PAANI KA PANCHNAMA BY ARUN ARNAV KHARE

 

पानी का पंचनामा 

द्वारा : अरुण अर्णव खरे 

विधा: उपन्यास 

सुरभि  प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 

प्रथम संस्करण : 2024

मूल्य: 350.00

पाठकीय प्रतिक्रिया क्रमांक : 149

 


शासकीय विभागों की कार्यशैली से अमूमन हर कोई वाकिफ है गोया की गाहे बगाहे हर किसी का कभी न कभी वास्ता पड़  ही  जाता है इन विभागों से। यही कारण है की विभागों की कार्यशैली से, कर्मचारियों के कार्य व्यवहार वर्ताव एवम प्रणाली  से सभी बखूबी वाकिफ हैं किंतु वरिष्ट साहित्यकार अरुण अर्णव खरे जो ता-उम्र एक इंजीनियर के दायित्व निभाते हुए साहित्य सृजन में भी सक्रिय रहे हैं और आज विशेषतौर पर वे व्यंग्य के क्षेत्र में चिरपरिचित व सशक्त हस्ताक्षर हैं ,उनके विभिन्न कहानी संग्रह जैसे ‘पीले हाफ पेंट  वाली लड़की”, “उफ्फ ये एप्प के झमेले”, “कोचिंग@कोटा”, “मेरे प्रतिनिधि हास्य व्यंग्य”, “चार्ली चैपलिन ने कहा था”  बेहद चर्चित हुए व साहित्य प्रेमियों द्वारा बहुत सराहे गए। उनकी रचनाएँ देश की लगभग हर पत्रिका  में प्रकाशित होती  रहती हैं  व्यंग्य उपन्यास,  साझा संकलन,  लघुकथा संकलन इत्यादि जिनकी फेहरिस्त काफी लंबी है एवं उनके सक्रिय एवं सराहनीय योगदान को दर्शाती है। 

यूं तो उनकी विशिष्ट पहचान एक जाने माने व्यंग्यकार के रूप में है परंतु प्रस्तुत पुस्तक  “पानी का पंचनामा” व्यंग्य होते हुए उस से एक कदम आगे की कहानी है और शासकीय विभागों की अंदर के हालत की बखिया उधेड़ती है। एक भ्रष्ट एवम नाकाबिल व्यक्ति अपने कुटिल प्रयासों के चलते जल विभाग के सर्वोच्च पद पर आसीन हो जाता है और उस की कार्य प्रणाली के द्वारा जहां व्यवस्था एवं शासकीय कार्य शैली पर तीखा तंज किया गया है वहीं पुस्तक में यह भी दर्शाया गया है की एक नाकाबिल व्यक्ति किस तरह से अपनी खामियां छिपाने के लिए सक्षम किन्तु कनिष्ट अधिकारियों का निरादर एवम शोषण करता है वहीं  अपने चाटुकारों को उनकी काबिलियत से कहीं ज्यादा दे कर उपकृत करता रहता है एवम  इसके बदले में  उसे विभाग की सारी गतिविधियों की जानकारी मिलती रहती है व  कह सकते हैं की ऐसे लोग ही उसका खुफिया तंत्र हैं जिनके द्वारा वह सम्पूर्ण विभाग पर अपना नियंत्रण बनाए हुए है। 



उपन्यास के प्रमुख पात्र के चरित्र का सतही अवलोकन भी यह स्पष्ट करने में काफी कुछ सक्षम है कि नाकाबिल व्यक्ति जब सत्ता में आता है अथवा कहें की शक्ति प्राप्त कर लेता है, तब उसका व्यवहार अन्य सभी को कई तरह से प्रभावित करता है। ऐसे व्यक्ति अक्सर आत्ममुग्धता, अहंकार और असुरक्षा के चलते कई नकारात्मक प्रवृत्तियों का प्रदर्शन करते हैं। वे अपनी अक्षमता के चलते सही निर्णय लेने में मुशकिलात महसूस करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप गलत नीतियाँ बनती हैं एवंउनकी इसी अक्षमता के कारण उन्हें दूसरों पर निर्भर बने रहना होता है वे अमूमन सदा ही दूसरों की सलाह अथवा मदद पर निर्भर बने रहते हैं किन्तु यदि भूलवाश अथवा किसी कुटिल रणनीति के तहत  यदि सही सलाह न मिले अथवा न दी जाए  तो परिणाम भयानक भी हो सकते हैं। वहीं यह भी होता है की नाकाबिल व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए शक्तियों का दुरुपयोग करते हैं एवं अपनी कमियों को पर्दे में छुपाये रखने के उनके प्रयासों के चलते  उनके किसी कार्य में पारदर्शिता भी नहीं होती जिस से   भ्रष्टाचार असंतोष एवं कुशासन ही पनपता व फलता फूलता है साथ ही इस का परिणाम भी यह होता है की वे न तो सहयोगियों का न ही जनता का विश्वास अर्जित नहीं कर पाते। इस तरह के व्यवहार के चलते, नाकाबिल व्यक्ति शक्तियों का दुरुपयोग कर समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं और  ऐसे अधिकारी के अधीन कार्य करने वाले योग्य अधिकारी भी असहज महसूस करते हैं तथा उन्हें काम करना मुश्किल प्रतीत  होता है क्योंकि एक तो ऐसे भ्रष्ट अधिकारी अपने  अथवा अपने चाटुकारों के व्यक्तिगत लाभ के लिए निर्णय लेते हैं, जिससे अन्य व्यक्ति के लिए काम करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है तथा उनके काम की गुणवत्ता और प्रगति प्रभावित होती है। उक्त समस्त बिंदुओं को लेखक ने कथानक में अत्यंत विस्तार एवं रुचिकर ढंग से प्रस्तुत किया है। वर्तमान में महिला कर्मचारियों का शारीरिक शोषण भी एक अहम मुद्दा है जि से खरे जी ने अत्यंत शालीनता से उठाया है।

विभागीय शासकीय कार्यों में राजनीति की दखलंदाजी एक गंभीर मुद्दा है जो प्रशासनिक प्रभावशीलता और पारदर्शिता को प्रभावित करता है। जब राजनीतिक प्रभाव प्रशासनिक निर्णयों में शामिल होता है, तो इसके कई नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं इस मुद्दे को पुस्तक में विस्तार से स्थान दिया गया है साथ ही अधिकारियों का कार्य नेताओं के दबाव में आकर किस  तरह से प्रभावित होता है यह भी दिखलाया गया है।

भ्रष्टाचार एवं राजनीतिक दबाव ऐसे कारक हैं जिनके कारण अधिकारियों को अनैतिक निर्णय लेने के लिए मजबूर करता है, जिससे भ्रष्टाचार बढ़ता है और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों की स्वतंत्रता का हनन होता है क्यूंकि वे अपनी जिम्मेदारियों को सही तरीके से निभाने में असमर्थ हो जाते हैं एवं मात्र राजनीतिक आकाओं की इच्छाओं का पालन करने को समर्पित बने रहना ही उनकी विवशता हो जाती है नतीजतन जनहित की योजनाएं और कार्यक्रम प्रभावित होते हैं, जिससे आम जनता को लाभ नहीं मिल पाता और इस प्रकार से  प्रशासनिक प्रक्रिया में जो व्यवधान आते हैं उनके चलते राजनीतिक हितों के चलते कार्यों में देरी होती है, जो सम्पूर्ण व्यवस्था को व्यतिक्रम में प्रभावित करते है। दूसरा नकारात्मक पक्ष यह सामने आता है की नागरिकों के बीच प्रशासन व्यवस्था का विश्वास समाप्त हो जाता है  जब आम जन को यह दिखने लगता है कि प्रशासन में राजनीति का हस्तक्षेप हो रहा है, तो उनका सरकारी संस्थाओं पर विश्वास कम होता है। इस स्थिति के समाधान के लिए पारदर्शिता, जवाबदेही और प्रशासनिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने की आवश्यकता ही एक मात्र निदान हो सकता है।

वरिष्ट लेखक महोदय द्वारा स्वयं एक वरिष्ठ  इंजीनियर होते हुए एवं ताउम्र शासकीय सेवा से अर्जित अपने तजुर्बों का  सुंदर प्रस्तुतिकरण किया है।  विभाग के कार्यों का अनुभव उनके कथानक में स्पष्ट दिखता है। कथानक पूर्णतः विभागीय कार्यशैली पर आधारित है। शैली भी सहज है  किंतु विभिन्न स्थानों पर कथानक विभागीय कार्य के कुछ ज्यादा ही आंतरिक पहलुओं को उजागर करने का प्रयास करता हुआ प्रतीत होता है जो की आम आदमी के लिए समझ पाना थोड़ा कठिन हो सकता है।  

कथानक पूर्णतः विभागीय होने के बावजूद न तो निराश करता है  न ही उबाऊ है। लीक से तनिक हटकर लिखी गई पुस्तक है जो स्वस्थ मनोरंजन के साथ साथ व्यवस्था एवं उसका मजाक बनाते हुए चंद तत्वों का चेहरा खुलकर सामने रखती है।   

अतुल्य

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