Bharat Ka Swadheenta Sangram Aur Krantikari By Shailendra Chouhan
भारत का स्वाधीनता
संग्राम और क्रांतिकारी
द्वारा शैलेन्द्र चौहान
विधा : शोधग्रंथ
प्रथम संस्करण : 2023
मंथन प्रकाशन जयपुर द्वारा प्रकाशित
मूल्य : 400
समीक्षा क्रमांक : 135
विभिन्न
ज्वलंत मुद्दों पर अपनी तीखी टिप्पणियों के संग संग सारगर्भित,तीक्ष्ण एवं चोट
करती हुई कविताओं हेतु साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान रखने वाले वरिष्ट साहित्यकार
एवं विश्लेषक शैलेन्द्र जी की प्रस्तुत शोध परक पुस्तक भारतीय स्वयंत्रता संग्राम
से परिचय करवाती हुई ऐसे तमाम क्रांतिकारी चेहरों को प्रस्तुत करती है जो अपने
बहुमूल्य योगदान के बावजूद गुमनामी में खोए भले ही न हों किन्तु धूमिल अवश्य रहे।
साथ ही वे उन महान क्रांतिकारियों का उल्लेख करने से विरत नहीं रहे हैं जिनके विषय
में अमूमन देश का बच्चा बच्चा जनता है यथा झांसी की रानी लक्ष्मीबाई , राजगुरु
सुखदेव इत्यादि।
भारतीय स्वाधीनता संग्राम भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय है। इस संग्राम के दौरान, भारतीय जनता ने अंग्रेजों के विरुद्ध अद्वितीय साहसिक संघर्ष किया एवं यह संघर्ष भारतीय जनता की सामूहिक जागरूकता, देश के प्रति प्रेम एवं समर्पण तथा समर्थन एवं निरंतर संघर्ष व एकजुटता का परिणाम था।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख चरण में महात्मा गांधी का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था। गांधीजी ने असहिष्णुता एवं अंधविश्वास के खिलाफ एक अद्वितीय और असाधारण तकनीक का प्रयोग किया। उन्होंने सत्याग्रह और अहिंसा के माध्यम से भारतीय जनता को आत्मनिर्भरता की ओर प्रेरित किया और उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट कर के अंग्रेजों के सम्मुख एक शक्ति का प्रदर्शन करने व उन्हें चेतावनी देने में कामयाब रहे । यूं तो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रत्येक अंग यथा सामाजिक प्रतिरोध, अहिंसा, असहयोग आंदोलन, क्रांतिकारी गतिविधियां इत्यादि अहम थे , इन्हीं विभिन्न विशिष्ट पहलू के चंद बिंदुओं पर दृष्टिपात करें: स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय जनता ने अभूतपूर्व एकता एवं संगठन शक्ति का परिचय दिया विभिन्न वर्गों, समुदायों, धर्मों और संस्कृतियों के लोग मिलकर एक साथ खड़े होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़े। 2 विभिन्न विचारधाराओं के बावजूद क्रांतिकारी धारा को अपनाने वालों को भी आम जन का भरपूर सहयोग एवं समर्थन मिलने से आंदोलन को नई दिशा मिली । 3. महात्मा गांधी ने अपने अहिंसा के सिद्धांत के माध्यम से स्वयंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया एवं सत्याग्रह अहिंसा संयम के मूल्यों की शक्ति से आम जन का परिचय करवाया वहीं अंग्रेजी हुकूमत के दिल में भी सिहरन पैदा कर दी। 4 स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय जनता ने धर्म, भाषा, और सामाजिक विभाजन के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई लड़ी एवं ब्रिटिश राज के खिलाफ एक समृद्ध, स्वतं त्र राष्ट्र की आवाज बुलंद की। 5 विभिन्न युवा क्रांतिकारियों की क्रांतिकारी गतिविधियों के बीच गांधी जी के सत्याग्रह एवं असहिष्णुता के खिलाफ आंदोलन ने भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के तीव्र होते प्रयासों को बल मिला। भारतीय स्वाधीनता संग्राम पर विचारण में अहम बिन्दु औपनिवेशिकवाद पर चर्चा का भी है । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एवं औपनिवेशिकवाद दोनों ही भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण अध्याय हैं जिनके मूल उद्देश्य भिन्न न होने के बावजूद कहीं न कहीं भिन्नता थी । कुछ मुख्य बिंदुओं पर गौर करते हैं: स्वतंत्रता संग्राम का मुख्य लक्ष्य था येन केन प्रकारेण भारतीय स्वाधीनता की प्राप्ति, जबकि औपनिवेशिकवाद का मुख्य उद्देश्य था ब्रिटिश शासन के खिलाफ खुला विद्रोह करके अंग्रेजों को भारत छोड़ने हेतु विवश करना। जहां एक ओर स्वतंत्रता संग्राम का मुख्य आधार राष्ट्रीयता, एकता, एवं धार्मिक आधार पर आधारित था, वहीं औपनिवेशिकवाद अधिकतर राजनीतिक एवं सामाजिक विप्लववादियों द्वारा संचालित था। यूं तो दोनों ही धाराएं एवं उनके प्रभाव मिले जुले रहे एवं दोनों ही प्रभावी थे, अंग्रेजों के खिलाफ सशक्तता से उभरे थे जिनमें स्वतंत्रता संग्राम विशेष रूप से 20वीं सदी के पहले और मध्य के दशकों में अपने प्रबलतं रूप में था जबकि औपनिवेशिकवाद 19वीं सदी के आखिरी दशकों और 20वीं सदी के आरंभ में । वहीं एक तीसरा पहलू भी विचरण योग्य है वह है उस काल में देश में जमींदारी प्रथा, क्यूंकि यूं तो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और जमींदारी प्रथा दोनों ही भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण और प्रभावशाली घटनाओं के रूप में स्थान पाते हैं, लेकिन ये दोनों ही अलग-अलग समयावधि और संदर्भ में काम करते थे। जहां स्वयंत्रता संग्राम ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय जनता की लड़ाई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य था भारत की स्वतंत्रता प्राप्त करना जो की मूलतः राष्ट्रीय एवं सामाजिक मुद्दों पर आधारित था जबकी जमींदारी प्रथा समाज में भेद पैदा करती थी अमीर एवं गरीब के बीच की खाई को और बढ़ा रही थी यह ब्रिटिश शासन के दौरान ऐसी सामाजिक ,आर्थिक प्रणाली थी, जिसमें भूमि के मालिक जमींदार थे और उनके पास कृषि करने के लिए किसानों की भूमि का उपयोग करने की अनुमति थी। यह प्रथा आम भूमिधारकों को अत्यधिक उत्पीड़ित करती थी और सामाजिक असमानता बढ़ाती थी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और जमींदारी प्रथा दोनों ही भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं के रूप में स्थान पाते हैं, जो भारतीय स्वतंत्रता ,समाजिक प्रगति एवं समानता की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख कारण भारतीय समाज में समाजिक और आर्थिक न्यायव्यवस्था की आकांक्षा थी वहीं जमींदारी प्रथा इसके ठीक विपरीत थी। विभिन्न स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं यथा महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू,सरदार वल्लभभाई पटेल इत्यादि ने जमींदारी प्रथा के खिलाफ भी आवाज उठाई। इसके अलावा, ब्रिटिश शासन की अनेकों नीतियों ने भी जमींदारों को भारतीय जनता के खिलाफ किया, जिस से भारतीय स्वाधीनता संग्राम को और भी बल मिला। 1. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनेकोननेक नेताओं ,पथप्रदर्शकों एवं क्रांतिकारीयों ने अपना सर्वस्व न्योंछावर कर महत्वपूर्ण योगदान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को और अधिक प्रबल एवं प्रभावी बनाने हेतु किया । महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत और नेता थे। उन्होंने अहिंसा, सत्याग्रह, और सामंजस्य के माध्यम से लोगों को आंदोलन में सहयोग करने के लिए प्रेरित किया। उनकेआम जन से सामान्य व्यवहार एवं अहिंसा तथा असहयोग आंदोलन जैसे विरोध के तरीकों ने उन्हें भारतीय जनता के दिलों में महानायक के रूप में स्थापित किया, वहीं पूर्णतः विपरीत राह पर चलने वाले तथा शक्ति एवं क्रांति से स्वराज हासिल करने की कामना संग प्रयास करने वाले भगत सिंह, सुखदेव, और राजगुरु जैसे जोशीले युवाओं ने क्रांति का रास्ता अपनाया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांति का मार्ग चुना । उनकी शहादत ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन को नई ऊर्जा ,संघर्ष की प्रेरणा एवं दिशा दी। तो सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक संगठित रूप देने का प्रयास किया। "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा" एक ऐसा नारा बनके उभरा जो युवाओं सहित प्रत्येक भारतवासी के दिल में जोश भर देता था। जिसने भारतीय जनता को काफी आत्मबल दिया। प्रस्तुत पुस्तक में शैलेन्द्र जी ने विस्तार से विभिन्न क्रांतिकारियों के कार्य एवं जीवन पर प्रकाश डाला है जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को साहसिक और निर्णायक रूप दिया, जिससे भारत अपनी स्वतंत्रता की दिशा में अग्रसर हो सका। इन्हीं क्रांतिकारी विचारधारा के पोषकों ने अपने कार्यों ,संघर्ष व आजादी हेतु किए गए प्रयासों से भारतीय जनता के दिलों में जोश , जुनून तथा स्वतंत्रता के लिए दिलों में एक उम्मीद के साथ उनका स्वाभिमान जागृत करने में सफलता हासिल करी फलस्वरूप आम भारतीय ने भी स्वयम पर विश्वास हासिल किया। झलकारी बाई, जो भीमा कोरेगांव के क्षेत्र से थीं, ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 1857 की बिप्लावी आंदोलन में भाग लिया और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए बड़ी साहसिकता दिखाई। झलकारी बाई की वीरता और साहस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में उन्हें एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है । तो वहीं झांसी की रानी लक्ष्मीबाई एक अत्यंत प्रतिभाशाली और साहसी योद्धा थीं, जिन्होंने 1857 के विद्रोह में अपने शौर्य का प्रदर्शन किया। उनकी वीरता के किस्से जन जन में मशहूर हैं । अशफाक उल्लाह खान भी स्वाधीनता संग्राम के एक महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली नेता थे । उन्होंने अपने जीवन के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ते हुए भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1857 की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण विद्रोह में भाग लिया। रास बिहारी बोस का भी स्वाधीनता संग्राम में अविस्मरणीय योगदान रहा । मूलतः वे बंगाल से थे । बोस का जन्म 25 मई, 1886 को ओडिशा में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिए। शहीद शिवराम हरी राजगुरु। राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 को महाराष्ट्र के खेड़ा जिले में हुआ था। उन्होंने अपनी युवावस्था में महात्मा गांधी के साथ जुड़कर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया। राजगुरु ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यकर्ता और स्वतंत्रता संग्रामी के रूप में अपने प्रमुख योगदान किए तथा वीरता, साहस और समर्पण के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तनिक काम जाने वाले नामों में क्रांतिकारी मन्मनाथ गुप्त, अहमदुल्लाह और जोधसिंघ अटैया के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं , अहमदुल्लाह शाह एक प्रमुख मुस्लिम नेता थे एवं उनके नेतृत्व में मुस्लिम समुदाय को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ने की दिशा में काफी काम हुआ तो वहीं जोधसिंह अटैया, झारखंड के आदिवासी नेता थे और उन्होंने भी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ डटकर संघर्ष किया। इन तीनों क्रांतिकारियों का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण है। शैलेन्द्र जी ने अपनी पुस्तक में विशेष रूप से आदिवासी तथा संथाली क्रांतिकारियों का स्वाधीनता संग्राम में योग दान विषय पर भी खूबसूरत आलेख दिया है। जिनका स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने संघर्ष के माध्यम से अपने जनमानस को सशक्त किया और उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा दी। जिनमें बिरसा मुंडा जो की झारखंड के संथाली आदिवासी लोगों के नेता थे, जिन्होंने आदिवासी अधिकारों की लड़ाई में भूमिका निभाई। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन और अपने समुदाय के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल किया। तो बिर चिल्ला उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में आदिवासी आंदोलनों के प्रमुख थे उन्होंने अपने समुदाय के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में जुटाया एवं उनके अधिकारों तथा स्वतंत्रता हेतु आवाज उठाई । इसी क्रम में बीरसाइंया छत्तीसगढ़ के आदिवासी लोगों के नेता और महान क्रांतिकारी थे। उन्होंने अपने समुदाय के लोगों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया एवं संघर्ष करने के लिए आदिवासी सेना की स्थापना की। सार यही की इन आदिवासी और संथाली क्रांतिकारियों ने अपने समुदाय के अधिकारों तथा भरतकी स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा उनके साहस एवं जोश ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को और मजबूत किया। संथाली क्रांतिकारी तिलका मांझी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक नेताओं में से एक थे। वह आदिवासी आंदोलन के प्रमुख नेता थे, उनका जन्म संथाल प्रदेश, जो वर्तमान झारखंड, में स्थित है, में हुआ था। तिलका मांझी ने संथाल आंदोलन की अगुवाई की, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण और साहसिक विद्रोह था। उन्होंने अपने जीवन के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया और अपने जनसाधारण को स्वतंत्रता की लड़ाई में जुटाया। तिलका मांझी का संघर्ष और बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण है, और उनकी प्रेरणादायक कहानी हमें उनकी अदम्य उत्साह और साहस की याद दिलाती है। क्रांतिकारियों पर चर्चा के साथ ही शैलेन्द्र जी ने अपनी पुस्तक में उन विशिष्ट घटनाओं को भी समेटा है जो भारतीय स्वयंत्रता संग्राम हेतु काफी अहम थीं यथा अगस्त क्रांति : अगस्त क्रांति भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना थी जो 9 अगस्त 1942 को घटित हुई जिसे 'भारत छोड़ो आंदोलन' या 'भारत छोड़ो अभियान' भी कहा जाता है। यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में आयोजित किया गया था और इसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए अभियान चलाना था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य भारतीय स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालना था। गांधीजी ने इस आंदोलन को नेतृत्व किया और उन्होंने इसे "भारत छोड़ो" का नारा दिया। गांधीजी ने कांग्रेस की अधिकारिक अवधारणा का त्याग किया और कहा कि "कांग्रेस को किसी भी सरकार में शामिल होने के लिए किसी भी प्रकार का कोई समर्थन नहीं देना चाहिए।" इस आंदोलन में भारतीय जनता ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अहिंसक प्रदर्शन किया। इसे "भारतीय स्वतंत्रता संग्राम" का महत्वपूर्ण अध्याय माना जाता है। भारतीय स्वयंत्रता संग्राम और गाँधीवादी धारा के बीच गहरा संबंध था। गांधीवादी धारा, जिसे अहिंसा, सत्याग्रह, और सहयोग के माध्यम से अपनाया गया था, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली भाग था। गांधीवादी धारा का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजों के खिलाफ अपने अधिकारों की रक्षा करना तो था किन्तु इसे पूर्णतः अहिंसा के माध्यम से किया जाना चाहिए था। शैलेन्द्र जी की यह पुस्तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सभी वीर योद्धाओं को भले ही वे किसी भी धारा को मानते रहे हों सच्ची श्रद्धांजलि है एवं बहुत से भुला दिए गए वीरों के अमूल्य योगदान को भी याद दिलाती है।
अतुल्य
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