Sooni Haveli By Sanjiv Kumar Gangvar

 

सूनी हवेली

द्वारा : संजीव कुमार गंगवार

विधा : कविता संग्रह

साहित्य संचय द्वारा प्रकाशित

मूल्य : 200.00

प्रथम संस्करण : 2024

पाठकीय प्रतिक्रिया क्रमांक : 156


संजीव कुमार गंगवार एक बहुआयामी युवा लेखक हैं एवं अल्पायु में ही एक साहित्यकार के रूप में काफी नाम काम चुके हैं  । 

संजीव कुमार गंगवार की रचनाएं हिंदी साहित्य में बहुत प्रसिद्ध हुई हैं। उन्हें  विशेष तौर पर उनकी कृति  कागज़ के फूल के लिए याद किया जाता है । उनकी रचनाओं में कविता संग्रह , मोटिवेशनल लेखों कि विभिन्न पुस्तकें उपन्यास, आदि शामिल हैं। उनकी रचनाएं स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करने के साथ साथ समाज में व्याप्त दोषों और कमियों पर कटाक्ष करती हैं और सामाजिक न्याय जागृति तथा मानवाधिकारों की बात भी करती हैं।


संजीव कुमार गंगवार को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें से कुछ प्रमुख पुरस्कार हैं:

डॉ . होमी जहांगीर भामा अवार्ड 

डॉ. भोलानाथ तिवारी अवार्ड

वर्ष २०२३ में  साहित्य जगत में  परिवर्तन साहित्यिक मंच का अवार्ड 

संजीव कुमार गंगवार की रचनाएं हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं और उनकी शैली एवम  वैचारिकता  को बहुत पसंद किया जाता है जो की साहित्य जगत में उनकी दीर्घकालीन उपस्थिति एवं सफलता का मुख्य कारक कहा जा सकता है ।

प्रस्तुत कविता संग्रह सर्व प्रथम अपने नाम से ही आकर्षित करता है एवम आभास होता है कि  कविता संग्रह में शामिल कविताएं शायद उदासी, अकेलापन, और खालीपन की भावनाओं को व्यक्त करेंगी। यह शीर्षक कविता संग्रह को एक गहरा और विचारोत्तेजक अर्थ देता है, किंतु  कविता के भावों से गुजरने के पश्चात ही यह स्पष्ट हो पाता है की यह शीर्षक प्रतीकात्मक रूप से प्रयुक्त हुआ है जहां कवि सारी कायनात को अपने भावों में समेटे हुए है और स्वयं ही अपनी पीड़ा की स्वीकारोक्ति भी  देता है ।  उसका चिंतन उस की  सब कुछ समाप्त हो जाने की आशंका जनित  वेदना कविता की पंक्ति दर पंक्ति में भी  झलकती है। कवि संभवतः इस कविता को मानव जाति के उद्भव विकास एवं अन्य नरसंहारक शक्तियों के वैमनस्य एवम समस्त किस्म की आपदाओं तथा बुराइयों के चलते विनाश की कगार पर आ खड़ी हुई मानवता के विषय में अपने भाव साझा करना चाहते हैं । कहीं न कहीं हर दर्द हर मुश्किल  सूनी हवेली कविता के भावों को व्यक्त करता है । 

वहीं संग्रह की अन्य  कविता "बोलो साधो" है जो आम जन की बात कर रही है किंतु संबोधित है  साधो को जिसे हम सहज ही साधू जानते समझते हैं कवि के शब्दों में साधो संबोधन कविता की अंतर्वस्तु की विश्वसनीयता के लिए किया गया है ।  वे स्वयं ही यह कुबूल करते हैं की साधो आम आदमी से ऊपर है उसकी समझने जानने एवम परखने की क्षमता आम आदमी से अधिक होती है । 

कविता संग्रह की कुछ कविताएं यथा नमामि गंगे , इस दुनिया को कैसे देखूँ , साधी न बन सकी कभी, तुम्हारा न बन सका आदि  पुराने कविता संग्रह “अमर गंगा” से ली गई हैं जिनकी समीक्षा मैने समीक्षा गत वर्ष 29 जून को आप लोगों के अवलोकनार्थ  प्रस्तुत की  थी उसके कुछ अंश अपने नए पाठक मित्रों की सुविधा हेतु पुनरुलिखित कर रहा हूँ कृपया गौर करें,

अमर गंगा” की पहली ही कविता विचारों की अतिदीर्घ श्रृंखला “नमामि गंगे” के रूप में प्रस्तुत है जो की पवित्र पावन गंगा की दुर्दशा पर उनकी चिंताओं को दर्शाती है वहीं शासन की नमामि गंगे परियोजना पर आम जन के विश्वास और अपेक्षाओं का भी एक दस्तावेज़ है जहां वे गंगा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए व् उसे राष्ट्र की जीवन धारा निरुपित करते हुए उन्हें विभिन्न नामों से संबोधित करते हैं व बढ़ते प्रदूषण के चलते गंगा के जो हालात हुए है उनके सुधरने की आशा तो करते ही है साथ ही देश की भी स्थिति में कुछ सुधार हो ताकि जनता सही मायने में आज़ादी को समझ सके ऐसी अपेक्षा भी रखते है। शब्दों को सुन्दरता से प्रयोग किया है , इसी कविता में वे कहते हैं की

मार्तंड उर्मी पर तुम चढ़कर

व्योम शिखा को जाती हो

उच्च गगन में उठती जाती

और संघनित हो जाती हो।

वहीं भविष्य के प्रति आशान्वित हो वर्तमान हालत के सुधरने की आशा व्यक्त करते हुए लिखते है कि :

सौंदर्य तुम्हारा वापस आये,

आज़ादी तो अब मिल जाये

स्वतंत्रता सच्चे अर्थों में

खेतों और गलियों तक जाए .

चंद स्थानों पर देश की स्थिति दर्शाते हुए अतिश्योक्ति अलंकरण युक्त शब्दवाली का प्रयोग भी कर गए हैं .

कविता "तुम्हारा बन न सका" भी एक उलेखनीय कविता है जिसमें विशेष मात्र यह लगा की प्रचलित उपमा “आंख का तारा” जिस रूप में प्रयुक्त हुआ है वह उस सामान्य तौर पर प्रचलित भाव से भिन्न है जिसमें  आंख  का तारा व्यापक रूप से बेटे को  मां की आंख का तारा के रूप में अधिक प्रयुक्त हुआ देखते  है। यह एक बहुत ही आम और प्रसिद्ध उपमा है जो मां और बेटे के बीच के प्यार और स्नेह को दर्शाता है। जिसका सहज अर्थ है कि बेटा मां की जिंदगी में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और अनमोल हिस्सा है। यह उपमा मां और बेटे के बीच के अनोखे और गहरे रिश्ते को दर्शाता है एवं यह  कविता, गीत, और साहित्य में बहुत आम है किंतु प्रस्तुत कविता में इसे प्रयुक्त किया है जहां यह एक ऐसे रूप में है जो किसी प्रियजन, प्रेमी, या किसी ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयोग किया जा सकता है जो कवि के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है।

कविता के भावानुसार आंख का तारा एक ऐसा व्यक्ति  है जो कवि की आंखों में बसा रहता है, और कवि स्वयं किसी की आंखों का तारा बन जाना चाहता है किन्तु न बन पाने की पीड़ा भी झलकती है। 

कविता में "आंख का तारा" का प्रयोग करने से कवि अपने प्रेम, स्नेह, और सम्मान की भावनाओं को व्यापक रूप से व्यक्त कर सका  है। यह उपमा कविता को एक गहरा और भावनात्मक अर्थ देती है।

अन्य कविताएं यथा जीवन का सफ़र,  कागज की नांव और माँ का कर्ज  आदि भी अपनी सहज प्रस्तुति एवम भावों की सरलता के चलते पठनीय हैं । 

अतुल्य

 

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