Trahimam Yuge Yuge By Ram Pal Shrivastava
त्राहिमाम
युगे युगे
विधा
: उपन्यास
लेखक
: राम पाल श्रीवास्तव
प्रकाशक
: न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन नई दिल्ली
प्रथम
संस्करण : 2024
मूल्य
: 425
रुपए
पाठकीय प्रतिक्रिया क्रमांक : 148
सर्व
प्रथम यह स्पष्ट कर दूँ की पुस्तक के विषय में यह मेरी सहज प्रतिक्रिया है जिसका एक मात्र
उद्देश्य पुस्तक के विषय में अपनी बात कहना और प्रबुद्ध इक्षुक पाठक को पुस्तक के
विषय में बतलाना है, अतः भाषा की सहजता, सरल वाक्य विन्यास से इतर किसी प्रकार के
पांडित्य एवं गंभीर साहित्यिक जुमलों की अपेक्षा न करें। भविष्य में भी मेरा
प्रयास यही होगा की पढ़ी गई पुस्तक की इतनी
जानकारी आप को दे सकूँ की आप पुस्तक के विषय में अपनी राय बना सकें एवं पढ़ने
संबंधित निर्णय ले सकें।
मेरी
पाठकीय प्रतिक्रियाओं (जिन्हें प्रबुद्ध जनों के कहने पर मैं मूढ़मति समीक्षा कहता और समझता समझाता रहा) के द्वारा मुझसे जुड़े तमाम मित्र जानते ही
हैं इस के पूर्व भी रामपाल श्रीवास्तव जी की विभिन्न पुस्तकों के विषय में मैने
आपसे चर्चा की है। तात्पर्य यह की हम सभी उनसे एवम उनके कृतित्व से बखूबी परिचित
हैं और इस बार अवसर है उन के नवीनतम उपन्यास "त्राहिमाम युगे युगे" के
विषय में कुछ बातें करने का।
त्राहिमाम
युगे युगे" एक संस्कृत वाक्य है, जिसका अर्थ है "हे भगवान! प्रत्येक युग में हमारी सहायता करो।"
यह वाक्य प्रायः धार्मिक या आध्यात्मिक संदर्भों में उपयोग होता है, जब मानवता संकट या कठिनाई में होती है। "त्राहि" का अर्थ है
"सहायता करना" या "रक्षा करना", और
"माम" का अर्थ है "मुझे"
तो युगे युगे: "युग" का अर्थ है काल या युग। यहां "युगे
युगे" का अर्थ है "प्रत्येक युग में"।
इस
वाक्य का उपयोग उस समय किया जाता है जब लोग ईश्वर से सुरक्षा,
सहायता, और मार्गदर्शन की प्रार्थना करते हैं,
विशेष रूप से जब समाज में अन्याय, अधर्म,
या संकट की स्थिति होती है। यह युगों के दौरान ईश्वर की भूमिका और
मानवता की आवश्यकता को दर्शाता है। "त्राहिमाम युगे
युगे" शीर्षक देकर वर्तमान सामाजिक और भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में अर्थ को परिभाषित
करने के कारण शीर्षक पूर्णतः युक्तियुक्त प्रतीत होता है। एक ग्राम वहाँ की
विभिन्न समस्याएं घटनाएं परिवर्तन इत्यादि द्वारा आज के कठिन समय का चित्रण किया गया है। उस दृष्टि से यह प्रार्थना स्वयम के स्तर पर एवं प्रशासन के
स्तर पर भी असहाय महसूस करते हुए प्रभु से सुरक्षा और सहायता की आवश्यकता को
व्यक्त करती है। वहीं धार्मिक एकता का मुद्दा जिसकी हालत पर विचार किया जाना हाल फिलहाल में शायद सबसे अधिक है , विभिन्न
धर्मों के अनुयायियों के बीच एकता और सहयोग की भावना को प्रोत्साहित करना और सभी
समुदाय को समान अवसर मिलने जैसे विषय को
भी बखूबी उठाया गया है।
आज
के समय में पर्यावरण परिवर्तन, महामारी,
और आर्थिक असमानता जैसे मुद्दे इस प्रार्थना को और भी प्रासंगिक
बनाते हैं। लोग ईश्वर से मदद की गुहार लगा रहे हैं। इस प्रकार, "त्राहिमाम युगे युगे" न केवल एक प्रार्थना है, बल्कि
यह मानवता की सामूहिक आवश्यकता और एकता का प्रतीक भी है।
बेहद
इत्मीनान से अपने कथानक, जो की ग्रामीण पृष्ट भूमि को केंद्रित कर एक पुस्तक लिखे
जाने हेतु और अपने कार्यालयीन मुखिया के "ग्रामीण पृष्ठभूमि पर वास्तविकता
आधारित औपन्यासिक कृति" सृजन के आदेश की अनुपालना में कुछ
खोजी किस्म के लेखकों के गांव के दौरे को लेकर है जो विस्तार से एवम संपूर्ण प्रासिंगकता के साथ तथा
विषय के साथ पूरा न्याय करते हुए अत्यंत सधे हुए शब्दों में अपनी बात रखता है।
कथानक
के मार्फत लेखक को ग्रामीण परिवेश, बोल चाल, महिलाओं तथा
बालिकाओं की दशा, शिक्षा, क्षेत्रीय
राजनीति जैसे विषयों पर विमर्श करने एवम आम जन के
व्यवहार को गंभीरता से समझने इत्यादि
विषयों को बहुत विस्तार से पुस्तक में समाहित करने की
स्वतंत्रता मिल गई है।
पुस्तक
के प्रारम्भिक खंड में उर्दू जुबान का प्रयोग तनिक ज्यादा ही किया गया है। जहां
पात्र की मातृ भाषा ही वह हो उस स्तर तक तो वह प्रयोग उचित ही प्रतीत होता है
किंतु उनसे आगे जाकर बहुतायत में किया गया प्रयोग बाज दफ़ा पाठक को
असहज करता है। साथ ही पुस्तक प्रकाशन स्तर पर कुछ
मुद्रण एवम टंकण संबंधित कमियां रहीं जो कथानक के प्रवाह में एवं स्वाभाविक तौर पर
पाठक के आनंद में व्यवधान उत्तपन्न करती हैं।
ग्राम्य
क्षेत्र में अतिक्रमण एवं अन्य व्यक्तिगत स्वार्थों की आपूर्ति से संबंधित कारणों
के द्वारा एक सम्पूर्ण जलाशय का विलुप्त हो जाना एक ऐसा विषय है जिसे कथानक के
प्रारंभ में ही प्रमुखता से लिया गया है
तथा उसके द्वारा वर्तमान ग्रामीण राजनीति, व्यवस्था एवम स्वार्थ गत अनीतियों को प्रमुखता
से उठाया गया है वही मुस्लिम लेखक सहायक के ऊपर पुलिस द्वारा की गई कार्यवाही
गंभीर कटाक्ष के साथ साथ वास्तविकता से रूबरू करवाती है। तो वहीं पुस्तक में घुमंतू जातियों, नटों के रहन
सहन,व्यवहार एवम परंपराओं पर भी व्यापक शोध देखने में आता है।
कथानक
सामान्य ग्रामीण जन जीवन एवं परिवेश आधारित होने एवम उसमें अन्य कोई विशेष आकर्षण
या कहा जाए मसाला सामग्री न डाले जाने के बावजूद पुस्तक को मंथरता अथवा उबाऊ नहीं होने दिया गया है। कथानक का सुगम प्रवाह पाठक को
बांध कर रखने में पूर्णतः सक्षम है।
अमूमन
जब हम ग्राम्य जीवन एवं ग्रामीण परिवेश पर बात करते हैं तो स्थानीय संस्कृति, वहाँ
की परंपराएँ रोजमर्राह के जीवन की विशेषतायेँ,
रीति-रिवाज़ आदि को ध्यान में रखते हुए क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियाँ
यथा कृषि, पशुपालन, हस्तशिल्प, आदि व्यवसायों और उनके आर्थिक महत्व को भी समझते हैं ताकि विषय के साथ पूरा न्याय हो सके।
प्रस्तुत पुस्तक में इन सभी बिंदुओं पर लेखक ने पर्याप्त ध्यान देते हुए कथानक का
सृजन किया है जिस से सहज ही पाठक जुड़ जाता
है। साथ ही वहाँ की सामाजिक संरचना का भी
जिसमें उस क्षेत्र विशेष की सामाजिक
व्यवस्था, जाति प्रथा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ एवं सामुदायिक
संबंधों इत्यादि का भी सुंदर विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है तो विभिन्न
वार्तालापों के द्वारा सरकारी नीतियाँ जन हितार्थ लागू सरकार की योजनाएँ तथा उनके
द्वारा परिवर्तन और विकास पर भी प्रकाश डाला गया है। पुस्तक की लेखन शैली सरल,
स्पष्ट, है और सरल तथा यथास्थान क्षेत्रीय
भाषा का प्रयोग इसे सभी पाठकों को समझ में आए ऐसे स्तर पर ला खड़ा करता है।
नारी
की जीवन शैली, खुशी गम, परंपराओं का भी अच्छा प्रस्तुति करण किया है। विशेष तौर भाई की मृत्यु के पश्चात देवर द्वारा जमीन एवं पैसे हथियाने वाला खंड अत्यंत वास्तविक बन पड़ा है। उन हालातों में मानवीय
व्यवहार को बहुत सटीक उकेरा है। भोले भले ग्रामीणों के संग कभी बैंक के एजेंट
द्वारा तो कभी रीवेन्यू के कर्मचारियों द्वारा की गई
धोखाधड़ी को भी स्थान दिया है जो की ग्राम्य क्षेत्र की बात करने के दौरान बहुत
स्वाभाविक है साथ ही गौ वंश हत्या का प्रायश्चित, तो
ग्रामीणों के साथ सरकारी हस्पतालों में इलाज के लिए किस कदर लूट खसोट की जाती है वहीं गांवों में नशे की आदतों के चलते
बिगड़ते हालात, शादियों में मांगा जाने वाला दहेज और तमाम
छोटी बड़ी बुराइयों को यथा स्थान शामिल।किया गया है। लेखनी को ऐसा कथानक दिया है जिस
की कोई सीमा नही है और लेखक अपने प्रत्येक विचार को अत्यंत विस्तार से रख सके हैं
कहा
जाता है कि ज़र जोरू जमीन सारे विवादों की जड़ होती है शायद यह बात बहूत से
तजुर्बों के बाद कही गयी होगी। जमीन हथियाने के लिए कैसे कैसे हथकंडे तथाकथित भोले
भाले ग्रामीणों के द्वारा अपनाए जाते हैं वह भी इस पुस्तक में देखने को मिलता है।
कुल
मिला कर कह सकते हैं कि ग्रामीण जीवन के लगभग सभी रंग साथ ही उस पृष्टभूमि में जितने भी प्रकार के घटना क्रम
बन सकते हैं अमूमन उन सभी को
अपने कथानक के दायरे में खूबसूरती से समेट लिया है और सुंदर तरीके से सिलसिलेवार पेश करा है ।
कथानक
सुंदर है एवं लेखक सहजता से अपनी बात पाठक तक पहुचाने में कामयाब हुए हैं ।
अतुल्य
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