Kuchh Is Tarah By Poonam Ahmed
कुछ
इस तरह
“कुछ इस
तरह”
विधा :
कहानी
द्वारा
पूनम अहमद
नोशन प्रेस
द्वारा प्रकाशित
पृष्ट
संख्या :
75 (प्रथम संस्करण)
मूल्य :150.00
समीक्षा क्रमांक : 119
जहां एक आम इंसान की सोच समाप्त हो जाती है वहीं से पूनम जी की सोच प्रारंभ होती है। जहां एवं जिस विषय पर कुछ भी लिखना नामुमकिन समझ आम इंसान आगे बढ़ जाता है उसी वस्तु अथवा विषय को वे अपने कथानक का अभिन्न अंग बना कर उस पर एक श्रेष्ठ कृति सृजित कर प्रस्तुत कर देती हैं। प्रस्तुत पुस्तक उनकी लेखनी से निकली एक और अनुपम खूबसूरत कृति है, जो की उनकी चंद श्रेष्ठ कहानियों का संग्रह है जिस में उनकी प्रत्येक कहानी उनकी सृजन की असीमित परिकल्पनाओं की उड़ान की व्यापकता एवं अथाह गहराई युक्त सोच का परिचय देती है।
प्रस्तुत कहानी संग्रह “कुछ इस तरह” में पूनम जी द्वारा रचित 13 कहानियां प्रस्तुत की गयी हैं, तथा संग्रह के आद्योपांत पठन के पश्चात स्वस्थ मनोरंजन एवं वैचारिक संतुष्ठी की प्राप्ति होती है। किसी विशिष्ठ विषय पर केन्द्रित न होकर कहानियों के विषय आम जन के बीच की आम बातें एवं समकालीन घटनाएं ही हैं अतः पाठक उनसे शीघ्र ही सम्बद्ध हो कहानियों का सम्पूर्ण आनंद प्राप्त करते हैं।
पूनम
जी आज साहित्य जगत में उस मुकाम पर या पहुंची हैं जहाँ उनका परिचय किसी औपचारिकता
की दरकार नहीं रखता एवं उनका सृजन ही उनका परिचय प्रस्तुत कर देने में पूर्ण सक्षम
है। साहित्य जगत में प्रमुखता से एवं अत्यंत आदर से लिया जाने वाला नाम है।
विभिन्न
पत्र पत्रिकाओं में उनकी कहानियाँ अक्सर प्रकाशित होती रहती हैं, वहीं गौर तलब है
की आम तौर पर जानी जाने वाली हर प्रसिद्द पुस्तक, पत्रिका ने उनकी रचनाएं प्रकाशित करी हैं। साहित्य जगत को अभी भी उनसे असीमित अपेक्षाएं हैं क्यूंकी अपनी
विशिष्ठ शैली के चलते उन्होंने आम पाठक के दिल में स्थान बनाया है उनकी भाषा एवं उनके
भाव उनकी कहानियों में, लेखन
शैली में बलात प्रविष्ट नहीं कराए जाते अपितु वे तो वहाँ कथानक के सहज एवं सरल प्रवाह रूप में है, पात्र के अनुकूल वाक्य सृजित हो
जाते है जो बहुत सहज प्रतीत होते हैं।
उनकी
कहानियाँ समाज में वे जो कुछ भी देखती हैं एवं अनुभव करती हैं उसे साहित्यिक भाषा
में बेशक कहानी कह दिया जाए लेकिन वास्तविकता यह है की वह तो तजुर्बे एवं सूक्ष्म
अवलोकन से उपजे कुछ ऐसे पल होते है जिन्हें उन्होनें विस्तार से शब्दों में अभिव्यक्त कर दिया है। तभी तो
किशोर वय के बच्चों से संबंधित विषय हो
अथवा सास बहु की बाते, उम्र दराज व्यक्तियों की समस्या हो अथवा भोले मासूम बच्चों
की मानसिकता से जुड़ी बातें, उनकी प्रस्तुति अत्यंत सहज है एवं कहीं भी अचंभित नहीं
करती बल्कि सहज ही कथानक में पाठक को
समाविष्ट कर लेती है।
उन्हें
अपनी कहानी लिखने हेतु किसी विशेष विषय की तलाश कभी रही हो ऐसा भी प्रतीत नहीं
होता,वे किसी भी अनुभव को
या छोटी सी बात को भी कहानी में बदलने का
हुनर जानती हैं।
जीवन की आप धापी में या व्यर्थ ही ओढ़ ली गई व्यस्तता
की चादर में हम अपने कितने अरमानों को कुचल कर आगे बढ़ रहे है, बड़ी ही मासूमियत से बयां करती हुई कहानी है “दिल चाहता है”, सार वही है की बड़ी बड़ी खुशियां हैं
छोटो छोटी बातों में जिन्हें हम व्यर्थ समझ कर दरकिनार कर देते हैं ।
तो “एक बार फिर” में पहले प्यार
को अपना न बना पाने की कसक और जीवन साथी के संग जीवन जीने के लिए किए गए समझौतों के बीच पहले
प्यार से मुलाकात और पुनः जीवन को नए सिरे से जीवन साथी के संग जीने की तमन्ना या और
एक नई शुरुआत की सोच को बेहद सहज भाव से
दर्शाया गया है ।
बुजुर्ग अवस्था और एकाकीपन दोनो ही अपने आप में गंभीर समस्याएं हैं यदि
उन्हें बतौर समस्या लिया जाए। किंतु प्रस्तुत कहानी ऐसी ही बुजुर्ग किंतु जिंदादिल
महिलाओं की है उनके प्रति समाज की सोच और बदलती हुई सोच को प्रस्तुत करती है।
तो “नीता का पति” एक ऐसी कहानी है जो अमूमन हर उस माता
पिता के दिल का दर्द बयां कर देती है जिनके बच्चे विदेश में है और जब कभी स्वदेश आ
भी रहे हैं तो माता पिता भले ही वे पति या पत्नी किसी के भी हों, उन्हें बराबरी से
समय एवम सम्मान न देना जो कहीं न कहीं आहत करता है। कहानी का मर्म हर उस युवा को समझना चाहिए जो मां
बाप के दिल के जज्बातों को उनके बेटे से जुड़े
हुए अरमानों को समझते या ना समझने का ढोंग करते हैं।
“ताजी हवा का झोंका” जातिवाद की
कट्टरपंथी सोच एवम परंपराओं की डोर तथा सामाजिक मापदंडों से बंधे हुए, पिता एवं आधुनिक किंतु मर्यादित
विचारधारा वाले पुत्र के बीच के वैचारिक मतभेद को
दर्शाती है जहां पर विचारधारा में सुखांत
की ओर ले जाते परिवर्तन बेहद सहजता से रचे हैं। सुंदर एवं रोचक कथानक। पुत्र का
आधुनिक विचारधारा के साथ साथ पिता को सम्पूर्ण सम्मान
देना पढ़ कर अच्छा लगा ।
वही "सोलहवे साल की कारगुजारियां" शीर्षक आकर्षित करता है किंतु
वैसा कुछ भी नहीं जो शीर्षक पढ़ कर अंदाजा लगाया जाता है बल्कि यह तो सोलहवे साल
के उम्र के सबसे नाजुक दौर से गुजर रहे बच्चों के माता पिता को बातों बातों में
बेहतरीन मशविरे दे जाती है वह भी बगैर किसी बोझिलता एवम उपदेशात्मक शैली के।
इस कहानी संग्रह की
शीर्षक कहानी "कुछ इस तरह " जीवन जीने के संदेश, जीवन के
रहते और जाने के बाद भी दे जाती है।
जीवन के हर पल को जीना और
कुछ ऐसा कर जाना की जाने के बाद सब याद करे यह संदेश कथानक में पिरोया गया है वहीं विदेश
यात्रा व दर्शनीय स्थलों का भ्रमण कथानक को रोचक बना गया। विषय के संदर्भ में
कथानक में कुछ अंश मार्मिकता का भी आ जाना स्वाभाविक ही है किंतु बोझिलता नहीं है।
“घुटन” एक मध्यम
वर्गीय परिवार की कहानी है जहां मांसिक्ताओं की भिन्नता एवं कुछ हद तक टकराव दर्शाया
है। जरूरी तो नहीं हर बात जो औरों की नजर में बेहतर हो भले ही वह उनके निहित
स्वार्थवश हो और वह हमें भी वैसी ही दिखे या प्रतीत हो जैसी ली वे अनुभव करते हैं।
मानसिक स्थिति, अपेक्षाएं एवम उपलब्धताएं बाज
दफा हमें कुछ भिन्न अवस्था में खड़ा कर देती हैं। कुछ ऐसी ही मानसिक अवस्था को
दर्शाती है घुटन जहां घर के सभी सदस्यों को सिर्फ नायिका की प्रति माह आने वाली
मोटी तनख्वाह दिखती है वहीं नायिका अपने स्वाभिमान पर लगती चोट, एवम सम्मान में कमी को बर्दाश्त नहीं कर पाती।
कहानी रेप के बाद एक गंभीर
विषय के अनदेखे पहलू को उजागर करती है। रेप, नारी के शरीर के साथ साथ उसके मन
मस्तिष्क के प्रति भी किया गया गंभीरतम अपराध है यह तो सर्व विदित एवम मान्य है ही
किंतु किसी भावावेश में पुरुष, बहक कर
जब ऐसा जघन्य कृत्य कर जाता है एवं उस जुनून
के उतरने के बाद उसकी क्या मानसिक दशा होती है, इस संवेदनशील, गंभीर मुद्दे को बेहद साफ सुथरे एवम संतुलित अंदाज
में उठाया है एवम निश्चय ही प्रबुद्ध वर्ग को एक अलग दृष्टिकोण से विचार करने का
आग्रह प्रस्तुत किया है।
वही पति पत्नी के नाजुक
रिश्ते को और सुंदर बनाने एवम बनाए रखने के लिए मशविरा देती हुई है “फ़ोम का गद्दा”।
इस कहानी से निश्चय ही नवयुगल को कुछ सीखने मिल सकता है।
एक इल्तज़ा पूनम जी से जरूर
करना चाहूंगा की कहानियां तो बहुत ही सुंदर है बस शीर्षक एक पुनर्वलोकन की मांग
करते हैं क्योंकि शीर्षक में अभी सुधार की गुंजाइश प्रतीत होती है एवं उन्हें और आकर्षक बनाया जा सकता है।
जिंदगी जीने का बेहतरीन
फलसफा बतलाती है “मैं जलती हूँ तुमसे” संदेश भी अत्यंत सुंदर अर्थपूर्ण एवं जीवनोपयोगी
है “take life as it comes”
“ऑर्डर वाली बहु” आधुनिक
सुविधाओं का लाभ उठाती व उस के माध्यम से सुखी जीवन का संदेश देती है । वही सास
बहू के बीच के प्यार भरें रिश्ते को भी बहुत अच्छा लिखा गया है और एक अच्छी सोच भी
अंत में दी गई है जहां वे कहती हैं की घरों में ज्यादातर कलह का कारण सास की
पुरानी सोच ही है बेटे की शादी के बाद बहु से ज्यादा सास को बदलने की जरूरत है।
तो वहीं एक माँ के
जज्बातों को खूबसूरती से अभिव्यक्त करती है “अब समझी हूं”।
अन्य सभी कहानियाँ भी
बेजोड़ हैं एव लेखिका की सामाजिक विषयों एवं आस पास घटित छोटी छोटी एवं हमारे
द्वारा अनदेखी की गई बातों के प्रति तीक्ष्ण दृष्टि, गहन सोच एवं गंभीर विचारण का परिचय
देती है।
शुभकमानों सहित
अतुल्य
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