RACHNASHEELTA KA GANIT BY DILIP KUMAR PANDEY

 

रचनाशीलता का गणित (समीक्षात्मक लेख)

समीक्षक -दिलीप कुमार पाण्डेय 

प्रकाशक -आस्था प्रकाशन गृह जालंधर 

प्रथम संस्करण -2024

मूल्य -325

पाठकीय प्रतिक्रिया क्रमांक :169 


दिलीप कुमार पाण्डेय जी वर्तमान स्थापित साहित्यकारों में एक उल्लेखनीय नाम है जिन के पास साहित्य के क्षेत्र में विशाल अनुभव तो है ही,  वह एक जाने माने समीक्षक तथा प्रतिष्ठित कवि भी हैं। हाल फिलहाल तक उनके दो काव्य-संग्रह “उम्मीद की लौ” एवं “अंधेरे में से” तथा एक  संपादित पुस्तक “दृष्टिकोण” प्रकाशित हो चुकी हैं। वहीं उनके अनेक समीक्षात्मक लेख विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में समय समय पर प्रकाशित होते रहते हैं l अपने सृजन के क्रम को आगे बढाते हुए, उन्होंने विभिन्न पुस्तकों की उनके द्वारा की गई समीक्षाओं को पुस्तक रूप में प्रस्तुत किया है।   

           “रचनाशीलता का गणित” उनकी चौथी पुस्तक है जिसमें  विभिन्न साहित्यकारों की विभिन्न विधाओं की पुस्तकों यथा कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास, क्षणिकाएं, गजल संग्रह, कुंडलियां आदि पर उनके द्वारा 33 समीक्षात्मक लेख संग्रहीत किए गए  हैं। जिसमें 11 काव्य संग्रहों, 2 खंड /प्रबंध काव्य, 5 मात्रिक छन्द का ग्रंथों, 7 उपन्यासों तथा 8 कहानी संग्रहों को इस संग्रह में पाठकों की सुविधा के दृष्टिगत पांच अलग-अलग  खंडों में विभाजित कर दिया है।

किसी को भी यह एक सहज जिज्ञासा होती है एवं होनी स्वाभाविक भी है की जब एक साहित्यकार ने अपना सर्वश्रेष्ट आहूत करते हुए एक कृति का सृजन कर दिया तत्पश्चात  साहित्यिक कृति की समीक्षा की अनिवार्यता ही क्या है , इस बिन्दु पर यदि तनिक गहराई से गौर किया जावे तो कह सकते हैं की किसी भी साहित्य कृति के सृजन की प्रक्रिया सृजक के भावों की अभिव्यक्ति है जो सम्पूर्ण प्रक्रिया उसके मन से गुजरती है एवं उसकी परिणिती हमें उसकी रचना जिसमें उसके भाव, अनुभव एवं उसकी कल्पनाओं का समग्र प्रस्तुतीकरण होता है वह शब्द रूप में देखने में आता है, जिसका पाठक के विचारों के साथ सामंजस्य होना अथवा न हो पाना  सहज ही संभव है।  इस बिन्दु पर पाठक के चयन  कार्य को सहज बनाते हुए समीक्षक उस कृति का गहनता पूर्वक एवं प्रत्येक बिन्दु पर गंभीरता पूर्वक अध्ययन करते हुए कृति विशेष के भाव, भाषा शैली, कथानक , पात्र परिचय इत्यादि बिंदुओं पर विश्लेषण करते हुए कथानक का मात्र भाव एवं दिशा इंगित करता है, तथा उस के कथानक को जाहिर न करते हुए रचना के विश्लेषण में कृति के उन महत्वपूर्ण बिंदुओं को अपनी सरल शैली मे प्रस्तुत कर देता है , जिसके द्वारा  पाठक को अपना निर्णय कर पढ़ने हेतु मानस बनाने में सरलता हो जाती है। अत्यंत सरल भाषा में यूं भी समझा जा सकता है की समीक्षक  पाठक हेतु बहुत हद तक पथ प्रदर्शक का कार्य भी करता है ।    

समीक्षक अपनी समीक्षा में पुस्तक का गहन अध्ययन कर हर बिन्दु पर गहन विश्लेषण करते हुए उनके प्रत्येक पक्ष को अपने समीक्षात्मक लेखों में, अपने मत को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करने का प्रयास करते हैं। पुस्तक को पढ़कर समीक्षक उसकी विषय वस्तु,  उसका मूल भाव उसकी भाषा शैली संवाद की सहजता जैसे विभिन्न विषयों पर अपना ध्यान केंद्रित करता है साथ ही उसकी कमियों पर भी अपनी तीक्ष्ण दृष्टि रखता  है एवं उन्हें अपनी समीक्षा में शामिल भी करता है। इन बिंदुओं पर विचारण से यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि एक सटीक समीक्षा के लिए आवश्यक है कि समीक्षा समग्रता से युक्त होते हुए तार्किक हो, एवं समीक्षक निष्पक्ष।

अब बात प्रस्तुत पुस्तक की करें तो सर्व प्रथम तो पुस्तक का शीर्षक ही चौंकाता है एवं अपनी ओर  आकर्षित करता है क्यूंकि साहित्य एवं गणित दोनों का ही कहीं कोई जुड़ाव अथवा संबंध नहीं पाया जाता फिर यह शीर्षक किस प्रकार अपनी उपादेयता सिद्ध करता है तब हमें वरिष्ठ साहित्यकार मधुर कुलश्रेष्ट जी के विचारों से सहज ही इत्तेफाक करना होता है कि “साहित्य लेखन हेतु अभी तक ऐसा कोई निश्चित फार्मूला या सिद्धांत प्रतिपादित नहीं हुआ है जिसका पालन करने से रचना की गुणवत्ता तथा सर्वग्राह्यता सुनिश्चित हो सके। ऐसे में आलोचना व समीक्षा के द्वारा ही इच्छुक पाठक किसी रचना या कृति का गुणा-भाग लगा सकता है। जब किसी आलोचक या समीक्षक की तीक्ष्ण पैनी  दृष्टि से रचना के गुण-दोष का विश्लेषण हो जाता है तो रचना की ओर पाठकीय आकर्षण स्वाभाविक रूप से बढ़ जाता है ,  संभवतः यही “रचनाशीलता का गणित” है. 

दिलीप जी की प्रत्येक समीक्षा यह सहज दर्शा देती है की उनके लेखन के पीछे उनका गहन अध्ययन एवं गंभीर विचारण है जिसके साथ साथ विशेषता यह भी की वे अपनी समीक्षा में मात्र उजले पक्ष ही नहीं अपितु पुस्तक की , लेखन की कमियों पर भी सरलता से बेझिझक लिखते है। उनकी समीक्षा  लेखक/रचना के अनुसार विविधता  लिए हुए है अर्थात उनकी समीक्षा उस पुस्तक पर उनके गहन अध्ययन की परिचायक है। उनकी समीक्षा किसी तरह की सीमा से बंधी नहीं नजर आती।

प्रस्तुत पुस्तक में अमूमन सभी जाने माने लेखकों की कृतियों की समीक्षात्मक लेख प्रकाशित किये गए हैं तथा प्रत्येक समीक्षात्मक लेख के साथ पुस्तक का कवर और सम्बन्धित लेखक का चित्र प्रकाशित किया गया है। आवरण सहज मन लुभाता है। किन्तु कुछ मामूली प्रूफ की गलतियाँ भी हैं जिन्हें आगामी संस्करणों में दुरुस्त किया जाना आपेक्षित है। 

पुस्तक शोधार्थीयों हेतु महत्वपूर्ण ग्रंथ की कमी पूरी करती है। इस महत्वपूर्ण पुस्तक के द्वारा निश्चय ही साहित्य का अध्ययन कर रहे विद्यार्थियों एवं साहित्य के क्षेत्र में प्रारम्भिक अवस्था में संघर्षरत साहित्यकारों हेतु मार्गदर्शिका का कार्य करेगी।

अपनी पुस्तक में समावेशित करने हेतु रचनाओं के चयन में भी उन्होंने सरलता दर्शाई है एवं विभिन्न साहित्यकारों की कृतियों को देख कर सहज ही यह आभास हो जाता है कि उन्होंने चयन करते वक्त कोई भेद भाव नहीं किया है तथा बड़े या छोटे लेखक-साहित्यकारों जैसा कोई माप दंड नहीं रखा है। अपनी समीक्षा में वे पुस्तक से चयनित कुछ पंक्तियाँ भी  शामिल कर लेते हैं जो पाठक की पुस्तक के प्रति उत्सुकता बढ़ाती है।

प्रस्तुत पुस्तक में संग्रहीत समीक्षाओं को पढ़ कर चंद पुस्तकों के विषय में जिज्ञासा हुई है तथा अब शीघ्र ही उन पुस्तकों को पढ़ने का प्रयास करूंगा। यह कहना अन्यथा नहीं होगा की हिन्दी साहित्य से लगाव रखने वालों के लिए एक संग्रहणीय पुस्तक है।

दिलीप जी को स्वर्णिम उज्ज्वल भविष्य हेतु हार्दिक शुभकामनाएं।  

अतुल्य

9131948450     

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