DO GAZ KI DOORI BY MAMTA KALIYA
दो गज की
दूरी
द्वारा :
ममता कालिया
विधा :
कहानी संग्रह
सेतु
प्रकाशन द्वारा प्रकाशित
मूल्य :
249
प्रथम
संस्करण : 2022
पाठकीय प्रतिक्रिया क्रमांक : 168
साहित्य प्रेमियों को ममता जी के विषय में कुछ
परिचय देना निश्चय ही उन साहित्य से सरोकार रखने वालों के प्रति एक अविश्वास ही
होगा क्यूंकि जो हिन्दी साहित्य से ताल्लुक
रखता है वह निश्चय ही ममता जी द्वारा रचित साहित्य से परिचित होगा और
उन के लेखन की सराहना किये बगैर नहीं रह
सकता एवं यह कहना अतिशयोक्ति भी नहीं होगी कि जिसने अब तक उन्हें पढ़ा नहीं अर्थात
अभी उसने साहित्य को जाना ही नहीं है या
फिर अभी उनकी साहित्य के आँगन में नई नई आमद है, शुरुआत है। वरिष्ट लेखिका का लेखन तो हमारी उम्र से भी पुराना हो परिपक्व
हो चुका है एवं सहज ही उन्हें हिन्दी साहित्य की लेखन साम्राज्ञी के रूप में पहचान
जा सकता है। पुस्तक का आमुख अमिताभ राय जी द्वारा लिखा गया है एवं उन्होंने अपनी
शैली में पुस्तक के बारे में जो उद्गार प्रकट किये हैं संभवतः वह आम पाठक को समझ
पाना सहज न होगा, उस विषय में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि
उनकी प्रतिक्रिया निश्चय ही ममता जी के
लेखन को खूबसूरत शब्दों एवं श्रेष्टम भाषा में प्रस्तुत करते हैं।
प्रस्तुत कहानी संग्रह (कुल 14 कहानियाँ ) की कुछ कहानियाँ कोरोना से संबंधित हैं या कहें की उस दौर में लिखी गई सो उस महामारी की छाप है उनपर, वहीं कुछ में लेखिका ने अपने बचपन, अपने परिवार के विषय में भी बातें की हैं जो उस दौर की विभिन्न रीति नीतियों से भी हमारा परिचय करवाता है। कुछ कहानियाँ अन्य विषयों पर भी हैं किन्तु सभी बेहद रोचक हैं। ममता जी अमूमन छोटे छोटे वाक्यों में अपनी बात पात्रों के माध्यम से अत्यंत सरल ता एवं खूबसूरती से कह जाती हैं, कहीं भी बोझिलता अथवा क्लिष्टता उनकी कहानियों में नहीं दिखती। कुछ कहानियों के विषय में संक्षेप में यहाँ बात करेंगे शेष तो मेरे पाठक स्वयम पढ़ें और आनंद लें यही मेरे लिखने का उद्देश्य भी है ताकि अधिक से अधिक पाठक हिन्दी साहित्य से जुड़ें।
“दो गज की दूरी” संग्रह की शीर्षक कथा है। यूं तो यह जुमला कोरोना काल में शासन द्वारा जारी एक हिदायत मात्र थी किंतु ममता जी ने इसे जीवन के विविध रंगों से, आपसी संबंधों से इसे जिस भाव से संबद्ध किया है वह समझने एवम विचारने योग्य है। प्रौढ़ावस्था में नायिका जिसे पति की विदेशी महिला मित्र के संग लिव इन पसंद न होने से वह अलग है और पहली बार अपने एक आभासी मित्र से व्यक्तिगत मिलती है और इस मुलाकात और पतिपत्नी के रिश्तों के बीच यह दो गज की दूरी किन अर्थों में प्रयुक्त करते हुए ममता जी ने अपनी सुंदर भाषा शैली में प्रस्तुत की है वह पढ़ने में विचार के साथ साथ आनंद भी देती है। अंत अचंभित तो नहीं करता किंतु हां, शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कर जाता है। वहीं कहानी दो गज की दूरी के ही संदर्भ में कुछ पीछे ले जाती है कहानी “दूसरा मेघदूत” जहां पात्रों के शुरुआती परिचय मिलन से लेकर बात कुछ आगे बढ़ती नजर आती है और दोनों पात्रों का एकाकीपन दर्शाया गया है जो की वे अनुभव करते हैं तथा एक दूसरे के पूरक भी बनते लक्षित होते हैं, कह सकते हैं की यह कहानी “दो गज दूरी” का पूर्वार्ध है।
वहीं
"मोबाइल मोहब्बत" वर्तमान पीढ़ी के मोबाइल के प्रति अंधे प्रेम और उसके
दुष्परिणाम को दर्शाती है। अत्यंत रोचक
एवम मार्मिक प्रस्तुति है।
जैसा
मैंने पहले भी कहा कि इस संग्रह की अधिकांश कहानियां या तो कोरोना से प्रभावित हैं
अथवा उस काल में लिखे जाने से कुछ कुछ उस की छाया से ग्रसित दिखती हैं,
"आखरी लिबास" भी एक ऐसी ही कहानी है जो पूर्णतः कोरोना की विभीषिका पुनः आँखों के सम्मुख ले आती है हालांकि उसके प्रारंभ से शीर्षक का कथानक से संबंध
पता कर पाना पूर्णतः नामुमकिन ही था, कहानी किसी और ही धारा में जा रही थी किंतु
यह निश्चय ही ममता जी की कलम का कमाल कहा जायेगा की कथानक को बहुत सुंदर मोड़ देते हुए न सिर्फ शीर्षक से संबद्ध कर दिया अपितु कहानी
को एक भिन्न ही रूप भी दे दिया ।
वहीं
"दो शिल्पी" एक भिन्न विषय की एक अलग परिवेश अर्थात कलाकारों की
दुनियाँ की कहानी है। कथानक दो कलाकारों की रंगों और शिल्पों के गढ़ती जिंदगी के
बीच अपनी भावनाओं की अपने मन के अंदर के द्वंद को भी खूबसूरती से दर्शाती है। अपना
कार्य और उस के प्रभाव इंसान को कैसे प्रभावित करते हैं यह इस कहानी में पात्र जो
एक शिल्पी है तथा अपनी गर्भावस्था के दौरान किस भाव से ग्रसित है वह उस के इन शब्दों से मालूम होता है की “मैने इतने खिलोने बना बना कर तोड़े हैं कही मुझे इस की सजा न मिल जाए"।
मोबाइल
के एक दुष्प्रभावों पर आधारित एक और कहानी जो दाम्पत्य संबंधों के बीच दीवार बन जाता
है। कहानी “एकाक्षर प्रेम” में वे बतलाती हैं की किस तरह मोबाइल के दौर में पति का
मोबाइल पर किसी अन्य महिला से वार्तालाप के माध्यम से संपर्क में बने रहना
पत्नी के लिए दुखदाई तो है ही कहीं न कहीं
पत्नी का दिल तोड़ने के साथ साथ उसे भी बगावत एवं रिश्ते से इतर संबंध की ओर
धकेलता है।
कहानी
“छूट गए जो घर” एवं “1950 के नल दमयन्ती” को कहानी कहने से अधिक यह ममता जी की अपनी बात
है जिसके द्वारा हम उन्हें थोड़ा और करीब से उनके परिवार के विषय में जान पाते हैं।
छूट गए .. में जहां बात परिवार के मथुरा बसने की है
तो वहीं 1950के ... में अपने पारिवारिक सदस्यों के जरिए उन्होंने मोहब्बत एवं नारी
त्याग की मिसाल दर्शाई है जो कैसे एक कठोर एवं उखड़े हुए या कहें की दामपत्य से पूर्णतः
विमुख पुरुष को वापस अपने पास ले आती है।
कहानी
“कच्चे होते धागे” और “जागी आँखों के सपने” भी पारिवारिक कहानियाँ है जहां पहली कहानी में बुजुर्ग माता पिता के
बेटे बहू से रिश्तों को थोड़ा और समझने का प्रयास किया गया है जो की कुछ बुजुर्गों
को दिशा देती हुई प्रतीत होती है तो वहीं दूसरी कहानी बिहार के परिवेश में नारी
जागृति,
शिक्षा जैसे विषय को समाहित किए हुए है इन
दोनों ही कहानियों के कथानक एवं भावनात्मक प्रस्तुति प्रभावित करते है।
कहानियाँ
“छुट्टी का एक दिन”, “भाषा का भूत” और
“अंगूठी” अपने कथानक से बहुत ज्यादा
सम्बद्ध एवं प्रभावित नहीं करती किन्तु
लेखन अद्वितीय है एवं पाठक को अंत तक जोड़ के रखती हैं। हाँ संग्रह की अंतिम कहानी
विकास शुरुआत में जहां एक ओर शासन की उज्ज्वला
योजना की तारीफ करती नजर आई वहीं
अंत तक जाते जाते यह भी स्पष्ट हो गया की योजनाएं चाहे कितनी बेहतर क्यूँ न बना दी
जाएं जब तक उपभोक्ताओं में जागरूकता नहीं
होगी योजनाओं का अपेक्षित प्रभाव संभवतः नहीं प्राप्त होगा। शासन द्वारा गैस
चूल्हा और गैस सिलैन्डर दिए गए थे किन्तु उपभोक्ताओं द्वारा उनके बेपरवाह उपयोग ने
सुविधा की सार्थकता को प्रभावित किया। विषय एवं प्रस्तुति सामयिक एवं प्रभावी हैं
किन्तु अंत में परिवार का वापस धुए वाले चूल्हे पर निर्भरता दिखाना कहीं खटकता है।
कुल
जमा स्तरीय मनोरंजक कहानियों का संग्रह है। पढ़ना सुखद है, साथ ही यह भी सहज स्वीकार्य
हो कि ममता कालिया जी जैसे स्वनामधन्य लेखकों को पढ़ कर ही हम अपने साहित्यिक ज्ञान
में कुछ अच्छा जोड़ सकते हैं।
अतुल्य
9131948450
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