Coffee with Krishna by Bharat Gadhvi
कॉफी विद कृष्ण
द्वारा :
भरत गढ़वी
FLYDREAMS पब्लिकेशन्स द्वारा प्रकाशित
मूल्य : 220.00
पृष्ट : 160
प्रथम संस्करण : सितंबर 2023
पुस्तक समीक्षा क्रमांक :102
गढ़वी जी की यह मात्र तीसरी ही पुस्तक है किंतु जिस परिपक्वता एवं लेखन क्षमता का परिचय उन्होंने दिया है वह काबिले तारीफ होते हुए, उनके उज्ज्वल भविष्य का द्योतक भी है । उनकी पिछली दोनो पुस्तकों को भी मैने पढ़ा है एवं निश्चय ही कहा जा सकता है की इस पुस्तक में उन्होंने उल्लेखनीय प्रगति करी है। बात कथानाक के विस्तार की हो या प्रस्तुति की अथवा पाठक को बांध कर रखने की कला की , सभी उत्तम दर्जे के हैं । वाक्य छोटे ही हैं किंतु स्पष्ट एवं बिना किसी भारी भरकम शब्दावली के इस्तेमाल के किंतु अपनी बात पाठक तक पहुंचने में बखूबी कामयाब।
समीक्ष्य पुस्तक का नाम ही रोचकता का प्रारंभ कर देता है , पुस्तक शुरू करने के पूर्व लगा की कहीं यह इसी तरह की किसी फिल्म से प्रभावित कथानक तो नहीं किंतु जब पुस्तक प्रारंभ की तो कथानक पूर्णतः भिन्न पाया एवं मध्य तक पहुंचते तक कहानी का जो मोड़ वे लेकर आए वह उनके इस उपन्यास को लिखने के मूल भाव की ओर ले जाता है जिसे प्रारंभ में समझना तो दूर सोच पाना भी पाठक के लिए संभव नहीं होगा।
कहानी बेहद रोचकता के साथ
मीडिया जगत की प्रतिस्पर्धा एवं कठिनाइयों को बखूबी दर्शाती है साथ ही समाज में
व्याप्त अंध विश्वास एवं आस्था के दुष्प्रभावों पर भी करारी चोट की गई है। पुस्तक
के कथानक के विषय में और अधिक कहना उचित प्रतीत नहीं होता क्यूंकी उस से पाठक को
प्राप्त होने वाले आनंद का ह्रास संभव ही नहीं
सुनिश्चित होगा।
कथानक वास्तविकता से बेहद करीब
है एवं कहीं भी ऐसा प्रतीत नहीं होता की आम कहानियों की तरह कथानक में असंभव को
संभव बना कर दर्शाया जा रहा है ।
कथानक एक पत्रकार की कहानी है
जो किसी विशेष मकसद के लिए घटनाओं का ऐसा तानाबाना बुनता है जिसमें हर खासोआम
शामिल हो जाते है साथ ही घटनाओं का सिलसिलेवार व्यापक वर्णन अत्यंत सुरुचिपूर्ण
ढंग से प्रस्तुत किया गया है ।
कुछ हद तक यह कथानक एक मुख्य
कारण तक पहुंचने के लिए कथानक के नायक पत्रकार द्वारा कुछ अन्य घटनाओं का सहारा लेकर आगे
बढ़ना एवंम अंततः अपना लक्ष्य प्राप्त कर
लेना शामिल है ।
कहानी में कहीं भी बोझिलता नहीं
आने पाई एवं सीमित पात्रों के साथ वे अत्यंत रोमांचक कथानक प्रस्तुत कर सके हैं जो
स्वयं को किसी विशेष धारा यथा जासूसी या सामाजिक या पारिवारिक कहानी से अलग रखते
हुए रोचकता बनाए रखता है ।
उपन्यास के उतार चढ़ाव सहज ही
पाठक को दृश्य से जोड़ते चलते हैं एवं कथानक की हर घटना को सहज महसूस करते हैं
।
साफ सुथरी कहानी है जो स्तरीय
वाक्य संयोजन एवं प्रस्तुति के कारण विशिष्ठ बन जाती है। पुस्तक की समाप्ति के
पश्चात भी पाठक स्वयं को कहीं न कहीं स्वयं को उसी पुस्तक के पात्रों के बीच पाते
हैं ।
कहानी का अंत अवश्य ही कुछ शीघ्रता से समेटने जैसा है, मेरे विचार से उसे कुछ विस्तार देना और रोचक एवं प्रभावी हो सकता था क्योंकि यह बात सहज प्रतीत नहीं होती की आज के राजनैतिक संरक्षण एवं अपराध जगत के वर्चस्व के बीच आप किसी बड़ी शक्ति अथवा किसी शक्तिशाली प्रभावी पहुंच वाले व्यक्ति से संबंधित उसके काले कारनामों को सार्वजनिक करें किंतु उसका कहीं भी कुछ प्रभाव नजर न आए।
अंत को कुछ मार्मिकता पूर्ण बना कर पेश किया है किंतु उसकी कितनी आवश्यकता थी यह पाठक स्वयं निर्णय कर सकते हैं मेरी दृष्टि में वह पूर्णतः अनावश्यक ही था एवं कथानक के प्रभाव को समाप्त कर पाठक का मन दूसरी ओर मोड़ देता है ।
अंत में मेरी राय में भरत
जी का बेहद सफल प्रयास है तथा किसी को भी इसे पढ़ कर निराशा नहीं होगी व स्वस्थ
मनोरंजन तो अवश्य ही प्राप्त होगा।
शुभकामनाओं सहित,
अतुल्य
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