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Jeete Raho Jeetu Bhai By Bharat Gadhvi

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  “जीते रहो जीतू भाई”   जीते रहो जीतू भाई   द्वारा : भरत गढ़वी विधा : उपन्यास   FLYDREAMS द्वारा प्रकाशित मूल्य : ₹ 249 प्रथम संस्करण : 2024 समीक्षा क्रमांक :  125 कुछ नया सा पढ़ने की तमन्ना , लीक से हटकर , थोड़ी भिन्न सी विचारण   शैली के संग मनोरंजन एवं पठन पाठन की संतुष्टि भरत जी की हालिया प्रकाशित पुस्तक   “जीते रहो जीतू भाई” से मिलती है। एक नई सी सोच का कथानक जो आम तौर पर प्रचलित कथानकों से बेहद भिन्नता लिए हुए है , आज के युवाओं की जो ठान लिया वह कर के दिखाना है वाली जिद या कहें दृढ़ संकल्पित होना भी दिखलाता है। कथानक में नयापन है , संवाद अदायगी पर किंचित क्षेत्रीय भाषाई प्रभाव भी देखने को मिलता है जो की पुस्तक के प्रस्तुतीकरण को इन मायनों में विशिष्ट बनाती है कि  उन्होंने कहानी के पात्रों के मूल भाव को, उनकी संवाद अदायगी के लहजे को जीवित रखते हुए अपने कथानक को गति दी है।चंद वर्तनी संबंधित त्रुटियां भी नजर आती हैं   जिन पर संबंधितों द्वारा   उचित संशोधन किया जाना वांक्षणीय है। कथानक पाठक को बांध कर रखने एवं अंत जानने की उत्सुकता बनाए रखने के साथ अपना प्रभाव छोड़न

Jiya Kachhu Manat Nahin By Doctor Aruna Pathak

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  जिया कछु मानत नाहीं जिया कछु मानत नाहीं विधा कहानी संग्रह द्वारा डॉक्टर अरुणा पाठक   True  Sign पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित   प्रथम संस्करण : 2024 पृष्ट : 124 मूल्य: ₹.175 समीक्षा क्रमांक : 124     सहज सरल भाषा में आम जन की   रोज मर्राह की सुख दु:ख के किस्से बयान करती , अपने आप में , जीवन से जुड़े अनेकोनेक आयामों के , संबद्ध मनोभावों के विभिन्न रंगों को समेटे हुए 16 चुनिंदा कहानियों का संग्रह है "जिया कछु मानत      नाहीँ "। बेशक यह डॉक्टर अरुणा का प्रथम प्रकाशित कहानी संग्रह है किंतु लेखन उनकी स्पष्ट सोच एवं सुलझे विचारों , विषय वस्तु पर पकड़ तथा गंभीर सोच का परिचय सहज ही दे जाता है।     कहानी संग्रह का शीर्षक सहज ही आकर्षित करता है , जिसकी अधिकांश कहानी नरिविमर्श आधारित हैं पहली ही कहानी "व्यथा" में एक मां के अंतर्मन की व्यथा को जिस प्रकार बिना   शब्द दिए मात्र परिदृश्य के माध्यम से प्रकट करा गया है वह निःसंदेह उनकी अभिव्यक्ति की विलक्षण प्रतिभा को सम्मुख रखता है । पुस्तक की शीर्षक कहानी "जिया कछु मानत नाहीं " नोटबंदी के दौ

Khil Uthe Palash By Jyoti Jha

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  खिल उठे पलाश खिल उठे पलाश   द्वारा ज्योति झा विधा : उपन्यास   मोनिका प्रकाशन जयपुर द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण 2020 मूल्य 400.00 समीक्षा क्रमांक  123   ज्योति झा नारी मन के झंझावात को खूबसूरती से उकेरने के अपने विशिष्ठ हुनर के लिए बखूबी पहचानी जाती हैं ।   पूर्व में भी उनकी कहानियों का संग्रह प्रकाशित हुआ था जिसे पाठकों द्वारा पसंद किया गया था एवं साहित्यिक गलियारों में उनकी समय समय पर विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होने वाली रचनाओं के ज़रिए दी जाने वाली पुरजोर दस्तक, साहित्य मनीषियों के बीच गौर से सुनी जाती है। कहानियों के लिए उन्हें विभिन्न साहित्यिक मंचों द्वारा पुरस्कृत किया गया है जो स्वतः ही उनके उत्कृष्ठ कार्य की दास्तान बयां करता है।   नारी मन के सुलझते उलझते विचारों के बवंडर में जीवन के विभिन्न आयामों को अत्यंत खूबसूरती से दर्शाता हुआ कथानक है “खिल उठे पलाश”, जो एक ऐसी नारी के मन में घुमड़ते हुए उन विचारों को सामने लाती है जो   पति के द्वारा छोड़ देने के बावजूद भी उसके लिए मन के किसी कोने में छुपे मोहपाश से ग्रस्त हैं , वही अपने पुत्र की सुरक्षा को लेक