kuchh Yoon Hua Us Raat By Pragati Gupta

 

कुछ यूं हुआ उस रात 

कहानी संग्रह

द्वारा : प्रगति गुप्ता

प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित

प्रथम संस्करण : 2023

मूल्य : 250.00 

समीक्षा क्रमांक :137


अपने अमूल्य साहित्यिक योगदान हेतु अनेकोननेक पुरुस्कारों से नवाजी जा चुकी ,बेशुमार साहित्यिक उपलब्धियों के साथ, अपनी सौम्यता एवं सरलता के लिए पहचानी जाने वाली एक सुलझी हुई कहानीकार , एवं साहित्यिक गलियारों में कहानी विधा की चर्चा जिनके उल्लेखनीय प्रकाशित कार्य के वगैर अधूरी ही मानी जाती है उन्ही ख्यातिलब्ध साहित्यकारा प्रगति गुप्ता जी की कलम के चंद खूबसूरत तोहफे नवीनतम कहानीसंग्रह “कुछ यूं हुआ उस रात” के रूप में हमारे सामने प्रस्तुत हुए हैं जिसमें मूलतः नारीविमर्श केंद्रित कहानियाँ हैं जिनमें अलग अलग कहानियों में विभिन्न नारी पात्रों में नारी का  संघर्ष, उसके जज़्बात उसकी पीढ़ा उसका अव्यक्त प्रेम , व्यवस्था रूढ़ियों एवं सामाजिक मान्यताओं से जुड़े बहुत से अनुत्तरित प्रश्न एवं विचारों के घुमड़ते झंझावात के साथ उसकी सहनशीलता दिखती है वही इंसानी रिश्तों के भिन्न भिन्न मानक , मानवता का उठता गिरता स्तर , इंसान के भीतर का अंतरद्वंद जैसे बहुतेरे भाव भी देखने को मिलते हैं। विशेष तौर पर जिस बिन्दु पर मैं ध्यान आकृष्ट करवाना चाहूँगा वह है प्रगति जी द्वारा अपने पात्रों की मनोवैज्ञानिक अवस्था को समझते हुए उनकी सुंदर संवाद अदायगी। उनकी इस एक ही पुस्तक में हमें विभिन्न रंगों की कहानियाँ मिलती हैं। तात्पर्य  यह की उनकी कलम को उन्होनें कहीं भी बांधा नहीं हैं अर्थात कथानक को  किसी विशेष विषय अथवा भाव पर केंद्रित नहीं किया गया है ।

उनकी शैली , शब्द संयोजन एवं सुगठित किन्तु सहज वाक्य विन्यास इतने  सरल है कि पाठक पुस्तक पड़ते हुए सहज ही पात्र में स्वयम को देखने लगता है। संवाद अदायगी का  निर्बाध प्रवाह कहीं भी पाठक को नीरसता नहीं अनुभव होने देता ।

प्रगति गुप्ता जी  के कहानी संग्रह “कुछ यूं हुआ उस रात” की प्रत्येक कहानी रिश्तों के इर्द गिर्द सृजित हैं। उनकी कहानियाँ परिवार , समाज की बात तो करती ही हैं उनके साथ साथ स्त्री स्वाभिमान  अस्तित्व एवं सम्मान के लिए उस की जंग की बात भी पुरजोर तरीके से सम्मुख रखती है।   

प्रस्तुत कहानी संग्रह की पहली ही कहानी “अधूरी समाप्ति” आपको शून्य  या कहें जड़ता की अवस्था में  पहुंचा देती है।  कोरोना  की भयावहता के संग प्रेम के पनपते  अंकुर और वहीं अधूरी प्रेम कहानी के बीच एक अनोखी ही अवस्था का जिक्र जिस तरह से लेखिका ने किया है उस से कहानी समाप्त हो जाने के बाद भी कुछ समय तक उस माहौल से बाहर नहीं आ पाते। बहुत सरलता से सीधी सीधी बात कही गई हैं कोई घुमाव फिराव अथवा जैसा की आज कल बहुतायत में देख रहे हैं रोचकता बनाने या कहानी को उच्च स्तरीय   बनाने हेतु भरी भरकम शब्दों  को बलात वाक्यों के बीच प्रविष्ठ  नही कराया है। उनकी पहली ही  कहानी से स्पष्ट हो जाता है की वे आम पाठक के लिए उस की बात उस के तरीके से  लिख रही हैं जो उस के लिये सहजता से ग्राह्य है। पाठक कथानक से सहज ही जुड़ता चला जाता है प्रस्तुत कहानी को पढ़ते हुए भी कोरोना काल के दृश्य अपनी संपूर्ण विकरालता के संग  आंखों के सामने बनते बिगड़ते रहे। विषम परिस्थितियों में इंसान की  मानसिकता का जो वर्णन देखने मिला वह अद्भुत है। मानवता की दृष्टि से भी बिलकुल नया ही पहलू देखा है।

तो वहीं प्रख्यात विदुषी , वरिष्ट साहित्यकार वंदना वाजपेई जी की कहानी "वो फोन कॉल" की याद ताज़ा कर गई , संग्रह की अगली कहानी “कुछ यूं हुआ उस रात”।  कहानी एक अनजान अप्रत्याशित फोन कॉल पर केंद्रित है जहां वे रोमांच एवं सहज गति बनाए रखने में कामयाब रहीं हैं जबकि कथानक जहां एक ओर कलहयुक्त दांपत्य जीवन की घटनाओं का बच्चों के मस्तिष्क पर प्रभाव दर्शाता है वहीं मातृ हृदय की कोमलता एवं किशोर अवस्था में विशेष तौर पर बालिकाओं हेतु माँ की महत्ता दर्शाती है। कथानक में रोचकता एवं गतिशीलता के साथ साथ थोड़ा सा रोमांच भी है।

“कोई तो वजह होगी”, शीर्षक है उनकी एक और कहानी का जहां कुछ गूढ है एवं निश्चय ही कुछ खोजने की प्रक्रिया में कथानक का भाव हैं । प्रगति जी कहानियों  के द्वारा कहीं गहरे  अपने पात्रों का मनोविज्ञान अध्ययन करने से जुड़ जाती हैं जिसके द्वारा वे समाज के ही किसी पात्र का अध्ययन कर रही होती हैं ।  उनके पात्र सहज ही  वह नहीं करते अथवा सोचते अपितु उसके पीछे का भाव एवं विज्ञान निश्चय ही प्रगति जी द्वारा काफी गहनता से मनोवैज्ञानिक आधार पर  समझा विचारा  जाता है तब वह खंड हमारे सामने उस रूप में रखती हैं। प्रस्तुत कहानी के बस दो ही पात्र हैं किंतु उनका विस्तृत भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययन कर के कथानक सृजित हुआ है साथ ही चंद वाक्यांश सरल होते हुए भी अत्यंत प्रभावित कर जाते हैं यथा

“बच्चों के लिए दिल से करना जब माँ  बाप को सुखद लगे और बच्चों को उनका किया हुआ महसूस हो इस से सुखद बात नहीं हो सकती।“

“समझौते अगर स्वाभिमान को चकनाचूर कर दे तब साथ रहना मुश्किल हो जाता है।“

“एक औरत तभी हारती है जब वह अपने स्वाभिमान से समझौता करती है”। 

“शारीरिक सुखों कि पूर्ति से जुड़े विकल्पों की उपलब्धता पुरुष को विवेक शून्य कर देती है वहीं बच्चा होने के बाद स्त्री का विवेक बच्चे के आस पास केंद्रित होने लगता है”। 

प्रगति जी की कहानियों में नारी विमर्श भाव प्रवणता , नारी शक्ति व् भाव को समझने का मनोवैज्ञानिक पहलू प्रमुखता से देखने में आते हैं। उनके पात्र अनापेक्षित भी कर गुजरते है एक निर्भीकता है साथ ही वैचारिक स्पष्टता भी उनके पात्रों में दिखलाई  पड़ती है। प्रस्तुत कहानी में वृद्ध महिला के पात्र के द्वारा जहां समाज को एक स्पष्ट संकेत दिया है वहीं युवतियों को सशक्त होने की प्रेरणा भी।

"खामोश हमसफर" “रुपए का नशा सर पर सवार होते ही अहम का सांप भी व्यक्ति के स्वभाव पर कुंडली मार कर बैठ जाता है”, जैसे सुंदर विचार पूर्ण कथन जो सहज ही अपने अंदर जीवन एवं समाज के कड़वे सच समेटे हुए है प्रगति जी की कहानियों के सहज प्रवाह में शामिल हैं ।

इसी संग्रह की एक और नारी प्रधान कहानी में प्रगति जी लिखती हैं की एक स्त्री तभी हारती है जब वह अपने स्वाभिमान से समझौता करती है और प्रस्तुत कहानी में वे अपनी बात पर अमल करती हुई दिखती हैं उनकी नायिका पति की अथाह संपति एवं वैभव के बीच भी अपनी नौकरी करती रहती है जो की  लोगों की नजर में पैसा कमाने के लिए थी किंतु उसकी स्वयं की नज़रों में उसके वजूद को जिंदा रखने की उसकी मुहीम का हिस्सा थी। दांपत्य जीवन में ऐसे स्थिति में दरार  आ जाना स्वाभाविक है भले ही ऊपरी तौर पर दिखावे के लिए सब सामान्य दर्शाया जाए। इसी कहानी में लेखिका बहुत ही सुंदर बात कहती हैं की “बगैर प्रेमवाला शारीरिक संबंध वितृष्णा की अनचाही पौध खड़ी कर देता था जो उनके रिश्ते में पसरे हुए मौन को और गहरा देता था। उनकी  आपसी  शांत शिकायतों और समझौतों ने इस रिश्ते को दूसरों की नजरों में आदर्श रिश्ता जरूर साबित कर दिया था ।

“उनके रिश्तों में फैली हुई चुप्पियां दिमाग की फैलाई हुई बिसात का हिस्सा थीं। ताकि किए हुए समझौते उलझन न बढ़ाएं”

एक स्वाभिमानी कामकाजी पत्नी एवं समृद्ध अहंकारी वैभवशाली पति के बीच दांपत्य संबंधों की खींचतान को बखूबी दर्शाया है । सुंदर विषय पर अत्यंत अर्थपूर्ण कहानी जहां  अपने  स्वाभिमान की रक्षा  एवं अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती उनकी नायिका अपने ही ढंग से विजय दर्ज करती है

“चूक तो हुयी थी” एक ऐसे घर की कहानी है जहां माँ ही अपनी बेटियों को अच्छे संस्कार देना भूल गई फलस्वरूप बेटियाँ भी माँ के नक्शे कदम पर चलते हुए ,पैसे को ही सर्वस्व समझ बैठी जिसकी परिणीति कितनी गंभीर हो सकती है इसका चित्रण शब्दों के मार्फत करने में बखूबि कामयाब रहीं हैं।  इसी कहानी से ये पंक्तियां कहानी का मर्म बखूबी स्पष्ट कर रही हैं  : “ जब रुपया बीच में आकर खड़ा हो जाए तो तो बिगड़े हुए रिश्तों के समीकरणों को सुधारना आसान नहीं होता। रिश्ते निभाने में की गई बेइमानियां और मनमानियां ,खत्म होती उम्र में सिर्फ परिणाम दिखाती है”।

“टूटते मोह” , कहानी के द्वारा लेखिका ने तथाकथित गुरुओं के द्वारा भ्रमित किए जा रहे युवाओं , उनकी बेसिर पैर की , अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु दी गई सीखों से बिखरते परिवार और मा पिता के प्रति घटते सम्मान, इन गुरुओं के द्वारा किए जा रहे ब्रेनवाश के परिणाम  को प्रमुखता से उठाया है किंतु अंत में युवक की मां का एक कठोर निर्णय अपेक्षित था जो की नही है सांकेतिक रूप से लेखिका ने प्रयास किया है किंतु अंत उतना प्रभावी नहीं बन पड़ा। पाठक समस्या के साथ साथ समाधान की भी अपेक्षा कर रहा है इस बिन्दु पर ध्यान दिया जाना रचना को पाठक के अधिक करीब ले जाने में सफल होगा ।

प्रगति जी समसामयिक विषय पर लिखती हैं जो अमूमन हमारे रोज के आम जीवन से ही कहीं न कहीं जुड़े हुए होते है रोचक प्रस्तुति के संग विषय में गहरी पैठ उसके विभिन्न पहलुओं पर बारीक नजर वाली प्रतिक्रिया रखती हैं तथा अपने पात्रों को इतना जीवंत रखती हैं पाठक  स्वयं ही कथानक से जुड़ाव अनुभव होने लगता है।

प्रस्तुत कहानी संग्रह की कहानी “पटाक्षेप” नारी विमर्श केंद्रित एक और विचारोत्तेजक कहानी है जो सिर्फ कहानी तो कदापि नहीं है अपितु एक गहरी सोच है, एक प्रयास है ,हाई सोसायटी की महिलाओं की दोहरी जिंदगियों की , जीवन के बहुत कुछ छुपे और कुछ खुले पहलुओं के भीतर झांकने कीजहां जाने कितने कड़वे सच संभ्रांतता  के आवरण के पीछे छुपे हुए हैं और सरलता के मुखौटे के नीचे कितने छलावे हैं। कथानक संभ्रांत महिलाओं की किटी पार्टी पर केंद्रित है जिसमें पार्टी का मैनेजर हमारा सूत्रधार है एवं उसकी प्रतिक्रियाएं कड़वी सच्चाई से रूबरू करवाती हैं।

संभ्रांत परिवार की महिलाओं के जीवन के वे पहलू दिखलाए हैं जो सामान्य तौर पर कभी अमीरी तो कभी राजनीति जैसे बहुतेरे आवरणों में ढके होते हैं और जिन्हें अन्य के द्वारा अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु प्रयोग किया जाता है। विभिन्न महिला पात्रों के द्वारा अलग अलग मानसिकता के साथ उनके संग बिताए गए कुछ बिंदास पलों को व कुछ अनकही कहानियों और सच्चाइयों को सामने रख कर समाज के एक बड़े हिस्से की असलियत में झांकने का प्रयास है

अब बात करते हैं एक और कहानी" फिर अपने लिए" की, एक मूक बधिर  बच्चे के मन मस्तिष्क में माँ की छवि , मां पिता के अलगाव का मन पर असर ,एकल पिता का प्यार जैसे विषय को लेकर लिखी है किंतु कथानक में बच्चे को मूक बाधिर दर्शाने  का विचार पशचतवर्ती   प्रतीत होता है साथ ही मूक बधिर बच्चे का संवाद अदायगी को समझना एवं संप्रेषण , वास्तविकता से थोड़ा अधिक एवं कल्पनात्मक ज्यादा लगता है। यूं कथानक का मूल भाव अनोखा है एवम  वाक्यांश भावनाओं को दर्शाने में बखूबी सफल रहे हैं ।

“वह तोड़ती रही पत्थर” भी नारी प्रधान कथानक है जहां लकवा पीड़ित पति की मां की तीमारदारी करती नायिका को अपने कष्टों एवं परेशानियों का पार समझ नही आता किंतु जब अपने समान से भी कहीं अधिक बदतर हालत एक श्रमिक महिला की  देखती है तब उसकी सोच करवट लेती है ,  उसकी परिवर्तित मनोदशा एवं उस पत्थर तोड़ने वाली महिला से वार्तालाप के दरमियान उसके मन में उठते विचारों को , अपने पति की महिला के पति के साथ तुलना को यूं प्रत्यक्ष तौर पर न दर्शाते  हुए भी कहानी के मूल में रखा है। कहानी विभिन्न भावों को समग्र रूप से प्रस्तुत करने में सफल रही है।

प्रगति जी के पात्र मुखर हैं जागरूक हैं किंतु उनकी भावना में प्रतिशोध नही है यथा कहानी “सपोले” में , बेटी के संग दुराचार करने वाले कोमात्र धमका कर छोड़ देना तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता तथा पाठक की भवन सहज ही उसे दंडित होते देखना चाहती है साथ ही अपराधी को छोड़ देने के निर्णय हेतु अंतर्निहित कारण भी स्पष्ट नहीं हैं। कुछ ऐसा ही अनुभव कहानी “टूटते मोह” में भी होता है जहां माँ द्वारा सब कुछ समझते हुए भी बेटे को न तो बाबा से अलग हीं किया जाता है और न ही मेल जोल प्रतिबंधित होता है हालांकि उस कहानी के अंत में यूं प्रतीत तो हो रहा था की संभवतः पिता के समस्त कर्मकांड हो जाने के पश्चात माँ कुछ सख्त निर्णय लेगी किन्तु ऐसा कुछ  हुआ नहीं।

रिश्तों को बनने और बिखरने की पेचीदगियाँ, रिश्तों में कहीं लगाव तो कहीं सहज मोह जैसे बिंदुओं पर भी इस पुस्तक की कहानियाँ स्पष्टता और गहराई के साथ समझती समझाती हैं। भाषा सरल एवं स्पष्ट है तो प्रस्तुति जीवंत जहां पात्र का चित्रण भी यथार्थवादी और मानवीय हैं जिस से पात्र कहानी का भाग न होकर हमारे बीच का ही इंसान मालूम होता है।

बात करे इस संग्रह की मेरी सबसे पसंदीदा कहानी की जिसे बार बार पढ़ने का मन हुआ तो वह थी “समर अभी शेष है” जिसने बार बार यह साबित किया कि  प्रेम भाव न उम्र से बंधे हैं न ही किसी अभिव्यक्ति से, प्रेम त्याग है और समर्पण भी किंतु एक नारी  कैसे एक साथ कई रिश्ते निभाती चलती है अपना स्व समाप्त करके बगैर प्रेम के भी जीवित रह लेती है किंतु प्रेम मिल जाए तो जीवन जी लेती है। बहुत सरल एवं सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति , सुंदर वाक्यांश  जो दिल को सहज ही छू लेते हैं ।

वही लघुकथा कल का क्या पता अत्यंत तीखा तंज है पुरुष मानसिकता पर एवं इंसान की मजबूरी में उसकी प्राथमिकताएं कैसे परिवर्तित होती हैं यह बहुत ही सरल शब्दों में न सिर्फ कह गई हैं वरन कई सुलगते सवाल भी पीछे छोड़ गई हैं। अन्य कहनियाँ भी बेहतर बन पड़ी हैं सभी कहानियाँ रोचक एवं पठनीय हैं तथा संग्रह अद्वितीय ।

अतुल्य

 

 

 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Thaluaa Chintan By Ram Nagina Mourya

Hargovind Puri Chayanit Kavitayen