Aadha Hai Chandrama by Renu Gupta
आधा है चंद्रमा
लघुकथा संग्रह
द्वारा : रेणु
गुप्ता
बोधरस प्रकाशन
द्वारा प्रकाशित
प्रथम संस्करण
: 2023
मूल्य : 340.००
समीक्षा क्रमांक
: 88
ख्यातिलब्ध साहित्यकार
“रेणु गुप्ता जी”, साहित्य की विभिन्न विधाओं में अपने उल्लेखनीय कार्य हेतु बखूबी
पहचानी जाती हैं तथा साहित्य जगत में अपने योगदान के चलते वे उस मुकाम पर हैं जहां
उनका नाम ही उनके काम की पहचान बन चुका है, या कह सकते हैं कि
उनका काम ही उनकी पहचान हो गया है। बेहद
परिचित नाम है । उनका सद्यः प्रकाशित 101 कहानियों का संग्रह “आधा है चंद्रमा ” लघुकथाओं से सज्जित है जो कि गागर में सागर से कमतर कतई
नहीं है।
इस संग्रह में लेखिका
की विषयवस्तु के प्रति गहन सोच , गंभीर विचारण , ईमानदार
संवेदनाएं व सामाजिक विषमताओं पर प्रहार स्पष्ट दृष्टिगोचर हुआ है जहां उन के
पात्र उन विषमताओं से समझौता न कर प्रतिरोधात्मक रूख दर्शाते है। यूँ तो उनकी कहानियां बेहद सादगी भरी होती
है किन्तु उनकी लघु कथाओं में भी दर्शन आध्यात्मिकता एवं सुंदर भाषा का प्रयोग
देखने को मिलता है । हर कथा मानवीय मूल्यों व
इंसानियत के ज़ज़्बे को दर्शाती है.
और अब कुछ बात लघुकथा की : लघुकथा अपने आप में एक अनूठी विधा है जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कथा जो संक्षिप्त हो, बिना किसी भूमिका के प्रारंभ हो एवं उसमें पात्रों की संख्या सीमित हो तो उसे लघु कथा की श्रेणी में रखा जा सकता है । सफल लघुकथा का प्रारंभ ही पाठक को बांधने में सक्षम होना आवश्यक है तथा अंत उसी विषय के साथ में छोड़ जाने वाला, स्तब्ध करने वाला, चौंकाने वाला, हो फिर वह सुखांत अथवा दुखांत किसी भी प्रकार का हो सकता है।
रेणु गुप्ता जी की कहानियां
मानवीय संवेदनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति है कथानक
लघुकथाओं हेतु पूर्णतः उपयुक्त
हैं .उनकी लघुकथाएं अपने नाम अनुसार सीमित आकार की है, व कथानक विषय पर सटीक वार करता है एवं सभी कहानियां
मानवीय संवेदनाओं के ताने-बाने में बुनी गई है, मर्मस्पर्शी कहानियां है उनमें भी नारी
अस्मिता की सार्थकता एवं नारी सशक्तिकरण को नायिका के चरित्र चित्रण में बहुत
सशक्त तरीके से दर्शाती हैं व संबंधित विषयों पर कथाएं ज्यादा हैं ।
कहानी
“हमजोली” वर्तमान में नारी अस्मिता का
चित्रण बखूबी करती है । वहीं कहानी “जमीन की तलाश में” नारी स्मिता को
चित्रित करती एवं नारी सशक्तिकरण की ओर अग्रसर नायिका का अपने पति द्वारा दी जा
रही प्रताड़ना के खिलाफ स्वयम को सशक्त कर जबाब दे कर एक दिशा दिखलाती है। उनकी कहानियों को पढ़ने
के बाद में पाठक जिन अनुभूतियों से गुजरता है वह निश्चय ही कथानक की सफलता दर्शाता है ।
रेणु जी अत्यंत संवेदनशील लेखिका हैं तथा परिवेश में जो कुछ महसूस करती हैं
वही उनकी कहानियों में प्रतिविम्बित होता है . उनकी कहानियों में नायिकाओं
के विभिन्न चरित्र दीखते हैं , चरित्र वैविध्य है. अधिक स्पष्टता से कहा जा सकता
है की उनकी कहानियां समाज का दर्पण हैं ।
आम आदमी की ज़िंदगी , उसके एहसास और ज़ज़्बातों
से जुड़े सुख दुख के किस्से उनकी कहानियों में प्रमुखता से स्थान पाते हैं , साथ ही आम जीवन के विभिन्न रस यथा वात्सल्य , प्रेम , इत्यादि के
भाव भी देखने को मिलते हैं । रेणु जी लीक
से बांधकर नहीं लिखती व साहित्य के नित नए बदलाव को समझते हुए साहित्य के इस प्रयोगात्मक काल में
परिवर्तनों को करीब से अनुभव कर अपनी रचनाओं में उन्हें शामिल कर लेती
है। । वे एक ओर जहाँ दाम्पत्य संबंधों में नारी का स्थान एवं उसके शोषण पर
लिखती हैं तो वहीं उनकी कहानियों में स्त्री विमर्श से जुड़ी विभिन्न विसंगतियों यथा महिला
शिक्षा या तलाक व्यवस्था के
प्रति आक्रोश भी है ।
समाज में व्याप्त विसंगतियां हों अथवा
कुरीतियां , रेणु जी की संवेदनशील एवं पैनी दृष्टि से बच नहीं पाती। विवाह उपरांत
पुत्र पुत्री के समान अधिकारों के प्रति भी वे सजग है , किन्नर विमर्श पर भी उनकी
लघुकथाएं संकलन में है।
किन्नर विमर्श एवं अन्य ऐसे विषय जिन्हें
अन्य कथाकार अस्पर्शय समझ कर छोड़ देते हैं उनपर पर बखूबी कथानक गढ़ती
हैं। किन्नर
विमर्श पर केन्द्रित लघु कथा “फ़रिश्ते” बेहद सुंदर कथानक के साथ परहित भाव को
दर्शाती एवं किन्नरों को जिस त्याज्य की
दृष्टि से देखा जाता है उसपर आघात करती हुई अत्यंत सहजता से संदेश देती है। जहाँ कुछ
किन्नर, शादी वाले एक घर में शगुन लेने
पहुचते हैं जो कि पहले ही अभावों से जूझ रहा
है किन्तु बेटी की शादी की तैयारी हेतु
प्रयासरत घर की स्थिति देख स्वयं वे ही शादी का सारा प्रबंध कर देते हैं . उस घर
के लिए तो मानो फ़रिश्ते ही बन कर आये हों ।
तो वहीं किन्नर विमर्श पर एक और कहानी “दुआओं में याद रखना” किन्नरों के प्रति
समाज में आम आदमी के रवैये को दर्शाते हुए , आ रहे बदलाव को भी दर्शाती है।
लिव इन रिलेशनशिप हो अथवा
सिंगल मदर या ऐसे ही अन्य विषय जिन्हें
समाज में अछूत समझा जाता है वह उनकी कहानियों में प्रमुखता से स्थान पाते हैं वे
अपनी कहानियों में जहां बेटियों को पुत्रों के बराबर का दर्जा दिलवाने की बात करती
हैं वही दांपत्य जीवन में पति पत्नी के बीच सामंजस्य पर भी उनकी नज़र बनी रहती है। समाज
की भिन्न दबी छुपी विसंगतियों पर उनकी पैनी दृष्टि बनी रहती है , कहीं भी एकरसता नहीं है
विषय की विविधता है क्योंकि विषय समाज के
बीच से ही है अतः सामाजिक जागरूकता सहज विद्यमान है ।
वे अपने स्वतंत्र लेखन के लिए ऐसा कोई विषय नहीं
चुनती जिसे पूर्व में सोचा गया हो अर्थात उनकी कहानियां विषय केंद्रित नहीं होकर
समाज के बीच की किसी भी विषय पर जो उन्हें कहीं ना कहीं चुभता है अथवा उन्हें उस
पर कुछ लिखने का एहसास होता है उस विषय पर कहानी लिख देती हैं यथा कहानी “मिटटी
या सोना” , जिसमें उन्होंने देह दान को कथानक बना कर बेहद तार्किक रूप से कथ्य की
प्रामाणिकता साबित की है।
“ऐ
वक्त थम जा” , कैंसर पीढ़ित पत्नी की पति व परिवार को लेकर चिंता दर्शाती है। कह सकते
हैं कि रेणु जी को विषय स्वयं ही समाज के बीच
से अपने इर्द गिर्द ही मिल जाते हैं वह विषयों की खोज नहीं करती कहानियां बहुधा
मार्मिकता का पुट लिए हुए हैं व भावप्रधान
हैं । जैसे की कहानी “नून तेल आटा” जिसका
कथानक , रोजाना ही किसी न किसी मुद्दे को लेकर किए जा रहे शहर बंद का गरीब , रोज कमा कर खाने वालों पर कितना व
कैसे विपरीत प्रभाव डालते हैं दर्शाता है।
वहीं
कहानी “बहुत देर कर दी” अपने कथानक से सहज ही चौंका देती है। तो “वक्त ने किया”
कोरोना की विभीषिका के चलते कैसे सभी एकजुट हो गए , सरलता से दर्शाती है। “पछतावा”
का संदेश ऐसे व्यक्तियों के लिए आँख खोलने वाला हो सकता है जिन्होंने पत्नी को
मात्र एक काम की मशीन समझ लिया जो मात्र उनकी इक्षाओं की पूर्ति करती है। अंत
सिर्फ पछतावे के और हो भी क्या सकता है।
“बोली
अरमानों की “ दहेज के लोभियों के मुंह पर आज की जागृत युवती का करारा तमाचा है। तो “त्याग तपस्या” एक ऐसे व्यक्ति की
कहानी है जिसने पत्नी को अफसर बनाने के लिए सहर्ष घर की सारी जिम्मेवारियाँ अपने
ऊपर ली व निभाई भी भले ही औलाद ने उसे
उसका श्रेय न दिया हो किन्तु पत्नी ने उसके सहयोग को सराहा यही उसकी तपस्या का
प्रतिफल था।
यूं तो संग्रह की हर लघुकथा अपने आप में श्रेष्ठ है व कुछ कहती
है पर इन सब के अतिरिक्त भी कुछ बेहद भावपूर्ण एवं गंभीर विषयवस्तु पर केन्द्रित
लघुकथाएं हैं जिन्होनें अवश्य ही प्रभावित भी किया एवं दोबारा पढ़ने हेतु विवश
भी: “कद्दावर” , “भीगे एहसास” ,”कुछ खट्टा
कुछ मीठा” , “शश्य
श्यामला” , “वो साया” , “बेबसी” , “बदलाव की बयार”, “पुरसुकून”
, “जलजला” , “एक टुकड़ा धूप” और “किरचे किरचे” ऐसी ही कुछ कथाएं हैं ।
विविधता के संग सरलता व विषय विशेष से हटकर , यथार्थ के बेहद
करीब , सामान्य जन जीवन के रोज मर्रा के किस्से पाठक को कहीं
न कहीं अपनी सी या अपने ही परिवेश की कहानियाँ प्रतीत होती हैं जो उसके मानस से त्वरित
संबंध स्थापित कर लेने में सक्षम हैं एवं यही सही मायनों में लेखिका की कलम की सफलता है।
शुभकामनाओं
सहित,
अतुल्य
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