MAN CHANCHAL CHANCHAL BY ARVIND KAPOOR
मन चंचल
चंचल
विधा :
कविता
द्वारा :
अरविन्द कपूर
प्रखर
गूंज पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित
प्रथम
संस्करण : 2025
मूल्य: 250.00
पाठकीय
प्रतिक्रिया क्रमांक : 176
कविता, कवि की भावनाओं का शब्द रूपी विस्तार है। कविता के माध्यम से कवि अपनी भावनाओं,
विचारों और अनुभवों को शब्दों में पिरोकर व्यक्त करता है। कविता में
कवि की आत्मा की गहराइयों का प्रतिबिंब होता है, जो पाठक के
साथ जुड़कर उसे भी भावनात्मक रूप से प्रभावित करती है। कवि अपनी भावनाओं को
अभिव्यक्त करने हेतु उपयुक्त शब्दों का चयन करके अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है,
भावनाओं की यह शाब्दिक अभिव्यक्ति अपनी भावनाओं को सबके सम्मुख
प्रस्तुत करने का श्रेष्ट माध्यम है, एवं अपने मनोभावों को व्यक्त करने हेतु कवि
अरविन्द कपूर द्वारा सुंदर अभिव्यक्ति इस काव्य संग्रह के रूप में प्रस्तुत की गई
है।
यह
अरविन्द जी का प्रथम कविता संग्रह है एवं प्रतीत होता है की हाल फिलहाल तो किसी
निश्चित शैली में बंधे नहीं हैं। संग्रह में कुल जमा 85 कविताएं संग्रहीत की गई हैं जिनमें से कुछ तो
अवश्य ही बेहतर कही जा सकती हैं। उनकी कविता
में भावों की अभिव्यक्ति के साथ साथ सुंदर शब्दों के चयन में निपुणता और श्रेष्ठता ही सबसे महत्वपूर्ण लक्षित
हुई है, साधारण
शब्दों में भी उत्तम कविता कही जा सकती है यह उन्होंने दर्शाया है। साधारण शब्दों में जहां एक ओर कविता सरल और
समझने में आसान होती है वहीं कविता के अत्यंत महत्वपूर्ण भाग, भावनात्मक
अभिव्यक्ति, को सहज अभिव्यक्त कर पाती है जो अधिक महत्वपूर्ण है, न कि शब्दों की क्लिष्टता। यह सहज ही ग्राह्य है की साधारण शब्दों में कही
गई कविता पाठक पर सहज ही गहरा प्रभाव डालती है, क्यूंकि वहाँ कवि अपनी भावनाओं को प्रभावी ढंग से व्यक्त
कर पाता है एवं पाठक उस से जुड़ता है।
अरविन्द
जी की कुछ कवितायेँ पूर्व प्रचलित तुकांत
युक्त कविता है जहां प्रत्येक पंक्ति का अंत पूर्व पंक्ति से मेल कर दिया जाता है
तो कुछ आधुनिक मुक्त छंद रचनाएं हालांकि
भावनाओं की स्वतंत्र अभिव्यक्ति हेतु मेरे दृष्टिकोण से तुकांत मिलाना अनिवार्य नहीं
है तथा इसे मुक्त छंद रूप में, आधुनिक कविता की तरह भी कहा जा सकता था। दरअसल
आधुनिक कविता बहुतायत मे गद्य कविता ही कही जा रही है जहां तुकांत की आवश्यकता
नहीं होती है। कवि अपनी भावनाओं और विचारों को गद्य के रूप में व्यक्त करता है।
हालांकि तुकांत, कविता को एक लय और ताल
प्रदान करता है साथ ही यह कविता को अधिक यादगार बनाता है किन्तु प्रमुखतः यह कवि
के एकमेव निर्णय एवं कवि की व्यक्तिगत
रुचि, कविता के रूप भाव एवं शैली पर ही निर्भर करता है। हाँ बाज दफ़े यह देखा गया
है एवं बारम्बार यह ताकीद गुणी जनों द्वारा दी जाती रही है कि तुकांत मिलाने के
अतिरिक्त प्रयास कविता के मूल भाव को प्रभावित न करें क्यूंकि कविता कभी-कभी अपने
मूल भाव से भटक भी जाती है, जब कवि तुकांत के लिए शब्दों का चयन करता है,
तो वह कभी-कभी अपनी मूल भावना या विचार को व्यक्त करने के बजाय
तुकांत को प्राथमिकता देता है जो कविता का अर्थ या भाव बदल सकता है परिणामस्वरूप कविता
अपने मूल उद्देश्य से भटक जाती एवं स्वाभाविक भाव अभिव्यक्ति न होकर एक विवशता सी
मालूम होती है।
प्रस्तुत
काव्य संग्रह में कुछ स्थानों पर यह भी
देखा गया है कि तुकांत युक्तियुक्त सम्बद्ध नहीं हुए .
यह भी कहा जा सकता है की अरविन्द जी मुक्त छंद एवं तुकांत का मिश्रण
लिखने का भी प्रयास कर रहे हैं।
उद्वरणस्वरूप
प्रस्तुत पंक्तियाँ देखे :-
यहां
सुगंध रही पल पल बदल,
विश्राम
लेने को रुक जाते पल,
सपना
सा जैसे यहां गया पसर,
कैसा
तिलिस्म है इस कलाई का।
यहाँ
कलाई का भाव संपूर्ण कविता में या इससे संबंधित अन्य भाव भी दृष्टिगत नहीं होते
हैं अतः पाठक को इसमें संबंध स्थापित करना निश्चय ही सहज नहीं होगा।
अरविन्द
जी की कविता में भावुकता और प्रकृति प्रेम दो ऐसे तत्व हैं जो बार बार रचनाओं में
उभरकर सामने आते हैं। ये दोनों तत्व कवि की भावनाओं और अनुभवों को व्यक्त करने में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कविता में भावुकता आत्मीयता को बढ़ावा देती है,
जिससे पाठक कविता से और करीबी रूप में जुड़कर कवि के भावार्थ को
ग्रहण करता है साथ ही भावुकता कविता को भावनात्मक गहराई भी प्रदान करती है। वहीं
बात करें प्रकृति प्रेम की तो उनकी कविता में प्रकृति प्रेम बार बार दिखलाई पड़ता
है कवि प्रकृति की सुंदरता, उसकी शक्ति और उसके चक्रों का
वर्णन भिन्न भिन्न रूपों में करता है वहीं भाव आध्यात्म एवं प्राकृतिक माहौल कवि
को उसके अंतर्भावों को और भी स्पष्ट रूप से व्यक्त कर रहे हैं। एक और कविता “पात” है जहां भाव प्रधान है। अच्छी कविता है
कभी
देखिए टूटे पात को
भर
देता है घाटियां
और
उनकी शांत झोली
अपनी
उपस्थिति से
पर्वत
पर बिछ जाता है
फिर
नि:शब्द नहीं रहती
कैसी
भी धीमी चाल
बिन
चप्पू के नदी को
खेता
रहता है
एक
से दूसरे सिरे तक
कविता
“शब्द” जहां तुकांत पर विशेष ध्यान न देते हुए साधारण रूप से भावों को अभिव्यक्त
किया गया है बेहतर बन पड़ी है कुछ भाव देखे की
राह
बदल लेती है
जैसे
नदी तनिक विरोध पर
और
चुप्पी छोड़ जाती है
शब्द
है कांच से पारदर्शी
क्या
समाया स्पष्ट है उनमें
झीना
आवरण उतार-चढ़ाव के लिए
सुशब्द
घाव नहीं करते टूटने पर
बिखर
जाते हैं कोहरे से
मन
मस्तिष्क के आंगन में
प्रस्तुत
कविता संग्रह अरविन्द कपूर जी का सुंदर प्रयास मूलतः भावनाओं का लेखा जोखा ही है। न तो किसी विशिष्ट विषय को चुन कर
उस के इर्द गिर्द लिखने का प्रयास किया गया है, न ही शब्दों के चयन में अभिव्यक्ति
को सुंदर बनाने हेतु कोई अतिरिक्त प्रयास लक्षित होते हैं। अमूमन वर्तमान में लिखी
जा रही कविता में प्रतीकवाद का उपयोग करके कवि अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है
किन्तु इस संग्रह में ऐसा भी कोई प्रयास नही दिखलाई पड़ता।
इसी
प्रकार कविता “ये तड़प कैसी” के भाव भी सुंदर है किंतु अंतिम पंक्ति में शाम के
स्थान पर यदि निशा अथवा रात होता तो शायद भाव से समंजस्य सही बैठता क्योंकि यहां
बात ख्वाब की हो रही थी न की
खुशनुमा शाम की ।
प्रस्तुत
काव्य संग्रह अरविंद जी का सुंदर प्रयास है एवम आने वाले दिनों में उनसे और भी बेहतर
रचनाएं अपेक्षित होंगी। शुभकामनाएं .
अतुल्य
9131948450
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