Hargovind Puri Chayanit Kavitayen

 

समकाल की आवाज

हरगोविंद पुरी - चयनित कविताएं

द्वारा : हरगोविंद पुरी

विधा : काव्य

New World Publication द्वारा प्रकाशित

प्रथम संस्करण : 2024

मूल्य : 225

समीक्षा क्रमांक : 132




हरगोविंद पुरी जी एक जानेमाने साहित्यकार हैं जिनके विभिन्न एकल कविता संग्रह अभी तक प्रकाशित हो चुके हैं यथा 2021 में पिता की नींद 2022 में “उदास आंखों के सपने” “कविता बोलती है” “मां का आंचल”, साथ-साथ संयुक्त कविता संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं जैसे “लव इज़ लाइफ” और युद्ध पर आधारित कविताओं का संयुक्त कविता संग्रह “दो महाभारत”।  आगे बेटी और पिता के रिश्तों के ऊपर जहां एक कविता संग्रह उनके शीघ्र प्रकाशित होने वाला है वही उनकी अन्य कविताओं में जैसा कि हमने देखा उनका जमीन से जुड़े हुए होनेकी बात की तस्दीक करता सिर्फ किसानों पर लिखी गई कविताओं का संग्रह अभी प्रकाशनाधीन है। समय समय पर उनकी रचनाएं विभिन्न स्थापित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं एवं होती रहती हैं।

उनकी रचनाएं सरल सहज एवं बोधगम्य हैं कही किसी भी प्रकार की क्लिष्टता  नहीं है, न ही शब्दों में, न ही विचारों में और यह बात उनके वकालत के पेशे से सर्वथा विपरीत ही कही जाएगी ।

समकाल की कविता क्या है एवं इसकी क्या विशेषताएं हैं आम कविता से यह किस तरह से भिन्न है इन विषयों पर बात करने से पहले बात करते हैं हरगोविंद जी की चुनिंदा कविताओं की जो उनकी प्रस्तुत  पुस्तक में सँजोई गई हैं। उनके द्वारा रचित अत्यंत श्रेष्ट कविताओं का संग्रह है जिसमें हमें बेहद सरल भाषा, सामान्य भाव एवं भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। संवेदनशीलता रचनाओं में स्पष्ट दिखलाई पड़ती है। कविताएँ  सरल एवं  भावात्मक हैं जिनमें उपमाएं अथवा विशेषण सूचक शब्दावली का प्रयोग आमतौर पर नज़र नहीं आता I

उनकी कविता की भावनाएं एक आम आदमी के मन की बात ही हैं। जो अपने पूर्ण वास्तविक रूप में सामने उपस्थित हुई है बिना किसी आडंबर अथवा सजावट के। उनकी कविता महज माध्यम है  विचारों के प्रवाह को शब्द रूप में लाकर सबके सामने रखने का, इसी कारण   पाठक से बेहतर संवाद स्थापित होता है। वे सहज ही उनसे जुड़ते हैं एवं उनका जुड़ाव इस लिए भी अधिक नज़दीकी होता है क्यूंकि उनकी कविताओं के विषय आम आदमी के जीवन के रोजमर्रा के मुद्दे ही हैं।

उनकी प्रस्तुत संग्रह में कविताओं को समझने से पहले समकालीन कविता को समझना  अनिवार्य है। समकालीन कविता से तात्पर्य उन विचारों, भावनाओं, और मुद्दों से है जो वर्तमान समय में प्रचलित हैं और जो समाज के वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक परिस्थितियों को प्रतिबिंबित करते हैं। यह मुख्यतः साहित्य, कला, संगीत जैसी विधाओं में स्पष्टतः प्रकट होती है एवं समकालीन होंने का मुख्य प्रभाव यही होता है की यह समय के साथ साथ बदलती है क्योंकि समय के सात साथ समाज की प्राथमिकताएं भी बदलती  जाती हैं। समकालीन कविता के माध्यम से कवि अपने  समय की आकांक्षाओं, मुशकिलात और परिस्थितियों एवं परस्पर संवेदनाओं को आम जन के सामने उजागर करने का प्रयास करते हैं। इस आवाज को गंभीरता से लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि वास्तव में तो यही वर्तमान का दर्पण है और भविष्य की दिशा एवं दशा को भी प्रभावित करने की सामर्थ्य रखती है।

सामान्य शब्दों में तथा व्याकरणीय क्लिष्टता से बचते हुए कहा जा सकता है कि समकालीन कविता, कविता का वह अंग है जो वर्तमान में लिखी जा रही हो, आधुनिक युग की विशेषताओं, विचारों, और सामाजिक तथा भावनात्मक परिवेश को प्रदर्शित करती हो तथा किसी प्राचीन प्रभाव से अलग हटकर  नए रूपों और शैलियों का प्रयोग करती है, फलस्वरूप अधिक  प्रयोगात्मक एवं उदार होती है।  

समकालीन कविता अक्सर समकालीन मुद्दों जैसे कि राजनीति, लिंग, जाति, पर्यावरण, आदि को अपने में समाहित करती है एवं इसकी विषय-वस्तु सीमित न होकर अत्यंत विस्तृत होती है, जिसमें सामाजिक मुद्दे, निजी अनुभव, और दार्शनिक चिंतन शामिल होते हैं और पारंपरिक रूपों से भिन्न नए प्रयोग किए जाते हैं, जैसे मुक्त छंद का प्रयोग, शब्दों के नए संयोजन के संग संग आधुनिक तकनीकी और सांस्कृतिक परिवर्तनों का प्रभाव अक्सर समकालीन कविता में देखा जा सकता है, जिससे यह अधिक प्रासंगिक और समझने में सहज होती है।

सहज ही यह प्रश्न कौंधता है की आखिरकार ऐसी क्या आवश्यकताएं थी जिनके चलते समकालीन कविता के लिखे जाने की आवश्यकता आन पड़ी। यह कहना समीचीन होगा की समकालीन कविता  न केवल कलात्मक अभिव्यक्ति प्रदान करती  है, बल्कि यह समाज के साथ एक जीवंत संवाद स्थापित करती  है एवं सबसे खास यह की वर्तमान के मुद्दों पर प्रकाश डालती है उन्हें पुरजोर तरीके से सबके सामने ला खड़ा करती है तथा इसकी संरचना, विषय, और अभिव्यक्ति इसे पारंपरिक   कविता से अलग करते हैं।

समकालीन कविता अक्सर नए रूप एवं शैली का प्रयोग करती व्यक्तिगत अनुभवों और सामाजिक मुद्दों के बीच संबंधों की खोज करती व्यक्तिगत अनुभवों और सामाजिक मुद्दों के बीच संबंधों की खोज करती एवं  व्यक्तिगत अनुभवों और सामाजिक मुद्दों के बीच संबंधों की खोज करती दिखती है वहीं   पारंपरिक छंद विन्यास और तुकांत से हटकर मुक्त छंद का उपयोग करती है, पारंपरिक कविता अक्सर निश्चित छंद और रचना का पालन करती है, जैसे कि शायरी, दोहे, और गज़ल।

समकालीन कविता विशेषतः छंद के मामले में अधिक निरंतरता और स्वतंत्रता को प्राथमिकता देती है, और इसकी रचना और छंद में नए तथा अनुप्रयोगात्मक आयामों का उपयोग करती है।

समकालीन कविता को विषय की सीमा अथवा दायरे में बांधना कतई असंभव ही है इसमें विषय की एक अंतहीन सीमा होती है  जिसमें व्यक्तिगत अनुभवों से लेकर वैश्विक मुद्दे तक किसी भी विषय पर लिखा जा सकता है, समकालीन कविता उन समसामयिक मुद्दों और चुनौतियों को उठाती है जो वर्तमान समाज में विद्यमान हैं। देखने में यह भी आता है की समकालीन कविता अमूमन संक्षिप्त और सरल है तथा इसमें  क्लिष्ट शब्दों के स्थान पर गंभीर अर्थ को भी सरल शब्दों में व्यक्त कर दिया जाता है। समकालीन कविता अक्सर आधुनिक भाषा और शैलियों का उपयोग करती है जबकी पारंपरिक कविता में भाषा क्लिष्ट होती है।  

एक प्रश्न यह भी उठता है की क्या अभी समकालीन कविता का शैशव काल है या इसका प्रयोग का दौर है तो कहा जा सकता है कि  समकालीन कविता को  प्रयोग स्तर पर कहना पूर्णतः सच तो नहीं होगा किन्तु यह अवश्य सच है कि समकालीन कविता में प्रयोगात्मकता एक मुख्य विशेषता है, तथा समकालीन कविता अपनी अभिव्यक्ति, शैली और विषयवस्तु में विभिन्न प्रकार के प्रयोग करती है, जो इसे परंपरवादी या कहें कि बीते कल की अथवा अतीत की कविता से अलग करते हैं। यह प्रयोगशीलता समकालीन कला का एक अभिन्न हिस्सा है।

 समकालीन कविता की विविधता एवं व्यापकता  इसे एक समृद्ध किन्तु भिन्न साहित्यिक विधा  बनाती है, तथा इसकी प्रयोगधर्मिता को इसका एक आवश्यक आयाम माना जाना उपयुक्त होगा। बाज दफा आधुनिक कविता एवं समकालीन कविता को समान ही मान लिया जाता है किन्तु अपने प्रकारांतर के चलते दोनों में ही कुछ भेद हैं यथा आधुनिक कविता एक ऐतिहासिक और साहित्यिक अवधि की ओर इंगित करती है जो विशेष रूप से 20वीं सदि के प्रथम अर्धशतक में सक्रिय थी, जबकि समकालीन कविता वर्तमान समय की कविता को संदर्भित करती है और उसमें वर्तमान के मुद्दे एवं परिवेश का भरपूर प्रभाव देखने में आता है। समकालीन कविता विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक क्रांतियों के माध्यम से समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत हो सकती है। यह विभिन्न माध्यमों के माध्यम से विचारों को प्रस्तुत करके समाज में सकारात्मक परिवर्तनों को प्रोत्साहित कर सकती है। समकालीन कविताओं के लेखन हेतु  उनका विशेष आग्रह लक्षित होता है I

अब पुनः लौट चलते हैं पुरी जी के काव्य संग्रह की विवेचना की ओर, जहां मानवता को खूबसूरत संदेश बेहद सरल शब्दों में देती हुई कविता “युद्ध और प्रेम” जहां एक ओर युद्ध की विभीषिका को चिन्हित करती है वहीं प्रेम की महत्ता का गुणगान भी है। वे कहते हैं की 

तानाशाह नतीजा खोजना चाहते हैं युद्ध में क्योंकि

वह हमेशा डरा हुआ होता है और

डरा हुआ तानाशाह कब चाहता है

कि मनुष्य का हो भला 

वे जमीन से किस कदर जुड़े हुए है इस का परिचय देती है उनकी एक और सुंदर रचना “उन लोगों का साथ रहा सदा” सरलता एवं सादगी की अत्यंत सरल सादगी पूर्ण प्रस्तुति ।

वर्तमान में युद्ध की विभीषिकाओं ने कवि हृदय को कहीं गहरे तक छुआ है यही कारण है की उनकी एकाधिक रचनाएं युद्ध के विषय में ही लिखी गई है। संग्रह की कविता “आठ साल के बच्चे के प्रश्न” में अत्यंत मासूमियत से एक नादान बालक के प्रश्नों के माध्यम से बेहद जटिल एवं गंभीर विषय सामने रखा गया है निम्न चंद पंक्तियां उनकी बात कहती हैं :

एक बच्चा

जब युद्ध और तबाही के देखता है दृश्य

और पूछता है 

यह आपस में बात क्यों नहीं करते

मैने कहा

बात नहीं करते

इसी लिए तो होते हैं युद्ध।

वे परिवेश से किस कदर जुडे हुए हैं यह उनकी लगभग प्रत्येक कविता में नजर  आता है फिर वह "जिद" हो जिसमें पत्नी बच्चे की बात है पारिवारिक खुशियों की बात है या फिर हो "मेरा शहर"। तो समाज के आखरी जोन पर खड़े आदिवासी समुदाय पर भी उनकी नजर जाति है वे बात करते हैं उनके रीति रिवाज की उनके रहन सहन की जिस से उनका जुड़ाव सहज ही जाहिर हो जाता है।

इसी संग्रह से एक कविता जिसे अवश्य पढ़ा जाना चाहिए एवं बार बार पढ़ा जाना चाहिए वह है"एक स्त्री का प्रेम करना "जहां वे कहते हैं कि : 

क्या सारी सामाजिक मर्यादाएं 

एक स्त्री के प्रेम करने से टूटती हैं 

स्त्रियां फिर भी प्रेम करती हैं

तो तोड़ती है मर्यादाएं

जमीन से जुड़े हुए होने का एक और कविता प्रमाण देती है कविता “ जिनका कभी नहीं हुआ इतवार”  उन किसानों की मुश्किलों का उनकी दिनचर्या का और उनके दर्द का पूरा लेखा जोखा चंद शब्दो में समेट दिया है वे कहते हैं:

ये वही लोग हैं जो समझते हैं

मूक पशुओं का दुख 

जानते हैं पशु पक्षियों की बोली 

और

अपनी ही जमीन के कागजात दुरुस्त करने के लिए 

खड़े रहते हैं पटवारी के दरवाजे

व्यवस्था पर तीखे तंज करने से भी वे चूके नही है इसका बहुत अच्छा उदाहरण उनकी कविता "समय की नब्ज पर" में देखने को मिलता है जहां वे लिखते हैं की:

सब देखता है कवि

क्योंकि समय की नब्ज पर होता है

हाथ कवि का 

अत्यंत भावपूर्ण रचना है “ कुरूप स्त्री” और “पिता होना” तो वहीं नारी विमर्श केंद्रित कविता “स्त्री की इच्छा” बहुत कुछ कह कर भी बहुत कुछ कहने की गुंजाइश पीछे छोड़ जाती  है और दे जाती  है अनेकोन्नेक विचार।

विकास के दौर में खोता हुआ  पर्यावरण, उसपर चिंता दिखलाती है कविता “स्मृति”

प्रकृति, रिश्ते, पर्यावरण, युद्ध की विभीषिका  से इतर प्रेम एवम प्रेम के वे भाव भी जो उन्होंने जीवन के विभिन्न आयामों में सूक्ष्मता से देखने के पश्चात पाए है  विशेष हैं तथा उनकी पारखी कवि दृष्टि का प्रमाण हैं।

अतुल्य

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