Yayavari By Arvind Kumarsambhav

 

“यायावरी”

द्वारा : अरविन्द कुमारसंभव

सबलपुर प्रकाशन जयपुर द्वारा प्रकाशित

मूल्य : 300

प्रथम संस्करण : 2023

समीक्षा क्रमांक : 133 


 साहित्य जगत में सुविख्यात एवं अमूमन साहित्य की प्रत्येक विधा में उल्लेखनीय कार्य करते हुए लेखन कर्म से इतर भी साहित्य सेवा में स्वयम को आहूत कर चुकी शख्सियत हैं अरविन्द कुमारसंभाव जी। पर्यटन विषय पर लिखित समीक्षाधीन पुस्तक “यायावरी” से उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में कविता उपन्यास इत्यादि से कुछ अलग लिख कर युवा नई पीढ़ी के साहित्यकारों को भी एक नई दिशा दिखलाई है।



अरविन्द जी को हिन्दी साहित्य जगत में,  अलग से किसी परिचय की दरकार ही नहीं है साहित्य को अपने अमूल्य योगदान एवं साहित्य संबंधित अन्य  श्रेयस्कर कार्यों  के द्वारा वे अब आइकन  बन गए हैं। जहां एक ओर वे स्वयम विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं वहीं साहित्य से जुड़े हुए विभिन्न कार्यक्रमों में भी उनकी सक्रियता एवं अमूल्य योगदान प्रशंसनीय है।    

     साहित्य के क्षेत्र में उनकी सक्रियता एवं योगदान का ही प्रभाव है जो आज वे साहित्य जगत में शिखर पर हैं एवं स्तरीय साहित्य की बात हो अथवा साहित्य से संबंधित किसी  आयोजन की उनका ज़िक्र उनकी उपस्थिति अपरिहार्य है।

साहित्य जगत में उनके सम्पादन में निकाली जा रही त्रैमासिक पत्रिका “शब्द घोष”  ने अपने शुरुआती दौर में ही एक उच्च स्तरीय साहित्यिक पत्रिका के रूप में अपना  स्थान बना लिया है। साहित्यिक संस्था जयपुर साहित्य संगीति भी उनके नेतृत्व में निरंतर प्रगति करते हुए सफलता के नित नए कीर्तिमान रच रही है.

प्रस्तुत पुस्तक “यायावरी” देश के भिन्न धार्मिक पौराणिक एवं नैसर्गिक सौन्दर्य दर्शाते प्राकृतिक स्थलों के  पर्यटन पर केंद्रित है जिसका प्रारंभ हिमालय के उत्तंग शिखरों से तलहटी तक व्याप्त प्रदूषण एवं पर्यावरण को नुकसान पहुचाते  तथाकथित विकास के नाम पर किए जा रहे कार्य एवं फैलती गंदगी पर गहन चिंता के द्वारा किया है। एक समस्या जो वास्तव में गंभीर एवं शोचनीय है,  हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में विकास की  प्रक्रिया के दौरान पर्यावरण को नुकसान पहुचना पर्यावरणविदों के संग संग आम आदमी के लिए भी भयावह एवं चिंतनीय विषय है क्यूंकि सर्वाधिक नुकसान एवं विनाश तो उसे ही बर्दाश्त करने होंगे। यूं विचारण की दृष्टि से देखें तो प्रारम्भिक तौर पर निम्न चंद कुछ कारक नजर आते हैं  हैं जिनकी वजह से पर्यावरण उस क्षेत्र में प्रभावित हो रहा है। इस संदर्भ में सर्व प्रथम जंगलों की कटाई एवं वन्य प्राणियों का शिकार है,  जो प्राकृतिक वनस्पति के स्त्रोत को सदा सर्वदा हेतु नष्ट कर जाता है एवं प्रकृति के संतुलन को नष्ट कर देता है जिसके दूरगामी दुष्परिणाम हमें भुगतने होते हैं। वहीं प्राकृतिक जल संसाधनों का उपयोग दैनंदिन कार्यों हेतु, जल आपूर्ति हेतु, एवं ऊर्जा उत्पादन हेतु किए जाने से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हुए स्पष्ट परिलक्षित हो रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से संबंधित एक और भी गंभीर समस्या आती है वह है भूमि और संबंधित प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग, यथा खनिज संसाधनों का खनन, पर्यटन हेतु किए जा रहे वैध अवैध निर्माण कार्य एवं तथाकथित उद्यानिकरण। हिमालय के प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक उपयोग के कारण खतरा निरंतर बढ़ रहा है। इसमें खनिज संसाधनों का अत्यधिक खनन, जल संसाधनों का अत्यधिक एवं कुछ हद तक गैर जरूरी उपयोग, तथा वनस्पति संसाधनों की अत्यधिक कटाई सभी अपना सहयोग दे रहे हैं। इन समस्याओं के त्वरित निवारण हेतु प्राकृतिक संपदा संरक्षण के साथ साथ सतत एवं त्वरित  विकास के माध्यम से हिमालय के पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए समाज, सरकार, और अन्य संगठनों के साथ मिलकर काम करना अत्यंत  आवश्यक तथा महत्वपूर्ण है।

यायावरी हिंदुस्तान में पर्यटन के विषय पर हिन्दी भाषा में लिखी गई ऐसी पहली पुस्तक मेरी नज़रों में आई है  जिसमें विभिन्न प्राचीन ऐतिहासिक स्थल, प्राकृतिक सौंदर्य, धार्मिक धरोहर, शामिल है, एक पर्यटक के लिए हर आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराती हुई, सांस्कृतिक महत्ता पर भी प्रकाश डालती है साथ ही  जहां सभी जानकारियाँ हैं वहीं उपयुक्त सुझाव भी दिए गए हैं। यहाँ तक की भ्रमण पर वरती जाने वाली सावधानियाँ भी सुझा दी गई हैं । पुस्तक में वाक्य विन्यास आसान व सुगम है वहीं शब्द संयोजन अत्यंत सरल है जो पुस्तक को आम पाठक के लिए एक स्तरीय पर्यटन मार्गदर्शिका बनाते हैं। पर्यटन स्थल के  विवरण भी  अत्यंत सहजभाव से दिए गए हैं एवं उसे कुछ और आकर्षक बनाने हेतु कहीं भी कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं किए गए हैं।

राष्ट्र के लिए पर्यटन उद्योग आर्थिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह रोजगार के अवसर प्रदान करता है, स्थानीय व्यापार एवं उत्पादन को प्रोत्साहित करता है, कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देता है साथ ही अन्य व्यावसायिक क्षेत्रों को भी  आगे बढ़ाता है। इसके अलावा, पर्यटन,सामाजिक संबंधों एवं सांस्कृतिक विनिर्माण को भी बढ़ावा देता है। उस दिशा में ऐसी मार्गदर्शक पुस्तकें अवश्य ही बहुमूल्य योगदान कर सकती

सामान्य तौर पर दर्शनीयता के पैमाने पर ऐसे स्थल जो पर्यटकों को लुभाते हैं उनके अलावा धार्मिक स्थल भी दर्शनार्थियों द्वारा भ्रमण किए जाते हैं जिसे धार्मिक पर्यटन कहा जा सकता है दरअसल धार्मिक पर्यटन, पर्यटन की वह इकाई है जो धार्मिक स्थलों, तीर्थस्थलों, और पवित्र स्थलों की यात्रा पर केंद्रित होता है। यह पर्यटकों को उनके  धार्मिक और आध्यात्मिक मूल्यों को करीब से समझने हेतु प्रेरित करता है। धार्मिक पर्यटन के दौरान, उनके द्वारा विभिन्न  धार्मिक उत्सवों, पूजा, साधना स्थलों  एवं संग्रहालयों का भ्रमण जहां एक ओर उनके धार्मिक आदर्शों और आस्थाओं को प्रकट करते हैं वहीं विभिन्न स्तर पर उस स्थल की अर्थव्यवस्था को  भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। तात्पर्य यह की धार्मिक पर्यटन न केवल धार्मिक समृद्धि को बढ़ाता है, बल्कि इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी लाभ होता है चूंकि यह रोजगार के अवसर प्रदान करता है और स्थानीय व्यवसायों को बढ़ावा मिलता है।

प्रस्तुत पुस्तक को समीक्षा की दृष्टि से देखें तो साहित्यिक गुणवत्ता, पर्यटन स्थल का  वांकक्षित एवं सटीक विवरण, तथा धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व, सभी को उचित स्थान दिया गया है एवं उक्त समस्त पैमानों पर पुस्तक पूर्ण रूप से खरी उतरी है। पुस्तक में पौराणिक एवं धार्मिक स्थलों के विषय में आवश्यक जानकारी सरल सहज भाषा में देने के साथ साथ शैली भी ऐसी है जो पर्यटक को उस स्थल के भ्रमण हेतु प्रोत्साहित करे।   अमूमन प्रत्येक स्थल की श्वेत श्याम छवि दी गई है हालांकि रंगीन छवि की कमी अवश्य महसूस होती है। पर्यटक को  पर्यटन स्थल तक का पहुच मार्ग मय आवागमन के साधन के दिए जाना पुस्तक को और भी उपयोगी बनाता है। पर्यटन के शौकीनों को तो इस पुस्तक को अपने संग्रह में रखना ही चाहिए, सहज सरल शैली में रचित है एवं विभिन्न भ्रभ्रमणीय स्थलों के विवरण हैं जो की सभी के लिए उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक हैं।

अतुल्य 


 

 

 

 

 

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