ELEVEN MONTHS BY SURAJ PRAKASH DADSENA
इलेवन
मंथ्स
विधा:
उपन्यास
द्वारा
: सूरज प्रकाश डडसेना
FIRSTMAN
PUBLICATION द्वारा प्रकाशित
संस्करण :2020
मूल्य
: 195
पाठकीय प्रतिक्रिया क्रमांक : 160
प्रशासनिक सेवा की प्रतियोगी परीक्षा से संबंधित विषय को लेकर भिन्न लेखकों द्वारा समय समय पर कई किताबें लिखी गई और सभी ने अपने अपने तरीके से इस स्तर की परीक्षाओं को अपने अपने नजरिए में सामने रखा है। इसी विषय पर पूर्व में भी मैंने दो पुस्तकों की समीक्षा लिखी थी एक संजीव गंगवार जी की “B-14” और दूसरी नीलोत्पाल मृणाल की “डार्क हॉर्स,” किंतु वे दोनो ही दिल्ली के मुखर्जी नगर और IAS परीक्षा की तैयारी से, वह के माहौल से संबंधित थी जबकि एक और पुस्तक श्वेत कुमार सिन्हा की “IAS फेल” भी थी जो इस विषय से जुड़ते हुए भी कही और भटक गई थी प्रस्तुत पुस्तक राज्य प्रशासनिक सेवा से संबंधित है एवम लेखक ने, जो स्वयं छत्तीसगढ़ राज्य से हैं, कथानक को अपने राज्य की PSC पर केंद्रित किया है।
पुस्तक
मूलतः राज्य प्रशासनिक सेवा की तैयारी करने के लिए राज्य के ही एक थोड़े बड़े शहर
में जाकर वहां कोचिंग ज्वाइन करने से शुरू होती है इसके बाद का सफर,
तैयारी, दोस्तों का मिलना बिछड़ना, घर से लगाव, कोचिंग से असंतोष जैसे तमाम विषय समेटने
का प्रयास किया है जो कुछ हद तक वास्तविकता के बहुत करीब है ।
लेखक
द्वारा बहुत अधिक उपमाओं का प्रयोग एवं अमूमन प्रत्येक वाक्य में कहीं न कहीं से
क्लिष्ट वाक्यांशों के अनावश्यक प्रवेश ने पुस्तक के सहज प्रवाह को बहुत हद तक
प्रभावित किया है एवम बाज दफा तो पुस्तक के प्रति उबाऊ होते हुए झुंझलाहट की हद तक
ले जाती है। पढ़ने के दौरान आप स्वयम ही उन वाक्यांशों की उपयुक्तता पर अपने विचार बनाएं
। वहीं पुस्तक की भाषा राज्य विशेष की भाषा से इतनी ज्यादा प्रभावित है की वह बार बार व्यवधान सी प्रतीत होती है हालांकि
वह पात्र के उद्गार होने से हमें स्वीकार करनी ही होगी किंतु एक छात्र जो राज्य
प्रशासनिक सेवा की प्रतियोगी
परीक्षा की तैयारी कर रहा हो उस से शुद्ध हिंदी के वाक्यों के प्रयोग की अपेक्षा
की जा सकती है। ( निश्चय ही अधिकांश मेरी इस बात से सहमत नहीं होंगे किंतु इस स्तर की भाषा पुस्तक
को उस क्षेत्र विशेष तक के लिए सीमित कर देने समान है ) ।
पुस्तक
में भावुकता एवम वात्सल्य तथा मित्रों के आत्मीय वार्तालाप पर अच्छा लिखा गया है
तथा वहां पर लेखन को सराहा जाना चाहिए।
पुस्तक
में मुख्यपात्र जो पूरी तैयारी के दौरान एक अत्यंत औसत छात्र के रूप में दिखलाया
गया अंत में मुख्य परीक्षा में उसका एक उच्च रैंकिंग हासिल करना हतप्रभ करता है ।
हालांकि कथानक एक हद तक सीधी रेखा में ही चलता है किंतु कुछ टिप्पणियां जो की
बाजार व्यवस्था अथवा इकोनॉमी को लेकर की गई हैं वे सामान्य कटाक्ष करती हैं ।
पुस्तक
को रोचक बनाने हेतु अमूमन सभी मसाले इस्तेमाल किए गए है यथा रोमांस ,
भावुकता , आर्थिक दबाव , वात्सल्य इत्यादि । साथ ही कोचिंग क्लासेज की
प्रचार हेतु अपनाई जाने वाली टैकटिक्स पर भी अच्छा लिखा गया है ।
अंत
में पुनः कहना चाहूंगा की यदि पुस्तक को उसके सरलतम प्रवाह के साथ सहज रूप में
आसान शब्दावली के साथ लिखा जाता तो अधिक मनोरंजक एवम पठनीयता में आनंददाई होती। पुस्तक
को शीर्षक के अनुरूप ग्यारह माह की कहानी में सीमित कर दिया गया है,
अंत सकारात्मक है।
कथानक
सुंदर है एवम लेखन की पर्याप्त संभावनाएं समेटे हुए है किंतु शैली,
प्रस्तुतिकरण, अनावश्यक पात्रों की उपस्थिति
तथा अतिरिक्त चातुर्य एवं बुद्धिमत्ता दिखलाने हेतु कठिन वाक्यांशो का प्रयोग जैसे
विषयों पर अभी बहुत कार्य किया जाना शेष है ।
लेखक
का अच्छा प्रयास है ।
शुभकामनाएं
अतुल्य
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