PACHHISVAN PREM PATRA BY ABHA SHRIVASTAVA
पच्चीस वां
प्रेम पत्र
विधा: कहानी
संग्रह
द्वारा : आभा श्रीवास्तव
न्यू
वर्ल्ड पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित
प्रथम
संस्करण :2025
मूल्य :250
पाठकीय
प्रतिक्रिया क्रमांक : 171
“काली बकसिया”, “दिसंबर संजोग” जैसे बेजोड़ कहानी संग्रहों की शानदार कामयाबी जिनके नाम
है साथ ही अमूमन हर प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में जिनकी कहानियाँ प्रकाशित होती ही रहती हैं एवं जो
हालिया चलन के विपरीत प्रचार प्रसार से दूरी बना कर रखती हैं, और जिनके पाठक वर्ग को सदैव उनकी रचनाओं का इंतजार बना रहता है उन,वरिष्ट कहानीकार आभा श्रीवास्तव जी का कहानी संग्रह “पच्चीस
वां प्रेम पत्र”, प्रेम रस में सरोबार
अपने प्रबुद्धह पाठकों हेतु प्रस्तुत है, जिसमें प्रेम के विभिन्न रंगों में डूबी 20 कहानियाँ हैं और सभी में कुछ
न कुछ नयापन,कथानक में कुछ विविधता तथा बहुत कुछ आज की बात
है। पूर्व में उन्होनें बाल साहित्य पर भी काफी कार्य किया है एवं इस संग्रह के
प्रकाशन के पश्चात जिसमें युवाओं को लेकर बहुत सारी कहानियाँ हैं वे निश्चय ही जेन Z की पसंदीदा लेखिका भी बन रहीं हैं। उनकी कहानियाँ उनके शोध,भावों
की गहराई एवं भावनाओं को सर्वोपरि रखने जैसे तत्वों के लिए विशेष रूप से पहचानी जाती
हैं। उनके पात्र हमारे आप के बीच से हैं
एवं वाकये भी ऐसे की बस अपनी ही कहानी मालूम होती हैं। उनके पात्र एवं परिवेश का प्रस्तुतीकरण
वास्तविकता के अत्यधिक करीब होने के कारण वास्तविक ही प्रतीत होता है। प्रस्तुत
कहानी संग्रह में प्रेम के अलग अलग रूप देखने में आते हैं। तो अब इस कहानी संग्रह की कहानियों की बात करते
हैं।
संग्रह
की पहली
कहानी "दोहरा पाप" किसी पहाड़ी नदी के मानिंद हल्के हल्के
मोड़ लेती हुई चलती है जहां शुरुआत तो बचपन की तीन सखियों की मुलाकात को लेकर थी
वहीं आगे चलकर वह प्रेम, विरह और सामाजिकता निबाहने के दायित्व में किए गए कर्म के
फल में बदल जाती है एवं कर्म भी ऐसे ऐसे जो
खुद कर्ता की ही नजर में पाप थे।
कहानी अद्योपांत
बांध के रखने में सक्षम है और आभा जी ने सदा की तरह अपनी लेखनी का सुंदर जादू बिखेरा है। चाहे बात सखियों के मेलजोल की हो अथवा राजशाही
स्वागत सत्कार व्यवहार एवम
शानोशौकत की यूं प्रतीत
होता है मानो उस स्थल पर आप स्वयं उपस्थित हैं, लेखिका की
यही कला अथवा उनके लेखन की विशेषता है जहां
पाठक स्वयं कथानक का भाग बन जाता है एवं कथानक से इतना जुड़ जाता है कि घटना को स्वयं
से जोड़ कर देखने लगता है एवं यही कथानक एवं
कहानीकार की सफलता है।
सीमित
पात्रों के संग रची गई लंबी कहानी है जिसमें प्रत्येक पात्र का चरित्र समग्रता में
उभरकर आया है। घटनाक्रम
प्रेम की पराकाष्ठा तो दर्शाता ही है रूहानी पक्ष भी सुंदरता से मौलिकता
का आभास देते हुए चित्रित हुआ है। बहुत
शानदार कहानी जिसे विभिन्न मंचों पर
प्रतिष्ठित पुरुस्कारों से भी नवाज़ा जा चुका है ।
कथानक के
रोमांच के बीच एक प्रश्न सहज कौंधता है जिस का उत्तर नहीं मिलता जैसे सोहम जो परिस्थितियों
वश ही सही कहानी का प्रमुख कारक पात्र बन गया है को अपनी मां का कैसे पता चला अथवा
धाय मां ने उसे कैसे पहचान लिया,क्या चौकीदार
सारा भेद जनता था किन्तु उसके सुपुर्द तो नही किया था धाय माँ ने नवजात को। ऐसे ही
पहचान चिन्ह का भी पहले कहीं उल्लेख नहीं मिला।
अन्य कहानी
“सॉरी एलेक्ज़ेंडर”, बचपन के प्यार को, उस प्यारे से एहसास को, जिसे तब जानते
पहचानते भी नहीं की यह क्या बला है, किसी हल्की ठंडी हवा के झोंके समान याद दिलाता
हुआ एक प्रसंग है, छोटी सी मुलाकात कुछ पुरानी यादें जो कही पीछे छूट गई थी,
जुड़ती, इकठ्ठी सिमटती सी, पर फिर अचानक ही ज़ुदा जुदा रास्तो पर चल पड़ती। प्यारा
सा कथानक बहुत कम शब्दों में बहुत कुछ भाव संजो कर प्रस्तुत किए है ।
संग्रह
की कुछ कहानियों को लघुकथा भी कह सकते हैं किंतु उनके भाव अत्यंत वृहद हैं तथा सभी
कहानियों में भाव प्रधानता से खुल कर
उभरे हैं ।
कहानी
“शी इज़ नॉट माय टाइप”, फिर एक मासूम प्यार की शुरुआत और अनकहे अंत की प्यारी कहानी
है जहां प्यार का पौधा पनपा तो अवश्य किंतु चाहत शायद इकतरफा ही रह गई और अंत में इस
“शायद” का ज़बाब भी मिला, बेशक प्रेम अपनी
मंजिल न पा सका किंतु आभा जी ने कहानी के माध्यम से पाठकों के दिल के किसी कोने
में जगह भी बनाई और प्रेम की कोमल पाती से नाजुक तारों को झंकृत भी किया है ।
कहानी “मी
टाइम”, उन पलों की खामोश किंतु स्पष्ट एवम खूबसूरत अभिव्यक्ति हैं जो यदि अपने
मंसूबों में कामयाब होते तो शायद एक और प्यार भरी दास्तान लिखी जाती, अपने लिए अपनी जिंदगी, का बढ़िया सा चित्रण है वहीं अपनी मर्यादा का पालन
भी बेहद सौम्यता से संस्कार एवम संस्कृति के बारे में समझा जाता है। आभा जी की कहानियां समय समय पर पत्र पत्रिकाओं
में पढ़ने मिलती ही रहती है और यह बहुत स्पष्टता से समझ आता है की उनकी कहानियों
में भाव एवम गंभीर विचारण उनके लेखन के प्रमुख अंग है। वे महज़ लिखने के लिए नहीं लिख रहीं है, बेशक
औरों से कुछ कम है किंतु जो कुछ है वह अपने आप में बहुत कुछ है एवं वे क्वान्टिटी से
अधिक क्वालिटी पर केंद्रित हैं यह स्पष्ट नजर भी आता है । उनके पाठक उनके लेखन का इंतजार करते हैं एवम विश्वास करते हैं की ऐसा ही सुंदर
लेखन उन्हें भविष्य में भी निरंतर प्राप्त होता रहेगा।
वही
चिरपरिचित भावनात्मक शैली, प्रेम में पहल करना, मन
की बात कह डालना और कभी मन की सुन लेना कितना जरूरी हो जाता है कहानी "दो
चेहरे-दो आंखें " बहुत संजीदगी और सादगी से बयान करती
है। यूं तो कहानी फ्लैशबैक में ही सुनाई
है किंतु उसकी सहजता एवम सजीव रोचक
प्रस्तुतिवश, लगती है मानो घटनाक्रम सामने ही घट रहा हो ।
और बात
करें " चैताली" की तो कहीं न कहीं यह सोचने को विवश करती हुई कहानी है
कि समाज की नजर से क्या स्त्री के
रूप रंग सौंदर्य को प्रेम की प्राथमिक अनिवार्यताएं माना जाना चाहिए। एक सुंदर युवती के मन के दरकने की, कोमल
भावनाएं आहत होने की दास्तान, जो सिर्फ इस लिए छली जा रही थी क्योंकि कोई तो था जो
उसे इस रूप में चाह रहा था (?) या सिर्फ उसका भोग कर लेना ही
उसका उद्देश्य था। एक युवती के टूटने
बिखरने की कहानी कुछ सोचने को विवश करती है।
सुंदर भाव।
कहानी “ओ
बिदेसिया” इस स्तर की कहानी है जो आपको पढ़ने के बाद एक अलग ही लोक में ले जाती है और उस शून्यता की स्थिति
में आप शायद बहुत कुछ सोचते हैं या कुछ भी नहीं सोचते हैं। वही समाज की नजरों में सुंदर लड़की, बेटे की चाहत रखने वाले घर में बेटी का जन्म और वह भी काली, किंतु कुदरत ने उसे अनेकों खूबियों से नवाज़ा था,
उस के अनकहे प्यार की कहांनी जिसे वह चाहते हुए भी समय रहते स्वीकार न सकी और पीछे रह गया लंबा पश्चाताप भरा
सन्नाटा सा जीवन बस इस प्यार की यादों का यादों के सहारे का। अत्यंत भावनात्मक कहानी ।
“पच्चीस वां
प्रेम पत्र” संग्रह की शीर्षक कहानी, पहले
पहले असफल प्रेम की यादों में डूबने की कहानी है बचपन और तरुणाई की दहलीज पर हुए
प्रेम की कहानी, जिसमें कहीं अंदर ही
अंदर कुछ छूटता सा लगा। आप पात्रों से जुड़ जाते हैं और उन्हें सिर्फ खुश देखना
चाहते हैं किंतु जब पात्र दुखी हो और वैसा न हो जैसी छवि पाठक के मन में बन रही है
तो.., कुछ कुछ वैसा ही इस कथानक में है। फिर भी लगा मानो
लेखिका ने भी कुछ तो अधूरा सा छोड़ दिया है नायिका द्वारा अपनी गृहस्थी बचाने के लिए उसके द्वारा लिया गया कदम
उचित ही था एवम इस तारतम्य में लिखा गया कहानी का अंत
भी।
“मन
अतरंगी सतरंगी”, क्या वासु दा सोनाली चटर्जी का भी पहला प्यार नहीं थे और सोनाली का पहले व्याह को टालते
जाना एवम अंत में समझौता बताते हुए सहमत हो जाना शायद इसे
सत्यापित ही करता है। वहीं क्या कोयल दी ने भी समझोता ही नहीं किया था
हालात से या वासु जो उनके रुतबे के पासंग
नही बैठता था उसे भूलने की नाकाम कोशिश की थी अन्यत्र व्याह करके। इन सभी रोचक सवालों
के हल बतलाती है यह सुंदर कहानी।
“वो अपना
सा” कहानी प्रेम विवाह की दुःखद् परिणीति,और फिर एक नई
जिंदगी कि तरफ बढ़ने के मूल पर आधारित है। कच्ची उम्र के प्रेम में छलावा और फिर
जिंदगी के संघर्ष, उतार चढ़ाव और आपाधापी, एक गलत निर्णय होने के बावजूद दिल के लिए पहले प्यार को भुला पाना कितना
मुश्किल होता है यह दर्शाता है नायिका का यह कथन कि “तुम कभी मुझे याद करोगे तो बस एक बार फोन करना।
मेरा ये फोन नंबर तुम्हारे इंतजार में हमेश सुरक्षित रहेगा”।
कहानी “राम
मिलाई जोड़ी” एक संयोगों से भरी और आवश्यकता तथा आपूर्ति की कहानी है। प्रस्तुति अच्छी है किंतु पात्रों एवम परिस्थितियों
का जोड़ जुगाड स्पष्ट समझ में आता है एवम बहुत प्रभावित नहीं कर पाता। हां डिवोर्सी पुरुष अथवा महिला के पुनर्विवाह
को लेकर मिथकों को तोड़ती है यह कहानी एवम यह संदेश भी देती है कि तलाक के पीछे की
वजहें जाने बगैर कोई भी निर्णय लेना अथवा राय कायम कर लेना उचित नहीं है।
“सोलह
दूनी तैतीस” कहानी लिव इन में रहते शादी का समय गुजर जाने के बाद अपने विधुर जीजा
से शादी और फिर एक सद्य व्याहता नवयुवती तथा एक प्रौढ़ पुरुष के बीच उम्र के लंबे
अंतर के फलस्वरूप व्यवहार में उपजी दूरी एवम शारीरिक तथा मानसिक विसंगतियों को लेकर कम शब्दों में एवं अत्यंत मर्यादित
रहते हुए बहुत कुछ कह जाती है।
“कहो तो
कहानी कहूं”, नारी की स्पर्धा, डाह या सरल शब्दों में जलन पर केंद्रित कथानक है जहां एक तथाकथित सफल किन्तु भावनात्मक रूप से
कुंठित या कहीं भीतर ही भीतर टूटी हुई महिला महज अपनी कुंठा की तृप्ति और आत्म संतुष्टि
के लिए एक हंसते खेलते युगल के जीवन में
शक के बीज बोकर जहर घोल देती है, एवं शायद इसी में उसे कुछ
खुशी मिल जाती है।
“जवा”,
कहानी है एक ऐसी युवती की जिसने यह बहुत अच्छे से जाना की विवाह का
अर्थ प्रेम नहीं है, बाज दफा इसके विपरीतार्थ भी सत्य हो सकते हैं। पति जिसके लिए वह मात्र एक गृहणी, या फिर भोग्या थी उसने जब अन्य पुरुष के सानिध्य में प्रेम की परिभाषा
पढ़ी, प्रेम का एहसास किया, तब दाम्पत्य संबंधों
का क्या हुआ, क्या बना पति के साथ रिश्ते का और क्या
प्रेम को फिर उसने व्याह का नाम देना उचित जाना, ये ऐसे सवाल हैं जिनका अत्यंत रोमांचक
चित्रण सहित जवाब इस कहानी में मिल जाता है।
“जेते जेते
पथे” एक मासूम सी प्रेम कहानी जिसमें नायिका प्रेम
को दिल में दबाए हुए ही चली गई और नायक ने कभी यह सोचा ही नहीं, किंतु उसके अनजाने
में ही वह उसके मन में बस चुकी थी। नायक
की पत्नी के किरदार की सहृदयता प्रभावित करतीं है जो नायक को नायिका से मिलवाने ले
कर जाती है ।
“तुमसे
मिलकर”,शादी के निर्णय पर केंद्रित है जहां बात बहुत पते की करी गई है की शादी के
बाद सामान्य जीवन में बने सँवरे रहना सदा ही तो संभव नहीं होता,और भी जीवन की कुछ सच्चाईयां होती
हैं जिन्हें पहले ही स्पष्ट कर लेना बेहतर होता है। सजने संवरने को उदाहरण स्वरूप
लेकर संदेश दिया है जो प्रभावी है एवम सोचने हेतु एक युक्तिसंगत विषय भी।
“लेडिज
छाता”,
पढ़ते हुए मशहूर फिल्म पाकिजा का गाना “यूं ही कोई मिल गया था स रे राह
चलते चलते”, याद हो आया,सच है प्यार कब कहां हो जाए किस से
हो जाए यह किसको पता होता है तभी तो कहते है कि प्यार हो जाता है किया नहीं जाता
और जो सोच कर किया जाए वह प्यार कहाँ। एक छोटी सी मुलाकात,एक
प्यार की शुरुआत का छोटा सा किस्सा है जिसकी प्रस्तुति बेहद रूमानी है ।
“नीली
रात”,कथानक एक सगाई तोड़ देने वाले युवक की एक नवयुवती से मुलाकात की हैं जिस के संग
सगाई कुछ बेहतर की आस में तोड़ दी गई थी, अब वह लड़की अपने
इस अपमान का बदला कैसे लेती है यह जानना रोमांचक है किंतु अंत में नायक द्वारा उस
के संग किया गया व्यवहार( सिगरेट द्वारा ) निर्दयता एवं दुष्टता की श्रेणी में आता
है जिसे कतई समर्थित नहीं किया जा सकता एवम लेखिका से इसे संशोधित करने की अपेक्षा
है। किसी अन्य तरीके से अपनी बात रख दें।
“आइना
मुझ से मेरी पहली सी सूरत मांगे”, कहानी, कहीं न कहीं फिर यह बात प्रमाणित करती है
की कर्मों का फल यहीं मिल जाता है। एक मासूम
को भोग कर उसका जीवन खराब कर देने और व्याह के लिए मना कर देने वाले शख्स को जीवन
में कैसे इस का एहसास हो जाता है यह बहुत बेहतर तरीके से सामने रखा गया है।
एक
बेहतरीन संग्रहणीय कहानी संग्रह..
अतुल्य
9131948450
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