Shabdon Ke Ganv By Ramesh Khatri
शब्दों
के गाँव
द्वारा :
रमेश खत्री
विधा :
काव्य संग्रह
मंथन
प्रकाशन द्वारा प्रकाशित
संस्करण
: 2023
मूल्य :
250.00
समीक्षा
क्रमांक : 129
अमूमन साहित्य की प्रत्येक विधा को अपनी विलक्षण प्रतिभा से नवाजने
एवं लेखन कर्म से इतर, साहित्य के प्रकाशन
में भी सतत एवं सक्रिय योगदान हेतु खत्री जी का नाम साहित्य जगत में अत्यंत सम्मान
भाव से लिया जाता है। लेखन एवं प्रकाशन से उनकी दीर्घकालीन
संबद्धता है तथा उनकी निरंतर सक्रियता निःसंदेह युवा साहित्यकारों हेतु
प्रेरणादायी है। शासकीय सेवा काल के दौरान उनका साहित्य सृजन अबाध गति से जारी रहा
जो की सेवानिवृत्ति पश्चात पूर्व की अपेक्षा और अधिक तीव्र वेग से आगे बढ़ रहा है।
प्रस्तुत कविता संग्रह "शब्दों के गाँव" वरिष्ठ कथाकार रमेश खत्री द्वारा अत्यंत भावपूर्ण कविताएं सँजोई गई हैं जिनके अर्थ सहजगम्य नहीं है किन्तु अत्यंत गूढ कहे जा सकें इतने कठिन भी नहीं। पुस्तक गंभीर पाठन या कहें तो डूब कर पढ़ने जितनी गंभीरता समेटे हुए है जिसमें विभिन्न विषयों के संदर्भ में कविता की भाव पूर्ण प्रस्तुति है।
उनके विभिन्न कहानी संग्रह जैसे “साक्षात्कार” “देहरी के इधर-उधर” ‘”महायात्रा”,”ढलान के उस तरफ”, “इक्कीस कहानियां” आदि प्रकाशित हुए हैं वही कहानी संग्रह “घर की तलाश” आलोचना ग्रंथ “आलोचना का अरण्य” व आलोचना का जनपक्ष हैं प्रस्तुत काव्य संग्रह शब्दों के गाँव के सिवा उनका उपन्यास “इस मोड़ से आगे” भी काफी चर्चा में रहा, वहीं नाटक ‘मोको कहां ढूंढे रे बंदे” के उल्लेख के बिना उनकी साहित्य सृजन यात्रा का वर्णन अधूरा ही रहेगा।
लोक कथाएं परी कथाएं संपादन इत्यादि के कार्य में भी वे निरंतर कार्यरत
हैं तथा उनकी साहित्य सेवा को अभिस्वीकृत करते
हुए प्रशांशनीय कार्य को समय समय पर विभिन्न स्तर पर पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। प्रस्तुत काव्य संग्रह की प्रत्येक
रचना गहन विचार समेटे हुए है व प्रत्येक कविता का भाव, सहज ही पाठक को एक विचार एक चिंतन हेतु विवश अवश्य कर देता है। श्रेष्ट कविताओं के मध्य किसी एक को श्रेष्ठ कह
पाना संभव नहीं है, यूं कि प्रत्येक कविता का भाव, एवं
अभिव्यक्ति विशिष्ठ है तथा प्रत्येक कविता में
कोई न कोई विशिष्ठ विचार, गहन सोच, भिन्न दृष्टिकोण अन्तर्निहित
है। कविता तुकबंदी से मुक्त है तथा विषय केंद्रित हैं एवं कहीं कहीं एक सहज कटाक्ष
का भाव भी उनकी कविताओं में दृष्टिगोचर होता है। विशिष्ट एवं क्लिष्ट शब्द नहीं है अपितु सामान्य शब्द ही प्रयोग किये गए हैं।
इसके पूर्व उनका एक कविता संग्रह “घर की तलाश” प्रकाशित हुआ एवं प्रस्तुत
संग्रह उनकी 68 बेहतरीन कविताएं सँजोये हुए है जिनमें भाव पक्ष प्रबल
है किंतु, अधिकतर कविताओं में कवि की भावपूर्ण नज़र एवं भावना
प्रधान दिल से समाज एवं आम जिंदगी में मनः स्थिति एवं वैचारिक ऊहापोह का स्पष्ट प्रतिविम्ब
हमें देखने को मिलता है।
रमेश खत्री जी बिना प्रचार
प्रसार की कामना के बेहद
शांत भाव से अपने भाव व्यक्त करते है, प्रचार प्रसार से दूर वे
अपने विचार अभिव्यक्त करने हेतु साहित्य की विभिन्न विधाओं का प्रयोग करते हैं वर्तमान
में जो भी घटित हो रहा है वे उसके शांत साक्षी बन उस पर अपने भाव व्यक्त अवश्य करते
हैं वे एक संवेदनशील, तथ्य परक एवं तथ्य अन्वेषी, जिज्ञासु, स्थितियों एवं
सामाजिक परिवर्तनों पर पैनी नज़र रखने वाले, सशक्त एवं सुलझी
हुयी मानसिकता के धनी तथा स्पष्टतः अपनी बात रखने से न सकुचाने वाली शख्सियत है, उनकी
पुस्तक का पाठन सदैव ही एक अविस्मरणीय अनुभव
राहत है। यूं तो इस कविता संग्रह की हर कविता बेमिसाल कहना ही
उसकी सर्व श्रेष्ठ समीक्षा करना है, किन्तु पाठकों के लाभार्थ चंद कविताओं पर अपने
विचार रखने का प्रयास किया है।
इसी क्रम में संग्रह की कविता “घर का छूटना” की इन पंक्तियों के
भाव पर गौर करें , यह कवि की व्यथा
है अथवा स्वयं से नाराजगी अथवा कही छुपा हुआ असंतोष :
न जाने कब से खुद को युकेलिप्टिस में तब्दील पाता हूं
अपनी ही जमीन को ऊसर बनाते हुए
आसमान में तनता जाता हूं
कितने युकेलिप्टिस रोप लिए जीवन में
और
अब सपनों की जगह आंखों में उग आए हैं कैक्टस
जो दूर तक पीछा करते
चुंधियाने लगती हैं आंखें
इनका मैं क्या करूं ?
अत्यंत गहरी सोच से परीपूर्ण
भाव प्रधान कविताएं हैं । ऐसी ही एक अन्य कविता "पावस के इंतजार में" की
निम्न पंक्तियां
आंखों के सपने चूर चूर हो गए
समय का दर्पण मानो किरच किरच कर बिखर गया
जिनमें अपने अक्स देखते
और जीते थे ।
कितना कुछ खोया है
पावस के इंतजार में
नारी विमर्श पर कुछ विशेष लिखा गया है कविता "औरत के
साथ" में जो दिखाती है औरत की महत्ता , इस संदर्भ में
ये पंक्तियां उल्लिखित करना अपरिहार्य है
हर औरत जन्मती है लड़कियां
लड़की बनती है औरत
औरत का जीवन नरक है
.
.
वही आगे बढ़ाती सृष्टि
जन्मती है एक नया कल अपनी कोख से
तो एक अन्य कविता साथी के बिछड़ने
के दर्द को दिल से बयान करती है “पता ही नहीं चला” जब वे लिखते हैं कि:
थरथराने लगे जीवन के पत्ते
रेल की तरह भागते सपनों में
रहगुजार से खड़े रहे नींद में खोए हुए
थक कर आक्लांत
होने से काफी पहले
उम्र के बियाबान सें गुजरते ही
पलक झपकते ही चुपचाप चल दिए
बगैर अपना सामान समेटे ।
गंभीर भाव से ओत प्रोत कविताओं के साथ साथ प्रेम रस से भीगी कविताओं पर भी उनकी
विशिष्ट शैली एवं भावनाओं का सम्प्रेषण उन्हें पाठकों के बीच अत्यंत लोकप्रिय स्थान दिलाता है। यथा इस संग्रह में समाहित प्रेम का बीज , वजूद का पेड़ ,
तुम्हे ही गा रहा हूं , सार्थक आदि सुंदर कविताएं
हैं वहीं अत्यंत प्रेमभाव से प्रणय निवेदन
करती हुई एक कविता है "तुम्हें सौपना चाहती हूं " तो वहीं प्रणय कविता की कड़ी में एक और कविता
"नया नाम" भी विशिष्ट है ।
रिश्तों से गहराई तक जुड़ा कवि मन पिता पर अपने उद्गारव्यक्त करता है अपनी
कविता "पिता" एवं "आपके होने का एहसास" में तो भावुक भावों को
समेटे हुए है कविता" सपने " जिसमें वे कहते हैं कि :
होंठों परबुदबुदाते हैं
गालों पर बनकर आंसू
ढलक ढलक आते हैं सपने
अपनी अनेकों कविताओं में रिश्तों की गर्माहट और सिसकियों को भी बखूबी सहेजा
है। तो प्रकृति एवं परिवेश को मूल में रखते हुए भी विभिन्न सुंदर रचनाओं की
प्रस्तुति दी है
अंत में विशेष उल्लेख के संग कविता “इंतजार” पर ध्यानाकृष्ट कर रहा हूं
इंतजार में
सदियां बीत गईं
मौसम बदले
कितने प्रकाश वर्ष आए और चले गए
इंतजार का तो एक पल ही
सदियों सा बीता
और
तुम फिर भी नहीं आए
पुस्तक समीक्षा में प्रयास करता हूँ की पाठक को पुस्तक के विषय में एक आम राय
दे सकूँ तथा विस्तार से वे स्वयं ही पुस्तक का पठन कर उसका आनंद लें। यूं तो प्रस्तुत कविता संग्रह की प्रत्येक कविता
उल्लेखनीय है एवं उस पर विस्तृत विमर्श एवं विवेचन किया जाना चाहिए हाल फिलहाल यह गुरुतर दायित्व
पाठकों पर
अतुल्य
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