Itna Bhi Mushkil Nahi By Sanjeev Kumar Gangwar
इतना भी मुश्किल नहीं
द्वारा: संजीव कुमार गंगवार
बोधरस प्रकाशन द्वारा प्रकाशित
मूल्य : 350
पृष्ट : 221
समीक्षा क्रमांक : 121
संजीव गंगवार जी साहित्य की अमूमन
प्रत्येक विधा में सक्रिय हैं एवं सतत सशक्त लेखन हेतु बखूबी पहचाने जाते है। प्रख्यात
फिल्मकार गुरुदत्त साहब पर लिखी उनकी पुस्तक “कागज के फूल” ने उनकी ख्याति मे सुनहरे
सफ़े जोड़े थे हालांकि उनकी अन्य पुस्तकें भी मैंने पढ़ी हैं एवं आपके लिए उनकी
समीक्षा भी प्रस्तुत की है जो की समान रूप से सराहनीय थीं।
उनकी प्रस्तुत पुस्तक “इतना भी मुश्किल
नहीं” सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने के भाव और सफलता की दिशा में अन्य कारकों पर
विस्तार से प्रकाश डालती है।
यूं तो हिन्दी में प्रेरणादायी साहित्य एवं वक्ताओं की प्रचुरता है किन्तु अधिकांश को पढ़ने एवं सुनने के पश्चात मेरा यह अनुभव रहा है की पाठक अथवा श्रोता कितनी आत्मसात कर पा रहा है यह सोचे समझे वगैर ही एक ही बात को कई तरह से घुमा घुमा कर कहते जाना न तो मददगार होता है न ही प्रेरणादायी, फिर वह लिखित मोटिवेशन साहित्य हो अथवा वक्ताओं के तथाकथित प्रेरणादायी व्याख्यान।
हालांकि मोटिवेशनल साहित्य हमें जीवन में उत्साहित करने और सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। विभिन्न रचनाएँ और कहानियाँ आपको मोटिवेट करके नयी ऊचाईयों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकती हैं। मोटिवेशनल साहित्य व्यक्ति में सकारात्मक बदलाव लाने का कारगर तरीका हो सकता यदि सही दिशा में उचित तरीके से समझाया जाए तो पुस्तकें और मोटिवेशनल स्पीकर्स का हमारे कैरियर में भी बड़ा हाथ हो सकता है। इनका योगदान व्यक्ति को नए दृष्टिकोण, सोचने की तरीके, और कार्रवाई में प्रेरित करने में मदद कर सकता है।
मोटिवेशनल
स्पीकर्स और पुस्तकें जहां आपको एक सकारात्मक और संवेदनशील माहौल में डाल सकती हैं
वहीं आप अपने कैरियर के प्रति प्रेरित हो सकते हैं और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति
के लिए उत्साहित हो सकते हैं। प्रस्तुत पुस्तक “इतना भी मुश्किल नहीं” उन्हीं
प्रेरणादायी आदतों, सोच के तरीके इत्यादि पर प्रकाश डालती है, किन्तु उनका तरीका
भिन्न है समझाने का भी एवं उसे प्रस्तुत करने का भी। पुस्तक को अत्यंत गहन रूप से पढ़ने के पश्चात जो
मैं समझ सका वह यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
पुस्तक में
लेखक आपको एक नए दृष्टिकोण से सोचने के विषय में बतलाते हैं एवं आप के अंदर अपने
कौशल को अपने सहयोगियों के, अपनी टीम के कौशल को
विकसित करने, अपनी प्रतिभा को
पहचानने की ओर प्रेरित करते हुए अपने
लक्ष्य के प्रति समर्पण भाव जागृत करते हैं
साथ ही वे आपको बतलाते हैं की कैसे आप अपनी प्रगति की स्वयम समीक्षा भी
करते हुए स्वयम में सुधार ल सकते हैं।
वे आपको टीम वर्क, नेतृत्व क्षमता का विकास जैसे विषयों का भी ज्ञान देते हैं जो निश्चय ही आपके कैरियर में उन्नति के साथ साथ साथियों संग बेहतर संबंध स्थापित करने में योग दान देता है। वे बतलाते हैं की कैसे विजेता होने की अवधारणा विजयी बनाती है क्यूंकि यह एक महत्वपूर्ण एवं प्रेरणादायक अवधारणा है जिस से तात्पर्य लक्ष्य की दिशा में सकारात्मक सोच एवं आत्मविश्वास के साथ अग्रसर होना है।
वहीं यह अवधारणा हमें यह भी सीख देती
है की सोचने का तरीका एवं आत्मविश्वास हमारी प्रगति में कितना अहम है। जब हम अपने क्षमताओं, संघर्षों,
और सफलता की कठिनाईयों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखते हैं,
तो हम आत्म-सुधार, समर्पण, और मेहनत के माध्यम से अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रेरित होते
हैं। व्यक्ति जब खुद को विजेता मानता है और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए
संकल्पित होता है, तो उसकी कड़ी मेहनत और समर्पण से ही उसे
सफलता मिलती है।
उक्त अवधारणा को अपनाकर हम अपनी
दिनचर्या में सकारात्मकता और उत्साह बनाए रख सकते हैं, जिससे हम अपने
लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में उत्तरोत्तर अग्रसर होते रह सकते हैं। वहीं दृढ़ निश्चय किये बिना कुछ हासिल
करने के विषय में सोचना भी व्यर्थ ही होगा। दृढ़ निश्चय बिना किसी भी उच्च
स्थान को हासिल करना असंभव भले ही न हो, मुश्किल तो है ही। मन में स्थिर और प्रतिबद्ध निश्चय के बिना कोई भी
महत्वपूर्ण लक्ष्य प्राप्त करना जीवन में उपलब्ध संभावनाओं को कम कर सकता है।
दृढ़ निश्चय के साथ किया गया कार्य
व्यक्ति को संघर्षों और कठिनाईयों का सामना करने की क्षमता प्रदान करता है। यह उसे
उत्साहित करता है, और जब समस्याएं
उत्पन्न होती हैं, तो वह उन्हें हल करने के लिए अपने लक्ष्य
की प्राप्ति के प्रति पुनः एवं पुनः प्रतिबद्ध रहता है। अतः जब भी किसी लक्ष्य को
प्राप्त करने के विषय में विचार करें सुनिश्चित कर लें की आप उसे प्राप्त कर लेने
हेतु पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं।
पुस्तक में बहुत ही स्पष्ट संदेश है कि सकारात्मक
सोच विजेता बनने की ओर पहला प्रयास है। सकारात्मक सोच जीवन को सकारात्मक दिशा में
मोड सकता है वहीं जीवन में लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में निगेटिविटी को दूर रखते
हुए नए शिखर हासिल करने में सहायक होता है।
यह व्यक्ति को समस्याओं का समाधान
प्राप्त करने की क्षमता एवं प्रयासों में सफलता प्राप्त करने की दिशा में
मार्गदर्शन प्रदान करती है। सकतात्मक सोच व्यक्ति का मनोबल बढ़ाते हुए उसे उत्साहित
करती है एवं विजय की ओर कदम बढ़ाते हैं।
वहीं निराश के ऊपर विजय प्राप्त करते
हुए आगे बढ़ना भी एक महत्वपूर्ण एवं प्रेरक सिद्धांत है। निराश को काभी भी स्वयम पर
हावी न होने दें क्यूंकि जीवन में हर किसी
को कभी न कभी समस्याएं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, और इस समय निराशा
का सामना करना स्वाभाविक हो सकता है। क्यूंकि हालांकि, जब हम
निराशील भावना से अपने आत्मविश्वास और संघर्ष क्षमता को गंवा देते हैं, तो हम अपने आत्म-समर्पण को कमजोर कर देते हैं।
सकारात्मक सोच एवं स्वयम पर नियंत्रण
रखना व्यक्ति को निराशा से बाहर रखते हुए आत्म सुधार में सहायक होता है। निराशा की
भावना से बचने के लिए हमें सकारात्मकता की दिशा में बढ़ना चाहिए और स्वयं पर
नियंत्रण बनाए रखना चाहिए
आपके व्यक्तित्व के विकास एवं आपकी
प्रगति में आस पास का माहौल,
मस्तिष्क की सोच एवं दृढ़ निश्चय महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। ये
ही वे तत्व हैं जो किसी व्यक्ति को लक्ष्य प्राप्ति में मदद करते हैं प्रेरणा का
स्त्रोत बनते हैं एवं जीवन में सफलता की उचाइयों पर पहुच देते हैं।
हमारे आस पास का माहौल, हमारे मस्तिष्क
की सोच की दिशा एवं दृढ़ संकल्प भी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। इन के साथ साथ उचित
मार्गदर्शन कठोर परिश्रम एवं लक्ष्य का चयन विजयी बनाते हैं।
उपरोक्त वर्णित विशेषताओं के अलावा भी विजयी
होने हेतु चंद अन्य बातें कबीले गौर होती है जैसे की नियमित आत्म समीक्षा, लक्ष्य
के प्रति सम्पूर्ण समर्पण, स्वस्थ जीवन शैली एवं उचित समय प्रबंधन तथा निरंतर आत्म
सुधार व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व में निश्चय ही महत्व भूमिका अदा करते हैं।
व्यक्तित्व विकास में जहां
उपरोक्त तत्व अनिवार्य होते हैं वहीं स्वयम को नकारात्मकता से बाहर रखना भी समान
रूप से महत्वपूर्ण तत्व है। नकारात्मकता से बाहर आने के लिए सकारात्मक सोच को
विकसित करना सकारात्मक विचारधारा वाले लोगों के साथ समय व्यतीत करना
नकारात्मकता को हराने की दिशा में पहला
कदम है। वहीं स्वयम को हेय न समझें अपने प्रयासों की, अपनी सफलताओं की
स्वयम ही तारीफ करें।
योग एवं ध्यान का निरंतर अभ्यास करते
हुए स्वस्थ आहार लें एवं नियमित व्यायाम के संग स्वास्थ्य का पूर्ण ध्यान रखें। नकारात्मकता
से बाहर आने के लिए समय एवं प्रयास बारम्बार आवश्यक हो सकते हैं उनसे परास्त न हों
क्यूंकि आपके प्रयास आपको सकारात्मक एवं सफल जीवन जीने की दिशा में सहयोग करते
हैं।
बाहरी मोटीवेशन जिसका तात्पर्य होता
है कि आपको किसी अन्य व्यक्ति,
उत्साहवर्धन, या बाहरी प्रेरणा की आवश्यकता है
ताकि आप किसी कार्रवाई में या लक्ष्य की प्राप्ति में सक्षम हों। वहाँ जबकि,
अंतर्निहित प्रेरणा (internal motivation) में
यह है कि आपकी प्रेरणा और ऊर्जा आपके आंतरिक स्वभाव और स्वार्थ के आधार पर होती है।
अतः बाहरी अंतःप्रेरणा के अलावा
अन्तः प्रेरणा भी उतनी ही अनिवार्य है अंतर्निहित प्रेरणा की अनिवार्यता एवं
आवश्यकता की नकारात्मक या बाहरी मोटिवेशन के साथ तुलना करना मुश्किल है, अंतर्निहित
प्रेरणा व्यक्ति को स्वतंत्रता और स्वाधीनता महसूस करने की अनुमति देती है,
क्योंकि यह व्यक्ति की
आत्म-उत्साह संबंधित एवं स्वार्थ की दिशा में निर्दिष्ट होती है।
साथ ही यह स्थायित्व एवं आत्म
शक्ति भी विकसित करती है जो व्यक्ति को जीवन में बाधाओं एवं संघर्षों से जूझने की
क्षमा विकसित करता है जो की उसकी आत्मिक प्रगति एवं अन्तः सुधार की दिशा में अपनी
प्रक्रिया को स्थापित करने में मददगार होता है एवं अंतर्निहित प्रेरणा व्यक्ति को
आंतरिक रूप से संतुलित करती है एवं उत्साह तथा ऊर्जा का विकास भी होता है जिससे वह
अपने मानवाधिकार, सामाजिक जीवन और
लक्ष्यों के बीच संतुलन तो बना ही लेता है तथा वह भी लंबे समय तक विद्यमान
रहता है।
तो यही सब अच्छी अच्छी बातें इस पुस्तक में भी संजीव जी ने बहुत ही
सुंदर तरीके से उदाहरण सहित संजोयी हैं । एक
लंबी सघन एवं कठोर परिश्रम युक्त साधना उनकी
अन्य रचनाओं की तरह ही इस पुस्तक में भी स्पष्ट दिखलाई देती है। मैंने तो पुस्तक आद्योपांत
पढ़ी एवं उसमें बहुत कुछ सीख भी मिली हाँ समीक्षा
अपने शब्दों में लिख कर प्रस्तुत कर रहा हूँ जिस में हो सकता है कुछेक मेरे विचार व
अनुभव भी अनाधिकार प्रवेश कर गए हों।
मोटीवेशन पर लिखित अनेकों पुस्तकें अंग्रेजी में मैंने पहले भी पढ़ी किन्तु हिन्दी
में जिस तरीके से सरल भाषा में संजीव जी ने अपनी बात एक आम आदमी को ध्यान में रख कर
लिखी है वह निश्चय ही सराहनीय है और वैसी ही सरलता से उसकी समीक्षा भी लिखी गई है।
अवश्य पढ़ने योग्य पुस्तक है इसमें कोई संदेह नहीं।
अतुल्य
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