रहे हों । प्रवाह न होकर मात्र शाब्दिक अनुवाद ही किया गया प्रतीत होता है जो उतना सहज नहीं लगा। हालांकि पुस्तक का मूल एवम कथानक तो स्पष्ट हो ही गया । सुधा जी की कोई भी कृति पढ़ने से एक बात अक्सर देखने में आती है की वे सहज क्रम में इतने पात्र जोड़ती जाती हैं की बाज दफा पुस्तक के पन्ने पलट कर पात्र का नाम देखना पड़ता है उसके बारे में दरियाफ्त करनी होती है ।
आम
आदमी से बड़ा आदमी बनना और तब होने वाले व्यवहार में परिवर्तन के साथ साथ अपनी
पत्नी का निरंतर अपमान एवम उसे मानसिक रूप से क्षति पहुंचाने वाले अपमानजनक
व्यवहार को बहुत सुंदर तरीके डॉ संजय के
चरित्र द्वारा दिखलाया गया है वही उसकी पत्नी
मृदुला का व्यवहार एक आम घरेलू महिला के संयमित एवम समय के हिसाब से चलने वाले
व्यवहार को प्रदर्शित करता है । उनके पुत्र शिशिर के द्वारा वर्तमान युवा पीढ़ी की परवरिश तथा उनका व्यवहार दिखलाया
गया है वही अन्य भिन्न भिन्न किरदार अलग अलग विचारधारा को दर्शाते है ।
लक्ष्मी
जो डॉ. की बहन है और एक बैंकर से ब्याही गई थी किंतु फिलहाल उनकी आर्थिक स्थिति
ठीक नहीं है व मृदुला जो की डॉक्टर की पत्नि है, इन दोनो ही नारी पात्रों के द्वारा
जीवन जीने के दो भिन्न तरीके दिखलाए गए
हैं।
डॉ.
की दृष्टि में मृदुला का जीवन जीने का तरीका महज किताबी आदर्शवाद है जो वास्तविक
जीवन की सच्चाइयों से बेहद भिन्न हैं डॉ
की नज़रों में अपनी पत्नी के जिंदगी जीने का फलसफा इन वाक्यों में समझ आता है
" अगर तुम आदर्शवादी , भावुक और
संवेदनशील हो तो तुम बस स्कूल के शिक्षक बन सकते हो और कुछ नहीं । कामयाब होने के
लिए कठोर होना पड़ता है। "
कथानक
के दौरान आए संवादों के द्वारा भी गहरी बात कह जाना सुधा जी की शैली की विशिष्टता है ।यथा ऐसे ही एक
प्रसंग में वे कहती हैं की" इस
दुनिया में हर रिश्ता उसकी उपयोगिता पर निर्भर है "।
दांपत्य
संबंधों में विश्वास का टूटना , अपारदर्शिता
जैसे विषय को भी बहुत सूक्ष्मता से कथानक
में उकेरा गया है साथ ही कथानक के ही मध्यम से सुंदर सुझाव भी प्रस्तुत कर दिए
हैं।
पारिवारिक
एवम सामाजिक संबंधों में दिखावा , झूठ और
स्वार्थ से ओत प्रोत मानसिकता का भी अच्छा चित्रण है।
उपन्यास
मात्र एक कहानी न होकर एक अच्छी समझाइश
देने वाली मनोरंजक पुस्तक है बस पात्र संख्या कुछ ज्यादा ही है एवम उन्हें नाम से याद रखना थोड़ा सा कठिन तो है ही । अंत में एक बात और
कि यथा संभव किसी भी लेखक के मूल लेखन को
ही पढ़ें , अनुवादित पुस्तक में कितना भी अच्छा लिखा जाए मूल पुस्तक वाले भाव आना
असंभव ही है।
अतुल्य
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