Ujale Ki Or by Minni Mishra

 

उजाले की ओर

उजाले की ओर

विधा : लघुकथा

द्वारा: मिन्नी मिश्रा  

इसमाद प्रकाशन द्वारा प्रकाशित

मूल्य : Rs. 199

पृष्ट  :114

समीक्षा क्रमांक : 110


                                                           


  

 मिन्नी मिश्रा जी युवा साहित्यकारों की उस श्रेणी से आती हैं जो साहित्य जगत में अपने बहुमूल्य योगदान के चलते पाठक वर्ग एवं साहित्य जगत के पुरोधाओं के बीच में एक बेहतरीन मुकाम हासिल कर चुके हैं। सुपरिचित साहित्यकार हैं जिनकी विभिन्न रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं व प्रकाशित रचनाओं से भिन्न, अन्य संचार माध्यमों पर भी  वे निरंतर अपनी श्रेष्टतम  रचनाओं को पाठकों के सम्मुख रखती रहती हैं तथा पाठक उनसे बखूबी परिचित हैं ही एवं उनके श्रेष्ठ सृजनात्मक कार्यों हेतु साहित्य जगत में भी वे विभिन्न उच्च  श्रेणी के पुरुस्कारों से नवाजी जा चुकी हैं।  

उनका इसी वर्ष प्रकाशित 83 लघुकथाओं का संग्रह “उजाले की ओर”  चुनिंदा लघु कथाओं  का आकर्षक गुलदस्ता है जिसकी प्रत्येक कहानी उनकी प्रतिभा, समाज के एवं समाज से जुड़े विभिन्न विषयों एवं मुद्दो के प्रति उनकी सोच व चिंता को बखूबी दर्शाती है। 

      उनकी कहानियां अत्यंत सरल एवं  सादगी भरी है जिनमें यथोचित स्थानों पर पात्रों के द्वारा क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग बखूबी देखने को मिलता है जो पाठक की कथानक एवं पात्र से संबद्धता को निश्चय  ही बढ़ाता है। वहीं कथासंग्रह में मिन्नी जी ने कहानियों की विषयवस्तु के प्रति अपने  गहन एवं  गंभीर विचारण,  विषय के प्रति ईमानदार संवेदनाएं तथा सरलता का बखूबी परिचय प्रस्तुत किया है।

         हाल फिलहाल में लघुकथा के क्षेत्र में विभिन्न कथाकारो द्वारा श्रेष्ट कार्य किया गया है। जैसा की नाम से ही स्पष्ट हो जाता है की यह एक अनूठी विधा है जो संक्षिप्त, बिना किसी भूमिका के सीमित पात्र के संग अत्यंत संक्षिप्त रूप में आगे बढ़ती है एवं अपने मूल भाव को उसी थोड़े से भाग में पूर्णतः बयान कर देती है। कह सकते हैं की  लघुकथा एक छोटी कहानी है जो संवेदनशीलता, तार्किकता, संक्षिप्तता एवं सुसंगत भाषा के माध्यम से समाज के सम्मुख अपनी बात रखती है



          वर्तमान परिवेश एवं साहित्य जगत में उभरती युवा प्रतिभाओं के दृष्टिगत लघुकथा का भविष्य उज्ज्वल प्रतीत होता है। युवा साहित्यकारों में प्रतिबद्धता और साहित्य में नए दृष्टिकोण लाने की क्षमता देखी जा रही है। युवा लेखकों के द्वारा रचित लघुकथाएं अधिक विविध, तीखी, सटीक एवं  आधुनिक दृष्टिकोण प्रदान कर रहीं हैं, जो निश्चय ही समाज में नई विचारधारा संचार करने में सफल होगा। अस्तु, दो मत नहीं कि इस रूप में, लघुकथा का भविष्य सकारात्मक होने की संभावना है।

        किसी भी लघुकथा को प्रभावी होने हेतु आम तौर पर निम्न कारकों का होना अनिवार्य न सही आवश्यक अवश्य ही होता है यथा :

संवेदनशीलता: लघुकथा संवेदनशीलता के साथ लिखी जाना चाहिए, ताकि पाठक उसमें अपनापन, सरल भाव एवं जीवन के प्रति संदेश को अनुभव करे तथा उस से जुड़ाव महसूस करे।

संघर्ष,परिणाम एवं परिवर्तन: यदि लघुकथा में किसी समस्या या सांघर्षिक परिस्थिति को उजागर किया गया हो तो उसके परिणाम एवं फलस्वरूप परिवर्तनों का उल्लेख होन भी अनिवार्य होता है ताकि उसका समाज पर सकारात्मक प्रभाव हो।

संक्षिप्तता एवं  गहराई: लघुकथा का प्रथम तत्व ही उसकी संक्षिप्तता है उसे  संक्षेप और सुसंगत भाषा में लिखा जाना चाहिए, किन्तु उसके भाव में गहराई का होना भी उतना ही अनिवार्य है।

असामान्य परिस्थितियाँ: लघुकथा में असामान्य परिस्थितियों को उजागर करना ज्यादा प्रभावी होता है, क्योंकि यह पठन में रुचि बनाता है एवं मर्मस्पर्शी  होता है।

सुस्पष्ट सन्देश: लघुकथा के विषय, भाव एवं संकेत के साथ ही सुस्पष्ट प्रभावी सन्देश देने में सक्षम होना उसे एक सफल लघुकथा बनाते हैं।

ये सम्पूर्ण नहीं अपितु चंद  विशेषताएं ही हैं जो कि एक प्रभावी लघुकथा की रचना में विशिष्ठ भूमिका अदा कर  सकती हैं।

        वही एक और प्रश्न भी अक्सर उठाया जा रहा है की क्या लघुकथा उपन्यास को समाप्त कर देगी तो इस विषय में मैं कहना चाहूँगा कि, लघुकथा और उपन्यास दोनों ही अपने विशिष्ट स्थान और महत्व के साथ साहित्य में रहेंगे। लघुकथा संक्षेप और सुसंगतता के साथ किसी विचार या सामाजिक संदेश को प्रस्तुत करने का एक अद्वितीय तरीका है, जबकि उपन्यास व्यापक और गहरा विचार करने का माध्यम है। ये दोनों ही एक दूसरे के पूरक न होते हुए अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखते हैं एवं दोनों ही साहित्यिक एवं सांस्कृतिक जगत को अपना महत्वपूर्ण योग दान देते हैं। लघुकथा और उपन्यास दोनों ही अलग-अलग रूपों में साहित्य का हिस्सा रहेंगे।

बात यदि लघुकथा के विषय की करें तो  सामान्य तौर पर लघुकथा में देखने मे  आता है की वे अमूमन:

सामान्य जीवन की कहानियाँ : लघुकथाएं अक्सर दिनचर्या, आदतों  एवं सामान्य जीवन से जुड़े हुए विभिन्न मुद्दों पर आधारित होती हैं, जिनसे पाठक सहज एवं सामान्य रूप में अपनापन एवं जुड़ाव  का अनुभव करते हैं।

समाजिक समस्याएं: लघुकथाएं समाज में होने वाली समस्याओं और चुनौतियों पर भी  आधारित होती हैं।

आधुनिकता और परिवर्तन: लघुकथाएं नए विचारों को प्रोत्साहित करती हैं एवं आधुनिक दृष्टिकोण लेने में सक्षम होती हैं।

वहीं किसी ऐतिहासिक अथवा अद्भुत घटना के चारों ओर बनी रहस्यमयी लघुकथा भी पाठकों को आकर्षित कर सकती है। तो व्यक्तिगत अनुभवों, खोजों, या सीखों को साझा करने का मौका भी लघु कथा में है। और ये समस्त विकल्प पाठकों को सोचने और विषय से संवेदनशीलता से जुड़ने का मौका देते हैं।

प्रस्तुत कथा संग्रह में मिन्नी जी ने अमूमन प्रत्येक उस विषय को चुना है जिस से आम माध्यम वर्गीय इंसान अपने रोजमर्रा के जीवन में दो चार होता है साथ ही उनकी लघुकथाओं की एक विशेषता यह भी नजर आई कि उनकी कहानियाँ संदेशात्मक है यथा उनकी कहानी “अहम” जो दाम्पत्य जीवन में आपसी प्रेम पर हावी होते अहम पर कटाक्ष करती है। वहीं “आस” सांकेतिक रूप से एवं प्रकृति के माध्यम से उम्रदराज़ व्यक्तियों की मानसिकता को प्रदर्शित करती है तो “इंसानियत ही धर्म है” धर्म की दीवारों से परे मानवता को श्रेष्ट धर्म निरूपित करती है। “ईमान का पलड़ा” और “उखड़े रंग” भी अच्छी    कहानियाँ हैं तो वहीं वर्तमान हालत पर तीखा व्यंग्य करती है “भौकना  जरूरी है” एवं “कीचड़ में कमल”। वर्तमान व्यवस्था का एक रूप दिखलाती एवं उस पर तीखा व्यंग्य करती है “डिस्पोजेबल चमचे”।    

लघुकथा के लघु आकार से थोड़ा आगे निकलती हुई कहानियां  हैं “खास दोस्त” “ गजरे वाली रात” “झुक गया चाँद” जो पत्नी एवं परिवार की जिम्मेवारियों से विमुख पति को सही रास्ता दिखलाती है। उन्होनें इन  कहानीयों  के द्वारा सुखी दाम्पत्य जीवन हेतु सुंदर संदेश दिया है। तो वहीं दाम्पत्य जीवन में किसी अन्य स्त्री का दखल एवं पति को समझाइश   देती कहानी है “दो पाटन के बीच”।   

आध्यात्मिकता की ओर ले जाती एवं संसार में प्राणी के विषय वासना में लिप्त होते जाने से मूल उद्देश्य से भटकाव को दर्शाती  है कहानी “दरवाजा”।  

प्रकृति एवं पर्यावरण से काफी कहानियाँ हैं यथा “दृढ़ संकल्प”, “जैविक घड़ी”, “धरा”, “नन्हे हाथ”, “पर्यावरण दिवस”, “पीड़ा खेत की”, “प्रकृति नटी”, “स्पर्धा”  इत्यादि।  विभिन्न धर्मों की अलग अलग दुकान खोलकर बैठे कठमुल्लाओं को सबक देती है कहानी “धर्म”। तो बढ़ती उम्र पर आधारित है उनकी कहानियाँ “बुढ़ापा”, “बुढ़ापे की लाठी” और “बुढ़ापे का दर्द”।

उनकी कथाओं की एक और विशेषता ये भी है की वे आम उपयोग की विभिन्न वस्तुओं के जरिए भी अपनी बात कहलवा देती हैं जैसे की “वह दिन दूर नहीं”, “वेदना” आदि।

विभिन्न विभिन्न विषयों पर सुंदर कहानियाँ इस संग्रह में प्रस्तुत की हैं जो उनकी मुखरता, सामाजिक एवं समसामयिक विषयों के प्रति उनकी  चिंता को दर्शाती है।   

उपरोक्त वर्णित कहानियाँ तो उनके कथासंग्रह रूपी गुलदस्ते के मात्र चंद सुगंधित पुष्प ही है जो कि उनकी शैली एवं कथानक चयन का मात्र एक  संकेत बस  देती हैं, संग्रह में समाहित प्रत्येक कहानी अपने आप में ही श्रेष्ठतम है एवं पाठक को बहुत कुछ सोचने पर विवश कर देती है साथ हो इस बात का भी स्पष्ट घोष करती है की उनकी कलम से कोई भी विषय अछूता नहीं है जो निश्चय ही उनकी संवेदनशीलता एवं वैचारिक्त सोच के दायरे के असीम विस्तार का भी  द्योतक है।

शुभकामनाओं सहित,

अतुल्य     

      

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Thaluaa Chintan By Ram Nagina Mourya

kuchh Yoon Hua Us Raat By Pragati Gupta

Hargovind Puri Chayanit Kavitayen