Vimukt Varnika by Seema Saxena Varnika
विमुक्त वर्णिका
समीक्षा क्रमांक : 98
विमुक्त वर्णिका ( काव्य संग्रह)
द्वारा : सीमा वर्णिका
नमन पब्लिशर्स द्वारा प्रकाशित
मूल्य: 150.00
पृष्ट संख्या : 124
सुविख्यात साहित्यकार , जानी-मानी कवीयत्री,
सीमा सक्सेना “वर्णिका” को उनकी अनेकोनेक कविताओं, लघुकथाओं, तथा विभिन्न विषयों
पर तार्किक लेखों हेतु बखूबी जाना पहचाना जाता है ,एवं अमूमन साहित्य जगत की
प्रत्येक प्रतिष्ठित एवं विख्यात संस्था
उनके कार्य की सराहना कर तथा उन्हें सम्मानित कर स्वयम गौरवान्वित हुई है। सीमा जी
की समीक्ष्य पुस्तक “विमुक्त वर्णिका ”
उनकी भावनाओं की सुंदर
अभिव्यक्ति का लिपिबद्ध
प्रस्तुतीकरण है।
उनकी प्रत्येक रचना भिन्न
भाव के साथ अलग ही विचार एवं कलेवर
एवं
दिशा प्रस्तुत करती है । कविताओं के शीर्षक अत्यंत
विचारण के पश्चात दिए गए हैं । शीर्षक
विशिष्ट हैं एवं रचना जो गहराई लिए हुए, गंभीर
सोच को या तो ज़न्म देती
है अथवा पोषित करती है उस का आभास देने में पूर्णतः सक्षम हैं। स्तरीय
सुंदर भाषा ,
गंभीर भाव एवं बोधगम्य शैली में
रचित सुन्दर अभिव्यक्ति है प्रस्तुत काव्य संग्रह। भावों की विविधता,
जीवन के विभिन्न रंगों का फैलाव, एवं समाज तथा जीवन के लगभग हर पहलु को आशावादी
नज़रिए से दर्शाती हुयी कविताओं का संग्रह
है, सुविख्यात
कवियत्रि
एवं वरिष्ट नामचीन साहित्यकार की प्रस्तुत
रचना “विमुक्त
वर्णिका”।
संग्रह की समस्त कविताएं तुकांत हैं । आगे बढ़ने से पूर्व तुकांत कविताओं के विषय में थोड़ी चर्चा करना बेहतर होगा ।
तुकबंदी
जिसमें रचना की प्रत्येक पंक्ति के अंतिम अक्षर को समान रख कर विशेष रूप दिया जाता
है ,यह कविता का
विशेष रूप है।
तुकबंदी कविताएँ मानव जीवन के
मूल्यों और मान्यताओं को सुंदरता से प्रस्तुत करती हैं और उन्हें नयी दिशा देती हैं। इन कविताओं का मुख्य उद्देश्य
आध्यात्मिक जागरूकता, आंतरिक शांति, और भक्ति को बढ़ावा देना होता है।
तुकबंदी कविता हिन्दी साहित्य का एक प्राचीन और परंपरागत काव्य रूप है जो भक्ति और
आध्यात्मिकता के साथ जुड़ा हुआ है, और यह आमतौर पर पुराने
हिंदी भक्ति साहित्य के हिस्से के रूप में देखा जाता है।
तुकबंदी लेखन में आपकी आंतरिक
भावनाओं को अद्वितीय और आकर्षक तरीके से व्यक्त करने का मौका होता है, और यह रचनाकार एवं उसके पाठकों के बीच एक आध्यात्मिक संवाद का माध्यम बनता
है ।
इस प्रकार की कविताएँ आमतौर पर एक
व्यक्ति या आत्मा के अंतर में होने वाले आंतरिक अनुभव को व्यक्त करती हैं, तुकबंदी कविता आमतौर पर चौपाई छंद में लिखी जाती है, मूलतः इस का प्रयोग भक्ति साहित्य में किया जाता है ।
तुकांत कविता की कुछ प्रमुखताएं उनका छंद रूप में रचा जाना , मुख्यतः भक्तिपरायणता, उनकी सहज सरल भाषा एवं भाव के चलते लोकप्रियता , आध्यात्मिक संदेश का चयन है। इस के द्वारा रचनाकार सजता से अपने अनुभवों का वर्णन भी प्रस्तुत करते हैं।
तुकांत कविता के विषय में आम धारणा है कि
कविता को लय एवं तुकबंदी के दायरे में रखने हेतु बाज दफ़े भाव अपनी पूर्ण उन्मुक्तता एवं
सम्पूर्ण प्रभाव के साथ प्रगट नहीं होते
तथा कहीं न कहीं अभिव्यक्ति की क्षमता को प्रभावित करते
हैं एवं तुक बंदी द्वारा
कविता को आकर्षक एवं
कर्णप्रिय बनाने के प्रयास कविता के सरल
बोधगम्य प्रवाह में भावनाओं की
सामान्य अभिव्यक्ति के दौरान उत्पन्न हुए
मूल शब्दों से इतर तुकबंदी हेतु अन्य शब्दों को उपयोग
करने हेतु किये गए
प्रयास वस्तुतः
कवित्त के मूल को
ही अन्यत्र ले जाते एवं कवि की मूल भावना को व्यक्त करने में या तो असफल ही रहते है अथवा यदि
आंशिक रूप से सफल होते भी हैं तो वे अपना अर्थ पूर्णतः
प्राप्त नहीं करते।
तुकांत कविता के विपक्ष में खड़े होने वालों
का तो यहाँ तक कहना है की शब्द यदि स्वतंत्र विचरण
करें तभी उनका मूल भाव व्यक्त हो पाता है। सीमाओं का बंधन शब्दों में अन्तर्निहित
उस मूल भावना को जो कवि ह्रदय उद्धृत करने का प्रयास कर रहा है को निष्फल बना देता
है।
वर्तमान में यूं तो कविता का यह रूप चलन
में कम ही है किन्तु , कुछ कवियों ने तुकबंदी के रूप में भी अच्छी कविताएँ लिखी हैं, सीमा जी का प्रस्तुत संग्रह इस विधा में सुंदर प्रयासों में उल्लिखित
होगा ।
सीमा
सक्सेना जी ने तुकांत कविता से संबंधित इन
तमाम वर्जनाओं , मान्यताओं अथवा धारणाओं को सिरे से नकारते हुये स्तरीय तुकांत कविताओं का संग्रह प्रस्तुत किया
है। उन्होंने अपनी कविताओं में जिस खूबसूरती से
विशिष्ट एवं सुंदर शब्दों का प्रयोग किया है व पंक्ति में भावों को तुकांत के संग
बिना किसी विशेष छेड़छाड़ के तथा भाव को प्रभावित किए वगैर सँजोया है वह सटीक एवं भावों को
समग्रता से व्यक्त करने में पूर्णतः सफल है ।
शब्दों को
खूबसूरती
से प्रयोग
कर एक सूत्र में पिरोकर तुकांत
कविता रचते हुए , कवि ह्रदय की भावनाओं के
सूक्षतम भावों की अभिव्यक्ति के
रूप में प्रस्तुत किया गया है,
तथा उनकी रचनाओं में कहीं भी यह प्रतीत नहीं होता की शब्दों को किसी अतिरिक्त
प्रयास के द्वारा उस पंक्ति में स्थान दिया गया है। ।
शैली विशिष्ट है, जो
की भाव संग मिलकर
अति विशिष्ट बन पड़ी है।
उनकी रचनाएँ भावनाओं को उनके उत्त्पन्न होने के सहज क्रम में दर्शाती हैं,
अर्थात भावनाओं को लिपिबद्ध करते हुए
उनके मूल भाव को यथावत ही रखा गया है । प्रस्तुत काव्य संग्रह की सभी रचनाएँ भाव
प्रधान हैं एवं कवि ह्रदय से मानो सीधे ही लिपिबद्ध हो गयी हैं।
साहित्य से जुड़े हुए प्रबुद्ध पाठक ,
जिन्हें स्तरीय साहित्य की तलाश रहती है, उनके
लिए निश्चय ही सीमा
जी को पढ़ना एक सुखद एहसास है । जिस प्रकार कवि ह्रदय के भावों को
समझने हेतु कोई पैमाना
निर्धारित नहीं किया
जा सकता उसी प्रकार कवि की रचना
हेतु भी
कोई पैमाना निर्धारित कर
पान संभव नहीं है, किन्तु इस
काव्य संग्रह के विषय में निर्विवादित रूप से यह कहा जा सकता है की सीमा
जी ने एक उत्तन्म कोटि का
पठनीय काव्य संग्रह प्रस्तुत किया गया है।
उनकी 90 उत्कृष्ट
रचनाओं का भावपक्ष एवं प्रस्तुति दोनो ही उत्कृष्ट है।
जीवन के लगभग प्रत्येक भाव पर
लिखती हैं एवं प्रस्तुत संग्रह में भी कविताएँ जीवन के हर पहलू, प्रकृति,आध्यात्म एवं दर्शन को समेटे हुये है ।
सीमा जी की भाव अभिव्यक्ति को
शब्द रूप में प्रस्तुत करने की कला
सराहनीय है। अंतर्मन में उठते हुए भाव को शब्द रूपी मालअ में पिरो कर प्रस्तुत
करने का प्रयास अद्वितीय है । एक रचनाकार का हृदय लौकिक एवं पारलौकिक तथ्यों की
विवेचना करता है एवं पश्चात अपनी कृति के
माध्यम से अपने भाव को अपनी आत्मा की आवाज को अपनी विधा फिर वह कविता हो या चित्र
कला अथवा कोई भी अन्य विधा , उसमें प्रतिबिंबित करता है । लेखनी मात्र अन्त:भावों को
कागज पर भौतिक रूप देती है।
समीक्षाधीन
पुस्तक “विमुक्त वर्णिका ” काव्य संग्रह की रचनाकार शिक्षाविद सीमा वर्णिका जी ने
अपनी सशक्त एवं संवेदनशील चुनिंदा रचनाओं के पुष्पों को पुस्तक की माला के रूप में
पिरोकर “माँ सरस्वती” के चरणों में समर्पित करते हुए भारतीय संस्कृति का मान रखते हुए अपने संस्कारों एवं आस्थाओं का परिचय
भी दिया है।
प्रस्तुत कविता संग्रह के काव्य
पर विमर्श करें, उसके पूर्व स्पष्ट कर दूँ कि कविताओं के अंश प्रस्तुत करना, मेरी
दृष्टि में समीक्षा को व्यर्थ ही विस्तार देना एवं पाठक की उत्सुकता को कुछ हद तक
सीमित कर उसकी नजर पर अपने विचारों का चश्मा लगा देने के समान होगा अतः हम यहाँ
बात करेंगे भाव पर, कविता का आनंद तो उसे पुस्तक में पढ़ कर ही समग्र रूप से
प्राप्त किया जा सकता है।
विभिन्न कविताओं के पाठन एवं
विचारण के पश्चात , एक बेहतरीन तस्वीर उभर कर सामने आती है एवं कहा जा सकता है कि
कवीयत्री अपने प्रयास में बखूबी कामयाब रहीं हैं। चंद कविताओं के विषय , उनके भाव
,भाषा प्रवाह व शैली पर कविता-वार मेरे विचार प्रस्तुत हैं:
वर्तमान
विकास पर मासूमियत सा तंज कसती, ग्राम-ग्रामीण की स्थिति दर्शाती कविता “अंगद के
पाँव” है वहीं श्रीनगर व प्रेम रस से पगी हुई है शरद पूर्णिमा । दाम्पत्य जीवन के
रस का वर्णन करती हुई “तुम पतंग मैं डोर”
है तो वहीं भाव प्रधान सुंदर शब्दों से सज्जित है “पथिक”। चंद खूबसूरत कविताएं कुछ महान विभूतियों जैसे की स्वामी
विवेकानंद , बुद्ध , रानी दुर्गावती , डॉ.राजेन्द्र प्रसाद , पन्ना धाय आदि पर भी हैं। जीवन संघर्ष को निरूपित करती है कविता “अग्निपस्थ”
तो जीवन जीने की कला बतलाती है “क्यों न मस्त रहें” वहीं पिंजड़ा आध्यात्म की ओर ले
जाती है।
कुदरत के
रंगों को चित्रित करती है “वसंत” और ग्रीष्म ऋतु का दृश्य दिखलाती है “जेठ की
दोपहर”। जीवन में प्रेम का गुणगान करती है “प्रीत की रीत” , और माँ का गुणगान करती
है उनकी आदारञ्जली “माँ एक कुशल कुम्हार”वहीं
पिता को समर्पित हैं उनके श्रद्धासुमन “वह पिता है” के रूप में। अत्यंत सुंदर शब्दों से सजी भाव प्रवण
प्रस्तुति है “भावों की नमी” तो किसान , श्रमिक एवं सैनिकों का स्मरण करना भी उनसे
छूटा नहीं है, “सैनिक की वेदना” , किसान व “मैं श्रमिक हूँ” कविताओं में उस दर्द
को बेहतर तरीके से समझा गया है जो अक्सर अनकहा ही रह जाता है।
भावनाओं को
खूबसूरती से शब्दों में अभिव्यक्त करती हुई कविता है “तृषा” तो उत्सव का माहौल दर्शाती व नवरात्रि के नौ
दिनों की नौ देवियों का वर्णन करती है कविता “नवरात्रि पर्व”। एक मार्मिक
प्रस्तुति है “गरीब की बेटी”वहीं आतंक व युद्ध सम विभीषिकाओं के साये में रहते आम
जन का दर्द बतलाती है कविता “सन्नाटा”.
अपनी
समीक्षा प्रस्तुत करते हुए मैंने मात्र चुनिंदा कविताओं के भाव प्रस्तुत किए हैं ताकि सुधि पाठकजन की
पुस्तक के प्रति उत्सुकता जागृत हो एवं पुस्तक से कविता का पाठ वे स्वयम करें , व
पुस्तक का भरपूर आनंद प्राप्त करे। प्रत्येक कविता में कुछ न कुछ विशेष एवं
उल्लेखनीय है किन्तु कविताओं की पंक्तियाँ
यहाँ पुनः उद्धरित करना लेख को अनावशयक
विस्तार देना एवं प्रबुद्ध पाठक के बहुमूल्य समय का नाश करना ही होता , विश्वास है
इसे अन्यथा नहीं लिया जाएगा।
सुंदर, संग्रहणीय काव्य संग्रह
प्रस्तुत करने हेतु कवीयत्री को हार्दिक साधुवाद ,
शुभकामनाओं सहित,
अतुल्य
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