Hamare Whats App Veer By Sanjeev Kumar Gangwar

 

हमारे WhatsApp वीर

विधा : व्यंग्य लेख

द्वारा : संजीव कुमार गंगवार

साहित्य संचय द्वारा प्रकाशित

प्रथम संस्करण :2019

पृष्ट संख्या : 160.00

मूल्य : 250.00

समीक्षा क्रमांक : 116




संचार जगत में मोबाइल अवतरण निःसंदेह एक संचार क्रांति थी। Calls की सुविधा के पश्चात व्हाट्सएप ही एक मात्र ऐसी सुविधा थी जिसने अनचाहे ही हर खासोआम को बेतरह व्यस्त कर दिया । संदेश के आदान प्रदान , जो की  इस एप का मूल मकसद थे वे तो कहीं बहुत पीछे ही छूट गए थे तथा आम जन ने उस का प्रयोग या दुरुपयोग जिस अंदाज में किया उन में से ही कुछ पर संजीव जी ने अपनी इस पुस्तक “हमारे WhatsApp वीर” में व्यंग्य शैली में विचार प्रस्तुत किये हैं साथ ही उन्होंने फेसबुक इंटरनेट ट्वीटर जैसे संचार माध्यमों पर भी विस्तृत विमर्श एवं व्यंग्य किया है तथा इन समस्त संचार माध्यमों के गुण दोषों पर चर्चा करते हुए इनके समाज पर पढ़ने वाले प्रभाव पर विमर्श प्रस्तुत करना उनकी समाज के प्रति गंभीर चिंता को दर्शाता है। विभिन्न तरह के मैसेज को उन्होंने, अलग अलग भागों में विभक्त कर उस पर व्यंग्य प्रस्तुत किया है।

सामान्य तौर पर व्हाट्स’एप का उपयोग व्यक्तिगत संवाद, फ़ाइल एवं इमेज  शेयरिंग, के लिए तो किया ही जाता है किन्तु बहुतायत में इसका प्रयोग  सामाजिक जुड़ाव के लिए किया जाता है, सामाजिक जुड़ाव के मायने अत्यंत व्यापक हैं तथा इस से संबंधित संदेशों को किसी भी दायरे में सीमित करना संभव नहीं है। व्यक्तिगत जानकारियों की गोपनीयता संबंधित चुनौतियाँ , फ़ेक न्यूज़ का शीघ्रता से फैलाव , गैर जरूरी संदेशों को फॉरवर्ड करने से संचार माध्यमों पर बढ़ता अनचाहा  दबाव आधुनिक संचार प्रणाली के लिए चिंता का विषय अवश्य ही है। अत्यंत त्वरित गति से मैसेजिंग, फोटो और वीडियो शेयर करने की सुविधा बाज दफा, लाभ से अधिक हानिकारक भी सिद्ध हो रही हैं। वहीं गोपनीयता संबंधित विषय और व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के संदर्भ में चुनौतियां भी शामिल हैं। WhatsApp का सर्वाधिक उपयोग संपर्क साधने, मैसेजिंग, वीडियो कॉल, और फोटो/वीडियो शेयरिंग के लिए होता है। यह सम्पर्क में बने रहने में मदद करता है किन्तु निजता और व्यक्तिगत डाटा की  सुरक्षा संबंधित समस्याएं भी उत्पन्न कर रहा है।

शुभप्रभात और Good night वाले संदेश अकारण ही भेजे जाते हैं जो यूं भी व्यर्थ एवं समय की बर्बादी से इतर कुछ भी नहीं हैं । एक स्तर तक यथा कभी प्रशासनिक , कभी व्यक्तिगत तो कभी व्यावसायिक दृष्टि से ऐसे संदेशों का भेजा जाना औपचारिकता का हिस्सा हो सकता है, किन्तु अति  सर्वत्र वर्जयते     का स्मरण भी उतना ही आवश्यक है।  व्यक्तिगत संबंधों के लिए ये संदेश  सम्बन्ध में सजीवता एवं रस बढ़ाने वाले हो सकते हैं किन्तु वहाँ भी बार-बार और अनचाहे संदेश संबंधों पर विपरीत प्रभाव ही डालते हैं।

किसी भी मेसेज़ को बार-बार बगैर किसी ओचित्य के एक duty समान समझ कर  फॉरवर्ड किया जाना मात्र समय की बर्बादी ही है जो दूसरों को भी असुविधा में डालता है। इससे एक ओर जहां व्यक्ति की गतिविधियों में विघ्न आता है वहीं प्रेषक के प्रति भी कटुता बढ़ती है। व्यर्थ मेसेज़ेस को अनगिनत फॉरवर्ड करना सामाजिक और आधिकारिक संबंधों को प्रभावित करता है, और यह एक अव्यवस्थित आदत ही बनाता जा रहा है जिसे अब तो अधिकांश  लोगों ने अत्यंत व्यवस्थित तरीके से एक आदत के रूप में अब अपने दैनिक जीवन में शुमार कर लिया है। भले ही वह संबंधित लोगों के लिए असुविधा कारक हो तथा  परेशानी का कारण बने। सावधानी से और सजग रहकर मैसेजों को फॉरवर्ड करना उचित है, ताकि एक सकारात्मक सही संदेश की अनिवार्यता बनी  रहे। समय की बर्बादी को देखते हुए यह देखना भी आवश्यक है की क्या आपके मैसेजेस वाकई  महत्वपूर्ण हैं एवं उनका संबंधित व्यक्ति को भेजा  जाना सार्थक है।

व्हाट्स एप तथा अन्य मैसेजिंग एप्लिकेशन्स  की स्वीकार्यता के विषय में अभि तक सब एक मत नहीं है। कुछ लोग सोशल मीडिया या चैट एप्लिकेशन्स का उपयोग करने में सुकून अनुभव करते हैं, उपयोग करके वे सकारात्मकता   अनुभव करते हैं, वहीं दूसरों को इससे परेशानी हो सकती है। कह सकते हैं की सहमति का स्तर व्यक्ति की व्यक्तिगत पसंद और उपयोग की आदतों पर निर्भर करता है।

एक और मुद्दा जो संजीव जी द्वारा इस संदर्भ में उठाया गया है वह जातिवाद एवं सांप्रदायिकता से संबंधित संदेशों को भेजने एवं बार बार फॉरवर्ड करने से संबंधित है। क्या इस तरह के मेसेज प्रतिबंधित कर दिये जाने चाहिए इस विषय पर काफी विवाद सुनने में आता रहता  है।  समाज में सहिष्णुता एवं  जातिवाद के प्रति सभी को समझदारी और भाईचारे का दृष्टिकोण रखना चाहिए। हो सकता है कि किसी मैसेज पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म की नीतियों पर आधारित हो, जो जातिवाद या धार्मिक घृणा को बढ़ावा देने से रोकने का प्रयास करती हैं। किन्तु व्यक्ति और समाज की भावनाओं का समर्थन करते हुए, सामाजिक मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर सुरक्षित और स्वास्थ्यपूर्ण दृष्टिकोण से मेसेज करना उचित है।  

कहा जाता है की व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों पर समय की बर्बादी होती है, जो उस हद तक सच है जहां तक इसे अत्यधिक और अनावश्यक रूप से इस्तेमाल नहीं  किया जाता । लोग अक्सर इन एप्लिकेशन्स  में समय बिता देते हैं जिससे उनकी प्रोडक्टिविटी पर असर पड़ता है। सही समय प्रबंधन से इस दोष को कम किया जा सकता है। समय की बर्बादी का दोष व्हाट्सएप या अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर डाल देना सर्वथा अनुचित ही है क्यूंकी यह सिर्फ एक तरफा तो नहीं है, बल्कि इसमें उपयोगकर्ताओं का अपना भी योगदान होता है। ।

आवश्यकता इस बात की है कि लोग समय का सही तरीके से प्रबंधन करें और इसे सकारात्मक रूप से उपयोग करें ताकि वे अपने लक्ष्यों और दैहिक-मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल कर सकें ।

पुस्तक का एक भाग हमारे आध्यात्मिक वीर (बाबाओं का मायाजाल) भी वर्तमान में **की तरह ऊग आए महान ज्ञानी बाबाओं के  विषय में भी है जो ज्ञान बांटने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं फिर वह tv हो सोशल मीडिया हो या फिर उनके तथाकथित आश्रम,  किन्तु यही बाबा जब गंभीर अपराधों में लिप्त पाए जाते हैं तब कुछ भक्तों का तो मोहभंग अवश्य होता  है किन्तु एक बड़ा वर्ग उनसे  सीख लिए वगैर पुनः किसी नए बाबा के चक्कर में फसने को तैयार बैठा होता है। विवेचनात्मक प्रस्तुति है तथा संबद्ध प्रत्येक बिन्दु पर गंभीर विचारण प्रस्तुत किया है, फिर वह बाबाओं की पनपती फसल की बात हो या चेलों की निरंतर उगती नई फसल या फिर, बाबाओं की समाज में आवश्यकता के विषय में ।

इसी प्रकार पुस्तक का अंतिम खंड हमारे राजनैतिक वीर है जो  राजनीति को व्यवसाय समझने वाले उन लोगों के विषय में है जिन्होंने देश सेवा के नाम पर , असीमित भ्रष्टाचार का लाइसेंस प्राप्त कर घर भरने की होड़ में देश एवं देश सेवा को तो  शुरुआत में ही भुला दिया। राजनीतिज्ञों के निरंतर गिरते स्तर पर तीक्ष्ण तंज है ऐसा ही एक खंड पर्यावरण से संबंधित है जहां पर्यावरण के गिरते स्तर तथा उस स्तर को और अधिक खराब करने में समाज का सक्रिय योगदान के विषय में बात की है तो बढ़ती जनसंख्या पर भी व्यंग्य शैली में ही विचार प्रस्तुत किये हैं।

शुभकामनाओं सहित,

अतुल्य            

 

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