Cancer Se Meri Jang By Atulya Khare

 

कैंसर से मेरी जंग

नमस्कार दोस्तों,

आप लोगों द्वारा मेरे द्वारा लिखित  समीक्षाएं बड़े ही स्नेह के साथ पढ़ी जा रही हैं, एवं यह आप लोगों द्वारा दिया  जाने वाला प्रोत्साहन ही है जो मुझे निरंतर आपके सम्मुख नई समीक्षाएं प्रस्तुत करने हेतु एक नए जोश के साथ प्रेरित करता है।  हॉबी के तौर पर शुरू किया गया छोटा सा प्रयास आज दिन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। आप लोगों से एक बेहद करीबी सा रिश्ता जुड़ गया है तो सोचा आप लोगों से अपनी एक कहानी साझा करूं। कहानी है मेरे संघर्ष की। यह जरूर कहना चाहूंगा कि लिखने का उद्देश्य सहानुभूति प्राप्त करना कतई नहीं है, बस दिल में आया कि अपनी बात अपनों से कहूं इसलिए लिख रहा हूं।

तो, चलिए शुरुआत करते हैं दोनों तस्वीरों से, जो आप देख रहे हैं, ये दोनो मेरी ही तस्वीरें हैं, किन्तु फर्क देख चौंकिए मत, क्यूंकि जो फर्क है वो है 4 साल, एक मेजर सर्जरी,  30 sitting  रेडिएशन, और 3 माह के मौन का, उसके साथ तकरीबन 25  किलो वजन और सबसे अहम् दमदार मूंछ का।

अगस्त 2019 का वाकया है, जिंदगी चल रही थी, बैंक की नौकरी भी चल रही थी , साथ ही रिटायरमेंट की प्लानिंग भी चल रही थी। खाने पकाने  का शौकीन  होने के नाते रिटायरमेंट के बाद अपना रेस्टोरेंट खोलने का सपना था, उसकी भी कुछ कुछ तैयारी मन ही मन  जारी थी ।

13 अगस्त 2019 का दिन था जब जिंदगी की गाड़ी ने पटरी से थोड़ा सा रास्ता बदल लिया। उस दिन रूटीन मेडिकल जांच में बायोप्सी की गई जिसकी रिपोर्ट कैंसर के लिए पॉजिटिव मिली । तकलीफ तो कुछ खास नहीं थी, बस रूटीन चेकअप में होंठ के पास एक छोटा सा सफेद अल्सर बना पाया गया था जो शायद 1 महीने से था।

रिपोर्ट की जानकारी लगते ही पूरा परिवार सदमे में था, पर किसी तरह सदमे को बर्दाश्त करते हुए  सब ने मिल कर सच्चाई का सामना किया और सितंबर महीने में जबड़े का ऑपरेशन करवाया गया ।  इलाज की पूरी प्रक्रिया कठिनाइयों से भरी हुई थी। उसी के चलते  मुंह से आवाज ही आना बंद हो गयी  और जिंदगी जो वैसे भी बिस्तर पर ही आराम करते करते हुए गुजर रही थी अब इशारों में ही कटने लगी। मेरे जैसा फूडी अब बिल्कुल सादे तरल भोज्य पदार्थों पर निर्भर हो गया। वजन तो ऑपरेशन के बाद ही गिरना शुरू हो गया था रही सही कसर रेडिएशन ने पूरी कर दी। सिर के बाल तो खैर बच गए पर दाढ़ी मूँछ को हमेशा के लिए विदा होना पड़ा। बस एक चीज में बिल्कुल कमी नहीं थी और जो अब शायद कुछ ज्यादा ही मुखर हो उठी थी वह थी जिंदादिली और जीने की उमंग।

जनवरी 2020, ऑपरेशन हुए 3 माह बीत चुके थे , तकलीफें दिन ब दिन बढ़ती जा रहीं थीं ,  अब तो मुंह भी कम खुलता था, खाने-पीने की दिक्कत तो थी ही और आवाज भी जो पहले पूरी चली गयी थी केवल 60% ही वापस आई थी। लेकिन मन के संकोच और झिझक को परे रख मैंने वापस बैंक, जो कि मेरा कर्म स्थल है जाना शुरू किया। बताता चलूं कि मैं एक राष्ट्रीय कृत बैंक में वरिष्ठ प्रबंधक के पद पर कार्यरत हूं और इस वर्ष नवंबर में रिटायर हो जाऊंगा। सहकर्मियों के सहयोग से काम वापस शुरू हुआ जो कि अभी सुचारू रूप से जारी है।

महामारी corona के समय कुछ खाली समय मिला तब किताबें पढ़ने के अपने पुराने  शौक को वापस जीवित किया।  जिद्दी तो मैं था ही और हार न मानने की ज़िद को एक और जरिया मिल गया था दृढ़ता से टिके रहने का। नई पुरानी हिंदी अंग्रेजी की ढेरों किताबें अब जमा होने लगी। किताबों के रूप में मुझे कई नए मित्र मिले। इन किताब रूपी मित्रों के साथ अब रोज़ ही लम्बी महफिल जमने लगी (जिसके कारण श्रीमती जी से कई बार आलोचना भी सुननी पड़ी )! खैर ,

इसी दरमियाँ मेरी बेटी एवं दामाद के कहने पर इन पुस्तकों को पढ़कर मैंने पुस्तकों के विषय में अपने विचारों को लिखना शुरू किया।  मैं कोई  साहित्यकार तो नहीं हूँ मगर पुस्तक पढ़ने के बाद मैंने जो कुछ भी अनुभव किया उसे सीधे सरल शब्दों में पिरो कर आप लोगों के सामने प्रस्तुत करने की कोशिश की। एक शौक जो कि मुझे मेरी तकलीफों से बाहर लाने के लिए शुरू हुआ था वह अब जिंदगी एवं मेरे परिचय का अभिन्न अंग बन चुका है। कुल मिलाकर लब्बोलुआव यही  कि मुंह की तकलीफ कभी मेरे मस्तिष्क पर हावी नहीं हो पाई और डटे रहने की ज़िद को बीमारी तोड़ नहीं पाई। जिंदगी में आगे जो भी हो क्यूँ परवाह करूं , आज तो जिंदादिली से जी लूं, बस इसी जज्बे के साथ आप लोगों के बीच हूं। 

और हां, दूसरी तस्वीर में एक और अंतर भी है,  एक कट के निशान (सर्जिकल scar) का, जो की  एक निशानी है मेरी कैंसर से जंग की , इरादों की जीत की , जुझारू एवं नित कुछ नया सीखने की ऊर्जा की (जैसे कि हाल ही में मेरा ब्लॉग शुरू करना) और सबसे अहम् , जिंदगी के प्रति एक सकारात्मक पिछली बातों को भुला आगे बढ़ते रहने के नजरिए का।

आशा करता हूं, आप सभी का स्नेह एवं आशीर्वाद बना रहेगा। अपना ध्यान रखियेगा ।  

सादर,
अतुल्य

 

 

 

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