kuchh To Bacha Rahe By RamDulari Sharma
कुछ तो बचा रहे
- कविता संग्रह
विधा : कविता
द्वारा : रामदुलारी शर्मा
ज्ञानमुद्रा पब्लिकेशन भोपाल द्वारा प्रकाशित
प्रथम संस्करण :2023
मूल्य : 250.00
समीक्षा क्रमांक : 136
रामदुलारी जी के विषय में अधिक तो नही किंतु हाँ, उनकी पुस्तक की चंद कविताएं पढ़ कर व पूर्व में भी विभिन्न पटलों पर उनकी कृतियाँ देखी एवं उनसे इतना तो अवश्य ही कह सकता हूँ की सुलझी हुई एवं रिश्तों तथा मानवीय मूल्यों को तरजीह देने वाली शख्सियत हैं।
अभी हाल ही उनकी पुस्तक “कुछ तो बचा रहे” प्राप्त हुई किंतु विस्तार से पढ़ा जाना अभी शेष है। किन्तु जितनी भी कविताएं पढ़ी बहुत सीधी सरल सी बातें है कहीं किसी विशिष्ट शैली का प्रभाव अथवा रचना को अतिरिक्त सौंदर्य प्रदान करने हेतु चुनिंदा शब्दों को समायोजित करने का प्रयास नहीं दिख रहा न ही उन्होंने वाक्यांशों को बेवजह क्लिष्ट बनाने के लिए अलंकारिक शब्द ही डाले हैं।
तबियत थोड़ी नासाज है जिसके चलते अभी पुस्तक पूरी
नहीं पढ़ पाया हूं। कुछ ही कविताएं पढ़ीं जो वाकई अच्छी बन पड़ी है क्योंकि दिल की
बात सीधे सीधे कही गई है कोई घुमाव फिराव नहीं है, सहज सरल
एवं निश्चय ही पठनीय है।
आकर्षक कलेवर में “ज्ञान मुद्रा पब्लिकेशन” भोपाल द्वारा प्रकाशित पुस्तक को उन्होंने समर्पित किया है मजदूर किसानों और तमाम मेहनतकश लोगों को और उनके यह भाव अवश्य ही प्रभावित कर जाते हैं साथ ही दर्शा जाते हैं आम जन से उनका जुड़ाव एवं आत्मीयता। उनकी कविताएं आम जन से, उनके रोज मर्रा के उतर चढ़ाव से जुडी हैं , कविता “भाई का पत्र” भावनात्मकता के स्तर पर सुंदर कथ्य है एवं भीतर तक झकझोरने में कामयाब रही है। बहुत सी कविताएं तीन तीन खंड में कही गई गई है यथा “बेटी”, “मा”, “घर” “स्त्री”, जो कवियत्री के भीतर घुमड़ रहे एवं बाहर आने को आतुर विचारों के अथाह सागर को दर्शाती है।
सम्पूर्ण वैचारिक गंभीरता के संग कुछ भावनात्मक एवं तनिक आध्यात्मिक पुट लिए हुए शीर्षक कविता “कुछ तो बचा रहे” है वहीं “विश्वास”, “बीज” एवं “नाद” जैसी कविताएं भी हैं जो पाठक को सोचने हेतु विवश करती हैं। प्रत्येक कविता अपने आप में कुछ विशिष्टता लिए हुए है जिनमे से कुछेक में तो कुछ पंक्तियां अत्यंत सुंदर कही गई है यथा कविता “अन्न” की ये पंक्तियां :
हमारे अंकुरित होने से पहले
ही उनके सपनों में हरहराने लगे हम
माँ की
कल्पनाओंमें
अजन्मे शिशु की तरह ।।
या फिर कविता “कर्ज” का यह दर्द, यह भाव देखें :
अभी सरसों के हाथ नहीं हुए पीले
और न पकी गेहूं की बालियां
मिट्टी में दबे बीज कैसे जोड़ें हमसे नाता
जमीन बिक जायेगी
दाने घर आने से पहले ।।
अपने इस कविता संग्रह की अंतिम कविता बजट्टी के जरिए
उन्होंने कमज़ोर आर्थिक हालत वाले घर की दशा को बखूबी सामने रखा है और कहीं न कहीं
पाठक से दिल से जुड़ने में कामयाब रहीं हैं। कविता में भाव एवं दर्द बखूबी उभर कर
आए हैं।
हर कविता सुंदर बन पड़ी है एवं विशेषता यह की कहीं भी
कविता का रूप बनावटी नही है। भावना के सहज सरल प्रवाह को शब्द रूप में प्रस्तुत
किया गया है। प्रस्तुत कविता संग्रह में, मेरे लिए अभी बहुत
कुछ पढ़ जाना शेष है शीघ्र ही अन्य कविताओं पर भी विचार रखूँगा। किन्तु कुछ कविताओं
को पढ़ने के बाद भी कह सकता हूँ की निश्चय ही एक बेहतरीन कविता संग्रह है जो निश्चय
ही पढ़ने के आनंद एवं आत्मिक सुख के साथ साथ कहीं भीतर अपने में छुपे उस सरल इंसान से
भी जोड़ता है जिसे हम जीवन की आपाधापी में भुला बैठे हैं।
अतुल्य
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें