NAYA SURAJ BY RAMESH GUPT

 

नया सूरज

द्वारा : रमेश गुप्त

विधा : उपन्यास

विश्व बुक्स द्वारा प्रकाशित

प्रथम संस्करण : 2010

मूल्य : 75.00

पाठकीय प्रतिक्रिया क्रमांक : 179

रमेश गुप्त 1950 – 70 के दशकों में हिंदी पत्र पत्रिकाओं में स्थायी रूप से नज़र आने वाला नाम हुआ करता था . विशेषकर 1960 के दशक में हिंदी कि स्थापित पत्रिकाओं में उनके द्वारा लिखी गई कहनियों का प्रकाशन अमूमन निरंतर ही हुआ . उसी दौर में उनके उपन्यासों का प्रकाशन भी हुआ. उनकी तकरीबन  40  से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुयी. 1986 में हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा “ बैसाखियों पर टिका इंसान” नामक पुस्तक पर साहित्यिक कृति का सम्मान प्राप्त हुआ. अभी amazon पर उनकी चंद पुस्तकें ही उपलब्ध हैं यथा “उन्माद” “गलतफहमी” और “भटकाव” जिनके विषय में बात होगी , आज बात “ नया सूरज” की, जो कि नारी विमर्श पर एक सुंदर रचना कहे जाने की शत प्रतिशत हकदार है .

“नया सूरज” कथानक नारी विमर्श पर आधारित होते हुए अत्यंत ख़ूबसूरती से एक कामकाजी  महिला की  हर रोज़ की मुश्किलात से भरपूर जिंदगी और उन सबके बीच पारिवारिक दायित्वों को निभाने के बंधनों से जकड़ी उसकी मनोदशा का वर्णन प्रस्तुत करती है. कथानक जहाँ एक और महिलाओं को घर से बाहर काम काज करने के दौरान  किन परिस्थितियों से गुजरना पड़ रहा है और क्यू उन्हें इस सब के लिए  से विवश होना पड़ रहा है उस पर विचार करने हेतु विवश करती है । महिलाओं को  घर व् कार्यालयों में जिन परिस्थितियों से दो चार होना पड़ता है उन का भी अत्यंत रोचक किन्तु गंभीर चित्र प्रस्तुत करती है.

परिवार को आर्थिक संकट से बचाने के लिए नौकरी करना पूजा की मजबूरी थी। लेकिन पूजा जैसी घरेलू लड़की ने बाहर जो कुछ देखा वह उस की कल्पना से परे था। उसे बाहरी माहौल के नए अनुभवों से गुजरना पड़ा। पूजा का पारिवारिक जीवन कैसा रहता है?

बढ़ती आवश्यकताओं की विवशता पूजा को कहां ले जाती है? उस के दांपत्य जीवन का स्वरूप क्यों और कैसे बदलने लगता है। कशमकश की वह घरेलू दायित्वों का निर्वाह करे या पति के साथ आर्थिक सहयोग? सभी सवालों के बेहद सरलता से जवाब प्रस्तुत करती है यह कहानी। जिसे मध्यमवर्गीय परिवार में जिम्मेदारियों के बोझ से दबी, एक आम भारतीय नारी की बहुत हद तक  यथार्थ प्रस्तुत करती   संघर्ष कथा कहा जा सकता है।  

 प्रस्तुत उपन्यास कहानी है एक ऐसी युवती पूजा की जो माता पिता कि मृत्यु के पश्चात नौकरी करने हेतु विवश हो जाती है ( बात कुछ दशक पुरानी  है अतः शासकीय सेवा के विषय में बात करी गयी है उस दौर में न तो MNC थीं न ही IT सेक्टर में वर्तमान के जैसी नौकरियां).

युवती कि शुरूआती मुश्किलों के ज़िक्र के पश्चात कुछ अछे दिन भी आते हैं जब उसके ही एक सहृदय सहकर्मी से उसका विवाह हो जाता है .

समय के साथ साथ एक आदर्श हिन्दू नारी का धर्म निभाते हुए वह पूर्णतः स्वयं को घर व् कार्यालय हेतु समर्पित कर देती है . घर को स्वयं कि एवं नौकरी को पति के द्वारा दबाव में . आंतरिक रूप से विशेष तौर पर बच्चे होने के बाद उस कि मंशा कतई नौकरी करने कि न होते हुए भी वह नौकरी हेतु विवश होती रहती है यहाँ तक कि प्रसव से कुछ समय पूर्व अवकाश लेने पर भी उसके पति द्वारा अप्रसन्नता दर्शायी गयी है जो एक सफल किन्तु पुरुष प्रधान मानसिकता में जीने वाले  युवक कि स्त्रियों के प्रति मानसिकता प्रदर्शित करती है. पुरुष मानसिकता तो गुप्त जी ने अपनी पुस्तक में कई दफे दर्शायी है तथा उस के द्वारा वे महिलाओं का घर से बाहर निकलना व् काम पर जाना उस दौर में किस रूप में था इसे अत्यंत ही ख़ूबसूरती से प्रस्तुत कर सके हैं.

 पति पत्नी दोनों के द्वारा काम पर जाना और वापसी पर पत्नी के द्वारा घर के सरे कामों को अंजाम देना बहुत पुराना मसला था जो आज भी ऐसे घरों में आम तौर पर देखने मिल ही जाता है. पुरुष द्वारा स्वयं को मात्र बाहर के कामों के लिए माना  जाना अर्थात घर के काम हैं तो वह तो पत्नी ही करेगी वाली मानसिकता इस कथानक में भी दर्शायी गयी है वहीँ उस दौर में जब कि वे हर तरह कि luxury से संपन्न थे तब भी मात्र इसलिए कि यदि साली कि शादी कर दी गयी तो घर में छोटे बच्चे को कौन देखेगा उसके लिए नौकर रखना पड़ेगा या पत्नी को नौकरी छोड़ना पड़ेगी , ऐसी मानसिकता दर्शा कर लेखक ने कहीं न कहीं मन मे छुपे लालचं को भी सतह पर ला खड़ा किया है.

कार्यालय के सभी प्रकार के उत्पीड़नों को झेलते हुए जब घर में भी उस महिला को वांक्षित प्रेम अथवा सम्मान तो नहीं मिलता उलट उसे कहि न कहीं शक के दायरे में ला खड़ा कर दिया जाता है तब अंततः वह निर्णय लेती ही है जो उस के पति को भी मानना ही पड़ता है और तब उस के जीवन में उदय होता है नया सूरज .

उपन्यास सरल एवं सच्चा कथानक है जो उस काल में तो सामायिक था ही आज भी इस विषय कि प्रासंगिकता में कोई दो राय नहीं हो सकती.

पुस्तक बेहद खुले रूप में एक काम काजी महिला की मानसिकता , कार्यालय में महिला का महिलाओं के ही द्वारा मानसिक उत्पीडन छींटाकशी और उस कि छोटे छोटे विषयों पर होने वाली परेशानियों एवं समाज के विभिन्न रंगों से भी परिचित करवाती है.

पढने योग्य पुस्तक .

अतुल्य              

  

 

 

 

 

 

 

 

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