WAH SAAL BAYALIS THA BY RASHMI BHARDWAJ
वह साल
बयालीस था
विधा :
उपन्यास
द्वारा :
रश्मि भारद्वाज
सेतु
प्रकाशन द्वारा प्रकाशित
प्रथम
संस्करण : 2022
मूल्य : 249
पाठकीय
प्रतिक्रिया क्रमांक : 164
1942
का समय एक जुनूनी दौर था, देश में स्वाधीनता संग्राम अपने चरम पर था जहां एक ओर
आजादी का जज्बा दिलों में हिलोरे ले रहा था उसी बीच कहीं प्रेम की कोंपलें फूट
रहीं थीं उधर आजादी के लिए जोश और संघर्ष बढ़ रहा था तो इधर प्यार बेहद संजीदगी से
दिलों के अंदर ही अंदर जवान हो रहा था। समय के साथ आजादी की लड़ाई और प्यार को पाने की
जद्दोजहद दोनों ही कामयाबी की ओर अग्रसर थीं।
आजादी के रणबांकुरों के अनगिनत किस्से हमने पढे और सुने हैं
किन्तु बहुत सारे उतार चढ़ावों के बीच एक सुंदर कल्पना को
शब्द देते हुए उस कठिन समय के दरमियाँ एक युवा
जोड़े की ऐसी प्रेम कहानी जो उसी क्रांति के दौर में अंकुरित हो पल्लवित हुई,
उस प्रेम गाथा को यदि उस
प्रेमी युगल की तीसरी पीढ़ी के द्वारा सुनाया जाए तो निश्चय ही वह अद्भुत होगी। अनोखे कथानक
का नयापन ही सबसे पहले पाठक को अपने पाश में बांधता है।
इधर
यह तीसरी पीढ़ी की युवती जिसे कथानक में अनाहिता संबोधित किया गया है जो हमें उस
युगल की प्रेम कहानी से परिचित करवा रही है स्वयं भी प्रेम में डूबती उतराती किंतु कुछ कुछ
अनिश्चय से गुजरती स्थापित चित्रकार है। अब उसे इस कहानी की नायिका कहें अथवा किस्सागो कहलें क्यूंकि कहानी
हमें उसी के द्वारा सुनाई गई है, वह स्वयं
कला को सर्वोपरि मानती है कला को समर्पित है। उसकी नजरों में प्रेम मुक्ति है वह बंधन
न बन जाए, प्रेम को रिश्तों में बांधना
उसे गवारा नहीं और उसके यही मनो भाव वह अपने चित्रों के मनोरम रंगों द्वारा केनवास
पर उकेरती है। वह अपनी कल्पनाओं और रंगों की
दुनिया में उतरकर हर बंधन हर पूर्वागृह से मुक्त हो जाती है। उसका चित्रकारिता के प्रति समर्पण ऐसा ही है ।
वह रंगों के संसार में अपनी देह और आत्मा दोनो को घोल देना चाहती है,
वह स्वयम उन्मुक्त है,
स्वप्नजीवी, है बंदिश के खिलाफ है और मुखर भी। उस के विषय में यह कहने का तात्पर्य
मात्र इतना की उसके भावों की गंभीरता को भी उसी गंभीरता से लिया जाए तो हमें उस के
नजरिए को समझने में भी सहजता रहेगी।
नारी
विमर्श प्रमुख कथानक में बेहद प्रमुखता से यह दर्शाया गया है की तब भी एवं इस
वर्तमान पीढ़ी में भी नारी के स्व को जीवित रखने की चाह सदा बरकरार रही। कथानक को
शब्द रूप देते हुए लेखिका द्वारा शब्दों का चयन अप्रतिम है एवं भाव पर विशेष ध्यान
दिया गया है, उनके पात्रों के भाव स्पष्ट हैं “जो जकड़ ले
तुम्हें और खत्म कर दे तुम्हारे अस्तित्व को ही वह प्रेम कहाँ हुआ वह तो कैद हो
गई। लेखन की एक बानगी देखें “अना
प्रेम कर सकती है, प्रेम में अपना आत्म समर्पित नहीं कर सकती है। थोड़ा “मैं” वह हमेशा बचा
कर रख लेती है”।
कुछ
अन्य वाक्यांश के जरिए भाव देखें
“किसी
अपरिचित को प्रेम देना अधिक सहज है अक्सर किसी बेहद अपने को यह बताने के
लिए शब्द कम पड़ जाते हैं कि वह हमारे लिए कितना जरुरी है संकोच का
एक आवरण हमें अपनी गिरफ्त में ले लेता है जबकि होना इसके विपरीत चाहिए था।“
“कुछ
यंत्रणाओं से मुक्ति का कोई और हल नहीं सिवाय इसके कि उनके साथ जीवन कुछ नये नियंत्रणों को भी जगह दे दे किसी दुख की काट कोई
नया मिला दुख ही हो जाता है।“
“आजादी का अर्थ है अपने फैसले खुद लेने का
अधिकार चाहे देश हो या व्यक्ति जब तक उनके फैसले कोई और लेता रहेगा वह गुलाम ही
कहलाएंगे भले ही दुनिया की सारी सुख सुविधा उनके अधीन हो”
“अजीब विडंबना थी कुछ ही दूरी पर मुंडन जनेऊ शिशु जन्म के रस्म निभाती भीड़ थी जीवन था
परंपराओं के लिए उल्लास था वहीं दूसरी ओर धू
धू कर चलते हुए शव थे । अधजली लाशों पर मंडराते कुत्ते थे नम आंखों और भरे चित्र
वाली अंतिम विदाई थी गंगा के उस विशाल तट पर जीवन और मृत्यु दोनों ही अपने विराट
वैभव के साथ उपस्थित थी। धड़कते जीवन के इतने
समीप निष्पंद मृत्यु की बस एक चलांग भर की
देर और वह जीवन के हर रंग पर काबिज हो जाएगी! एक
किनारे राग रंग गीत और नाद था दूसरी ओर थी
सब कुछ जला देने को आतुर अग्नि और सभी इच्छाओं के दहन के बाद शेष रह गई तन
की राख (पृष्ठ क्रमांक 125 126)
उसके लिए प्रेम तो उन्मुक्तता है, स्वातंत्र्य है,
खुल कर जीने का नाम है, प्रेम को बंधन समान किसी भी पक्ष पर अधिरोपित कर देना तो उस
पर अधिकार जताने जैसा ही है और यही कारण है की उसका प्रेम किसी नाम की तलाश नहीं करता,
रिश्ते को एक नाम देने की कशमकश
के बीच अंततः बिछुड़ ही जाता है।
कथानक
में नारी शिक्षा को अत्यंत महत्वपूर्णता के साथ सम्मिलित किया गया है। कथानक की एक और विशिष्टता यह कही जाएगी की पात्र
जिस विचारशीलता एवं गंभीरता से डूबे हुए हैं, रश्मि जी की भाषा उस भाव से पूर्णतः
न्याय करती है जिसमें क्लिष्टता न होते हुए भी जो वैचारिकता है वह विवश करती है एक
ठहराव के साथ पढ़ने के लिए, साथ ही वाक्य विन्यास इतना सुंदर बन पड़ा है की भाव
स्वतः ही हमारे सम्मुख प्रकट होते हैं।
यह
दो भिन्न पीढ़ियों की एक अद्भुत प्रेम कथा है, यह कथानक अत्यंत सहजता एवं प्रवाह के संग दो विभिन्न कालखंडों की कहानियों
को जोड़ कर प्रस्तुत करता है। आज़ादी की लड़ाई के बीच मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत एक
निश्छल, निष्कलंक
प्रेम - कहानी है रूप और रुद्र की प्रेम कहानी जिसमें रामेश्वर का पात्र एक मिसाल
कायम करता है। जहां रुद्र और रूप दोनों का ही अत्यंत
संयत और स्वावलंबी व्यवहार दर्शाया गया है वहीं रामेश्वर की प्रेम कहानी एक अलग ही
स्तर पर ले जाती है जिसमें मात्र समर्पण है कोई अधिकार अथवा अभिलाषा नहीं।
पात्रों
को बेहदसंजीदगी से एवं खूबसूरती से रश्मि जी के द्वारा रचा गया है एवं
उनके व्यवहार तथा आचरण में बयालीस के दशक का सरल भोलापन एवं सच्चाई देखने में आती है। स्वाधीनता संघर्ष के दरमियाँ परिपक्व हुई यह
प्रेम कथा त्याग, समर्पण, स्नेह, देश प्रेम, वर्ण व्यवस्था एवं कर्तव्य तथा सामाजिकता जैसे
भिन्न मुद्दों पर बहुत विस्तृत तर्क सम्मत एवं उस काल की प्रथा परंपराओं के अनुरूप
आचार व्यवहार प्रदर्शित करती हुई चलती है। यथा रूप, मन से रुद्र को समर्पित रहते हुए भी अपने माता-पिता की
ख़ातिर उनके द्वारा तय किये गए विवाह बंधन
में बंध कर पूर्ण समर्पण और निष्ठा से निभाती है वहीं रुद्र भी आजीवन मात्र रूप का
ही होकर रहा।
कच्ची उम्र का पक्का प्यार, सामंजस्य पूर्ण दाम्पत्य के संग पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन, और स्वतंत्रता संग्राम जैसे मूल
भावों को समर्पित कथानक निश्चय ही एक विरली किन्तु अद्भुत प्रेम कहानी समेटे हुए
है। लेखिका मूलतः नारी विमर्श को समर्पित रचनाएं प्रमुखता से सृजित करती हैं एवं उनकी
रचनाओं में पितृसत्ता का प्रतिरोध अथवा टकराव देखने में आता है जो प्रस्तुत कथानक बहुत
उभरकर सामने नहीं आता सिवाय इस के की अनाहीता के पिता द्वारा उन्हें कम प्यार किया
गया, हालांकि अपने इस विरक्त व्यवहार पर पिता कथानक में
स्पष्टीकरण देते हुए भी नजर आते हैं।
मूलतः रूप और रुद्र का प्रेम ही इस कथानक का
केंद्र है किन्तु अना और अमल की प्रेम कहानी भी प्रमुखता से मौजूद है, प्रारंभ में कथा जहां अनाहीता अमल
की प्रतीत होती है वह शीघ्र ही मुख्य धारा
से अलग हट कर रुद्र और रूप को सम्पूर्ण कथानक सुपुर्द कर देती है किन्तु दौनों ही कहानियाँ भिन्न परिवेश काल एवं परिस्थितियों के चलते
भिन्न तरीकों से जीवन, प्रेम और संघर्ष की बात रखती हैं तथा प्रमुखता
से प्रेम की संपूर्णता एवं प्रेम में बंधन से मुक्ति जैसे भाव पर ध्यान आकृष्ट
करती हैं। अनाहिता का प्यार भी पूर्णता को
प्राप्त नहीं होता क्यूंकि अमल उसे रिश्ते
की ज़ंजीर में बांधने की कोशिश करता है, उस पर बंधन चाहता है जो अनाहिता को स्वीकार्य नहीं वह शारीरिक सत्ता एवं
बंधन से अधिक आत्मिक बंधन चाहती है कथानक का अंत हमें अनाहिता की तलाश के बारे में
बताता है।
उपन्यास आजादी प्राप्ति के ठीक ठीक पिछले दशक के
कालखंड का है सो सहज ही पात्रों का स्वतंत्रता
आंदोलन की से जुड़ाव दर्शाया गया है। मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत, प्रेम, समर्पण और
विश्वास जैसी भावनाओं को प्रमुखता से सहेजता है।
पुस्तक के शीर्षक से इसके कुछ कुछ रूमानी होने
का आभास तो होता है किन्तु कथानक में प्रेम कहानियाँ जिस रूप में मिली वह अवर्णनीय
है। प्रारंभ में
जैसा प्रतीत होता है कहानी उस से भिन्न मोड़ लेती है तथा आधुनिक युवती अनाहिता की प्रेम कथा को बीच में विराम देते हुए विभिन्न खूब
सूरत मोडों से घूमती हमें ले जाती है रुद्र और रूप की अद्भुत प्रेम कहानी की ओर, जो पूरी तो न हो सकी किन्तु अधूरी भी नहीं रही जिसका
पूरा विवरण हमें लेखिका द्वारा उनके पात्र रुद्र के द्वारा रूप को लिखे पत्र में मिलता
है ।
रश्मि जी की सुसंस्कृत भाषा, काव्यात्मक शैली है, भावों को सरलता से आप तक
पहुचाते छोटे सधे हुए वाक्य हैं तथा कहन की सुंदर कला है और साथ ही भाव प्रधान सम्प्रेषण तथा एक शांत किन्तु पूर्ण
जागरूक गंभीरता पुस्तक में देखने में आती है।
कहानी आज़ादी पाने के साथ-साथ प्रेम के पाने और
फिर खो देने की है। हर वाक्य में लेखिका के शब्दों का चयन एवं भावों का सम्प्रेषण
प्रभावित कर जाता है।
उपन्यास
पढ़ते हुए लेखिका का पहला उपन्यास है ऐसी अनुभूति नहीं होती एवं उपन्यास एक कुशल
वरिष्ठ लेखन कला के चितेरे की कृति प्रतीत होती है जो रश्मि जी के कौशल एवं लेखन पर उनकी पकड़ को सुंदर रूप में
अभिव्यक्त करती है।
कथानक
तो सुंदर है ही, अलग अलग काल की घटनाओं को
भी जिस खूबसूरती से जोड़ा गया है वह निश्चय ही अद्भुत है। लेखिका के लेखन कौशल के
कायल हुए बिना रहना नितांत असंभव है। हर
वाक्य उनके गंभीर चिंतन एवम उनके गहन अध्ययन का परिचय देता है। प्रत्येक
वाक्य सुंदरभाव के साथ है तथा वाक्य सुंदरता से गढ़े गए है शैली सहज है तथा बीच बीच में क्षेत्रीय गीतों
का संयोजन उस माहोल में ले जा खड़ा करता है जिस जगह से कथानक है। आजादी के पूर्व
की प्रेम कहानी की कल्पना एवं उस की अत्यंत खूबसूरत प्रस्तुति जो सहज ही आपको उस
काल में ले जा खड़ा कर देती है उस के हर कदम से जुड़ना, लेखिका के लेखन कौशल को
प्रदर्शित करता है।
हर
उस मोड़ ने जहां कुछ नया लिखा गया लेखन ने लेखिका ने हतप्रभ किया। इस कथानक का
आनंद इसे पढ़ कर ही प्राप्त होगा । पात्र इतने सीमित और भाव इतने विशाल की क्या ही
कहा जाए, सभी महत्वपूर्ण पात्र या तो नारी पात्र है अथवा नारी पात्र से इस कदर
प्रभावित है अथवा जुड़े हुए हैं जिन्हे अलग से देखना नितांत असंभव ही है।
रुद्र
और रूप की प्रेम कथा की परिणिती क्या हुई वहीं अनाहिता को भी क्या उसका प्यार मिला, इन सभी प्रश्नों को अंत तक ले
जाते हुए बेहद खूबसूरती से बखान किया है रश्मि जी ने। बार बार पढ़ने योग्य इस सुंदर
कृति के लिए रश्मि जी बधाई की पात्र हैं।
अतुल्य
9131948450
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