Karoon Ka Khajana By Ram Nagina Maurya
कारूं
का खजाना
विधा :
कहानी संग्रह
द्वारा
: राम नगीना मौर्य
रश्मि प्रकाशन
द्वारा प्रकाशित
प्रथम
प्रकाशन वर्ष :2025
मूल्य: 250.00
समीक्षा
क्रमांक : 181
वरिष्ठ लेखक
एवं उच्च पदस्त प्रशासनिक अधिकारी राम नगीना मौर्य जी अपने शासकीय कर्तव्य निर्वहन
के संग संग सतत लेखन कर्म में व्यस्त हैं एवं अब उन्होनें अपनी नवीनतम कृति “कारूं
का खजाना” पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करी है, जिसमें उनकी वे कहानियां संग्रहीत
हैं जो पुस्तक रूप में प्रकाशित उनके विभिन्न कहानी संग्रहों में शामिल हुई है,
वहीं कुछ कहानियां ऐसी भी हैं जो उन पुस्तकों में तो नहीं थी किंतु अन्यत्र
प्रकाशित हुई एवं पाठकों द्वारा सराही गई।
पुस्तक
को पढ़ना निश्चय ही सुखद है एवं मस्तिष्क को एक अच्छी पठनीय खुराक प्राप्त होने का
आनंद सुधि पाठक जन स्वयं अनुभव करेंगे।
इस
पुस्तक में उनकी 12 सुंदर कहानियां
है जिनमें से अधिकांश पर मैने उन संग्रहों की समीक्षा के दौरान टिप्पणी की थी। कुछ कहानियां जो पहली बार पुस्तक में शामिल की
गई हैं उनकी बात करना बेहतर समझता हूं।
पुस्तक
का अंतिम भाग विभिन्न समीक्षकों एवं विचारकों द्वारा उनकी कहानियों पर उनके
साहित्य सृजन एवं कथा वस्तु चयन तथा भाषा शैली पर उनकी कहानियों की विस्तृत
समीक्षा के अंश समेटे हुए है वहीं प्रारंभ में लेखक की अपनी बात उन्हें करीब से
समझने का अवसर देती है।
अपनी बात
में लेखक ने जहां एक ओर कुछ संस्मरण साझा किए वहीं अपने लेखन के विषय में विस्तार से बात रखी है जो, जहां एक ओर मौर्य जी के लेखन एव उनकी शैली को
गहराई से समझने में सहायक है वहीं निश्चय ही उभरते लेखक बंधुओं के लिए अत्यंत मददगार साबित होंगी।
बात करें
यदि उनकी उन खास कहानियों की जिन्हें
पुस्तक में शामिल किया गया है तो सबसे पहले बात आती है कहानी “खाली बेंच” की जो एक
ऐसे नवयुवक के विषय में है जो शासकीय सेवा
में आने के बाद पहली बार अपना कार्यभार ग्रहण करने हेतु जा रहा है । उसके तजुर्बे
के साथ साथ और भी बहुत कुछ हमें उनकी कहानियों के जरिए देखने को मिल जाता है और वह
सब भी इतने सजीव चित्रण के संग कि सहज ही
पाठक स्वयं को उस स्थान पर पहुँचा हुआ
अनुभव करने लगता है।
“कारूं
का खजाना” - बात करें यदि इस शीर्षक कहानी “कारूं का खजाना” की तो कहानी अपने
कथानक को लेकर बहुत प्रभावित नहीं करती एवं कहीं कहीं व्यर्थ खिंचती हुई एवं उबाऊ
हो जाती है हालांकि उसे ही जब एक साहित्य प्रेमी की नज़र से देखें तो कथा नायक की समाचार पत्र के प्रति
उत्कंठा अवश्य ही प्रभावित करती है।
एक और
कहानी “बेचारा कीड़ा”भी है जो मूलतः एक अच्छी प्रेम कहानी बन सकती थी किंतु साथ में लेखक की विशिष्ट रुचि अर्थात छोटी छोटी बातों पर
विशेष गौर करना एवं उन पर केंद्रित कथानक का सृजन करना की शैली के चलते कहानी कुछ असहज करती है या कहें तो सरल प्रवाह
नहीं दिखता अपितु कीड़े का प्रकरण जबरिया पिरोया हुआ प्रतीत होता है ,नायक की
मूल परेशानी जो एक पाठक सहज ही महसूस कर पाता है उसे ही नायक द्वारा
अत्यंत सहजता से लेना उतना सामान्य नहीं प्रतीत होता जितना दर्शाया गया है ,फिर भी इसमें तो कोई शक नहीं कि मौर्य जी एक अच्छे किस्सागो हैं एवं किसी
भी बात पर बहुत कुछ कह सकते है /कथा सृजित कर सकते हैं जैसा कि हमने उनकी पूर्व की
भी विभिन्न रचनाओं में देखा ही है ।
“बेचारा
कीड़ा” कहानी का अंत अवश्य अनपेक्षित तो नहीं था किंतु हां चमत्कृत अवश्य करता है
साथ ही अंत यह भी सुनिश्चित करता है कि यह एक प्रेम कहानी ही थी
एवं इसमें कीड़े वाला किस्सा न भी होता तो कथानक अथवा मूल प्रभाव पर
कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता ।
कहानी “ग़लतफहमी”
यूं तो आकार में बहुत बड़ी या छोटी नहीं किंतु अपने संदेश के लिए अवश्य याद रह
जाती है। आभासी दुनिया का सच सामने
रखती हुई अच्छी कहानी ।
वहीं कहानी
"दो फरियादी" यूं तो एक कार्यालय में अपना काम लेकर पहुंचे दो
व्यक्तियों के विषय में है किंतु बात उस से कुछ आगे बढ़ कर उन दोनों की समानता पर
केंद्रित होती है जिसमें कुछ खास न होते हुए भी अत्यंत सरल संदेश देने में सक्षम
कथानक है। कहानी “अनामंत्रित” उन
महानुभावों पर कटाक्ष है जो अपना स्व भूलते भुलाते महज परिचितों में अपना प्रभुत्व दिखाने के लिए बड़े पद और रुतबे वाले
लोगों से जबरदस्ती जुड़े रहते हैं जबकि वर्तमान समाज के रवैये को देखते हुए यह
व्यर्थ ही है क्यूंकि वर्तमान समाज में फिलहाल तो आदमी सिर्फ अपना प्रभुत्व एवं
शान और शेखी ही दर्शाना चाहता है ऐसे में अपने पुराने हालातों के जानकार से कोई
क्यूँ संबंध रखेगा। अच्छी प्रस्तुति है ।
“उठ मेरी
जान” समाज में उस स्त्री की दशा बयान करती है जिसे किन्हीं गलतफहमियों के चलते
ससुराल वाले पितृ गृह छोड़ गए और अब उसकी जिंदगी दो परिवारों के बीच मान सम्मान का
प्रश्न बन कर खड़ी है किंतु उस नारी की मानसिक दशा कोई नहीं समझ पा रहा अथवा समझना
ही नहीं चाहता और जो जानते हैं उनके पास इतने अधिकार नहीं हैं कि वे अपनी बात रख
सकें। विषय सदा से ही सामयिक है जिस पर और चर्चा होनी चाहिए ।
बाकि की
कहानियां जैसे कि नई रैक, कुत्ते की दुम , सरनेम आदि पर पहले ही मैं मौर्य जी की पुस्तकों की समीक्षा करते वक्त लिख
चुका हूं अतः पुनः यहां लिख कर गुणी पाठक जन का समय नष्ट करने का औचित्य नहीं
प्रतीत होता। संक्षेप में कहा जा सकता है की चुनिंदा रचनाएं हैं जो अवश्य ही प्रभावित
करती हैं एवं पढ़ा तथा सराहा जाना चाहिए।
शुभकामनाओं
सहित
अतुल्य


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