Pyarana Zindagi Ka By Kumar Vivek
प्याराना ज़िन्दगी का
द्वारा : कुमार विवेक
साहित्य संचय द्वारा प्रकाशित
अमूमन हर शख्स को जिंदगी में एक बार तो प्यार का खूबसूरत एहसास ज़रूर होता है, अगर बहुत ही सामान्य रूप में देखें तो पहला प्यार किशोर अवस्था से युवावस्था की तरफ बढ़ती बाली उम्र से जुड़ी हुयी एक बड़ी ही सामान्य सी किन्तु बेहद नाज़ुक एवं महत्वपूर्ण घटना है, और उसी पहले प्यार की सम्पूर्ण गहराई में डूब कर लिखी गयी है कुमार विवेक की “ज़िन्दगी का याराना” जो प्यार के आलावा और भी ज्यादा खास इस लिए भी हो जाती है क्यूंकि वह पहले प्यार की बात करते है । पहले प्यार की विशेषता आदर्शवाद, मासूमियत, पारस्परिक भावनात्मक जुड़ाव, भविष्य के प्रति अभिविन्यास और प्रियजन की व्यापक उपस्थिति की इच्छा है। पहले प्यार में दिल मानसिक मिलन एवं जुडाव पर ही केन्द्रित रहता है वहां भौतिकता से अधिक महत्त्व एहसासों को दिया जाता है ।
पहले प्यार में दुनिया की हर चीज अच्छी लगने लगती
है क्योंकि यह समय जीवन का वह समय होता है
जब पहली-पहली बार जवानी की दहलीज पर आकर खड़े होते हैं और उस समय जीवन से जु़ड़ा हर कुछ नया और रोमांचक
लगता है। एकजुटता, साझाकरण और संचार पर
जोर देने के साथ, पहले प्यार को अद्वितीय
और परिपूर्ण के
रूप में अनुभव किए जाने की अधिक संभावना है। प्रेम मे प्रेमी युगल एक दूसरे की
परवाह करते है, दिन ब
दिन उन का विश्वास और गहरा होता जाता
है, वे
आपस में विश्वास की डोर से बंधे रहते हैं ।
वैसे तो प्यार हमेशा से एक इतना खूबसूरत एहसास है जिसका बयां संभव नहीं है पर हाँ वह खास होता है, और उस पर भी बात अगर पहले प्यार की हो तो वह एहसास और भी खास हो जाता है । क्यूंकि पहले प्यार के दौरान हुई छोटी से छोटी घटना भी आपको याद रह जाती है और उसे आप भूल नहीं पाते हैं अतः कुमार विवेक जी ने हर उस पहलु को , उस छोटी सी बात को जो नए नए युवा होते प्रेमियों के बीच होती है बड़ी ही मासूमियत से सहेज कर पेश किया है । दरअसल, पहला प्यार आपको अपने ही दिल के उन ज़ज्बातों से मिलवाता है उन से परिचय करवाता है, जिनसे आपकी कभी मुलाकात ही नहीं हुयी ।
पहले प्यार के दौरान हुई चीजें अच्छी हो या बुरी, आश्चर्यजनक
हो या स्वभाविक लेकिन उस दौरान की हर बातें याद रह जाती हैं। पुस्तक को पढ़ते हुए
आप पात्रों के संग संग उस भाव को अनुभव कर पाते है जो उस हालत में वे युवा प्रेमी अनुभव
कर रहे होते हैं फिर बात चाहे कक्षा में नोट्स मांगने से शुरू हो या दोस्तों के
द्वारा की जा रही फब्तियां या फिर किसी अन्य की बीच में आमद या पहली बार इज़हार तो
नहीं हाँ इजहारे मोहब्बत जैसा कुछ करने से पहले दिल के हालात । सारी
चीजें यादों में समां कर जीवन का एक
हिस्सा हो जाती हैं।
जब भी
पहले प्यार के बारे में सोचते हैं तो पहला प्यार दिल में भावनात्मक
प्रतिक्रियाएं लाने का कारण होता है। पहली बार प्यार में पड़ने पर वो सारी चीजें थोड़ी अजीब पर बहुत अच्छी लगती हैं। आप उस प्यार के सामने अपने आप को कमजोर समझते
हैं जुबान लडखडाती है और अचानक ही आप किसी और के बारे में इस तरह से परवाह करने
लगते हैं कि आप खूद को ही भूल जाते हैं। इन सभी भावों को विवेक जी ने कथानक के
पात्रों के द्वारा प्रस्तुत करा है ।
जब वे प्यार के रोमांटिक अंदाज को अनुभव करते हैं तो अंदर ही अन्दर संभावना और उत्साह की नई दुनिया खुल जाती है। प्यार के दौरान महसूस की गई चीजें आपके द्वारा पहले महसूस की गई किसी भी चीज के विपरीत होती है, इसलिए इसका अनोखापन आपको हमेशा के लिए याद रह जाता है।
उदयीमान लेखक कुमार विवेक ने साहित्य के प्रति
अपने लगाव को बखूबी दिल की गहराइयों से समझा है और अपने इस पहले प्यार को इस
पुस्तक के रूप में लेकर आये हैं और कहना होगा की बेहद ख़ूबसूरती से अपनी बात कहने
में कामयाब हुए हैं।
पुस्तक “प्याराना ज़िन्दगी का” पहले प्यार पर
केन्द्रित उपन्यास है जिसमें विवेक जी , किशोरावस्था से से
नए नए युवा होते युवक युवती के ज़ज्बातो को
बखूबी कागज़ पर उतारने में कामयाब हुए हैं
साथ ही पाठक को भी कहीं न कहीं उसकी अपनी यादों से जुड़ने के लिए उकसा देते हैं
शायद कुछ असफल प्रेमियों के ज़ख्मों को भी कुरेदा हो ।
इस उपन्यास के ज़रिये उन्होंने बार बार यह एहसास
करवाया है की पहला प्यार सबसे जुदा एहसास है पहला प्यार हमेशा साथ रहता है और जीवन के बाकी हिस्सों के लिए पहला ही होगा। यह
बेमानी है की बाद में आपको किससे और कितना गहरा प्यार रहा । जब भी अपने आज को देखेंगे
तो अपने सुनहरे कल और पहले प्यार के संग बिताये वे पल अवश्य याद करेंगे । पहला प्यार बेदाग, मासूम प्यार के निशान
छोड़ जाता है।
पहला प्यार आमतौर पर किशोरावस्था की शुरुआत में
ही दस्तक दे देता है जिसे बाज़ दफ़ा आकर्षण भी समझ लिया जाता है । पहले प्यार
के दौरान किसी भी चीज की अपेक्षा नहीं
होती क्योंकि यह ईमानदारी से विकसित होता है। लेकिन पश्चातवर्ती रिश्तों में आप स्वार्थी
होते जाते हैं। इसलिए जब भी आप अपने अतीत
के बारे में सोचते हैं तो दिल के किसी न किसी कोने में छुपे हुए आपके पहले प्यार
की याद आपको जरूर आ जाती है।
कथानक कक्षा 9 के एक किशोर लड़के व उसकी सहपाठिन
के बीच जान पहचान से आगे बढ़ते जाने की है जो लम्बे समय तक शायद समझे ही नहीं की जो
भी है वह प्रेम है । उनकी तो जैसे जिंदगी ही बदल गई है वो सब कुछ हो रहा है जो
पहले कभी नहीं हुआ , दोनों के हालत लगभग समान हैं ,एक दूसरे का जिक्र छिड़ते ही
प्यार की खुशबू आती है। उसका नाम सुनते ही चेहरे पर शर्म की लाली छा जाती है, दिल धड़कने लगता है। कभी मौन होते हैं , कभी
बोल ही खो जाते हैं , अपने आप की खबर ही नहीं रहती , स्वयं
का अस्तित्व अन्य में घुलता नज़र आता है । उसकी हलकी-सी छुअन का एहसास पूरे शरीर में हलचल
मचा देता है और उस एक छुअन का एहसास
रोम-रोम में समा जाता है।
रूचि ( इस कथानक की नायिका ) को देखने की इक्षा, उससे मिलने की तड़प , दोस्तों द्वारा कसे गए फिकरों से नायक अब बेपरवाह है । उससे मुलाकात के बाद लगता है कि काश, थोड़ा वक्त और मिल जाता या काश, इस मुलाकात का अंजाम कभी जुदाई न होता। यदि नायिका किसी की ओर देख भी ले तो गवारा नहीं, दिल आहत हो जाता है। इसी बात को लेकर थोड़ी अनबन भी कथानक में हो गयी है जब नायिका किसी अन्य पात्र के संग कालेज के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेती है किन्तु नायक से पूछे वगैर जो की नायक को नागवार गुज़रता है । सारी बातें मन ही मन में चलती रहती हैं । पर फिर भी देर सबेर सुलह भी होती है आखिर प्यार तो होना ही था जो हुआ भी लेकिन तब तक कथानक कुछ अनचाहे मोड़ लेते हुए अपने अगले मुकाम पर जा पहुँचता है।
पुस्तक को अलग अलग काल खंड में विभाजित कर उस दौर का चित्रण किया है। कथानक किशोर अवस्था के प्रेम से प्रारंभ हो कर कालेज भी पहुचता है एवं इस दौरान घटित बेहद सामान्य सी बातों को भी लेखक ने सुन्दर वाक्यांशों से संवारा है। आम जिंदगी के प्यार को उन्होंने जस का तस कागज़ पर उतारा है । रोचकता बढाने एवं खूबसूरत मोड़ लेने हेतु कहीं कोई अतिशय प्रयास नहीं किया है । कथानक अपने सरल प्रवाह में बढ़ता है। प्रेम कहानी है अतः उसका आनंद उसके हर पल को पात्रों के संग जीने में है , उसको अंत तक डूब कर पढ़ने में है ।
यूँ भी कहानी के मूल विषय का
इशारा कर देने से अधिक कुछ लिखना मैं समीक्षक का उसके कार्य क्षेत्र से बाहर
अनाधिकार प्रवेश ही समझता हूँ। मेरा
दायित्व पुस्तक के गुण दोष एवं उसकी पठनीयता पर अपना मंतव्य ज़ाहिर करना है न की
कहानी का सारांश बतलाना । अतः मैं वहीं तक
ही सीमित रहूँगा एवं पाठक का रोमांच
समाप्त हो ऐसा कुछ भी संकेत देना मेरी लेखन शैली में शामिल नहीं है। चंद प्रबुद्ध जन इसे मेरे स्तर पर अधूरा कार्य
समझते हैं एवं पुस्तक के विषय में और अधिक खुलासा करने की अपेक्षा मुझसे की जाती
है , किन्तु यह उनकी व्यक्तीगत राय मानते
हुए मैं अपने दायरे में ही रहना उचित समझता हूँ।
बीच बीच में खूबसूरत किन्तु
तनिक दार्शनिक वाक्यांश भी दिए हैं जो लेखक के स्पष्ट दृष्टिकोण , स्वस्थ परिपक्व
सोच , सुलझे विचारों एवं उच्च मानसिक स्तर का परिचय बखूबी प्रस्तुत करते हैं। साथ ही सुन्दर वाक्यांश भी हैं जो प्रस्तुतीकरण
को आकर्षक एवं पठनीय बनाते हैं।
जहाँ प्यार का होना आसान नहीं लगता था अब उसे भूलना
भी आसान नहीं हो रहा है। पूरी रात इधर-उधर करवटें बदल-बदल कर ही बीतती है। पूरी रात आँखों-
आँखों में ही कट जाती है। हमेशा आरज़ू रहती है की वो साथ हों लेकिन कुछ समाज की
बंदिशें , कुछ रस्मो रिवाज़ के चलते घटनाक्रम रोचकता से आगे चलता रहता है । ऐसी स्थितियां क्यूँ कर बनी यह जानने के लिए
पुस्तक के संग बने रहिये सभी ज़बाब क्रमशः मिलते चले जाते हैं और विवेक जी तो
माहवार विवरण दे रहे हैं अतः पाठक को अपनी स्मृतियों पर अधिक जोर डालने की भी
आवश्यकता नहीं होती।
कुमार विवेक जी जो स्वयं युवा है एवं अध्यापन के कार्य से जुड़े हुए है कालेज के जीवन का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत करने में कामयाब रहे हैं साथ ही उनके लेखन से युवाओं की मानसिकता , उनके व्यवहार , प्रतिक्रियों इत्यादि पर उनकी गहरी पकड़ लक्षित होती है एवं प्रादेशिक भाषा एवं युवाओं के मध्य के सहज वार्तालाप उनके कार्य कलाप को अत्यंत ही रोचक तरीके से प्रस्तुत कर अपनी बात कहने में बखूबी सफल हुए हैं ।
पुस्तक रोचक है व पाठक को
अंत तक अपने साथ सम्बद्ध रखने में सफल भी है । भाषा शैली सामान्य
है , विशिष्ठता हेतु क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग अथवा विशेषण आदि का प्रयोग
द्रष्टव्य नहीं है तथा प्रथम प्रयास के
दृष्टिगत कुमार विवेक जी की पहल अवश्य ही सराहनीय एवं स्वागत योग्य है ।
भविष्य में युवा पीढ़ी के उदयीमान लेखकों के बीच
एक सशक्त हस्ताक्षर बन कर उभरने की सम्भावना का परिचय उनकी इस कृति में प्रदर्शित
उनकी प्रतिभा से बखूबी प्रदर्शित हो रहा है।
अतुल्य
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