KALAM BY HARIYASH RAI
कलम
विधा
: कहानी संग्रह
द्वारा
: हरियश राय
सेतु
प्रकाशन द्वारा प्रकाशित
प्रथम
संस्करण : 2024
मूल्य
:250.00
पाठकीय प्रतिक्रिया क्रमांक : 162
हरियश
राय जी से परिचय करवाती मेरे लिए यह उनकी पहली कृति है एवं अपने इस परिचय में ही
वे अमित छाप छोड़ने में कामयाब हुए हैं। साहित्य में उनका योगदान उनकी कृतियों के द्वारा एवं समय समय पर विभिन्न पत्र
पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहने वाली रचनाओं के द्वारा निश्चय ही सराहनीय है। हाल
फिलहाल तक उनके 3 उपन्यास, सात कहानी संकलन प्रकाशित
हुए एवं उनके द्वारा संपादित दो पुस्तकों को भी काफी सराहना मिली। उनके लेखों के विभिन्न
संग्रह भी प्रकाशित हुए यथा “भारत विभाजन और हिन्दी उपन्यास”, “समय के सरोकार” आदि। प्रस्तुत कथा संग्रह “कलम”उनकी 13 बहुमूल्य
कहानियों का संग्रह है जिसमें विभिन्न विषयों को समाहित किया गया है।
लेखक की शैली सरल है, विषय केंद्रित होकर लिखी गई कहानियां है, १३ कहानियां है जो विभिन्न विषयों पर हैं तथा यह उल्लेखनीय है की शब्द चयन एवं वाक्य विन्यास सरल, स्थिति के अनुरूप होते हुए क्लिष्टता से दूर है कहा जा सकता है की लेखक ने कथानक को यथा संभव उसके मौलिक रूप में प्रस्तुत किया है तथा बाहरी अनावश्यक प्रभावों के द्वारा उसे कठिन नहीं बनाया है एवं उनका यह कदम उनके कथानक को पाठक से शीघ्र ही जोड़ने में सहज ही कामयाब होता है।
पहली
कहानी “आमंत्रण” एक व्यवस्था की कहानी है
जहां एक मुस्लिम युवक की संगीत विद्या का
मात्र उसकी जाति के कारण अनादर किया जा
रहा है तो वही एक सज्जन पुरुष जो सामान्य तौर पर सुलझे हुए, व्यर्थ के ढकोसलों इत्यादि से दूर रहने वाले हैं वे उस की कला के पारखी निकलते हैं एवं उस के
सामने सहयोग का हाथ बढ़ाते हैं। लेखक ने कलाकार की दिल की भावना को पहचान है तथा
उनकी रचना में यह भावना दिखलाई पड़ती है
जब वह उन महानुभाव द्वारा दिए गए कुछ रुपये लेने से मना कर सिर्फ उसे सुन लेने का
आग्रह करता है। कहानी के माध्यम से बहुत अच्छा संदेश दिया गया है।
संग्रह
की एक और कहानी “प्लाज्मा” उस वर्ग को सामने रखती है जिसे तथाकथित बड़े लोग छोटा
समझ कर उचित व्यवहार नहीं करते किंतु बाज दफ़े किस्मत की मार उन्हें उन तथाकथित
छोटे लोगों के सामने हाथ फैलाने को मजबूर कर देती है एवम तब उन छोटे लोगों का दिल
से अमीर किंतु जेब से फकीरी रूप अपनी ऐसी छप छोड़ जाता है जो उन अमीरों के मुंह पर
तमाचा होते हुए भविष्य के लिए एक चेतावनी भी दे जाता है, सभी से समान एवं सम्मान
का व्यवहार रखने का।
कहानी
“खुशियां ऑन लाइन” एक सलाह के साथ साथ तंज भी है, वर्तमान में बाजार व्यवस्था के तेजी से
होते आधुनिकीकरण तथा ऑनलाइन शॉपिंग के बढ़ते चलन पर। बात तो सच ही कही गई है किंतु
जमाने की हवा के साथ साथ वर्तमान पीढ़ी के पास वक्त की कमी
वस्तु क्रय हेतु सुविधा, अपेक्षाकृत कम कीमत
एवम चयन हेतु व्यापक विकल्पों की उपलब्धता जैसे बहुत
से मुद्दे हैं जो इस व्यवस्था को मजबूती प्रदान कर रहे हैं। फिर भी कहना होगा की
अच्छा समसामयिक विषय चुना गया तथा प्रस्तुति अच्छी रही अंत में युवक द्वारा पिता की बात पर पूर्ण
सहमति न दिखला कर वर्तमान पीढ़ी के व्यवहार को बहुत सटीक तरीके से प्रस्तुत किया गया
है ।
संग्रह
की शीर्षक कहानी “कलम”
यूं तो एक फूड डिलीवरी बॉय के संघर्ष और बेबसी से परिचय करवाती हुयी कहानी है, किंतु उत्तरार्ध में जिस तरीके से कथानक
को मोड़ा गया है वह निश्चय ही अद्भुत है एवम देश की पुलिस व्यवस्था की
कार्यप्रणाली जिसका कोई और सुधारात्मक विकल्प फिलहाल दूर दूर तक नहीं दिखलाई पड़ता,
उस पर अनगिनत प्रश्न उछालता है साथ ही
उस व्यवस्था के सामने एक निरीह प्राणी के हालात बखूबी बयां करता है। कथानक में सहज
ही भावनात्मकता ने स्थान बना लिया जो अत्यंत सहजता से आया है तथा पिरोया हुआ न
होने से मौलिक भाव प्रकट करता है।
कहानी
“तलाश”,
तथाकथित धर्म और समाज के ठेकेदार बने हुए उस भ्रमित युवा वर्ग पर
केंद्रित है जो कभी विजातीय विवाह कभी वेलेंटाइन डे, कभी धर्म परिवर्तन तो कभी गौ रक्षा के नाम पर अपना
प्रभाव दर्शाने हेतु या कहें दादागिरी, गुंडागर्दी दिखला कर
अपना सिक्का चमकाने हेतु किसी निस्साहय पर जुल्म करने से भी बाज नहीं आता। विषय को
धार्मिकता के साथ साथ अंतर्जातीय विवाह (वह भी मुस्लिम लड़के का किसी हिंदू लड़की
से) के साथ साथ क्षेत्रवाद से भी संबद्ध करा गया है। कहानी निश्चय ही गंभीर मुद्दे
उठाती है जिनका फिलहाल कोई समाधान नहीं नजर आता और न ही कथानक किसी निष्कर्ष की ओर
इंगित करता है ।
कहानी
“पेड़” एक ऐसे दंपत्ति की परेशानियों का जिक्र करती है जिनके घर में एक पीपल का
पौधा था जो कि कालांतर में वृक्ष बन गया, और
वे उसे छटवाने कटवाने के सारे प्रयास कर के थक हार चुकते हैं तब अंत में अपने निजी संबंधों का वास्ता
देकर एक बड़े अधिकारी के पास पहुंचते हैं कथानक में उन के आने के बाद स्थिति क्या बनती है यह जानना रोचक है। बढ़िया
प्रस्तुति है साथ ही व्यवस्था पर हल्का फुल्का अंदाज में एक व्यंग्य भी।कथानक के मूल
में कहीं न कहीं यह विचार भाव भी रहा है कि हिन्दू धर्म
की मान्यताओं के तहत पीपल के वृक्ष पर देवताओं का वास माना गया है जिसे काटने पश्चात
देवों की नाराजगी कोई नहीं आमंत्रित करना चाहता इसी आस्था के चलते वे उस वृक्ष को अन्यत्र
लगवाने हेतु भी प्रयास रात रहे।
इस
कथा संग्रह की प्रत्येक कहानी को पढ़कर मेरी
जो राय बनी, वह यही कि वगैर बाहरी
सजावटी आडंबर के अवलंबन के, समसामयिक विषय को चुनकर सुंदरता से विषय के मूल भाव
को कथानक के प्रमुख भाव के रूप में लेते हुए, आसान भाषा शैली में अपनी बात पाठक तक
पँहुचाने में बखूबी कामयाब होते हैं।
इसी
संग्रह की कहानी “चिराग” वर्तमान झूट फरेब और धोखेबाजी की
सोच, और सच एवम सार्थक जीवन
मूल्यों की वकालत करते हुए दो विचार धाराओं के बीच का संघर्ष दिखलाती है। आज जहां
सच एवं सार्थक सोच को पुरातनपंथी माना जा चुका है और उस राह पर चलने वालों को
पिछड़ा और पुराने खयालों वाला तब यह एक अच्छा संदेश देती प्रतीत होती है किंतु अंत
तक भी कहानी अपना प्रभाव छोड़ पाए हो ऐसा प्रतीत नही हुआ। अंत संदेशात्मक अवश्य है
किंतु प्रभावी नहीं है। बीच में कथानक
थोड़ा धीमा तथा उबाऊ हो चला है ।
कहानी
“राहत” मुस्लिमों के प्रति हिंदुओं के दिलोदिमाग में जिस तरह से नफरत भारी जा रही
है या कहें की भरी जा चुकी है उसको अत्यंत सुंदरता से सामने लाती है। क्या युवा
क्या अधेड़ सब एक सोच में एक सुर में सभी मुस्लिमों को पराया और दुश्मन माने बैठे
हैं,बगैर यह पड़ताल किए की दोषी कौन है नफरत की आंधी में बहे चल रहे है सब, और अंजाम कुछ मासूम बेगुनाहों को ही भुगतना होता है ।
अन्य
जिन कहानियों के विषय में मैंने यहाँ विवरण नहीं दिया है उन्हें भी कमतर न आँका जाए, मेरी दृष्टि में एक अच्छा कथा संग्रह जिसे पढ़ा जाना चाहिए।
अतुल्य
9131948450
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