Paati chacha By Sanjiv Kumar Gangvar

 

पाती चाचा

विधा : कहानी

द्वारा :  संजीव कुमार गंगवार

गरुड़ प्रकाशन द्वारा प्रकाशित

प्रथम संस्करण : 2024

मूल्य: 299.00

समीक्षा क्रमांक : 141

                                                                          


 25वर्षों से निरंतर साहित्य की प्रत्येक विधा को अपने सृजन से सवारते हुए संजीव जी ने अब “पाती चाचा” के रूप में अपना प्रथम कहानी संग्रह प्रस्तुत किया है। अब तक उनकी 30 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें उपन्यास, कविता, गजल, सेल्फ इंप्रूवमेंट, बाल साहित्य, नॉन फिक्शन, मर्डर मिस्ट्री, और कहानी संग्रह शामिल हैं एवं उन की इन  प्रस्तुतियों के द्वारा जहां एक ओर उनकी बहुमुखी प्रतिभा और समस्त विधाओं पर समान नियंत्रण नजर आता है वहीं कहीं न कहीं यह लेखक के अंतर्मन की असंतुष्टि, व्यक्ति, व्यवस्था एवं समाज से अपेक्षाएं एवं कहीं न कहीं व्यवस्था तथा सत्ताधीशों के प्रति असंतोष  के साथ साथ अमूमन प्रत्येक विषय पर कुछ और बेहतर की तलाश की ललक एवं स्वयम के अंदर छुपे सर्वश्रेष्ट को  बाहर लाने की उत्कंठा भी नजर आती है।

                                                     



“पाती चाचा”: प्रस्तुत पुस्तक में उनकी 11कहानियां संग्रहीत हैं जिनमें उन्होनें कथानक के माध्यम से विभिन्न सामाजिक एवं मानसिक समस्याओं पर केंद्रित किया है।

यूं तो उनका लेखन किसी विशिष्ट शैली अथवा विषय की सीमाओं से परे है किंतु बच्चे एवम युवा शक्ति पर उनकी अधिकतम रचनाएं केंद्रित रहती  हैं। तकनीक के विकास से लेकर आध्यात्म की गहराई तक उनकी विचारशीलता उनके लेखन कर्म को सुदृढ़ बनाती है।

उनके मतानुसार कहानी के विषय क्षेत्र को विस्तृत करने की आवश्यकता है एवम इस दिशा में उनके  प्रयास प्रस्तुत कथा संग्रह में स्पष्टत: लक्षित होते हैं। पुस्तक की प्रिंटिंग अच्छी है किंतु पेपर क्वालिटी बेहतर की जा सकती थी।  वहीं कहानियों के कहन में प्रवाह एवम घटनाक्रम के प्रस्तुतिकरण में  क्रमबद्धता युक्तियुक्त से कुछ कमतर रही है जो यूं तो  सामान्य ही है किन्तु संजीव जी की प्रतिभा को देखते हुए उनसे और बेहतर की अपेक्षा है  हैं साथ ही कथानक के प्रस्तुतीकरण के सजीव चित्रण के द्वारा बहुधा पाठक को दृश्य स्थल पर ले जा सकने में कुछ हद तक सफल भी हुए है, तथापि यह कहना अन्यथा नहीं होगा की और बेहतर की संभावनाएं बनी हुई हैं एवं उन पर भविष्य में बेहतर कार्य किया जा सकता है।

 आइए इन कहानियों पर कुछ चर्चा करें। 

बात करें अगर संग्रह में मेरी  पसंदीदा कहानी की तो वह “अपराधी” ही होगी, एक ऐसी कहानी जिसकी विषय वस्तु, भाषा शैली  और भाव सभी प्रभावित करते हैं और अंत तक आपको बांध कर रखते हैं ,अंत तक पहुंचते पहुंचते आप के आंखों की कोर शायद कुछ भीगने लगे  और गला भरा भरा सा महसूस हो, ऐसी कहानी है,  सोद्देश्य ही कथानक, विषय एवम पृष्टभूमि के संबंध में कुछ भी नहीं  बता रहा हूं  पढ़ कर ही इस कहानी के रसों का आनंद लें।

“लाल चुनरिया”, कहानी  है युवावस्था के बिछड़े हुए प्रेमी की, जिस की याद तब आती है जब विवाह के पश्चात न तो वैवाहिक जीवन ठीक से चलता है और न ही प्रेम मिलता है, जीवन में बिखराव है तब पुरानी यादें, पुराने खत, पुरानी बातें छूटा  हुआ प्यार और बिछुड़े हुए प्रेमी सब बेतरह याद आते है। कहानी में चंद मौकों पर वाक्यों का प्रवाह उतना सहज नहीं है और बारबार किसी पटकथा को पढ़ने का एहसास दिलाता है। यथा वह दरवाजा खोलती है, वह फोन रख देती है,  वह पुस्तक खोलती है,  आदि, के द्वारा वाक्य पूर्णता की ओर बढ़ता दिखता है एवं वाक्य की गतिशीलता थिर होती प्रतीत होती है। जिसे सरल गतिमान वाक्यांश के द्वारा सहज ही प्रतिस्थापित किया जा सकता था। एक अंश देखें “ वह केबिन से निकल कर बाहर आ जाती है। बाहर खड़े हुए गार्ड से  वेटिंग रूम के बारे में पूछती है । गार्ड उसको बाईं ओर इशारा कर देता है”।

        खैर यह लेखक की अपनी शैली है।

कथानक प्रभावित करता है किन्तु कुछ शब्दों का मात्र इसलिए रखा जाना ताकि अलंकारिक  प्रभाव बढ़ाया जा सके ऐसे अतिरिक्त प्रयास सुगम प्रवाह को भटका  देते हैं यथा दो सहेलियों का बैंगलोर जैसे शहर में दस से अधिक वर्षों से रहने के बाद भी एक दूसरे को “सखी” कह कर संबोधित करना या फिर पानी को “जल” कहना आदि आदि। 

असफल प्रेम की कुछ  कुछ असंभव सी या कहा जाए प्रेम की पराकाष्ठा दर्शाते हुए भाव के लिए पढ़ें। डायलॉग डिलीवरी का स्टाइल उतना सरल नहीं है जो थोड़ा असहज करने वाला है। अंत अप्रत्याशित है किंतु चमत्कृत नहीं करता ।

“उसने क्या सोचा होगा”,  कहानी के सुंदर वाक्यांश हैं यथा “भरोसा अगर मासूम हो तो पूरी सृष्टि का कलेजा फट जाता है”।   

वन्य प्राणियों के संग किए गए अमानुषिक व्यवहार को लेकर प्रारंभ हुई कथा मानवता पर गंभीर सवाल उठती है। कुछ वाक्य सुंदर एवं सटीक तंज करते हैं जैसे,  "इतनी बड़ी इस सभ्य दुनिया के बीच तलब में इंसानियत और सभ्यता की लाश पड़ी हुई है"। "विधाता भी सोच रहा है की यह मैने मनुष्य के रूप में किस  राक्षस को बना डाला”।

“हाउस वाइफ” कहानी एक ऐसे दंपती की जहां पुरुष अपने परिवार पालक होने के गुरूर में, पत्नी को महज घर चलाने वाली समझने के चलते अपनी गृहस्थी तबाह कर लेता है किन्तु सुबह का भूला शाम को वापस तो खैर आ ही जाता पर उसे लाने वाले क्या कारक थे,  जानना रुचिकर था, प्रस्तुति भी अच्छी है ।

मुद्रक के स्तर पर चंद मामूली सी गलतियाँ हैं जो लेखक से कोई वास्ता नहीं रखतीं न ही कहानियों को प्रभावित करती हैं किन्तु कहीं न कहीं पुस्तक के समग्र आनंद में अवश्य ही खलल उतत्पन्न करती हैं यथा  पृष्ट क्रमांक 83 से कुछ प्रिंटिंग की गलती दिख रही है  कहानी मनोरोगी है किंतु पेज के ऊपर अपनी बात लिखा हुआ है जबकी पेज 103 पर कहानी तो सेलिब्रिटी है   किंतु ऊपर मनोरोगी लिखा गया है कहानी अपराधी में पृष्ट क्रमांक 139से 147तक प्रत्येक पृष्ट पर अपराधा लिख कर तब ई की मात्रा लग गई हैअर्थात अपराधी के हिज्जे गलत हैं।

इसी संग्रह की अगली रचना सेलिब्रिटी वर्तमान एवम आगामी निकट भविष्य में मीडिया के सकारात्मक और नेगेटिव इफेक्ट्स के विचार विस्तार में प्रस्तुत करती है। सकारात्मक प्रभाव तो खैर दिनोदिन हो रहे टेक्नालॉजी के विकास के परिप्रेक्ष्य में दिन दू ने रात चौगुने बढ़ ही रहे हैं किंतु नकारात्मक प्रभाव अवश्य ही चिंतनीय हैं। समय रहते जागृत हो जाना एवम जागृत करना अनिवार्य है अन्यथा दुष्प्रभाव से बचना नामुमकिन ही है।

संग्रह की हर कहानी किसी न किसी समस्या को उठाती है जैसे “नए जमाने का  दहेज” जो समस्या तो सामने रखती ही है साथ ही एक सुंदर कथानक के माध्यम से एक अनुकरणीय समाधान तार्किकता के संग प्रस्तुत करती है।

संग्रह की पहली कहानी पुस्तक की शीर्षक कथा "पाती चाचा" है, कहानी एक ऐसे कैदी की है जिस से गैर इरादतन ही सही,  अपराध तो हुआ है किंतु वह भाग्य एवम विधान पर विश्वास करने वाला सरल व्यक्ति है जो आदतन अथवा पेशेवर अपराधी नहीं है। मूल कथानक मनोवैज्ञानिक अध्ययन दर्शाता है। क्षेत्रीय  भाषा का प्रयोग और भी बेहतर हो सकता था, सीमित पात्रों के संग सुंदर प्रयोग किया है। मात्र एक घटना पर आधारित संपूर्ण कथानक  भाव प्रधान  है जहां पढ़ते हुए भावों पर केंद्रित हो कर पढ़ें तब कथानक बेहतरी से सामने आता है ।

कथानक में सांसारिकता एवम आध्यात्म के बीच की कश्मकश भी देखने में आती है एवम अंत भी आध्यात्मिक टिप्पणी से करते हुए लेखक ने गंभीर चिंतन की दिशा प्रस्तुत की।

कथानक प्रस्तुतीकरण , दृश्य चित्रण एवं भाव सुंदर है साथ ही रोमांच अंत तक बरकरार रहता है।

“मैं जानती थी”, एक असफल प्रेम कथा, जो सरहदों के दायरों में उलझ कर रह गई, और कुछ उन हालातों में की उसे न तो खत्म कहा जा सकता था और न ही सफल, प्रेम तो राष्ट्रों की सीमा रेखा से परे होता है वह कहां जानता है भारत और पाक के बीच के राजनैतिक हालात,संधि और समझौते,  और उन राष्ट्रों के विवाद के बीच तबाह  हुई  दो या कहें तीन जिंदगियों के बिगड़े हुए हालत का अत्यंत सटीक चित्रण है। अंत हतप्रभ करता है। लेखक एक प्रेमी का दर्द और सुंदर प्रेम कहानी का सहज सरल चित्रण प्रस्तुत करने में दर्द के बारीक पहलुओं को भली भांति उकेरने में निश्चय ही कामयाब हुए हैं। 

तो वहीं कहानी “आत्महत्या” के द्वारा उन्होंने विकास और आधुनिकता के नाम पर अकेले होते जा रहे इंसान और स्वयं को सबसे अलग दिखाने के  धुन में तनिक रिजर्व बन जाने के लिए अपनों से दूरियां बढ़ते जा रहे हैं,  सुखद तो है ही चिंतनीय भी। अब दुख हो या सुख कुछ भी साझा नहीं रहे ।

कहानी “सच्ची निशानी” जहां एक ओर बढ़ती उम्र में अभिभावकों के प्रति बच्चों के। उपेक्षापूर्ण व्यवहार को प्रमुखता से सामने रखती है वहीं इस तरह से उपेक्षा और परित्याग जैसी अवस्था के चलते उनके द्वारा उठा लिए जाने वाले दुसहसिक कदमों के बारे में भी बतलाती है हैं यह जरूर है की कहानी में बुजुर्गवार को कमज़ोर न दर्शाकर स्वयं सक्षम होते हुए भी कुछ कुछ निर्भरता  दर्शाई  गई है  जबकि वास्तविक स्थिति में इस से भी बुरी दशा उन की देखी जाती है जो सक्षम नहीं हैं एवम निर्भरता बहुत ज्यादा है

अतुल्य                                                         

28 .08.2024

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