GUNAHON KA DEVTA BY DHARMVEER BHARTI

 

गुनाहों का देवता

उपन्यास

द्वारा : धर्मवीर भारती

भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित

74 वां संस्करण 2019  

मूल्य : 260.00

पाठकीय प्रतिक्रिया क्रमांक : 174


सुप्रसिद्ध लेखक,  संपादक, पद्मश्री धर्मवीर भारती जी का सबसे प्रसिद्ध और व्यापक रूप से पढ़ा जाने वाला कालजयी उपन्यास है “गुनाहों का देवता”,  जिसका पहला प्रकाशन 1949 में हुआ था और उपलब्ध जानकारी के मुताबिक इसके सौ से अधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं, जो इसकी साहित्यिक महत्ता एवं लोकप्रियता को रेखांकित करते  है। पहली बार इसे पढ़ा था तब, जब हम नए नए कॉलेज में पहुंचे थे और नए नए शौक लगने शुरू हुए थे उन्हीं में से एक शौक लायब्रेरी जाने का भी हुआ और तब शायद यह सबसे पहला पढ़ा गया उपन्यास था संभवतः इसका एक कारण इसकी प्रसिद्धि था और दूसरा भारती जी के नाम से साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग की वजह से परिचित होना रहा जो की उस समय प्रति सप्ताह घर में आता ही था और भारती जी उसके संपादक थे,  निश्चय ही उस समय पढ़ कर कितना समझ में आया होगा नहीं कह सकता क्यूंकि अभी भी पात्रों के बदलते हुए भाव बार बार उलझन में डाल गए और मैं बेझिझक कह सकता हूँ की अभी भी इस महान कृति को पूर्णतः समझ नहीं सका हूँ, और जब भी अगली बार पढ़ूँगा यह एक नया ही भाव दर्शाएगा।  


यह एक सरल किन्तु अव्यक्त प्रेम कहानी है जिसमें भाव प्रेम का है जो भक्ति के रूप में भी है भोग के रूप में भी वह  तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था, युवाओं के उछ जीवन संबंधित मानदंड,  परस्पर संबंधों एवं मानवीय भावनाओं के बीच तनाव एवं प्रेम जन्य मानसिक संतापों को भी  अत्यंत खूबसूरती से प्रस्तुत करती है। गुनाहों का देवता के रूप में धर्मवीर भारती जी ने हिन्दी साहित्य जगत में अमरता पाई है एवं अपनी मौजूदगी हमेशा के लिए हम सबके बीच दर्ज करा  दी है।   

धर्मवीर भारती जी की पैदाइश पराधीन भरत के इलाहाबाद में 1926 में हुई। धर्मयुग पत्रिका के प्रधान संपादक के रूप में वे घर घर में जाने पहचाने गए। उन्हें पद्मश्री, भारत भारती सम्मान, महाराष्ट्र गौरव, व्यास सम्मान समेत कई प्रतिष्ठित सम्माणों से नवाजा गया। हिंदी साहित्य की अमूमन प्रत्येक विधा में  उन्होंने साहित्य का सृजन किया।

धर्मवीर भारती की लेखन शैली सरल किन्तु काव्यात्मक, उतार चढ़ाव का अनुभव करवाती,   भावुकत से परिपूर्ण है। वे संवादों से ज्यादा से ज्यादा इस बात पर ध्यान रखते थे की पात्रों की भावनाएँ और उनके अंतर्द्वंद्व पूर्ण एवं समग्र रूप में खुलकर उभरें। उनकी भाषा में संवेदनशीलता है जो सहज ही पाठक को कहानी का हिस्सा बना देती है। प्रस्तुत पुस्तक पढ़ते हुए बार बार यह भाव मन में आता है की अब जाकर एक सही पुस्तक पढ़ने में आई है। 

भारती जी जीवन के आखिरी समय तक सृजनशील रहे। उनका निधन 1997 में हुआ था।

“गुनाहों का देवता “ कहानी में भारत के तत्कालीन शहरी मध्यम वर्ग में प्रेम के विभिन्न आयाम,  वर्तमान के शारीरिक आकर्षण जन्य तथाकथित प्यार  के विपरीत युवाओं के आदर्श प्रेम  और दूसरे पहलुओं का जिक्र शानदार तरीके से किया गया है।  

गुनाहों का देवता मुख्य रूप से चंदर और सुधा के बीच अनकहे रोमांस की कहानी है। उपन्यास चंदर और सुधा की भावुक प्रेम कहानी दर्शाता है। चंदर, सुधा के करीब है। दोनों के बीच गहरा और मजबूत रिश्ता है। दोनों के रिश्ते के उतार-चढ़ाव और अंजाम को बेहद शानदार तरीके से प्रस्तुत किया गया है।  नायिका सुधा नायक चंदर को एक देवता की तरह देखती है, उसकी चाहत में प्रेम के संग आदर एवं सम्मान भी है। कथानक का सम्पूर्ण घटना क्रम   इलाहाबाद शहर है। कह सकते हैं की दोनों ने ही एक दुरे को प्रेम किया है किन्तु उसका स्तर बहुत उच्च है।

उपन्यास में प्रेम को एक अलौकिक और अव्यक्त रूप  में प्रस्तुत किया गया है। चंदर और सुधा का प्रेम भी शारीरिक आकर्षण से परे, आत्मिक स्तर पर आधारित है। लेकिन यह प्रेम सामाजिक मान्यताओं के आगे पूर्णता प्राप्त नहीं कर पाता। वहीं चंदर का अपने गुरु एवं नायिका के पिता के प्रति कर्तव्य और सुधा का अपने परिवार के प्रति समर्पण त्याग की भावना दर्शाता है। प्रस्तुति के द्वारा यह दर्शाने का प्रयास किया गया है की व्यक्तिगत इच्छा अक्सर सामाजिक अपेक्षाओं पर बलिदान हो जाती  हैं। हालांकि कथानक में नायिका अपना सर्वस्व सिर्फ नायक के आदेश को सर्वोपरि मानते हुए कर देती है।  कथानक के माध्यम से लेखक ने तत्कालीन मध्यमवर्गीय शिक्षित समाज में वैवाहिक बंधन,  पारिवारिक संबद्धताएं एवं नैतिकता के नियमों को प्रमुखता से उकेरा है।

कथा के नायक चंदर के चरित्र को इस तरह से उकेरा गया है की वह एक सामान्य किन्तु स्वयं में ही उलझे हुए  पुरुष की मनोदशा को परिभाषित करता है। वह प्रेम,  कर्तव्य एवं नैतिकता के बीच उलझा हुआ है। उसकी यही  दुविधा उसे "गुनाहों का देवता" बना देती है - एक ऐसा व्यक्ति जो अपने प्रेम को गुनाह मानता है।

उपन्यास के शीर्षक को देखते हुए यह पुरुष चरित्र प्रधान प्रतीत होता है जो काफी हद तक है भी एवं नारी विमर्श केंद्रित न होते हुए भी नारी पात्रों को अत्यंत प्रमुखता से प्रस्तुत किया गया है। तीनों ही नारी पात्र सुधा, बिनती और पम्मी अलग-अलग स्त्री चरित्र हैं उनमें से जहां सुधा त्याग समर्पण एवं भक्ति का प्रतीक है, वहीं बिनती पारिवारिक समर्पण की मिसाल है तो पम्मी स्वतंत्रता और विद्रोह को दर्शाती है और कुछ हद तक उस महिला वर्ग को सम्मुख रखती है जो शारीरिक संतुष्टि को भावनात्मक प्रेम से एक स्तर ऊपर रखती है।

हालांकि, यह प्रेम कहानी सामाजिक और नैतिक बंधनों से टकराती है। नायक जहां अपने गुरु के प्रति अपनी कृतज्ञता एवं अहसानों के बोझ तथा कुछ हद तक कर्तव्य बोध के चलते सुधा के प्रति अपने प्रेम को दिल में ही दफन कर लेता है वहीं परिवार की इज्जत,   मान्यताओं एवं सामाजिकता से बंधी सुधा की शादी कहीं और तय हो जाती है। कहानी में खूबसूरत मोड भी है और  रोमांच भी,   साथ ही भावुकता भी। पात्र, पम्मी, का कथानक में काम किन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है। जो कथानक को अलग ही मोड़ देता  है।

"गुनाहों का देवता" ने हिंदी साहित्य में प्रेम कहानियों को एक नई दिशा दी। यह उपन्यास अपनी भावनात्मक गहराई और मानवीय संवेदनाओं के चित्रण के कारण युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय हुआ एवं इस कथानक पर पिक्चर भी बनाई गई  किन्तु जब पुस्तक इतनी चर्चित रही तब स्वाभाविक है की भिन्न भिन्न प्रतिक्रियाएं भी पाठकों एवं आलोचकों ने दी कुछ इसे अत्यधिक भावुक और नाटकीय मानते हैं तो वहीं  चंदर के चरित्र को कमजोर इच्छाशक्ति वाला मानने वाले भी काम नहीं हैं,  क्योंकि वह अपने प्रेम के लिए खड़ा नहीं हो पाता। पम्मी जैसे पात्र को भी कुछ लोग अच्छी नज़रों से नहीं देखते फिर भी, ये तमाम आलोचनाएँ इसकी व्यापक प्रसिद्धि,  स्वीकार्यता और प्रभाव को कम नहीं करतीं।

"गुनाहों का देवता" केवल एक प्रेम कहानी नहीं है, बल्कि कथानक के माध्यम से हमें आदर्श प्रेम, कर्तव्य और नैतिकता के बीच संतुलन रखना भी बतलाते हैं। धर्मवीर भारती जी ने इस उपन्यास के जरिए एक ऐसी कृति दी जो पाठकों के दिल में गहरे तक उतरती है।

अतुल्य

9131948450

 

 


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