Anjuri Bhar Neh By Renu Gupta

 

अंजुरी भर नेह

विधा: उपन्यास 

द्वारा : रेणु  गुप्ता

बोधरस प्रकाशन द्वारा प्रकाशित

प्रथम संस्करण  : 2024

मूल्य             : 290 .००

समीक्षा क्रमांक : 131


रेणु जी को पढ़ना हर बार कुछ विशेष है। पहले लघुकथा संग्रह “आधा है चंद्रमा” पढ़ा था जिसके विषय में मैंने कहा भी था की वह किसी भी तरह से गागर में सागर से कमतर नहीं है। प्रस्तुत नवीनतम उपन्यास “अंजुरी भर नेह” पढ़ कर लगा की उनके लेखन के विषय  में मेरे द्वारा पूर्व में की गई टिप्पणियाँ शत प्रतिशत सत्य साबित हुई हैं।  वे मूलतः गद्य पक्ष पर केंद्रित करती हैं एवं जहां एक ओर लघुकथाएं, कहानियाँ,  लेख इत्यादि से वे साहित्य को समृद्ध कर रहीं हैं जो विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में समय समय पर प्रकाशित हुए हैं एवं होते रहते हैं वहीं आज के समय की विधाएं कहना अधिक उपयुक्त होगा तो उनमें भी यथा ब्लॉग, वेब सीरीज इत्यादि पर भी वे अपनी सतत उपस्थिति दर्ज करवाती रहती हैं।

उनकी सद्य प्रकाशित नवीनतम कृति, “ अंजुरी भर नेह”  के द्वारा उन्होंने उपन्यास की विधा में भी अपनी सशक्त आमद दर्ज करवा दी है। कथानक एवं लेखन के अन्य बिंदुओं पर चर्चा करने के पूर्व विशेष उल्लेख के साथ कहना चाहूँगा कि आवरण पृष्ट अत्यंत मोहक है एवं इस श्रेष्ट कार्य हेतु संबंधित महानुभाव बधाई के पात्र हैं।

रेणु जी की साहित्य यात्रा का अंतहीन सफ़र निर्बाध गति से जारी है अपने श्रेष्ट रचना कर्म के द्वारा जहां एक ओर वे पाठको के बीच लोकप्रिय हैं वहीं साहित्य जगत के मानिषियों के बीच भी उनका नाम प्रमुखता से एवं अत्यंत आदर के साथ लिया जाता है। 

“अंजुरी भर नेह” में भी हमें रेणु जी की विषयवस्तु के प्रति स्पष्ट समझ, गहन सोच ,सुंदर भाषा एवं सहज भाषा शैली तो देखने को मिलती ही है साथ ही पात्रों के माध्यम से, ईमानदार संवेदनाएं भी स्पष्टतः उभर कर आई हैं । उपन्यास की भाषा सरल है जिसे  हिन्दी के सुंदर शब्दों से वाक्यांशों को संवारा  गया है हालांकि कुछेक स्थानों पर अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों का प्रयोग भी किया गया है जो सहज ही कथानक के क्रम में समायोजित हो जाते हैं ।

उन के पात्र कठिन परिस्थितियों से जूझते एवं उन पर विजय प्राप्त करते हुए मिलते हैं। पात्र संख्या अत्यंत सीमित है एवं निश्चय ही यह इस उपन्यास की एक प्रमुख बात कही जा सकती है साथ ही काबिले तारीफ यह भी है की इतने सीमित पात्रों के संग इतने रोचक कथानक जो मूलतः ढाई प्रेमकथा पर आधारित है को इतने सुंदर रूप में ढाल दिया गया है।   

 यूँ तो कथानक सामान्य ही है किन्तु अपनी प्रस्तुति की  विभिन्नता एवं विशेष अंदाज के कारण वह अत्यंत खास बन गया है।

प्रस्तुत उपन्यास ‘अंजुरी भर नेह’ का कथानक मूलतः ढाई प्रेम कहानी है अर्थात दो प्रेम कथाएं जो अपनी पूर्णता को प्राप्त कर सकीं जब की एक अधूरी ही रही । कथानक एक निर्धन, स्वाभिमानी मेधावी छात्र देवव्रत एवं प्रमुख नायिका चन्दा की प्रेम कहानी है जो देवव्रत से प्रेम तो करती है किन्तु ज़ाहिर नहीं कर पाती एवं ऐसा ही देवव्रत के संग होता है फलस्वरूप विछोह, एवं नायिका का विवाह । इस  स्थान पर रेणु जी ने अन्य कथाकारों  से बाजी मार ली है तथा अपेक्षा एवं चलन के विपरीत सभी कुछ जानते हुए भी नायिका के पति द्वार नायिका की भावना को समझते हुए देवव्रत से सौहार्दपूर्ण संबंध बनाते हुए उसे अपने परिवार में वरिष्ट सदस्य का दर्ज दिया जाता है एवं स्वयम भी देवव्रत के प्रति अत्यंत आदर का भाव रखा जाता है। उपन्यास की और  दो प्रेम कथाएं नायिका के दो पुत्रों की हैं ।  

           बहुत सारी शिक्षाओं के संग संग सुखांत कथानक है जो घटनाक्रम की  सरलता से अग्रसर होता हुआ अंत को प्राप्त होता है किन्तु अंत अवश्य ही चमत्कृत कर गया। ताजीवन अपने पहले प्रेम की याद में एकाकी जीवन का व्रत निभाने को संकल्पित देवव्रत का संकल्प डग मगा जाना तनिक चौंका जाता है।

रेणु गुप्ता जी की प्रस्तुत कृति मानवीय संवेदनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति है जिसमें  कथानक के समीपवर्ती परिवेश की कहानी होने का एहसास पाठक को कथानक से बेहतर सम्बद्ध करने में सफल हुआ है।  

रेणु जी के पूर्व प्रकाशित कहानी संग्रह में भी हमने देखा था कि वे  अत्यंत संवेदनशीलता  के साथ परिवेश से जुड़ी हुई हैं तथा अपने इर्द गिर्द जो कुछ  महसूस करती हैं  वही उनकी कहानियों में प्रतिविम्बित होता है . प्रस्तुत उपन्यास का कथानक भी अपने आस पास की ही है, हाँ पात्र अवश्य उच्च पदों पर कार्यरत दर्शाये गए हैं।    

हालिया उपन्यास के नारी पात्र हों अथवा पुरुष पात्र, संख्या के स्तर पर   सीमित हैं तथा उनके चरित्र भरपूर निखर कर सामने आते  है। चन्दा  के रूप में प्रमुख स्त्री पात्र में हमें जीवन के सभी रंग देखने को मिलते हैं वही धरा एवं ट्यूलिप आज की सुशिक्षित सुलझे विचारों वाली एवं अपने लक्ष्य के विषय में स्पष्ट एवं दृढ़ निश्चयी नारी का प्रतिनिधित्व करती हैं । कहा जा सकता है की  नारी चरित्र में विविधता के साथ साथ उन्हें एक सशक्त रूप में प्रस्तुत करना उनकी आंतरिक मजबूती,  प्रबल निश्चय एवं दृढ़ता को दर्शाती है । ठीक इसी प्रकार यदि बात करें पुरुष पात्रों की तो जहां मर्यादित, समाज में उच्च स्थान आदर एवं सम्मान प्राप्त व्यक्ति के आचरण को दर्शाने वाले देवव्रत  एवं वरदान हैं वही वर्तमान युवा पीढ़ी के दोनों ही पहलुओं को प्रस्तुत करते हैं अभि एवं आदि, जहां एक के पात्र में मूल रूप से ही शालीनता एवं गंभीरता है वहीं दूसरे के दिल में आज की हवा के संग आजाद पंछी सा उन्मुक्त वातावरण में विचारने एवं आधुनिकताओं का सहज उपयोग करने को आतुर युवा  मन है, तो वहीं  आज की थोड़ी उश्रंखल, एवं घर से मिली ढील के कारण कुछ बिगड़े हुए बच्चों का प्रतिनिधित्व करती है निर्झरा,  जिस  के रूप में एक नकारात्मक पात्र को कथानक में लाया गया है जो अन्य पात्रों की सच्चरित्रता को बखूबी संतुलित करता है।  

IPS ट्रैनिंग का विस्तृत विवरण अत्यंत प्रभावशाली है एवं कथानक को वास्तविकता के करीब ले जाने के लेखिका के प्रयासों को संतुष्ट करता है।         

 कथानक के साथ ही लेखिका द्वारा कुछ सुंदर वाक्यों का भी प्रयोग की गया है जो की पढ़ने के दौरान सरसता बनाए रखते हुए रोचकता में वृद्धि करता है ।

रेणुजी जी की कृति के कथानक के पात्र आम आदमी की ज़िंदगी के किस्से लिए हुए ही आगे बढ़ते हैं तथा  उन के एहसास और ज़िंदगी में  ज़ज़्बातों से जुड़े भांति भांति के के किस्से उनकी कहानियों में प्रमुखता से स्थान पाते हैं,  साथ ही  जीवन के विभिन्न रस रंग  यथा वात्सल्य, प्रेम,  इत्यादि के भाव भी देखने को मिलते हैं । वे किसी खास नियम अथवा शैली को ले कर लिखने की अपेक्षा स्वतंत्र लेखन की पक्षधर हैं यही कारण है की उनकी कलम  विविध विषयों पर  भी सरलता  से किन्तु सशक्त रूप से लिखती हैं।  प्रस्तुत  उपन्यास में भी पारिवारिक सामंजस्य, युवा पीढ़ी संग वर्ताव एवं व्यवहार, दाम्पत्य जीवन में ट्रांसपेरेंसी, रिश्तों में  संतुलन, नारी शिक्षा  तथा सामान्य दैनिक जीवन में व्यावहारिकता जैसे विषय पर भी बखूबी लिखा है जो कि  पठनीय होने के संग अनुकरणीय भी है ।

बेशक रेणु जी का उपन्यास इस विधा के द्वार पर उनकी पहली दस्तक ही है किन्तु पुरजोर है।

अतुल्य  

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