Zindagi Unlimited By Zareen Aara

 

ज़िंदगी unlimited

विधा : आत्मकथा      

द्वारा: जरीन आरा

 प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित

मूल्य : 400/-

समीक्षा क्रमांक :146 


 आज बात एक आत्मकथा की, और वह भी एक ऐसी लड़की की आत्मकथा  जो साधारण लड़की तो कदापि नहीं, वह तो जमाने से अलग एक दिलचस्प जिंदादिल लड़की है। वह तमाम मुशकिलात के बाद भी जिंदगी को पूरी तरह से जीने में यकीन करती है आसमान की ऊंचाइयों को पाना  चाहती है वह चाहती है उच्च शिक्षा प्राप्त करना,  वह चाहती है फैशन डिजायनर बनाना अथवा एंकर बनना और अपने जीवन के हर उस पल को भरपूर जीती है जो बीमारी की परेशानियों के बीच उसे हासिल हो पता है। वह एक पल भी व्यर्थ नहीं जाने देती। वह एस.एम.ए. 2 बीमारी से पीडि़त जरूर  थी पर उसने बीमारी को कभी अपनी ज़िंदगी जीने के फलसफे के बीच नहीं आने दिया। इस बीमारी के चलते वह अपनी छोटी से छोटी गतिविधि के लिए भी यथा करवट लेना अथवा गर्दन हिलना आदि के लिए भी दूसरों पर निर्भर थी और फिर कमजोर श्वसन तंत्र के चलते बार बार संक्रमित हो जाने  के कारण उसका अधिक  समय तो हस्पताल में ही बीतता था, लेकिन उसने अपनी शारीरिक परेशानी को कभी  भी  अपनी खुशी एवं अपनी महत्वाकांक्षा की राह में आड़े नहीं आने दिया।


अब यह लेखिका कहाँ है किस हाल में हैं उनके विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है यदि किसी पाठक को उनके विषय में कुछ ज्ञात हो तो अवश्य पटल पर शेयर करें।  यह 2017 का संस्करण मैं पढ़ रहा हूँ, अर्थात तकरीबन 7 साल पहले यह पुस्तक लिखी गई होगी। उम्मीद है वे स्वस्थ होंगी उनके लिए सब दुआ करें क्यूंकि वही हमारे वश में है। उनकी हर बात से हर नजरिए में जिंदगी जीने का जोश और मुश्किलों से लड़ने का जो जज्बा दिखता है वह अनुकरणीय है। इतनी कम उम्र में भी अपने विचारों अपने साहस और अपनी जिंदादिली के लिए  वह अपने आप में एक मिसाल हैं और तमाम लोग उनसे उनके जज्बे से प्रभावित होते रहेंगे। उनकी मुश्किलों के आगे अपनी बीमारियाँ तो कुछ भी नहीं लगती। बेशक मैं उनसे बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ हूँ एवं निश्चय ही उनके कष्ट और कष्टों से जूझने के उनके जज्बे ने मुझे अपनी बीमारी से लड़ने का भी नया जोश दिया है।

अपनी आत्मकथा में उन्होंने अपनी बीमारी के कारण शरीर की अशक्तता, असहायता जैसे कारणों से उतत्पन्न विकलांगता के विषय में लिखा है।अपने जिंदगी जीने के जज्बे के बारे में लिखा है जो सब के लिए प्रेरणादायी है। दिव्याङ्ग जन की मुश्किलों से कौन वाकिफ नहीं है किन्तु वास्तविकता जो दिखती है उस से कहीं अधिक भयावह है तथा यह उनसे जुड़ा हुआ  सहृदय  व्यक्ति, संस्था अथवा वे स्वयम ही समझ सकते हैं, किन्तु फिर भी जरीन काफी हद तक उन मुश्किलों का सामना अपने संयम,  सकारात्मक सोच एवं परिवार तथा मित्रों के सहयोग से करने में  सफल हुई।  वहीं उनकी समस्याओं को पूरी गहराई से समझने उनका  विश्लेषण करने की क्षमता,  परिस्थिति के अनुकूल स्वयम को ढाल लेना तथा निरंतर सीखते हुए आगे अपने जीवन को सरल और सुगम बनाने की लालसा उन्हें मुश्किलों का सामना अधिक प्रभावी तरीके से करने में सक्षम बनाते हैं वहीं जरीन के विषय में यह तथ्य भी सर्वोपरि है कि वास्तविक ताकत उनका आत्मबल ही है। आत्मबल से तात्पर्य है उनकी अंदर की शक्ति और अल्लाह  पर  विश्वास, जो उन्हें किसी भी चुनौती का सामना करने में मदद करता है,  मेरी दृष्टि में भी न सिर्फ दिव्याङ्ग व्यक्तियों अपितु प्रत्येक शख्स के लिए आत्मबल अत्यंत महत्वपूर्ण है क्यूंकि इसी के बलबूते वे अपने जीवन की कठिनताओं से जूझ पाते हैं। यह आत्मबल ही होता है जो प्रेरित करता है, और वे दूसरों के लिए उदाहरण बनते हैं।

जरीन की ज़िंदगी में परिवार जिनमें भाई, बुया , बहन ,मित्र, एवं परिवेश अत्यंत महत्वपूर्ण है, उनके भावनात्मक समर्थन,  प्रेरणा द्वारा जहां एक ओर उनका  आत्मविश्वास  बढ़ता है वहीं दूसरी ओर उनके लिए आवश्यक संसाधन जुटाने में भी  परिवार के हर सदस्य की भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।

दिव्याङ्ग जन के जीवन में यदि बात करें परिवेश की तो देखते हैं की समाज एवं वातावरण का सहयोग,  उन्हें समान अवसर उपलब्ध करवाना,  सही सुविधाएं, जैसे रैम्प, विभिन्न आधुनिक मशीनी संसाधन, विशेष विद्यालय, एवं अन्य सहायक उपकरण आदि उनकी स्वतंत्रता को बढ़ाते हैं एवं व्यक्ति विशेष पर उनकी निर्भरता को सीमित करते है अथवा कम कर देते हैं साथ ही समाज का उनके प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण पूर्वागृह कम करता है और उनकी क्षमताओं को पहचानता है उन्हें मान्यता देता है। इस विषय पर भी जरीन ने काफी कुछ लिखा है , कैसे अपने नए घर में जाने पर उन्हें अकेलापन महसूस होता है , कैसे भिन्न स्कूलों में  अंतर देखती हैं आदि आदि।  

जरीन कहती हैं की मुझे  खुद नहीं पता था कि खुदा ने आखिरकार मुझे बनाने में और सुंदर लड़की के रूप में बड़ा करने में कुछ समय लगाया होगा। पर उसने कभी अपनी खूबसूरती पर ध्यान नहीं दिया। हालाँकि बाद में, उसे दूसरों से ही यह पता लगा। लोग उसकी तारीफ करते थे और उसे सराहते थे जिससे उसे यकीन हुआ कि वह सबसे खूबसूरत इनसानों में से एक है। वह एक लाल गुलाब की तरह है; जिसमें खुदा ने सुंदर सुगंध भर दी है।

जरीन एक दिव्यांग लड़की की प्रेरणाप्रद कहानी जिसने अत्यंत विषम परिस्थितियों में हिम्मत न हारकर अपनी अद्भुत जिजीविषा के बल पर जिंदगी को मजे से जीया और अपनी शारीरिक अक्षमताओं को बाधा नहीं बनने दिया, बार बार या कहें लगातार वह मुश्किलों से जूझ रही होती है लेकिन मजाल है जो उसने अपनी जिंदादिली,  पढ़ने की ललक और कुछ और सीखने के जज्बे को छोड़ा हो। उसने बीमारी को कोई अभिशाप या बोझ नहीं माना इसके उलट उसकी सोच यही रहीं की खुदा ने उसे विशेष तौर पर इस काम के लिए चुना है। वह न तो खुद कभी भी डिप्रेस हुई न ही उसने अपनी परेशानियों से दूसरों को परेशान किया। ये और बात थी की उसका बीमारी के कारण लगभग हर पल दूसरों पर आश्रित थी किंतु फिर भी वह सदैव खुदा की शुक्रगुजार रही की उसे इतने ज्यादा परवाह करने वाले भाई बहन शिक्षक और विशेष तौर पर बुआ मिली।

जहां उसकी स्वयं को शिक्षित बनाने की उत्कृष्ट कोटि की आकांक्षा दिखती है वही वह इस गंभीर बीमारी के चलते भी फैशन डिजाइनिंग कर रही होती है, यह ठीक है की बीमारी ने उसे शैक्षणिक तौर पर अन्य बच्चों से पीछे रखा किंतु अपने जज्बे के कारण वह सभी से आगे है। कई शिक्षकों,  सहयोगियों एवम परिवार की मदद से वह कठिनतम परिष्ठितियों में भी वह कर दिखाती है जो सामान्य व्यक्ति के लिए भी कठिन है। जरीन की यह पुस्तक जहां जिंदादिली और हर हाल में खुश रहने, व   खुशियां बांटने का संदेश देती है, वही सब कुछ किस्मत न मन कर कुछ  हद तक तकदीर से लड़ने जैसे माद्दे की मिसाल है ।

उसने ठान लिया था की वह अपने चेहरे से मुस्कान नहीं जाने देगी और यह की हर मामले में उसकी अल्लाह पर आस्था कभी नहीं टूटी।  वह कहती है की आप अपने ईश्वर में पक्का विश्वास रख कर सकारात्मक सोच रखिए। आप महसूस कर सकते हैं की किस तरह से आपकी जिंदगी तमाम मुसीबतों के बीच में आसान हो जाती है ।

वह आम बच्चों से आम इंसान से अलग थी किंतु सिर्फ शारीरिक क्षमताओं के विषय में। वह जानती  थी की  जिंदगी की दौड़ में वह अपनी भावनाओं और इक्षाओं को साथ लेकर नहीं चल सकती। वह कहती है कि मेरी दुनिया आम लोगों की दुनिया से इतनी अलग है तो मैं अपनी दुनिया आपकी दुनिया से बेहतर बना लूंगी,  और किसी इंसान द्वारा वही सबसे खूबसूरत कोशिश हो सकती है। अल्लाह ने मेरी दुनिया को इतना कठिन बनाया है और मुझे इस काबिल बनाया है की मैं  वह मुकाम हासिल कर सकूं जिसे हर कोई हासिल करने का ख्वाब देखता है।

पुस्तक की विशिष्टता जरीन की साफ़गोई भी कही जाएगी।  अपने सम्पूर्ण लेखन में जरीन पूर्णतः  सच के साथ रही हैं,  किसी को व्यर्थ ही खुश करने का अथवा बुरा बताने का प्रयास नहीं दिखा जो भी जैसा लगा सच्चाई के साथ लिख दिया चाहे वे डॉक्टर्स हों,  टीचर,  केयर टेकर अथवा पारिवारिक सदस्य या फिर दोस्त।

सहज ही एक प्रश्न कौंधता है कि आखिर जरीन को इतना  आत्मिक बल कहां से मिलता है , तो यह इन पंक्तियों से स्पष्ट हो जाता है,  " क्योंकि मैंने खुदा की असली ताकत को पा लिया है जो जिंदगी के हर उतार चढ़ाव में मेरी मदद करता है, और मैं हमेशा अपने दिल में इस यकीन को बनाए रखूंगी कि वह निश्चित ही मेरी जिंदगी को बेहतर बनाएगा ।यही विश्वास उसकी शक्ति है।

एक स्थान पर वह लिखती है,  "हर बार मैं अपने से कहती अब और ज्यादा ताकत नहीं बची है, अब हार माननी ही पड़ेगी।" लेकिन मेरे दिल  ने मुझे कभी ऐसा करने नहीं दिया। वह हमेशा मुझसे कहता था "तुम विजेता हो,  तुम्हें किसी बुराई को अपने ऊपर हावी होने नहीं देना है क्योंकि सबसे बड़ी ताकत खुदा तुम्हारे साथ है। और फिर मैं जोश में आकर  बीमारी से लड़ने के लिए ताकत फिर से जुटा लेती ।

अपनी यह पुस्तक लिखने के पीछे जरीन का मकसद अपनी दुर्लभ बीमारी S M A 2 के बारे में आम जन को अवगत कराना और यथा संभव जागरूक करना भी है ।

शारीरिक रूप से अशक्त होने के बावजूद स्वावलंबन की भावना भी जरीन में है जो आम जन के लिए भी बड़ा संदेश है। एक  स्थान पर जरीन कहती भी है की किसी से भी बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं  करना, उम्मीद केवल खुदा से करनी चाहिए क्योंकि वही आपको उम्मीद से ज्यादा दे सकता है।

यूं आज बाजार में मोटिवेशन व्यवसाय बन गया है एवं बाजार में सैकड़ों मोटिवेशनल पुस्तकें मिल रही हैं और वे उन आदर्श बातों को बतलाती हैं जो संभवतः उन्होंने स्वयम लेखक ने भी अपने जीवन में नहीं अपनाया होगा और आम इंसान के लिए उन्हें जीवन में उतार पाना  असंभव ही होता है किन्तु जरीन की यह पुस्तक यूं तो उनकी आत्म कथा ही है किन्तु कहना ही होगा की इस से अधिक प्रेरणादायी पुस्तक मुझे संभवतः आज तक नहीं मिली। यह अद्वितीय है।

अतुल्य    

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