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Paati chacha By Sanjiv Kumar Gangvar

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  पाती चाचा विधा : कहानी द्वारा :   संजीव कुमार गंगवार गरुड़ प्रकाशन द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण : 2024 मूल्य: 299.00 समीक्षा क्रमांक : 141                                                                              25 वर्षों से निरंतर साहित्य की प्रत्येक विधा को अपने सृजन से सवारते हुए संजीव जी ने अब “पाती चाचा” के रूप में अपना प्रथम कहानी संग्रह प्रस्तुत किया है। अब तक उनकी 30 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें   उपन्यास , कविता , गजल , सेल्फ इंप्रूवमेंट , बाल साहित्य , नॉन फिक्शन , मर्डर मिस्ट्री , और कहानी संग्रह शामिल हैं एवं उन की इन   प्रस्तुतियों के द्वारा जहां एक ओर उनकी बहुमुखी प्रतिभा और समस्त विधाओं पर समान नियंत्रण नजर आता है वहीं कहीं न कहीं यह लेखक के अंतर्मन की असंतुष्टि, व्यक्ति , व्यवस्था एवं समाज से अपेक्षाएं एवं कहीं न कहीं व्यवस्था तथा सत्ताधीशों के प्रति असंतोष   के साथ साथ अमूमन प्रत्येक विषय पर कुछ और बेहतर की तलाश की ललक एवं स्वयम के अंदर छुपे सर्वश्रेष्ट को   बाहर लाने की उत्कंठा भी नजर आती है।                                                  

Dimag Walo Savdhan By Dharmpal Mahendra Jain

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  दिमाग वालो सावधान विधा : व्यंग्य द्वारा : धर्मपाल महेंद्र जैन किताबगंज   प्रकाशन द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण : 2020 मूल्य : 500.00 समीक्षा क्रमांक :  140 धर्मपाल महेंद्र जैन व्यंग्य लेखन में एक जाना पहचान नाम है। मूलतः मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र झाबुआ के निवासी, किन्तु वर्तमान में कनाडा में बस जाने के बावजूद वे अपने देश अपनी मिट्टी से जुड़े हुए है और यह उनकी रचनाओं में, उनके चिंतन में स्पष्ट नजर आता है। मूलतः व्यंग्य लेखन करते हुए वे काव्य सृजन के क्षेत्र में भी स्तरीय रचनाएं लिख कर साहित्य समृद्धि में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं।   उनकी विभिन्न व्यंग्य रचनाओं का संग्रह है “दिमाग वालो   सावधान”। रचनाओं का जिक्र करें उसके पहले थोड़ी बात   इस विशिष्ट विधा की। व्यंग्य लेखन हिन्दी साहित्य में वह विशिष्ठ एवं दुष्कर शैली है जिसमें व्यंग्यकार समाज , राजनीति , या किसी अन्य विषय पर व्यंग्यात्मक एवं आलोचनात्मक दृष्टिकोण से लिखता है तथा चुभती हुई बातें कुछ इस तरह प्रस्तुत कर दी जाती हैं की “घाव करे गंभीर.. ”   वाली उक्ति चरितार्थ हो जाती है , तभी तो कहा जाता है क

Thaluaa Chintan By Ram Nagina Mourya

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  ठलुआ चिंतन द्वारा : राम नगीना मौर्य विधा : कथा संग्रह (व्यंग्य) रश्मि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित प्रथम संग्रह 2024   मूल्य : 300.00   बात हिन्दी साहित्य में स्वस्थ व्यंग्य लेखन की हो तो मौर्य जी का नाम स्वतः ही जुबान पर   आ जाता है। विभिन्न प्रकाशित पुस्तकों की अच्छी खासी संख्या के अलावा भी समय समय पर उनकी रचनाएं भारतवर्ष के अमूमन हर प्रतिष्ठित पत्र पत्रिका में प्रकाशित होती रहती है। वे रचनाएं जो पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुकी हैं उनके अलावा भी मौर्य जी के पास रचनाओं का विशाल भंडार है, तात्पर्य यह की साहित्य सृजन हेतु उनकी प्रतिबद्धता अद्वितीय है एवं सुधि पाठकों को और भी बहुमूल्य साहित्य का रसास्वादन करने के अवसर भविष्य में भी निरंतर   मिलते रहेंगे।   उनकी रचनाओं में भाषा भाव सहज सरल प्रवाह में रहता है एवं वे   पाठक को सहज ही कथावस्तु से जोड़ कर मौके पर उपस्थित होने   का एहसास करवा देते हैं। स्थान , पात्र एवं अवसर के मुताबिक ही शब्द प्रयुक्त होते हैं, साथ ही   वे अपनी रचना में आवश्यकतानुसार क्षेत्रीय भाषा के बहुप्रचलित शब्द,   वाक्य, मुहावरे भी प्रयुक्त करते चलते हैं और प

Kahaniyon Ka Karwan By Ram Pal Shrivastav

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कहानियों का कारवां द्वारा :  रामपाल श्रीवास्तव   विधा : कहानी संग्रह  समदर्शी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण वर्ष : 2024 मूल्य : 200.00                                                             रामपाल श्रीवास्तव जी की विभिन्न साहित्यिक कृतियों की समीक्षा के मार्फत  पहले भी आपका परिचय उनके कृतित्व से करवाया है एवम यह निर्विवादित ही है की उर्दू भाषा का वृहद  ज्ञान , एक आती समृद्ध प्राचीन एवं बहुत सुंदर भाषा के अमूमन प्रत्येक पहलू पर उनकी पकड़ निश्चय ही उनकी उर्दू भाषा की तालीम के साथ साथ उर्दू भाषा एवं उर्दू साहित्य में उनकी रुचि का ही परिणाम है । समय समय पर अपनी रचनाओं   में उर्दू का प्रयोग उन्हें सामान्य से तनिक अलग खड़ा करता है ।   हिन्दी साहित्य में भी हिन्दी भाषा की तरह ही लचीलापन देखने को मिलता है यथा हिन्दी भाषा अन्य भाषाओं के शब्दों को स्वीकार कर समाहित कर लेतीं है ठीक उसी प्रकार अन्य भाषाओं की कहानियों एवं साहित्य का हिन्दी में अनुवाद भी बहुतायत में देखने में आता है जिसने हमें दुनिया भर के साहित्य से परिचित करवाया है। इसी तारतम्य में राम पाल श्रीवास्तव जी  द्वा