Rani Roopmati Ki chai Dukan By M K Madhu

 

रानी रूपमती की चाय दुकान

एम के मधु की कविताएं

विधा : कविता संग्रह

द्वारा : एम. के. मधु   

न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित

प्रथम संस्करण वर्ष 2023

मूल्य : 225.00

समीक्षा क्रमांक : 144 



 

एम के मधु, विख्यात वरिष्ठ साहित्यकार जिनके स्वयं के लेखन एवं प्रकाशित रचनाओं की लंबी फेहरिस्त है वहीं विभिन्न संस्थानों एवं मंचों से संबद्ध रहते हुए साहित्य जगत को अमूल्य  योगदान उन्होंने दिया है। मूलतः पत्रकारिता को अपना पेशा बनाने की चाहत से संबंधित शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात प्रख्यात  समाचार पत्रों हेतु पत्रकारिता करते हुए विभिन्न स्तरीय पत्रिकाओं में कविताएं एवं लेख प्रकाशित होते रहे और कालांतर में संपादन का कार्य भी अंजाम दिया।

“रानी रूपमती की चाय दुकान” मेरे लिए उनकी पहली कृति है। आम लीक से थोड़ा हटकर हैं उनकी रचनाएं। तुकांत मिलाना अथवा विशेषण आदि का प्रयोग नहीं दिखता। सहज भाव की अभिव्यक्ति है किंतु भावार्थ गूढ़ है। सामान्य प्रतीत होती रचना भी पुनः पढ़ने पर अन्य भाव दर्शाती है। उनकी कविता के पीछे गंभीर विचारण स्पष्ट दिखता है साथ ही यह भी की वे जो कहना चाह रहे हैं बगैर किसी लाग लपेट के लिख गए हैं। उनकी इस पुस्तक की पहली ही रचना जो की पुस्तक की शीर्षक रचना भी है अपनी शुरुआती पंक्तियों में ही आगे का आभास दे जाती हैं जब वे कहते हैं की: 

सचिवालय की बहुमंजली इमारत के सिरहाने पर है

फूलों का सुंदर बगीचा 

और पैताने पर है 

रानी रूपमती की चाय दुकान

                                                              


तो आगे कविता “तख्ती पर” विकास के संग पीछे छूटे मूल्य एवं संस्कारों पर तंज करते हुए लिखते हैं की: 

फाटक पर “स्वागतम” तो पिछले जन्म की बात थी 

और मुझे लगा “स्वागतम” से “कुत्ते से सावधान” तक की दूरी 

 कितनी जल्दी तय  हो गई 

और मैं

कितनी जल्दी मर गया ।

यूं तो प्रत्येक कविता कवि हृदय के भावों का शब्दरूप ही होता है,  एवं उसको कवि से बेहतर अन्य किसी के  भी द्वारा शत प्रतिशत उसकी मूल भावना संग  समझ पाना नितांत असंभव प्रतीत होता है, हाँ प्रत्येक व्यक्ति अपनी व्याख्या हेतु स्वतंत्र है। इस स्थिति में किसी भी कविता की समीक्षा करना बाज दफा उसे उसकी मूल भावना के संग न समझ सकने के कारण अथवा किसी अन्य भाव में लिए जाने के कारण अन्यथा भी जा सकती है। मधु जी की कविताएं उनकी भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति एवं उनके गहन विचारों के प्रेषण का मध्यम है और उन्हें हम आम प्रचार प्रसारक से सदैव दूर ही पाते हैं ।

कविता “नई सदी”,  आगे बढ़ते समय के साथ पीछे छूटती जिंदगी, उसके मूल स्वरूप, आधुनिकता को दर्शाती है,  हम क्या पाने के लिए क्या बहुमूल्य खो चुके हैं इस का भी सुंदर परिचय प्रस्तुत किया गया है। कविता का अंत अत्यंत सुंदर पंक्तियों से किया है:

हम हम नहीं तुम तुम नहीं / सभी गुमनाम हैं 

इस पार से तक रहा हूं / उस पार उतर रहे 

नई सदी के विहान हैं। 

इसी कविता में भावों की गंभीरता पर गौर करें  एक स्थान पर वे कहते हैं की

इस पार आदमियत वाले आदमी हैं 

वफादारी वाले जानवर हैं 

सबके पास  संतोष है 

इसी में सब इत्मीनान है 

उस पार

सलाहकार चमगादड़ है 

सेनापति गिद्ध है 

सूर्य को लीलने में सभी बिद्ध है

चूहे खोद रहे कब्र है

कौवे बना रहे शमशान है ।। 

कविता के गर्भित भाव, तंज करती शैली एवं कहीं न कहीं समकालीन व्यवस्था पर चोट काबिले  गौर है।

कविता “कालखंड” में हमारे पूर्वजों को,  हमारे देश निर्माण के सूत्रधारों को बिना किसी का नाम लिए, उनकी उस भयंकर भूल के लिए चेतावनी देते नजर आते है जो आज तक हम सभी को शूल की भांति चुभती है और अक्सर उसके घाव हम समय समय पर झेलते रहते हैं वे कहते हैं कि:

समझ सको तो समझ लो

यह कालखंड तुम्हारा ही है

चूंकि शतरंज की बिसात पर 

प्यादे की एक चाल / गलत चल गए थे 

तुम्हारी वह छोटी सी गलती / देश को बहुत भारी पड़ी थी

अधिकतर कविताओं में राष्ट्र प्रेम, राष्ट्र संबंधित उनकी फिक्र,  स्वाधीनता प्राप्ति और उसके दर्द तथा उस दौर की झलक देखने को मिलती है:

“हो गए अप्रासंगिक”,  में फिर एक बार राष्ट्रपिता की सीखों की वर्तमान में हालत बयान करता है फिर चाहे वह तीन बंदर वाली सीख हो, अथवा दूसरा गाल सामने कर देने वाली। वर्तमान में इन सीखों की क्या दुर्दशा हो चुकी है अथवा हो सकती है जो कवि हृदय अनुभव कर रहा है।  वह वर्तमान की हालत बयां करता एवम व्यवस्था पर तीखी चोट करता नजर आता है। प्रत्येक सीख की जो वर्तमान दशा बतलाई गई है उस के लिए बखिया उधेड़ कर रख दी जैसे वाक्य बहुत सटीक लगते हैं।

मधु जी की कविताएं रूमानी या बहुत खुशनुमा फीलिंग तो कतई नहीं देती। हर कविता अंत तक पहुंचते पहुंचते कुछ ऐसा चुभता हुआ कह जाती है ,कि आप गम्भीरता से सोचने को विवश हो जाते है और यह बात काबिले गौर है कि हर बार पढ़ने पर कविता का एक नया ही रूप नजर आता है।  

"वह मेरी कविता है" 

शहर के मुहाने पर

एक गली खानाबदोश की तरह 

बदहवास पट पड़ी हुई है

वह कोख में 

सुनहरी सुबह का पुण्य

और धुआंई सांझ का पाप ढोती है

नुकीले पत्थर का ज़ख्म 

और हरसिंगार का फूल

एक साथ जीती है।

वह गली कोई भी नही 

बस मेरी कविता है

जहां बरबस 

में तफरीह करने लगता हूं 

और मेरे पांव की कीलें 

वह अपने में समो लेती है।।

कविताओं के शीर्षक भी इस कदर सोचने पर विवश करते हैं की कविता के भाव तक जानने की जिज्ञासा बढ़ती जाती है जैसा की अगली कविता “लफ्ज़,  सांसों को तड़फते हैं”,  में वे कहते हैं कि : 

सब्ज़ मखमली कालीन पर

रक्स करता है काला धुआं

गिरता है मोम के गुम्बद से 

सुर्ख कुछ कतरा कतरा 

हरे भरे दरख्तों पर 

लफ्ज़ सांसों को तड़फते हैं 

मद्विम हवा के झोंके से

जब पत्तियां जमी पे गिरती हैं 

हरे भरे दरख्तों पर 

जब उजली मकड़ियां

स्याह जाला बुनती हैं

कविता “काला सच”,  “हाथों के भी हाथ”, “मेरे शब्द”,   और” कान की आंख का तिलिस्म” बहुत कुछ सोचने पर विवश कर जाने वाली रचनाएं हैं जिनके अर्थ हम अपनी समझ के अनुसार निकलते हैं किंतु कवि का मूल भाव हो सकता है इस से भी कही गहरा हो जिस तक हमारी नजर न पहुंच पा रही हो।

" तीन बहने " समाज में जवान लड़कियों के अभिभावकों की मुश्किलात को दर्शाती गंभीर कविता है वहीं "जिंदगी का मौतनामा " भी एक ऐसे ही मजबूर बाप का दर्द बयां करती है जिसके ऊपर तमाम जिम्मेवारियों का बोझ है,  लिखते हैं कि:

जिंदगी मौत से जिंदगी मांग रही थी 

सिर्फ पांच दिन 

उसे व्याहना था बेटी को 

उसे बेटे को नौकरी 

या किसी व्यवसाय पर सेट करना था 

भगवान की तस्वीरों की ओर 

प्रार्थना के भाव से निहार 

मांगता है पांच दिन.. ..  

और कविता का अंत देखिए कि

मौत अपने एजेंडे पर अडिग थी 

डायरी में एजेंडे का पन्ना 

स्याह हो चुका था ।।

तो इसके विपरीत शीर्षक से कविता है "मौत का जिंदगी नामा" जो बोरिंग में गिरे हुए बच्चे प्रिंस को केंद्र में लेकर लिखी गई 

अंत प्रभावित करता है 

“सकते में पड़े देश के चेहरे पर फैल गई थी मुस्कान

मौत के चेहरे पर / लिख गई थी जिंदगी अपना नाम”

संग्रह में शामिल प्रत्येक, जी, सच ही प्रत्येक कविता अपने आप में गंभीर भाव समेटे हुए है। “रानी रूपमती की चाय दुकान” भी तीन हिस्सों में लिखी गई है किंतु जिस  भाव एवम पैनेपन से मधु जी सृजित करते हैं वे इसी एक शीर्षक से पूर्ण पुस्तक भी लिख सकते हैं।

कविता "निगहबान है बेआँखों  की नगरी",  “दो बूंद ओस की”,  “इन दिनों”, “सन सत्तावन”, “कुहासे”, “गांठ”, “धनकुटनी”, “मैं और तुम”,  आदि कुछ और कविताएं हैं जिन्हे उल्लिखित कर रहा हूं किंतु वास्तविकता तो यही है की सभी कविताएं कुछ नहीं, वरन बहुत कुछ कहती हैं। भाव एवं विषय चुभते हैं और यह चुभन वही है जो आपको कहीं ना कहीं अशांत कर देती है और सोचने को विवश हो जाते हो। इस संग्रह में शामिल कविताओं के भावार्थ को पाने हेतु प्रत्येक कविता डूब के पढ़ी जाना चाहिए।  

अतुल्य

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