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Subakte Pannon Par Bahas By Devendra Dhar

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  सुबकते पन्नों पर बहस विधा : काव्य द्वारा : देवेंद्र धर विंब- प्रतिविम्ब प्रकाशन द्वारा प्रकाशित   प्रथम संस्करण : 2023 मूल्य: 300 समीक्षा क्रमांक : 142                                                                        “अब मै वो गीत नहीं लिखूंगा जो कानों तक नहीं पहुंचते   जब भिवगीत लिखता हूं   वो बांझ हो जाते हैं   नपुंसक हो जाते हैं ये गीत   स्याही बंजर हो जाती है   क्या करोगे वो गीत लिख कर   जो टूटे फूटे चल रहे हैं   फिर भी गीत लिखना मजबूरी है   कविता का अपने अस्तित्व को खोते हुए   अपने मूल   उद्देश्य को न पाना उक्त पंक्तियों में स्पष्ट रूप से लक्षित होता है बार बार कविता की असफलता और अपनी मजबूरी झलका ता है। ये सुंदर एवं भावपूर्ण पंक्तियां हैं हिमाचल की खूबसूरत वादियों के कवि देवेंद्र धर जी के काव्य संग्रह "सुबकते पन्नों पर बहस" से, वे इसी कविता "में वो गीत नहीं लिखूंगा" में कहते भी हैं कि फिर भी गीत लिखना मजबूरी है   उन सब के लिए   अपनी पहचान बनाए रखने के लिए   उनकी कविता के भाव उन के अंदर चल रहे गंभीर विचाराओं के मंथ

Paati chacha By Sanjiv Kumar Gangvar

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  पाती चाचा विधा : कहानी द्वारा :   संजीव कुमार गंगवार गरुड़ प्रकाशन द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण : 2024 मूल्य: 299.00 समीक्षा क्रमांक : 141                                                                              25 वर्षों से निरंतर साहित्य की प्रत्येक विधा को अपने सृजन से सवारते हुए संजीव जी ने अब “पाती चाचा” के रूप में अपना प्रथम कहानी संग्रह प्रस्तुत किया है। अब तक उनकी 30 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें   उपन्यास , कविता , गजल , सेल्फ इंप्रूवमेंट , बाल साहित्य , नॉन फिक्शन , मर्डर मिस्ट्री , और कहानी संग्रह शामिल हैं एवं उन की इन   प्रस्तुतियों के द्वारा जहां एक ओर उनकी बहुमुखी प्रतिभा और समस्त विधाओं पर समान नियंत्रण नजर आता है वहीं कहीं न कहीं यह लेखक के अंतर्मन की असंतुष्टि, व्यक्ति , व्यवस्था एवं समाज से अपेक्षाएं एवं कहीं न कहीं व्यवस्था तथा सत्ताधीशों के प्रति असंतोष   के साथ साथ अमूमन प्रत्येक विषय पर कुछ और बेहतर की तलाश की ललक एवं स्वयम के अंदर छुपे सर्वश्रेष्ट को   बाहर लाने की उत्कंठा भी नजर आती है।                                                  

Dimag Walo Savdhan By Dharmpal Mahendra Jain

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  दिमाग वालो सावधान विधा : व्यंग्य द्वारा : धर्मपाल महेंद्र जैन किताबगंज   प्रकाशन द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण : 2020 मूल्य : 500.00 समीक्षा क्रमांक :  140 धर्मपाल महेंद्र जैन व्यंग्य लेखन में एक जाना पहचान नाम है। मूलतः मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र झाबुआ के निवासी, किन्तु वर्तमान में कनाडा में बस जाने के बावजूद वे अपने देश अपनी मिट्टी से जुड़े हुए है और यह उनकी रचनाओं में, उनके चिंतन में स्पष्ट नजर आता है। मूलतः व्यंग्य लेखन करते हुए वे काव्य सृजन के क्षेत्र में भी स्तरीय रचनाएं लिख कर साहित्य समृद्धि में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं।   उनकी विभिन्न व्यंग्य रचनाओं का संग्रह है “दिमाग वालो   सावधान”। रचनाओं का जिक्र करें उसके पहले थोड़ी बात   इस विशिष्ट विधा की। व्यंग्य लेखन हिन्दी साहित्य में वह विशिष्ठ एवं दुष्कर शैली है जिसमें व्यंग्यकार समाज , राजनीति , या किसी अन्य विषय पर व्यंग्यात्मक एवं आलोचनात्मक दृष्टिकोण से लिखता है तथा चुभती हुई बातें कुछ इस तरह प्रस्तुत कर दी जाती हैं की “घाव करे गंभीर.. ”   वाली उक्ति चरितार्थ हो जाती है , तभी तो कहा जाता है क