Mere Pratinidhi Hasya-Vyangya BY Arun Arnav Khare
मेरे प्रतिनिधि हास्य व्यंग्य
मेरे प्रतिनिधि हास्य व्यंग्य
द्वारा : अरुण अर्णव खरे
विधा : व्यंग्य कथाएं
नोशन प्रेस द्वारा प्रकाशित
मूल्य : 240.00
पृष्ट संख्या :117
समीक्षा क्रमांक : 113
व्यंग्य विधा साहित्य सृजन की वह विधा है, साहित्य सृजन का ऐसा खंड है जिसमें या तो किन्हीं घटनाओं के परिदृश्य में निहित कारणों का इस विधि आलोचनात्मक विवेचन किया जाता है कि उसमें कटाक्ष, हास्य, आलोचना एवं तीक्ष्ण व्यंग्य निहित होता है, अथवा किसी विषय विशेष पर व्यंग्यात्मक तीक्ष्ण टिप्पणी की जाती है। व्यंग्य लेखन की भाषा एवं शैली अत्यंत संतुलित सहजगम्य एवं पैनी धारदार होना अनिवार्य होता है, ताकि संदर्भित विषय पर कटाक्ष तो हो ही उसमें हास्य एवं व्यंग्य के संग संग विचारण हेतु मुद्दे भी व्यंग्यकार द्वारा पाठक को दिए जा सकें।
व्यंग्य विधा एक ऐसी कला है जिसमें व्यंग्यकार या कवि तानाशाही, समाजिक दुर्दशा, राजनैतिक एवं परस्पर
विवाद तथा समाज के विभिन्न विषयों को
हास्य, तीक्ष्णता, और विवेक के साथ व्यक्त
करते हैं। इसमें वाक्यांशों को अलङ्कृत करने के लिए विभिन्न शैलियाँ शामिल होती
हैं, जिससे व्यंग्य लेख अथवा काव्य में विशेषता आती है
किन्तु वर्तमान में फूहड़ता के साथ किये गए भद्दे मजाक एवं किसी पर की जाती
अमर्यादित टिप्पणी को भी व्यंग्य ही कह दिया जा रहा है जो की सर्वथा अनुचित है एवं
इस तरह के प्रसंगों की तीव्र भर्त्सना की जाना चाहिए।
व्यंग्य विधा सामाजिक या राजनीतिक समस्या अथवा विषय विशेष पर विचार करने तथा
राष्ट्र के एक बड़े समूह का ध्यानाकर्षण करने का एक अनूठा ढंग भी है, क्यूंकी व्यंग्य
एक विशेष अंदाज में रचित साहित्यिक रचना होती है जिसमें लेखक विषय को तीखे कटाक्ष
के साथ हंसी एवं उपहास के माध्यम से प्रस्तुत करता है। इसमें समाज, राजनीति, धर्म, व्यक्ति एवं सामाजिक स्थितियों पर टिप्पणियाँ शामिल हो सकती हैं, जो मात्र हास्य का विषय न होकर पाठकों को विचार करने पर मजबूर करती हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार अरुण अर्णव खरे जी द्वारा रचित प्रस्तुत पुस्तक
“मेरे प्रतिनिधि हास्य व्यंग्य” का शीर्षक ही अपने बारे में सब कुछ बयां कर देता
है। इस संग्रह में हमें व्यंग्यकार अरुण अर्णव खरे जी की चुनिंदा व्यंग्य रचनाएं पढ़ने
को मिलती हैं एवं प्रत्येक कहानी अपने आप में विशिष्ठ होते हुए, उच्च कोटि का स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करने में
सक्षम तो है ही, संग्रह में संकलित अमूमन प्रत्येक कहानी ज्वलंत विषयों एवं घटनाओं
पर केंद्रित होते हुए तीखा व्यंग्य करती
है तथा बहुत कुछ सोचने हेतु विवश करते हुए विचारों को एक नई दिशा भी प्रदान करती
है।
अरुण अर्णव खरे जी उन ख्यातिलब्ध, सुप्रसिद्ध,वरिष्ठ साहित्यकारों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं जिन्होंने साहित्य में व्यंग्य की विशिष्ठ विधा को
अपनी श्रेष्ठ रचनाओं के द्वारा एक नया आयाम दिया है। बेहद सहज सरल लेखन के द्वारा तीक्ष्ण व्यंग कर देना उनकी
विशिष्ठ शैली है। अरुण अर्णव खरे व्यंग्य
लेखन विधा में एक पहचान हुआ नाम है एवं समय समय पर भिन्न साहित्यिक मंचों द्वारा
उन्हें सम्मानित किया जाता रहा है समय समय पर उनकी रचनाए हमें विभिन्न पत्र
पत्रिकाओं इत्यादि में पढ़ने को मिलती रहती है जिनमें साहित्यिक गरिष्ठता न होकर अत्यंत सरल भाषा
शैली में, मध्यम वर्गीय समाज के
सामान्य जन जीवन से लिए गए सुन्दर किस्से हैं जिनमें रोचकता के संग शब्दों का चयन एवं वाक्य विन्यास
भी सहज होते हुए तीखा कटाक्ष भी।
व्यंग्य के क्षेत्र में चिरपरिचित व सशक्त
हस्ताक्षर हैं हालांकि उन्होंने साहित्य की प्रत्येक विधा को अपने साहित्य सृजन से
समृद्ध किया है। उनके विभिन्न कहानी
संग्रह जैसे ‘पीले हाफ पेंट वाली लड़की”,
“उफ्फ
ये एप्प के झमेले”, “कोचिंग@कोटा”
एवं “चार्ली चैप्लिन ने कहा था’ बेहद चर्चित हुए व साहित्य प्रेमियों द्वारा बहुत
सराहे गए। रचनाओं के घटनाक्रम आम
आदमी की जिंदगी से जुड़े हुए होने के कारण उनकी प्रस्तुति की भाषा भी आम जन की सरल
एवं सहज भाषा होती है, यथा आवश्यकता
क्षेत्रीय भाषा का भी शुद्ध एवं सुन्दर प्रयोग करते है, बोलचाल के सहज प्रवाह से जो बात कही जा रही है वही कहानी
में संवाद रूप में ज्यों की त्यों प्रस्तुत करते हैं तथा
आम जन की समस्याओं पर वे व्यवस्था पर भी
तीक्ष्ण कटाक्ष करने से नहीं चूकते। अपने लेख को सुन्दर या आकर्षक
बनाने हेतु कहीं कोई अतिरिक्त प्रयास किया गया हो ऐसा प्रतीत नहीं होता। वे न तो कोई अतिरिक्त प्रयास करते हैं, न ही
किन्ही विशेषणों अलंकारों कठिन पर्यायवाची शब्दों आदि का प्रयोग कर कथन को आकर्षक
बनाते हैं। हमारे आपके जीवन की कोई घटना, परिवार का कोई विषय,
समाज की कोई छोटी सी घटना उनके लिए कथानक का मूल विषय बन जाता है।
अब बात कुछ रचनाओं
की जो इस संग्रह में संकलित की गई हैं , “दिन फिरे ठेंगे के”, में Thums up वाले अंगूठे की निशानी को एक सर्वथा नए दृष्टिकोण
से देखते हुए तीखा व्यंग्य भी प्रस्तुत किया है जहां लोग लाइक्स की फिराक में क्या
क्या नहीं कर गुजरते। “साइलेंट शब्दों की ट्रेजडी” बताता है की अंग्रेजी भाषा में
वे शब्द जिन्हें उच्चारण में नहीं लिया जाता कैसी कठिनाइयां एवं मुश्किलें खड़ी
करते हैं। किंतु वहीं हिंदी के वाक्यों में भी बीच बीच के अनकहे शब्द कैसे व्यंग्य
बना देते हैं तथा बाज दफा कैसे अर्थ के अनर्थ करते हैं इसका अत्यंत मनोरंजक
प्रस्तुतिकरण है।
खरे जी की हर
कहानी का व्यंग्य चुभता हुआ एवम बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देने वाला है। उनकी
व्यंग्य रचना अमूमन प्रत्येक ज्वलंत समस्या व घटना को अपने में समेट लेती है। या
यू कहें की घटनाएं फिर चाहे वे बलात्कार, हत्या, राजनैतिक
हलचल, सामूहिक नरसंहार, कुछ भी हों
उनकी कहानी के दायरे में आकर कड़वी नंगी सच्चाई से रूबरू करवा देती है। उनके तीखे
तंज़ समाज, व्यवस्था व व्यवस्था के कर्णधारों
पर सैकड़ों सवाल खड़े कर जाते हैं। कहानी “यमलोक में एक दिन” भी ऐसे ही सारे भाव लिए हुए है। वहीं “रावण के
पुतले के प्रश्न” एक ऐसी कहानी है जो वर्तमान स्थिति में पनपती व फलती फूलती
राक्षसी प्रवृत्ति व घटती मानवता पर ध्यानाकर्षित करती है। रावण के पुतले के मुंह से लेखक ने समाज की दशा
पर उंगली उठाई है जहां समाज में सब की जुबान पर ताले हैं तो ‘बच्चों की गलती,
थानेदार और जीवन राम” बलात्कार जैसे संवेदनशील एवं गंभीर अपराध में राजनीति और
पुलिसिया हथकंडों की कलई खोलती दिखती है।
“पहली नजर में
प्यार”, “नौरंगीलाल की पहली विमान यात्रा”, “झूठ का स्टार्टअप”, “मुद्दों की राजनीति” आदि भी
चिंतन को विवश कर देती व्यंग्य रचनाएं हैं ।
“बसंत मोहतरमा
और मैं” के द्वारा उन्होंने प्रशंसकों के उस वर्ग को लक्ष्य किया है जो लेखकों को
भी तारीफ करते करते चूना लगा जाते हैं तो “पॉवर पंख और पांव”, सत्ता सुख की लालसा
अब वफादारी जैसे शब्दों को दकियानूसी मानती है एवं जहां दाम वहाँ राम के कथन पर
यकीन करते हुए अपने फायदे एवं स्वार्थ पर पहले गौर करती है ।
“नर्क में
मुरारी लाल” के द्वारा लेखक ने वर्तमान हालात में नर्क जैसा जीवन गुजार रहे लोगों
के मन की बात को शब्द दिए हैं। आम आदमी जो साधारण जिंदगी जी रहा है उसकी तुलना उन
बड़े बड़े शरीफ, सफेदपोश अपराधियों नेताओं वा भ्रष्ट अपधिकारियों से की है जो
वास्तव में नर्क के हकदार है वहीं “ “पुनरश्वान भव” के द्वारा दुनिया में मानव की गंदी हरकतें के चलते श्वान के जीवन को मानव जीवन से बेहतर बताया है जो एक सटीक संतुलित एवं
व्यवस्थित व्यंग्य की श्रेणी में सहज ही स्थान प्राप्त करता है।
कुल 31
व्यंग्य कथाओं में किसे अधिक बेहतर कहा जाए अत्यंत कठिन प्रश्न है तथा समस्त कथाएं
एक से बढ़कर एक एवं व्यंग्य के द्वारा व्यवस्था पर तीखे नश्तर चुभोती रचनाएं
हैं।
अतुल्य
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