Manrangana by Nanda Pandey
मनरंगना द्वारा : नंदा पाण्डेय विधा : काव्य श्वेतवर्णा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित संस्करण- प्रथम मूल्य :299 समीक्षा क्रमांक : 138 शीर्षक कुछ अलग सा है न , बरबस ही अपनी ओर बुलाता हुआ - “मनरंगना”। नंदा पाण्डेय जी का नवीनतम काव्य संग्रह इस बेहद आकर्षक शीर्षक एवं प्रस्तुति के साथ लुभाता है एवं बरबस ही अपने नाम एवं आकार से अपनी ओर आकृष्ट करता है । सहज ही प्रश्न कौंधता है कौन है मनरंगना , क्या वह छलिया है या वह मनमोहन है जिस के प्रेम में दीवानी हुई है नायिका और भुला बैठी है स्वयम को उस छलिया के प्रेम रस में । जहां स्वयम को प्रियतम के प्रेम में सरोबार कर लिया आकंठ डूब गए ,स्वयम को प्रिय में इस कदर समा दिया की अब तो सब कुछ त्याग कर भी बहुत कुछ पा लेने का भाव आ गया तन मन सब ही प्रेम मय हो गया , कहाँ अलग हो प्रिय से , तुम तो हो ही नहीं यही तो प्रेम की पराकाष्ठा है भुला बैठे हो स्वयम को उस के प्रेम में और वही तो है मनरंगना . और मनरंगना भी कैसा, साँवरे मोहन जैसा जहां मीरा सब कुछ भुला बैठी, खुद को भूल गए अब तो जो है बस वही प्रियतम है , अब उसे प्रेम कहो की तपस्या, त्याग कह