Main Hoon Sita By Nilima Gupta
मैं हूँ सीता
समीक्षा क्रमांक : 95
द्वारा : नीलिमा
गुप्ता
मूल्य: 150.00
पृष्ट :128
सन प्रिंटस अलवर
द्वारा प्रकाशित
“सीता”
जिन्हें
सिया , जानकी , मैथिली , वैदेही और
भूमिजा के नाम से भी जाना जाता है , भगवान विष्णु के अवतार श्री
राम की पत्नी हैं , और उन्हें विष्णु की पत्नी, लक्ष्मी का एक रूप माना जाता है । वह राम-केंद्रित हिंदू परंपराओं की
प्रमुख देवी भी हैं। “मैं हूँ सीता”
नीलिमा गुप्ता जी का एक प्रयास है उन्हीं सीता जी के पात्र को और करीब से, अपने
नजरिए से समझने का। नीलिमा गुप्ता , दीर्घ काल तक शिक्षण
के क्षेत्र से संबद्ध रहीं हैं एवं पौराणिक पात्रों के विषय में उपलब्ध जानकारी से कुछ अधिक जानने
की सहज जिज्ञासा उन्हें निरंतर ही संबंधित विषयों पर शोध हेतु प्रेरित करती रहती है एवं उनके यह शोध
उनकी लेखनी एवं कृतित्व से स्पष्टतः प्रगट होते हैं। विशेषतौर पर पौराणिक
लेखन से सम्बद्ध है व प्रस्तुत पुस्तक से अलावा
कृष्ण पर
लिखी उनकी कृति ‘मैं कृष्ण सखी’ व "मैं बाबा का
कान्हा” भी
प्रकाशित हुयी हैं एवं पौराणिक विषयों को
देखने के अपने एक भिन्न नज़रिए के चलते सुधि पाठक वर्ग द्वारा बेहद सराही भी गयी हैं । उनके
विशिष्ठ कृतित्व को विभिन्न मंचों पर
प्रतिष्ठित पुरुस्कारों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।
प्रस्तुत पुस्तक में
मूल स्वरूप एवं प्रचलित कथाओं इत्यादि से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है तथा बहुत
कुछ बाल्मीकि रामायण को आधार माना है एवं कुछ कुछ राम चरित मानस को भी।
जो घटनाएं अवास्तविक सी लगती हैं उन्हें
तार्किक स्वरूप दिया गया है
सीता और वाल्मीकि के संवादों को
कल्पनाशीलता से रचा गया है । लोकमानस में मौजूद घटनाओं को भी पुस्तक में स्थान
दिया गया है। किसी
प्रमाणिकता का दावा प्रस्तुत नहीं किया गया है अतः संवादों एवं घटनाओं को किसी भी प्रकार के स्थापित तथ्य से
प्रतिवाद न मानते हुए उसे मात्र कथानक की रोचकता बनाये रखने हेतु
लिखे गए एवं
लेखिका की कल्पनाशीलता के दायरे के विस्तार के रूप
में ही लिया जाना चाहिये।
सीता अपने समर्पण, आत्म-बलिदान,
साहस और पवित्रता के लिए जानी जाती हैं (पृथ्वी) की बेटी के रूप में
वर्णित , सीता का परिचय विदेह के राजा जनक की दत्तक पुत्री
के रूप में दिया जाता है । सीता , उनके पाणिग्रहण हेतु आयोजित
स्वयंवर में अयोध्या के राजकुमार श्री राम को अपने पति के रूप में चुनती
हैं । स्वयंवर के बाद, वह अपने पति श्री राम के साथ उनके
राज्य में जाती है, किन्तु यथा रामायण में उल्लिखित है ,वहाँ
घटित अप्रत्यशित घटनाक्रम के चलते श्री राम को वनवास जाना पड़ता है एवं वे पति श्री राम व देवर लक्ष्मण के साथ वनवास में १४ वर्ष व्यतीत करती
हैं । निर्वासन के दौरान, तीनों दंडक वन में निवास करते हैं जहां
के सुविख्यात घटनाक्रम के पश्चात , लंका
के राजा रावण द्वारा उनका अपहरण कर लिया
जाता है । युद्ध के पश्चात राम , आततायी रावण का वध कर सीता को उसकी कैद से मुक्त करवा लेते हैं।
हमारे धार्मिक ग्रन्थ अर्थात हमारा अध्यात्मिक इतिहास
इस बात का साक्षी है कि जब जब इस समाज का कल्याण करने के लिये भगवान अवतरित हुए है
तब तब उन का साथ देने के लिये उनकी पार्षद, उनकी शक्ति भी
अवतरित हुई है। जहाँ भगवान अपना प्रयोजन सिद्ध करने के लिये लीलायें करते है,
वहीं उनकी शक्ति उनकी लीला में उन की सहायक बन के एक आदर्श स्थापित
करतीं हैं। माँ सीता का अवतरण भी इस पृथ्वी पर पापी रावण के अंत का कारण बनीं, एवं इस लीला में माँ सीता को किन किन भौतिक
कठिनाइयों का सामना करना पड़ा , यह भी सर्वविदित ही है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रभु श्री राम को मर्यादा
पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है और एक राजा की तरह श्री राम के लिए अपनी
प्रजा के लिए समर्पण सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण था। लंबे समय तक रावण की कैद में
रहने के बाद भी श्री राम द्वारा सीता को स्वीकार कर लिए जाने पर माता सीता द्वारा स्वयम
की शुचिता व मर्यादा पुरुषोत्तम की प्रतिष्ठा पर प्रजा के विश्वास एवं तुष्टीकरण हेतु
अग्नि परीक्षा दी एवं अग्नि में समा गयीं। यूं तो रामायण, प्रभु श्री राम और माता
सीता के अटूट प्रेम और विश्वास को दर्शाती
है किन्तु यह बात सोचने हेतु विवश करती है
कि आखिर माता सीता और प्रभु श्री राम के बीच के अटूट प्रेम के बावजूद भी उन्हें अग्नि
परीक्षा क्यों देनी पड़ी। पश्चात, राज्याभिषेक के बाद एक व्यक्ति द्वार सीता पर
लांछन लगा कर सीता की पवित्रता पर सवाल उठाया जाता है, तब प्रभु श्रीराम को पिता दशरथ के द्वारा
सिखाया गया राजधर्म याद आ गया, जिसमें राजा दशरथ ने कहा था कि, एक राजा का अपना कुछ नहीं होता , सब कुछ राज्य का हो जाता है। बल्कि
आवश्यकता पड़ने पर यदि राजा को अपने राज्य और प्रजा के हित के लिए अपनी स्त्री,
संतान, मित्र यहां तक की प्राण भी त्यागने
पड़े तो उसमें संकोच नहीं करना चाहिए। क्योंकि राज्य ही उसका मित्र है और राज्य ही
उसका परिवार है। प्रजा की भलाई ही उसका स्रवोपरि धर्म है, और इस कारण भगवान
श्रीराम ने अपने राजधर्म का पालन करते हुए माता सीता को छोड़ने का मन बना लिया। एक
आदर्श राजा के लिए लोकनिंदा सबसे भारी बोझ होता है। यह बोझ जब राजा राम के लिए
असहनीय हो गया तो उन्होंने अपने भाइयों को बुलाया और कहा, 'मेरी
अंतरात्मा ने सीता को शुद्ध मान लिया था, इसलिए मैं उन्हें
अपने साथ अयोध्या लेकर आया किन्तु अब राज्य में हो रही मेरी निंदा से मुझे कष्ट हो
रहा है। जिस प्राणी की अपकीर्ति लोकनिंदा का विषय बन जाती है, वह अधम-लोक में जा गिरता है। मैं लोकनिंदा के भय से तुम सबको भी त्याग
सकता हूं तो फिर सीता को त्याग देना कौन बड़ी बात है।
अपनी और राज्य की गरिमा बनाए रखने के लिए, राम सीता का त्याग कर उन्हें जंगल
में भेज देते हैं। सीता, जो गर्भवती थीं, उन्हें महर्षि वाल्मिकी द्वारा अपने आश्रम में आश्रय दिया गया, जहाँ उन्होंने कुश और लव नामक जुड़वां पुत्रों को जन्म दिया। जो गुरुदेव
से सभी प्रकार की विद्या प्राप्त करते हुए बड़े होने लगे ।
जब अश्वमेध यज्ञ किया जा रहा तब लव कुश ने यज्ञ के अश्व
को बंदी बना लिया. तब इसी स्थल पर राम के आगमन पश्चात लव कुश को ज्ञात हुआ की भगवान् श्री राम ही उनके पिता हैं व सीता और
श्री राम का पुनर्मिलन भी वहीं पर हुआ.
पश्चात माँ सीता व लव कुश को वापस राजभवन ले जाने की कहानी है एवं प्रचलित कथानुसार वापस
पहुचने पर दरबार ने सीता से उनके चरित्र का प्रमाण माँगा तो सीता माता ने कहा कि अगर
मेरा चरित्र पवित्र हैं तो इसी क्षण में धरती में समा जाउंगी. ठीक उसी क्षण धरती
फट गई, और धरती के गर्भ से मां पृथ्वी आई. मां पृथ्वी सीता माता को अपनी गोद में
लेकर वापस अन्दर समा गई. इस बिन्दु पर लेखिका ने अपना भिन्न नजरिया प्रस्तुत किया
है ।
अब ज़रा
सम्पूर्ण राम कथा में सीता जी के चरित्र मह्त्तव को देखें -
1. सीता जी पतिव्रता नारी का प्रतीक
हैं।
2. आदर्श , संस्कारी माता के रूप में
लव-कुश को श्रेष्ठ संस्कार दिए तथा संस्कारी पुत्रों के रुप में संसार के सामने
रखा।
3. त्याग की प्रतिमूर्ति , पतिवृत का
पालन करने वाली , जिन्होनें प्रभु श्री राम की आज्ञा मान कर अग्नि में प्रवेश किया
व अपनी शुचिता का प्रमाण प्रस्तुत दिया।
4. वनवास को भेजने वाली माता कैकेई के
प्रति भी किसी प्रकार का वैमन्सय न रख के आदर्श प्रस्तुत किया।
उपरोक्त बिन्दु प्रस्तुत करने के पीछे मन्तव्य मात्र इतना ही है की कथाओं में एवं मान्यताओं
में देश काल एवं परिस्थिति के साथ साथ मतभेद हो जाना बेहद स्वाभाविक ही है किन्तु
सीता के चरित्र से संबंधित उपरोक्त
विशेषताओं से कहीं भी इनकार नहीं हो सकता।
सीता जी के विषय में बेहद सुंदर शैली में नीलिमा जी की सुंदर शोध परक एवं कल्पनाओं से
सजी हुई सुंदर कृति है।
शुभकामनाएं
अतुल्य
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