Ishwar Ki Diary By Lalan Chaturvedi

 

कविता संग्रह :  ईश्वर की डायरी

द्वारा : ललन चतुर्वेदी

न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित

संस्करण : 2023

मूल्य             : 225. 00

पुस्तक समीक्षा क्रमांक : 87

 


ललन चतुर्वेदी , व्यंग्य विधा में अपनी  तीखी एवं सटीक व्यंग्य लेखन शैली के कारण सुपरिचित नाम है, जो काव्य सृजन में भी एक बेहतर मुकाम हासिल कर चुके हैं , समय समय पर उनके व्यंग्य एवं कवितायेँ भिन्न भिन्न स्तरीय पत्र पत्रिकाओं एवं वेब पोर्टल्स पर प्रकाशित होते रहते हैं एवं “प्रश्न काल का दौर” नाम से एक व्यंग्य संकलन भी प्रकाशित हो चुका है ।  वहीं ईश्वर की डायरी उनका प्रथम काव्य संग्रह है जिसमें उनकी चुनिन्दा कवितायेँ संग्रहीत की गयी हैं। 


पूर्व में ललन जी की कविताये फेसबुक पर ही पढ़ीं थीं व उनकी व्यंग्य रचनाएं भी , जिनमें प्रथम तो मुख्यतः उनके शीर्षक ने ही आकर्षित किया किन्तु ज्यों ज्यों व्यंग्य रचना का पाठन  आगे बढ़ता  गया  उनके तीखे तंज एवं गंभीर कटाक्ष उनकी लेखनी के कायल बनाते गए एवं जब यह काव्य संग्रह पढना शुरू किया तो सहज ही उनकी रचनाओं के भाव में डूबता चला गया ।  जब उनका  कविता संग्रह पढ़ना शुरू किया तब महसूस हुआ कि हर कविता के पीछे एक गहरी सोच है व प्रत्येक कविता एक भाव के साथ साथ कुछ संदेश भी समेटे हुए है ।



यदि मेरी जानकारी गलत नहीं है तो यह उनका प्रथम प्रकाशित  काव्य संग्रह है हालांकि पूर्व में भी उनकी कविताएं एवं व्यंग्य रचनाएँ भिन्न भिन्न पत्र पत्रिकाओं में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाती रही हैं ।

प्रत्येक रचना गहन विचार समेटे हुए है व प्रत्येक कविता का भाव , सहज ही पाठक को एक विचार एक चिंतन हेतु विवश अवश्य कर देता है।  किसी भी तरह से किसी एक कविता को श्रेष्ठ कह पाना संभव नहीं है, यूं कि प्रत्येक कविता का भाव , एवं अभिव्यक्ति विशिष्ठ है तथा प्रत्येक कविता में  कोई न कोई विशिष्ठ विचार , गहन सोच , भिन्न दृष्टिकोण  अन्तर्निहित है।  कविता तुकबंदी से मुक्त है तथा विषय केंद्रित हैं एवं कहीं कहीं एक कटाक्ष का भाव भी उनकी कविताओं में दृष्टिगोचर होता है । विशिष्ट एवं क्लिष्ट शब्द  नहीं है एवं बहुधा सामान्य शब्द ही प्रयोग किये गए  हैं । कविताओं के विषय अत्यंत सामान्य हैं एवं कुछ तो ऐसे है जिन्हें आम तौर पर विचार भी नही जा सकता यथा  संग्रह की शीर्षक कविता “ईश्वर की डायरी”

 

पुस्तक की शुरुआत मैंने शीर्षक कविता “ईश्वर की डायरी” से करी, हालाँकि संग्रह में यह प्रथम स्थान पर नहीं है किन्तु उसको ही चुनना महज उत्सुकतावश ही था । कविता आस्था के अतिरेक पर चोट करती हुयी भक्त की भावना को भगवन की दृष्टि से देखते हुए सृजित की गयी है।  बात चाहे शिव भगवान के शीश पर जल पात्र की हो अथवा पुष्पहारों की ।  भोले भक्त अपनी आस्था के वशीभूत हो जो अर्पण कर रहे हैं उसे कविहृदय ने स्वयं प्रभु की नज़रों से देखा है ।  व्यंग्य तो नहीं है किन्तु एक नयी सोच अवश्य है।  

संग्रह की अन्य  कविता “बोल” के भाव एवं अभिव्यक्ति बरबस ही आकृष्ट करते हैं , निम्न पंक्तियों में अंतर्निहित भाव एवं गांभीर्य कितना प्रभावी है:

“सच पूछो तो ऐसी रचनाएं ही होती हैं कालजयी

जो युगों युगों तक जलती रहती हैं मशाल की तरह

रचना जब अतिक्रमण कर जाती है रचयिता का

और करने लगती है लोक जिह्वा की सवारी 

तब वह सुरसुरी बन जाती है

कवि और कविता में कोई भेद नहीं रह जाता” । ।

 

वहीं “भूख का बाजार” एक ऐसी कविता है जिसमें भूख और भूखे के नाम पर राजनीति की रोटियाँ सेकने वालों एवं उन्हें अपनी उन्नति की सीढ़ी  बनाने वालों पर करारा  तंज़ है , अंतिम पंक्तियाँ  काबिले गौर हैं कि :

“यह कितनी बड़ी विडंबना  है कि

भूख पर उसकी बात कभी नहीं सुनी जाती

जिसे बात करने का सर्वाधिकार है”। ।

 

तो कविता की प्रमुखता को, उसके कालजयी होने को देखने का नजरिया देखें कि : 

“इतिहास भी यदि बदल देगा सत्य को

या उसे दर्ज ही नहीं कर पाएगा अपने पृष्ठों में

जब सारे साक्ष्य मिटा दिए जाएंगे

जब सब के सब मौन हो जाएंगे

तब कविता चीख चीख कर बोलेगी

साजिशों का भेद खोलेगी” । ।  

 

प्रेम को उसकी समग्रता में, संपूर्णता के संग उसके विभिन्न रूपों को देखने और पहचानने का संदेश देती है कविता “सौन्दर्य”  :

“जब तक हम सीख नहीं लेते प्रेम करना

हमें कुरूपता ही नजर आएगी

सारी इबारतें सुंदर हैं

प्रेम से हस्ताक्षर तो कीजिए” । ।



 

बहुधा इंसान जानते हुए भी अथवा अनजाने में भी कुछ बातों को जानना नहीं चाहता, अथवा जानकर  भी वह एक खूबसूरत भुलावे में,  सुंदर कल्पनाओं के संसार में, बना रहना चाहता है , वह भ्रम पाले रहना किसी के लिए जीवन जीने की आस भी हो  सकती है एवं सहारा भी ,चूंकि बाज़ दफ़ा सच स्वीकार कर लेना अधिक दु:ख दाई भी हो सकता है तथा निश्चिंतता के संग जीवन जीने हेतु ऑल इज़ वैल की सोच भी अत्यंत सहायक होती है । कवि के भाव निम्न पंक्तियों में अधिक स्पष्टता संग उभर कर आते हैं :

“अक्सर मुझे वही निराश करते हैं

जिनसे मैं बहुत प्रेम करता हूँ

मैं उनके प्रेम पर शक करने का अपराध नहीं कर सकता

मैं सब कुछ ठीक होने के भरम में जीना पसंद करता हूँ “। ।

 

जीवन में निरन्तरता एवं अपने अस्तित्व को अक्षुण्ण रखने तथा अन्य किसी की आभा मण्डल  अथवा प्रभाव में आने बचते हुए निस्पृह बने रहने के लिए नदी के जरिए अत्यंत गंभीर संदेश दिया है अपनी “कविता नदी का गीत” में ।

वे कहते हैं कि :

“लोग झूठ कहते हैं की मैं समंदर से मिलना चाहती हूँ

मैं कभी भी समंदर से मिलना  नहीं चाहती

अपनी मिठास को खारेपन में क्यू बदलूँ

मुझे  उस मिलन की कोई आकांक्षा नहीं

जो कर दे मेरा अस्तित्व समाप्त” । ।

 

अपनी एक अन्य कविता “विश्वास” में विश्वास की महत्ता को मानते हुए कहीं न कहीं उसे जीवन व परस्पर संबंधों से जोड़ कर देखते हैं व उद्वरण स्वरूप उन्होंने यह महत्ता देखी  है पेड़ और उसके पत्तों के बीच जहां पतझड़ की मार से बेफिक्र पेड़ अपने पत्तों के लिए सदैव बांह पसारे तैयार होता है महज इस विश्वास के साथ की वे पुनः लौट आएंगे।

वे कहते हैं कि :

“दरख्त वहीं खड़ा करता रहता है इंतजार

पतझड़ में भी अपनी बाहें फैलाए

उसकी रगों में बहते हुए रस

उसे सूखने नहीं देते

यह कहते रहते हैं

विश्वास करने वाले शिरोधार्य होते हैं

वही बसंत लाते  हैं” । ।

वहीं अत्यंत गूढ़ भाव सँजोये रचना है “चुप्पी शोर मचाती है” ,जो उस आदमी की कहानी बताती है जो अत्याचार के खिलाफ सहते सहते थक जाता है किन्तु प्रतिरोध करने  में सक्षम नहीं होता :

सुनने सहने की क्षमता

जब समाप्त हो जाती है

तब आदमी की आँखें पथरा  जाती हैं

और उसकी चुप्पी शोर मचाने लगती है। ।        

इसी भाव पर बेहतरीन शेर भी कहे गए हैं जिनका जिक्र फिर कभी , अभी बात अन्य कविताओं की

“अंतिम को अनंतिम नहीं समझ जाए” यह अगली कविता है जो भाव प्रधान एवं विचारण योग्य है , वे कहते हैं कि :

बात जब भी की जाए , अंतिम बात की जाए

जब  भी मिला  जाए , अंतिम बार मिल जाए । ।

 

“अंतिम का अर्थ  अंत  नहीं होता

यह तो पूर्ण होना है

जीने का मज़ा तब है जब

अंतिम को अनंतिम न समझा  जाए”।।

 

भविष्य के प्रति सदैव आशान्वित रहते हुए एवं सकरात्मकता की डोर थाम कर प्रगति के मार्ग   पर अग्रसर बने रहने को एवं निराश तथा अवसाद के भावों से सदैव दूर रहने का संदेश है कविता “दीवार में खिड़की” , ये विचार देखें :

कभी कभी महसूस करते हो

कितना अकेला, उपेक्षित, निरुपाय

यह तुम्हारी अवधारणा है

नैराश्य के इस स्तर पर

पहुँचने का कोई अर्थ नहीं है । ।  

 

जीवन में प्रेम कितना जरूरी है , कवि ने उसकी तुलना नमक से करते हुए उसका होना कितना अनिवार्य बताया  हैं :

लेकिन जरूरी है

किसी को याद करना

उसे प्यार करना भी

यह दोनों बहुत जरूरी हैं

जीवन के लिए

नामक रोटी की तरह । ।

पुस्तक की अमूमन प्रत्येक रचना एक भिन्न कलेवर में अलग ही रस , सौन्दर्य एवं भाव सँजोये हुए है। समस्त रचनाओं को अत्यंत  गंभीरता से पढ़ने के पश्चात चंद रचनाओं पर मैंने विचार रखे हैं किन्तु इस बात में दो मत कतई नहीं हैं की  सरल भाषा में अद्वितीय   काव्य संग्रह है।

शुभकामनाएं ,

अतुल्य 

 

   

  

 

   

        

 

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