Shoony Kaal Jo Suna Nahin Gaya By M K Madhu
शून्यकाल
जो सुना नहीं गया
द्वारा
एम के मधु
विधा :
कविता संग्रह
सर्वभाषा
प्रकाशन द्वारा प्रकाशित
प्रथम
संस्करण वर्ष 2022
मूल्य : 150.00
पाठकीय प्रतिक्रिया क्रमांक : 151
एम
के मधु,
मूलतः बिहार से आते हैं किन्तु उनकी कर्मभूमि किसी क्षेत्रविशेष से
संबद्ध नहीं रही न ही उनका लेखन किसी विशिष्ट विधा अथवा क्षेत्रीयता के दायरे में सिमटा
एवं साहित्य जगत में उन्होनें अपनी श्रेष्ट रचनाओं के द्वारा अपना विशिष्ट स्थान
बनाया है। वे विभिन्न साहित्य संस्थानों जुड़े हुए हैं एवं साहित्य जगत को उनका योगदान
अविस्मरणीय है। प्रारंभ में उनका झुकाव पत्रकारिता की ओर था किन्तु पत्रकारिता जो अपनी
राह चलती चली कालांतर में उनका पहला प्यार प्रख्यात समाचार
पत्रों हेतु पत्रकारिता करते हुए लेखन की ओर झुक गया फलस्वरूप विभिन्न स्तरीय पत्रिकाओं में कविताएं एवं लेखन
करते रहे जो बाद में कहा जा सकता है
पूर्णकालिक कार्य हो गया जहां उन्होंने संपादन का कार्य भी किया ।
“शून्य
काल जो सुना नहीं गया” वरिष्ट कवि साहित्यकार निर्देशक एवं पत्रकार के साथ साथ एक
मुखर प्रखर एवं सुलझे हुए विचारों के धनी मधु जी के विचारों का काव्य रूपांतरण
अर्थात शाब्दिक अभिव्यक्ति है।
बात
करें शीर्षक की तो आमतौर पर हम शून्यकाल को भारतीय संसद के जीरो अवर से ही जानते
हैं किन्तु शून्यकाल की व्याख्या आमतौर पर किसी विशेष कार्य या गतिविधि के लिए
समर्पित समय से की जाती है यह समय की वह अवधि कही जाएगी जिसमें व्यक्ति अपने
विचारों,
भावनाओं और लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह समय व्यक्ति
अपने आप को समर्पित करता है, नए विचारों को सोचता है,
और अपने जीवन की दिशा तय करता है। शून्यकाल में व्यक्ति अपने आप को
शांत और एकाग्र करने का प्रयास करता है।
यूं
तो मधु जी द्वारा सृजित कई पुस्तके हैं किन्तु “रानी रूपमती की चाय दुकान” अपने नाम के लिए ही प्राथमिक तौर पर अधिक
पहचानी गई और मेरे लिए उनकी पहली कृति थी जिसमें शामिल कविताएं काफी कुछ लीक से
हटकर थी। ठीक उसी प्रकार प्रस्तुत पुस्तक “ शून्य काल जो सुना नहीं गया”में चयनित
कविताएं भी कुछ अलग ही भाव सँजोये हुए हैं। उनकी कविताएं सहज भाव की अभिव्यक्ति है
किंतु भावार्थ कुछ विशेष है। प्रारम्भिक
तौर पर रचनाएं यूं तो सामान्य प्रतीत होती हैं किन्तु गंभीर भाव सँजोये हुए हैं। यह
तो सर्वविदित है ही की कविता कवि हृदय के भावों का शब्दरूप होता है, उसी तारतम्य में मधु जी की कविताएं भी उनकी भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति
एवं उनके गहन विचारों का दस्तावेज़ है। यह बात अवश्य ही विचारणीय है की आखिर किन कारणों से मधु जी द्वारा इस
पुस्तक का शीर्षक शून्यकाल चुना गया यह जानने के लिए यह जानना भी आवशयक हो जाता है
की यह शून्यकाल है क्या , तो सामान्य जीवन में बाज दफ़ा शून्यकाल को आत्मचिंतन के
साथ समानार्थी समझ जाता है किन्तु मेरे नजरिए से शून्यकाल और आत्मचिंतन दोनों ही
व्यक्तिगत विकास और आत्म-जागरूकता के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन
शून्यकाल अधिक व्यापक और आत्मचिंतन अधिक गहराई से जुड़ा हुआ है।
उनकी
अन्य रचनाओं के समान ही प्रस्तुत पुस्तक की कविताओं में भी
कविता के गर्भित भाव, तंज करती शैली
एवं कहीं न कहीं समकालीन व्यवस्था पर प्रहार उनकी शैली के अनुरूप ही हैं ।
अमूमन
मधु जी की कविताएं रूमानी या बहुत खुशनुमा फीलिंग तो कतई नहीं देती और कह सकते हैं
की मधु जी प्रेम के कवि नहीं हैं परंतु प्रस्तुत कविता संग्रह में हम कुछ कविताएं
यथा बाईं गली वाला मोड, तेरे हिस्से भी वसंत खिले हैं आदि देखते हैं जो प्रेम की कोमल भावनाओं को सुंदर
तरीके से दर्शाती हैं।
उनकी
कविता में अक्सर देखने में आता है की वे सारी कविता में सामान्य रहते हुए अंत में
पैनी धार दिखलाती हुई कुछ बहुत चुभता हुआ कह जाते हैं जो की कविता का सार और उनकी
भावना का मूल होता है ।
सहज
जिज्ञासा होती है की क्या शून्यकाल हमारे जीवन से भी जुड़ा हुआ है तो मेरे
मतानुसार हम विभिन्न कार्यकलापों में दिन ब दिन देख सकते हैं। यथा प्रातःकालीन शून्यकाल,
दिन की शुरुआत में समय निर्धारित करने और दिन की योजना बनाने का समय है तो वहीं आत्म-चिंतन
का शून्यकाल अपने विचारों, भावनाओं और
लक्ष्यों पर ध्यान देने वाला समय होता है वहीं परिवर्तन का शून्यकाल नए अवसरों की प्रतीक्षा
करने का समय होगा तो संबंधों का शून्यकाल
प्रियजनों के साथ समय बिताने और संबंधों को मजबूत बनाने का समय और आत्म-विकास का
शून्यकाल नई कौशल सीखने, आत्म-सुधार और व्यक्तिगत विकास के
लिए समय समर्पित करना होगा ।
संग्रह
में शामिल प्रत्येक, कविता , सच ही प्रत्येक कविता अपने आप में गंभीर भाव
समेटे हुए है। जिस भाव एवम
पैनेपन से मधु जी सृजित करते हैं वह बेमिसाल है।
कविता
मीना बाजार, मातृ दिवस, ज़िंदगी , वायरस और
मेरा सच आदि भी विशेष रूप से उनकी भावनाओं को मुखरता से अभिव्यक्त करती हैं। कविताएं
स्वयम में एक दस्तावेज़ हैं कहीं किसी ज्वलंत विषय का तो कहीं किसी गंभीर घटना क्रम
की ओर इंगित करता हुआ। हर कविता अपने भाव के मार्फत बहुत कुछ कहती हैं। बतौर एक पाठक
कहूँगा की पुस्तक की अमूमन प्रत्येक कविता डूब कर पढ़ी जाना चाहिए तथा उस में अंतर्निहित
भाव का रसास्वादन समग्र रूप में किया जाना
चाहिए।
अतुल्य
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