Mohabbat Aur Ibadat By Naveen Nath
मोहब्बत और इबादत
द्वारा: नवीन नाथ
प्रकाशक: CLASSIC ERA पब्लिकेशन
नज़र नज़र में नज़र से वो शोख काम
हुआ,
कि जाने कल्ब से चाहत भरा सलाम
हुआ।
“मोहब्बत और इबादत”, यूं तो ज़नाब नवीन नाथ का पहला प्रकाशित गीत ग़ज़ल संग्रह है जिसे खूबसूरत वादियों में बसे शहर चंबा से क्लासिक एरा द्वारा प्रकाशित किया गया है जिसके ज़रिये उन्होंने साहित्य जगत में अपनी आमद पेश करते हुए ग़ज़ल कि दुनिया में पुरजोर दस्तक दी है, लेकिन उनकी ग़ज़लें एवं गीत पढ़ कर उन्हें किसी तजुर्बेकार गज़लकार से कम नहीं आंक सकते, लिहाज़ा उनकी हुनरमंदी और काबिलियत के मुरीद हो उन्हें उनके लाज़बाब शेरों के लिए दाद देनी ही पड़ती है। इस संग्रह कि हर ग़ज़ल और हर एक शेर पर की गयी उनकी मेहनत साफ़ झलकती है।
10 वर्षों से भी ज्यादा उन्होंने उर्दू
जुबान की, शायरी की, मतला, मकता, काफ़िया या रदीफ़ जैसी ग़ज़ल कि तमाम बारीकियों की तालीम
हासिल करी है, और पूरी तरह से पुख्ता नीव हासिल करने के बाद उन्होंने अपने अश आर कहे हैं। उर्दू जुबान पर
उनकी गहरी पकड़ नज़र आती है फिर चाहे वह ग़ज़ल का मतला हो या हुस्नेमतला, उल हो या फिर सानी या फिर जू
काफ़िया। आवश्यकतानुसार विभिन्न स्थानों पर समुचित, शुद्ध एवं खालिस उर्दू के चुनिन्दा अल्फाजों का कायदे को ध्यान में रखते हुए उपयोग किया गया है।
उर्दू तो यूं ही बेहद प्यारी जुबान है जो खुद ब खुद
रूह में उतर जाती है, उर्दू भाषा के माफिक
लचक, नफासत और कहीं
नज़र नहीं आती, उसका हर लफ्ज़ के उच्चारण का
एक विशेष अंदाज़ उसे वैसे ही खास बना देता है और फिर जब उसकी बारीकियों को समझ कर, उसके खूबसूरत लफ़्ज़ों
में जब हुनरमंद शायर अपने शेर कहते हैं तो स्वाभाविक रूप से वे बेहतरीन ही होते
हैं जो कि प्रस्तुत ग़ज़ल संग्रह में नज़र आता है। कम लफ़्ज़ों में बहुत कुछ बयां कर जाना
उर्दू जुबान कि ख़ूबसूरती है वहीं शायरी कि
ज़रुरत और उम्दा शायरी का गहना भी, यही वज़ह है कि उर्दू जुबान शायरी के लिए बहुत मुफीद है और खूबसूरत शायरी उर्दू जुबान में
और ज्यादा खूबसूरत हो उठती है।
इस पुस्तक में उन्होंने
हर मिजाज़ के शेर कहे हैं, साथ ही कुछ गीत भी
हैं। एक अच्छी ग़ज़ल या गीत कि उत्पत्ति तभी हो सकती है जब गीतकार या गज़लकार
उसमें स्वयं डूब गया हो उसके ख्याल, भाव दिल में
उतर आये हों तब उन्हें अल्फाज़ देने का काम किया गया हो। इसके पहले कहे गए शेर कभी
भी पुख्ता असर नहीं छोड़ते। जीवन के भाव हों या इश्क में टूटे हुए दिल का
दर्द,महबूब का इंतज़ारे बेमुद्दत हो या फिर जुदाई का बेपनाह गम, सभी भावनाओं में डूबे
हुए शब्दों कि अभिव्यक्ति से ही सम्पूर्ण होते हैं जो कि नवीन जी के द्वारा कहे गए
शेर में और विभिन्न गीतों में भी नज़र आता है। कहा जाता है कि शायरी टूटे हुए दिल
के ज़ज्बातों को अलफ़ाज़ देने का सलीका है, नवीन नाथ कि शायरी
भी इस की अपवाद नहीं है
इस शेर पर गौर फरमाइए
इश्क में करके मुझको
तबह,
अय फ़रेबी तुझे क्या
मिला,
छोड़कर
जा रही है तू मुझे,
क्या
नया हमइना मिल गया।
वहीं अगले गीत में कहते हैं कि
फ़िरिश्ते
जिस पे शामोसहर मरते हैं,
नज़र कि
रह से वो दिल में उतरते हैं,
उसी को
रूह से हम प्यार करते हैं।
उर्दू
के अल्फाजों का सही जगह पर उपयुक्त एवं खूबसूरती से प्रयोग किया है चाहे बात खुदा
कि इबादत कि हो, या मोहब्बत कि या फिर रिश्तों कि ही क्यू न हो। अब ग़ज़ल जो
उन्होंने बेटी को नज़र की है उसकी खूबसूरती
देखिये कि:
मांगी थी जो
मालिक से,
तू वो मेरी मन्नत है।
दुख्तर है तो है दुनिया,
ये नहीं तो नहीं खिल्क़त
है।
महबूब कि तारीफ में
कशीदे पढने में भी वे पीछे नहीं हैं बहुत ही खूबसूरत गुनगुनाने को
मजबूर करती ग़ज़ल है:
फ़िरिश्ते जिन पे शामोसहर
मरते हैं,
उन्हीं को रूह से हम
प्यार करते हैं,
बलाएं दिलरुबा कि अर्श
लेता है,
सलामी जानेजां को माह
देता है,
सितारे उन को सज्द: रोज़
करते हैं।
वहीं टूटे हुए दिल कि आवाज़ इन शेरों में सुनिए:
जानां जिसकी खातिर दिल
पर तीरे शैद चलाया है,
तू इक दिन दिल कि दुनिया
में तीर उसी से खायेगा।
जूतम किया है तू ने
जिसकी नहीं कोई माफ़ी है,
रोजे हश्र किब्रिया को
हमदिल रूख़ क्या दिखलायेगा।
एक
अन्य ग़ज़ल में भी बेवफाई का गम दीखता है किन्तु यहाँ महबूब के लिए कोई नर्म दिल दुआ
न होकर उसे भी प्यार में धोखा मिलने कि बद्दुआ देते नज़र आते हैं। वे कहते है कि:
मुझे क्या हंसीं हमदम
सहारा दिया तूने,
कि हर ओर से जां–बे-सहारा
किया तूने।
कमी इश्क में क्या रह
गयी थी जो दिलआरा,
मुझे छोड़ कर गैरों को
अपना लिया तूने।
कुछेक ग़ज़ल वतन को भी नजर
हैं जिनमे कौम परस्ती छोड़ कर इन्सान बनने कि सलाह दी गयी है,
इबा का ज़हर हम निकालें
वतन कि फिजा से,
फिजा ए वतन को चलो और भी
बेहतर बनायें।
और
कौम का जो अदू है उसका सिर,
धड से पल में जुदा करो
यारो,
जो बशर छुपके वार करता
है,
वो असद नहीं वो है अव
यारो।
अंत में एक यह भी
मुल्क हो वक्ते इम्तिहान
में क्या,
दुश्मने हिन्द है गुमान
में क्या,
तन भी साये भी मिटेंगे
उनके हिन्द,
पैरों कि खाक के निसान
में क्या।
हर शेर अलग मिजाज़ में कुछ न कुछ ख़ूबसूरती
समेटे हुए है, जिसका असली सुख तो उसको पढ़ कर या शायर को रूबरू सुन कर ही उठाया जा
सकता है, हाल-फिलहाल जब तक रूबरू न सुन पायें खुद ही किताब उठा कर गुनगुनाएं।
नवीन नाथ जी को शुभकामनाओं सहित
अतुल्य
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