Kahaniyon Ka Karwan By Ram Pal Shrivastav

कहानियों का कारवां

द्वारा :  रामपाल श्रीवास्तव 

विधा : कहानी संग्रह

 समदर्शी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित

प्रथम संस्करण वर्ष : 2024

मूल्य : 200.00 

                                                          

रामपाल श्रीवास्तव जी की विभिन्न साहित्यिक कृतियों की समीक्षा के मार्फत  पहले भी आपका परिचय उनके कृतित्व से करवाया है एवम यह निर्विवादित ही है की उर्दू भाषा का वृहद  ज्ञान , एक आती समृद्ध प्राचीन एवं बहुत सुंदर भाषा के अमूमन प्रत्येक पहलू पर उनकी पकड़ निश्चय ही उनकी उर्दू भाषा की तालीम के साथ साथ उर्दू भाषा एवं उर्दू साहित्य में उनकी रुचि का ही परिणाम है । समय समय पर अपनी रचनाओं  में उर्दू का प्रयोग उन्हें सामान्य से तनिक अलग खड़ा करता है ।




 हिन्दी साहित्य में भी हिन्दी भाषा की तरह ही लचीलापन देखने को मिलता है यथा हिन्दी भाषा अन्य भाषाओं के शब्दों को स्वीकार कर समाहित कर लेतीं है ठीक उसी प्रकार अन्य भाषाओं की कहानियों एवं साहित्य का हिन्दी में अनुवाद भी बहुतायत में देखने में आता है जिसने हमें दुनिया भर के साहित्य से परिचित करवाया है। इसी तारतम्य में राम पाल श्रीवास्तव जी  द्वारा किया गया उर्दू (13), अरबी(2)  की चयनित 15 कहानियों का अनुवाद  "कहानियों का कारवां" पुस्तक रूप में प्रकाशित हुआ है जो निश्चय ही हिन्दी साहित्य की परंपराओं के निर्वहन में एवं हिन्दी साहित्य सागर की विशालता को दर्शाता एक अभिनव प्रयास है।  

प्रस्तुत पुस्तक “कहानियों का कारवां” उर्दू और अरबी की बेहतरीन कहानियों का संकलन है जिसे रामपाल जी ने सम्पूर्ण मनोनयोग से पढ़ कर तब उन्हें इस संकलन में शामिल किया है। यूं तो चुनिंदा एवं ख्यातिलब्ध कहानिकारों की उर्दू कहानियां हैं अतः उन पर मुझ मूढ़ मगज के द्वारा कुछ भी टिप्पणी करना सूर्य को दीप दिखाने से अधिक कुछ भी नही होगा साथ ही पुस्तक के प्रारंभ में ही रामपाल जी ने जो विस्तृत विश्लेषण कहानियों पर प्रस्तुत किया है वह स्वयं में ही अद्वितीय है तथा कहानियों को संग्रह में शामिल किये जाने से पूर्व रामपाल जी द्वारा किया गया शोध दर्शाती है एवं स्वयम में ही पुस्तक का अत्यंत सुंदर परिचय है ।

पुस्तक की शुरुआत में “अफसानानामा” में अत्यंत विस्तार से कहानियों के उद्भव विकास एवं उसमें भी प्रमुखता से उर्दू जुबान में कही गई कहानियों पर चर्चा की है, जो की अमूमन सभी के लिए काफी जानकारी देने वाली है । बात यदि अपनी कहूं तो उनके इस आलेख से  बहुत बहुत लाभान्वित हुआ जिसके लिए उनका आभार। तार्किक, विस्तृत जानकारी के पीछे गहन शोध स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता है जिसे अत्यंत ध्यान एवम संयम से पढ़ा जाना चाहिए। वे मानते हैं की कहानी और इंसान का अस्तित्व में आना साथ साथ ही है । प्रारंभिक काल की कहानियों का जिक्र  करते हुए वे प्रातः स्मरणीय मुंशी प्रेमचंद जी जैसे महान कथाकार को प्रमुखता से स्मरण करते हुए उनके प्रारंभिक साहित्य से हमें परिचित करवाते हैं वही आरंभ की उर्दू कहानियों में किस तरह की रिवायतें हुई हैं इस पर भी विस्तार से चर्चा की है। उनके मुताबिक उर्दू कहानी के लिए 1907 से 1918 का काल विशेष रूप से याद किया जाना चाहिए चूंकि यही वह समय था जब उर्दू कहानी की अपनी  जमीन बनी एवं मूर्धन्य साहित्यकारों के इस से जुड़ने   से इसको समृद्धि प्राप्त हुई ।

बात शुरू करें संग्रह में शामिल कहानियों की तो , एम सद्दाम जी द्वारा रचित "सब नेटवर्क प्रॉब्लेम है" समाज में, परिवार में, आपस में सामंजस्य की कमी दर्शाती एवं  रिश्तों की पोल खोलती एक बेहद अर्थपूर्ण कहानी है जो आस पास नजर दौड़ाने को तो विवश करती ही है  साथ ही आत्मवचिंतन हेतु भी प्रेरित करती है ।

वहीं इकबाल मेंहदी द्वारा रचित कहानी "गृह स्वामिनी" को भी इस संकलन में शामिल किया है जो नारी विमर्श केंद्रित होते हुए तथाकथित स्वामिनी (?) की वास्तविक स्थिति , विवशताओं व घुटन से अवगत कराती है ।

बचपन की यादों से, अपने अतीत से जुड़े हुए बहुत से ऐसे पल होते हैं जिन्हें इंसान ताजिंदगी भुला नही पाता और मौका मिलते ही उसकी पुरजोर दिली  तमन्ना होती है की कैसे अपने उन पलों को फिर से ताजा कर ले , फिर जी ले , ऐसे ही कुछ यादों के सफर की कहानी है "कब्र" जो की रामलाल जी द्वारा रचित है

 "चांद और फंदा" बलवंत सिंह  जी द्वारा रचित यूं तो एक असफल प्रेम कहानी या एक तरफा प्रेम की दास्तान कही जाती गर अंतिम दो लाइनें सामान्य ही कही जाती किंतु लेखक ने तो वहाँ  पहुंच कर कथानक को एक अप्रत्याशित मोड़ दे दिया जो कहानी को नया ही रंग दे गया है। सुंदर  प्रस्तुति।

"ये इश्क नहीं आसां" महमूद फारूकी जी की रचना है जिनका अंदाजे बयां बिलकुल जुदा तो है ही साथ ही उनमें पाठक को कथानक से बांध के रखने का हुनर भी बखूबी नजर आता है । एक असामान्य से विषय पर बिना किसी अधिक तामझाम अथवा पात्रों के सुंदर लेखन है ।

स्पष्ट करता चलूँ कि कहानी के विषय में अधिक लिख कर कहानी के प्रति पाठक का रुझान एवं उत्सुकता कम नहीं करना चाहता अतएव अल्पतम शब्दों में कहानी के विषय में बता देने का ही मेरा प्रयास है। इसमें समीक्षा जैसा कुछ नहीं है बस कहानियों का आनंद लें।  कहानियाँ जैसी मुझे लगीं बस वहीं आप  से साझा कर रहा हूँ।   

रत्न सिंह द्वारा लिखित "हजारों साल लंबी रात" लघुकथा की श्रेणी से थोड़ी ऊपर है ऐवम अंत चकित करता है । वहीं रशीद फारूकी की "त्याग" एक बेहद सामान्य विषय पर केंद्रित कथानक है , जो की समाज में आम तौर पर देखा जाता है । लड़की की रजामंदी के बगैर उसका निकाह किसी अन्य से करवा दिया जाता है जिसका मानसिक व  शारीरिक प्रभाव इस लड़की पर देखने में आता है । अमूमन तो ऐसे मामलात में सुधार की गुंजाइश या तो नहीं अथवा बस  मामूली ही होती है, कभी समाज तो कभी कुप्रथाएं आढ़े आ जाती है फिर भी  खुदा न खासता कोई प्रयास करे भी तो क्या हासिल होगा यह भी तो अप्रत्याशित ही है।

 बानो सरताज की “गुमराह रहनुमा” हमारे हालिया समाज के ठेकेदारों को बेनकाब करती है , जिनकी खुद की तालीम का ठिकाना न रहा, वे कठमुल्ले ढोंगी किस तरीके से अनपढ़ किन्तु आस्थावान लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं , काश , इन्हें कोई सही राह दिखा सके।  इकबाल अंसारी द्वारा रचित "गेंडे का सींग" , एक रोमांचक थ्रिलर ही है जहां जंगली जानवरों का शिकार और व्यक्ति की अतृप्त  अदम्य लालसाओं को दर्शाया है । सुंदर सिलसिलेवार प्रस्तुति ।

बात करें गर इफ्तिखार अहमद रचित ,"इकलौता पुत्र" की तो यह एक विकलांग की संघर्ष और उड़ान के साथ सफलता के शिखर तक पहुंचने के सफर की कहानी है ।

 इतने ख्याति लब्ध प्रतिष्ठित और गुणी लेखकों की रचनाएं एक स्थान पर ला कर रामपाल जी ने पाठकों के लिए अत्यंत उपकारी कार्य किया है , संभवतः आम पाठक इतने लेखकों को पढ़ने के लिए इतनी जहमत कतई न उठाता एवं हर किसी के लिए यह संभव भी न होता । राम पाल जी के इस उपकार हेतु उनका पाठकों द्वारा बहुत बहुत आभारी  होना स्वाभाविक है।  वास्तविक अर्थों में उनकी साहित्य सेवा अमूल्य है। 

 "एक ज़ख्म और सही" महेंद्रनाथ जी  द्वारा लिखित एक सुंदर कहानी जो यूं तो हल्की फुल्की प्रेम  कथा  बन सकती थी किंतु  कथानक के कुछ अप्रत्याशित घुमाव उसे एक अद्भुत गंभीर प्रेम की परिभाषा बना गया। कहानी में कसाव है और पाठक को संबद्ध रखने की अद्भुत कला देखी जा सकती है।

एक कहानी “विचार यात्रा”  रामपाल जी की भी रखी गई है जो मुस्लिम समाज में तलाक जैसी बुराई  पर पवित्र कुरान की आयतों के विवरण के द्वारा रोशनी डालते हुए उसे कैसे गुनाहे अजीम ठहराती है यह दर्शाती है। रामपाल जी की उर्दू की तालीम उनके अध्ययन को विस्तार देती है जो की उनके हिंदी साहित्य सृजन में भी स्पष्ट दिखलाई पड़ता है ।

 कहानी जहां तलाक को गुनाहे अजीम ठहराती है वहीं यह भी  की यह ईबलीस ( शैतान)  की पसंदीदा है। अतः दर्शाया गया है की यह कितनी बड़ी बुराई है भले ही कुरान उसे मजहब में गैरकानूनी नही करार देता ।

 संकलन में दो अरबी कहानियां भी शामिल की गई है एक तो  नेमतुलहज्जी की “प्रतिरोध” जो वतनपरस्ती, आजादी और शहीदी जैसे विषय पर लिखी गई है , प्रेरणादाई एवं जोश पैदा करने वाली है  वहीं हल्का सा रंग ऐसे माहौल में भी प्रेम की कोपलों  को भी  सहेजे हुए है।

 तो दूसरी अरबी कहानियां अहमद महमूद मुबारक की “जलजला”, जो दर्शाता है की इंसान किस कदर आधुनिकता एवं उच्च शिक्षा के मद में अंधा हुआ अपने अतीत को भुला बैठा है और एक अंधी दौड़ में भाग रहा है ।

प्रस्तुत कहानी संग्रह में शामिल कहानियां रोचक होने के साथ साथ हमें उस देश काल व परिस्थिति को भी समझने का अवसर देती हैं। राम पाल श्रीवास्तव जी का सराहनीय प्रयास है।

अतुल्य

  

कहानियों का कारवां

द्वारा :  रामपाल श्रीवास्तव 

विधा : कहानी संग्रह

 समदर्शी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित

प्रथम संस्करण वर्ष : 2024

मूल्य :  200

रामपाल श्रीवास्तव जी की विभिन्न साहित्यिक कृतियों की समीक्षा के मार्फत  पहले भी आपका परिचय उनके कृतित्व से करवाया है एवम यह निर्विवादित ही है की उर्दू भाषा का वृहद  ज्ञान , एक आती समृद्ध प्राचीन एवं बहुत सुंदर भाषा के अमूमन प्रत्येक पहलू पर उनकी पकड़ निश्चय ही उनकी उर्दू भाषा की तालीम के साथ साथ उर्दू भाषा एवं उर्दू साहित्य में उनकी रुचि का ही परिणाम है । समय समय पर अपनी रचनाओं  में उर्दू का प्रयोग उन्हें सामान्य से तनिक अलग खड़ा करता है । 

हिन्दी साहित्य में भी हिन्दी भाषा की तरह ही लचीलापन देखने को मिलता है यथा हिन्दी भाषा अन्य भाषाओं के शब्दों को स्वीकार कर समाहित कर लेतीं है ठीक उसी प्रकार अन्य भाषाओं की कहानियों एवं साहित्य का हिन्दी में अनुवाद भी बहुतायत में देखने में आता है जिसने हमें दुनिया भर के साहित्य से परिचित करवाया है। इसी तारतम्य में राम पाल श्रीवास्तव जी  द्वारा किया गया उर्दू (13), अरबी(2)  की चयनित 15 कहानियों का अनुवाद  "कहानियों का कारवां" पुस्तक रूप में प्रकाशित हुआ है जो निश्चय ही हिन्दी साहित्य की परंपराओं के निर्वहन में एवं हिन्दी साहित्य सागर की विशालता को दर्शाता एक अभिनव प्रयास है।  

प्रस्तुत पुस्तक “कहानियों का कारवां” उर्दू और अरबी की बेहतरीन कहानियों का संकलन है जिसे रामपाल जी ने सम्पूर्ण मनोनयोग से पढ़ कर तब उन्हें इस संकलन में शामिल किया है। यूं तो चुनिंदा एवं ख्यातिलब्ध कहानिकारों की उर्दू कहानियां हैं अतः उन पर मुझ मूढ़ मगज के द्वारा कुछ भी टिप्पणी करना सूर्य को दीप दिखाने से अधिक कुछ भी नही होगा साथ ही पुस्तक के प्रारंभ में ही रामपाल जी ने जो विस्तृत विश्लेषण कहानियों पर प्रस्तुत किया है वह स्वयं में ही अद्वितीय है तथा कहानियों को संग्रह में शामिल किये जाने से पूर्व रामपाल जी द्वारा किया गया शोध दर्शाती है एवं स्वयम में ही पुस्तक का अत्यंत सुंदर परिचय है ।

पुस्तक की शुरुआत में “अफसानानामा” में अत्यंत विस्तार से कहानियों के उद्भव विकास एवं उसमें भी प्रमुखता से उर्दू जुबान में कही गई कहानियों पर चर्चा की है, जो की अमूमन सभी के लिए काफी जानकारी देने वाली है । बात यदि अपनी कहूं तो उनके इस आलेख से  बहुत बहुत लाभान्वित हुआ जिसके लिए उनका आभार। तार्किक, विस्तृत जानकारी के पीछे गहन शोध स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता है जिसे अत्यंत ध्यान एवम संयम से पढ़ा जाना चाहिए। वे मानते हैं की कहानी और इंसान का अस्तित्व में आना साथ साथ ही है । प्रारंभिक काल की कहानियों का जिक्र  करते हुए वे प्रातः स्मरणीय मुंशी प्रेमचंद जी जैसे महान कथाकार को प्रमुखता से स्मरण करते हुए उनके प्रारंभिक साहित्य से हमें परिचित करवाते हैं वही आरंभ की उर्दू कहानियों में किस तरह की रिवायतें हुई हैं इस पर भी विस्तार से चर्चा की है। उनके मुताबिक उर्दू कहानी के लिए 1907 से 1918 का काल विशेष रूप से याद किया जाना चाहिए चूंकि यही वह समय था जब उर्दू कहानी की अपनी  जमीन बनी एवं मूर्धन्य साहित्यकारों के इस से जुड़ने   से इसको समृद्धि प्राप्त हुई ।

बात शुरू करें संग्रह में शामिल कहानियों की तो , एम सद्दाम जी द्वारा रचित "सब नेटवर्क प्रॉब्लेम है" समाज में, परिवार में, आपस में सामंजस्य की कमी दर्शाती एवं  रिश्तों की पोल खोलती एक बेहद अर्थपूर्ण कहानी है जो आस पास नजर दौड़ाने को तो विवश करती ही है  साथ ही आत्मवचिंतन हेतु भी प्रेरित करती है ।

वहीं इकबाल मेंहदी द्वारा रचित कहानी "गृह स्वामिनी" को भी इस संकलन में शामिल किया है जो नारी विमर्श केंद्रित होते हुए तथाकथित स्वामिनी (?) की वास्तविक स्थिति , विवशताओं व घुटन से अवगत कराती है ।

बचपन की यादों से, अपने अतीत से जुड़े हुए बहुत से ऐसे पल होते हैं जिन्हें इंसान ताजिंदगी भुला नही पाता और मौका मिलते ही उसकी पुरजोर दिली  तमन्ना होती है की कैसे अपने उन पलों को फिर से ताजा कर ले , फिर जी ले , ऐसे ही कुछ यादों के सफर की कहानी है "कब्र" जो की रामलाल जी द्वारा रचित है

 "चांद और फंदा" बलवंत सिंह  जी द्वारा रचित यूं तो एक असफल प्रेम कहानी या एक तरफा प्रेम की दास्तान कही जाती गर अंतिम दो लाइनें सामान्य ही कही जाती किंतु लेखक ने तो वहाँ  पहुंच कर कथानक को एक अप्रत्याशित मोड़ दे दिया जो कहानी को नया ही रंग दे गया है। सुंदर  प्रस्तुति।

"ये इश्क नहीं आसां" महमूद फारूकी जी की रचना है जिनका अंदाजे बयां बिलकुल जुदा तो है ही साथ ही उनमें पाठक को कथानक से बांध के रखने का हुनर भी बखूबी नजर आता है । एक असामान्य से विषय पर बिना किसी अधिक तामझाम अथवा पात्रों के सुंदर लेखन है ।

स्पष्ट करता चलूँ कि कहानी के विषय में अधिक लिख कर कहानी के प्रति पाठक का रुझान एवं उत्सुकता कम नहीं करना चाहता अतएव अल्पतम शब्दों में कहानी के विषय में बता देने का ही मेरा प्रयास है। इसमें समीक्षा जैसा कुछ नहीं है बस कहानियों का आनंद लें।  कहानियाँ जैसी मुझे लगीं बस वहीं आप  से साझा कर रहा हूँ।   

रत्न सिंह द्वारा लिखित "हजारों साल लंबी रात" लघुकथा की श्रेणी से थोड़ी ऊपर है ऐवम अंत चकित करता है । वहीं रशीद फारूकी की "त्याग" एक बेहद सामान्य विषय पर केंद्रित कथानक है , जो की समाज में आम तौर पर देखा जाता है । लड़की की रजामंदी के बगैर उसका निकाह किसी अन्य से करवा दिया जाता है जिसका मानसिक व  शारीरिक प्रभाव इस लड़की पर देखने में आता है । अमूमन तो ऐसे मामलात में सुधार की गुंजाइश या तो नहीं अथवा बस  मामूली ही होती है, कभी समाज तो कभी कुप्रथाएं आढ़े आ जाती है फिर भी  खुदा न खासता कोई प्रयास करे भी तो क्या हासिल होगा यह भी तो अप्रत्याशित ही है।

 बानो सरताज की “गुमराह रहनुमा” हमारे हालिया समाज के ठेकेदारों को बेनकाब करती है , जिनकी खुद की तालीम का ठिकाना न रहा, वे कठमुल्ले ढोंगी किस तरीके से अनपढ़ किन्तु आस्थावान लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं , काश , इन्हें कोई सही राह दिखा सके।  इकबाल अंसारी द्वारा रचित "गेंडे का सींग" , एक रोमांचक थ्रिलर ही है जहां जंगली जानवरों का शिकार और व्यक्ति की अतृप्त  अदम्य लालसाओं को दर्शाया है । सुंदर सिलसिलेवार प्रस्तुति ।

बात करें गर इफ्तिखार अहमद रचित ,"इकलौता पुत्र" की तो यह एक विकलांग की संघर्ष और उड़ान के साथ सफलता के शिखर तक पहुंचने के सफर की कहानी है ।

 इतने ख्याति लब्ध प्रतिष्ठित और गुणी लेखकों की रचनाएं एक स्थान पर ला कर रामपाल जी ने पाठकों के लिए अत्यंत उपकारी कार्य किया है , संभवतः आम पाठक इतने लेखकों को पढ़ने के लिए इतनी जहमत कतई न उठाता एवं हर किसी के लिए यह संभव भी न होता । राम पाल जी के इस उपकार हेतु उनका पाठकों द्वारा बहुत बहुत आभारी  होना स्वाभाविक है।  वास्तविक अर्थों में उनकी साहित्य सेवा अमूल्य है। 

 "एक ज़ख्म और सही" महेंद्रनाथ जी  द्वारा लिखित एक सुंदर कहानी जो यूं तो हल्की फुल्की प्रेम  कथा  बन सकती थी किंतु  कथानक के कुछ अप्रत्याशित घुमाव उसे एक अद्भुत गंभीर प्रेम की परिभाषा बना गया। कहानी में कसाव है और पाठक को संबद्ध रखने की अद्भुत कला देखी जा सकती है।

एक कहानी “विचार यात्रा”  रामपाल जी की भी रखी गई है जो मुस्लिम समाज में तलाक जैसी बुराई  पर पवित्र कुरान की आयतों के विवरण के द्वारा रोशनी डालते हुए उसे कैसे गुनाहे अजीम ठहराती है यह दर्शाती है। रामपाल जी की उर्दू की तालीम उनके अध्ययन को विस्तार देती है जो की उनके हिंदी साहित्य सृजन में भी स्पष्ट दिखलाई पड़ता है ।

 कहानी जहां तलाक को गुनाहे अजीम ठहराती है वहीं यह भी  की यह ईबलीस ( शैतान)  की पसंदीदा है। अतः दर्शाया गया है की यह कितनी बड़ी बुराई है भले ही कुरान उसे मजहब में गैरकानूनी नही करार देता ।

 संकलन में दो अरबी कहानियां भी शामिल की गई है एक तो  नेमतुलहज्जी की “प्रतिरोध” जो वतनपरस्ती, आजादी और शहीदी जैसे विषय पर लिखी गई है , प्रेरणादाई एवं जोश पैदा करने वाली है  वहीं हल्का सा रंग ऐसे माहौल में भी प्रेम की कोपलों  को भी  सहेजे हुए है।

 तो दूसरी अरबी कहानियां अहमद महमूद मुबारक की “जलजला”, जो दर्शाता है की इंसान किस कदर आधुनिकता एवं उच्च शिक्षा के मद में अंधा हुआ अपने अतीत को भुला बैठा है और एक अंधी दौड़ में भाग रहा है ।

प्रस्तुत कहानी संग्रह में शामिल कहानियां रोचक होने के साथ साथ हमें उस देश काल व परिस्थिति को भी समझने का अवसर देती हैं। राम पाल श्रीवास्तव जी का सराहनीय प्रयास है।

अतुल्य

 

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