Antrdhvni Satrange Geet By Arvind Kumarsambhav

 

अन्तर्ध्वनि

सतरंगे गीत

अन्तर्ध्वनि - सतरंगे गीत

विधा : काव्य संग्रह

द्वारा  : अरविन्द “कुमारसंभव”

सबलपुरा  प्रकाशन जयपुर द्वारा प्रकाशित

प्रथम संस्करण 2020

मूल्य : 350.00

पृष्ट   :128

समीक्षा क्रमांक :  118

  साहित्य जगत में बहुमुखी प्रतिभा के धनी, अरविन्द कुमारसंभव जी की प्रतिभा का लिखित दस्तावेज है, उनकी प्रस्तुत पुस्तक, काव्य संग्रह “अन्तर्ध्वनि – सतरंगे गीत”,  जिसे  काव्य संग्रह कहना उसे कहीं न कहीं सीमाओं में बांधने के समान प्रतीत होता है। काव्य की अमूमन प्रत्येक विधा में अरविन्द जी ने अपने कृतित्व प्रस्तुत किए हैं। इन सभी सुंदर कृतियों के  संकलन  को सहज ही सतरंगे गीतों का गुलदस्ता या फिर इंद्रधनुष कहना अतिशयोक्ति प्रतीत नहीं होता।

संग्रह का प्रारंभ भक्ति गीत से है जहां गणपती स्तुति “ ओम गण गणपतये गजानन” एवं शिव आराधना सहित अन्य देवताओं की स्तुति प्रस्तुत की गई है। आगे ठुमरी दादरा गीत गजल, भक्ति गीत, राग आधारित रचनाएं, प्रेम एवं विरह गीत  तथा क्षेत्रीय गीतों का सुंदर समागम है। काव्य के सौंदर्य,करुणा रस रौद्र रस प्रेम रस पर रचना है वहीं राग मधुवंती,मुल्तानी भीमपलासी में गई जा सकने वाली बंदिश भी प्रस्तुत कर दी है तथा अपनी बहुमुखी प्रतिभा से रूबरू होने का एक मौका पाठकों को दिया है। ठुमरी की एक झलक देखें:

“चलत धपक धमक बाँकत ताकत कान्हा

बजावत बंसी नचावत गोपी रचावत रासा”  

राग आधारित रचनाओं को भी प्रमुखता से स्थान दिया गया है वहीं हास्य रचना  भी उनकी कलम से अनछुई  नही रही  है। विरह गीत है तो प्रेम गीत को भी उचित स्थान मिला है, श्रृंगार रस से ओतप्रोत रचनाएं भी कवि हृदय के भावों का सुंदर बखान करती हैं।  

देश प्रेम की कविताएं हैं वहीं  मातृ भाषा की स्तुति भी उल्लेखनीय है। राजस्थानी एवं मारवाड़ी गीत भी कलमबद्ध किए गए हैं यथा

“ढोला थारा देस में मारू को कब सत्कार

मैं तो बैठयी सीं पी ले जो भरतार”

चंद रचनाएं ढूंढाड़ी ( विशुद्ध जयपुरी बोली), हरियाणवी, मारवाड़ी, वृज एवं मलयंचल से भी हैं साथ ही उर्दू एवं अंग्रेजी में भी सुंदर करती इस संग्रह में समाहित हैं।

बात करें खूबसूरती की तो पुस्तक के अंत में दिए गए मुक्तक का अंदाज ही निराला है। गजल का एहसाह भी है एवं मुक्तक की स्वतंत्रता भी या खुलापन भी ।

“नाकामी ए मुहब्बत ने इस कदर तोड़ा  है मुझे

कि उम्मीदों से दूर का वास्ता कर लिया है मैंने”।।

कहना उचित ही है की काव्य का संपूर्ण सुख एक पुस्तक में प्राप्त करना हो तो यह संग्रह पर्याप्त है। भाषाई क्लिष्टता भी नहीं है एवम अमूमन हर सफे  पर काव्य की एक नई विधा से परिचय होता जाता है। अधिकांश रचनाओं के पश्चात आध्यात्मिक संदेश की टिप्पणी भी दी गई हैं।  

पुस्तक खंड में विभाजित न करके समस्त रचनाओं से परिचय करने का अवसर पाठक को दिया है। किसी एक विधा पर अधिक केंद्रित किया हो  ऐसा भी प्रतीत नहीं होता।

रौद्र रस में भीगी कविता “उठो हिन्द के वीर प्रचंड” अपनी शैली एवं भाव से प्रभावित करती है वहीं वीर रस का भाव भी समाहित किये हुए है। चंद पंक्तियाँ उद्धृत कर रहा हूँ जो इस सुंदर अभिव्यक्ति की बानगी प्रस्तुत करने हेतु पर्याप्त होंगी।

“उत्थित जागृत हो खड़ा बन उद्भट पवन

निकाल आँख उड़ा शीश रोए ये चीनी यवन”

“दिखा दो बल अपना हे दुर्जेय दुसाध्य दुरदान्त  तरुण

हर पल देता तेज तुम्हें अग्नि देव और तेजस्वी अरुण”

वहीं हमारे सीमा प्रहरी, वीर जवानों को नमन करती वीर रस की कविता “भारत नर शार्दूल तुझे प्रणाम” अपने जोशीले भाव एवं अंदाज के कारण विशिष्ट है।  

प्रस्तुत काव्य संग्रह में, अपने नाम को सार्थक करते हुए संभवतः ही कोई विषय ऐसा हो जिस पर अरविन्द जी की कृति इस संग्रह में न मिले, हर भाव की एवं हर विषय पर कविता लिख कर गागर में सागर पाठकों को समर्पित की गई है,जो की पाठकों की काव्य की विभिन्न विधाओं में पाठकों की रुचि जागृत करने हेतु भी  सुंदर एवं सफल प्रयास है.

साहित्य के क्षेत्र में और भी ऐसे ही अनूठे प्रयोग करने एवं पाठकों को अपनी रचनाधर्मिता से परिचित करवाने हेतु शुभकामनाएं

अतुल्य   

  

 

 

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