Khoobsoorat Mod By Ram Nagina Maurya
खूबसूरत मोड़
द्वारा
: राम नगीना मौर्य
प्रकाशन : रश्मि प्रकाशन
प्रतिष्ठित यशपाल पुरुस्कार एवं डॉ. विद्या निवास मिश्र पुरुस्कारों से सम्मानित , अपनी रोचक, पठनीय, एवं सरल, जन सामान्य की कहानियों के ज़रिये निरंतर पाठकों के मानस में बने रहने वाले वरिष्ठ कथाकार हैं “राम नगीना मौर्य” , उनकी सतत् उपस्थिति एवं साहित्य साधना अनवरत है। मौर्य जी के आधा दर्ज़न से अधिक कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके है व विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओँ के संग उर्दू के बेहतरीन अलफ़ाज़ , विभिन्न साहित्यकारों के लेखन के उल्लेखनीय अंश / वाक्यांश , फ़िल्मी गानों की उपयुक्त पंक्तियों का यथोचित प्रयोग एवं तार्किक रूप में हास्य का पुट देते हुए समाज के बीच के ही किसी वाकये को कथा रूप में पेश कर देने की अपनी विलक्षण प्रतिभा से निरंतर सुन्दर रचनाएँ देते रहते हैं।
उन्हें पाठकों का असीम
प्यार तो मिलता ही है साथ ही साहित्य जगत के जाने माने कथाकारों के बीच वे
प्रमुखता एवं सम्मान से जाने जाते है, उनकी रचना पाठकों से इतनी सहजता से जुड़ जाती
है एवं उनके दिलों में बस जाती है कि उसे अन्य किसी परिचय की आवश्यकता ही नहीं रह
जाती । समस्त हिंदी भाषी पत्र पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती ही रहती
हैं। अब तलक उनके कई साझा संकलन, एवं
आधा दर्ज़न कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके
हैं एवं उनकी विशिष्ठ लेखन कला का कोई
सानी नज़र नहीं आता। राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न पुरुस्कारों द्वारा नवाज़े
जा चुके हैं।
उन्होंने दैनिक जीवन कि
आम उपेक्षित सी घटनाओं या रोज़मर्रा की सामान्य सी बातों को एक बेहद सुन्दर
प्रस्तुति दी है। उनके कथानक विशिष्ट अथवा
विषय केन्द्रित नहीं होते , उनकी कहानियां
मानो आम जन के बीच से स्वयं प्रगट हो जाती
हैं हैं और उन्हीं में से उनके पात्र जो
ज़बरिया कहानी के बीच में प्रविष्ट नहीं करवाए जाते। उनके
संवाद भी दैनिक जीवन में सामान्यतौर पर
उपयोग होने वाले वाक्यांश ही होते हैं। कहीं भी उसे साहित्यिक भाषा या उच्च स्तरीय कृति बनाने का प्रयास लक्षित नहीं है एवं
यही कारण है पाठक पूर्णतः उनकी कहानी में स्वयं
को उपस्थित एवं सम्बद्ध पाता है और कथानक में डूब जाता है। प्रस्तुत
कहानी संग्रह “खूबसूरत मोड़” में भी आम जिंदगी कि कहानियां है, जहाँ पात्र
सामान्य हैं किन्तु प्रस्तुति उन्हें विशिष्ट बना देती है। वे जिन विषयों को चुन कर उन पर सम्पूर्ण कहानी
का सर्जन कर देते हैं उन पर कुछ लिखा भी जा
सकता है यह अन्य समकालीन कहानीकारों की सोच से बहुत दूर की बात है। मौर्य जी समाज के मध्यमवर्गीय एवं निम्न
मध्यमवर्गीय परिवारों कि कहानियां प्रमुखता से लिखते हैं उनकी रचनाओं में , पात्र
माध्यम वर्गीय लोग हैं। उस मध्यम वर्ग के व्यक्ति के जीवन के तजुर्बे, एहसास, दर्द और तकलीफों से उनकी कहानी निकल कर आती है और वही उनके सूक्ष्म
अवलोकन एवं अन्वेषण का प्रमुख विषय होता है एवं इस गहन अन्वेषण तथा अवलोकन के चलते
हासिल कुछ बेमिसाल विषयों को सुन्दरता से प्रस्तुत कर देते हैं ।
आम आदमी की जिंदगी कि छोटी छोटी ख़ुशी पाने के लिए करी जा रही बड़ी ज़द्दोज़हद को बहुत सुन्दर
शब्द से संवार देते हैं । उनकी कहानियां जीवन से करीब से जुड़ी हैं व यथार्थ के
बेहद करीब हैं एवं कथानक की भाषा-शैली
सामान्य जन जीवन कि रोज़मर्रा की भाषा है अतः जन सामान्य बहुत सुगमता से स्वयं को उन
के बीच पाता है अपने आप से सम्बद्ध कर
लेता है । नामालूम सी छोटी सी बात पर भी वे पूरा किस्सा रच सकते हैं ।
उनकी कहानी पढ़ते हुए यह
आभास हो जाता है कि उनकी सोच, अध्ययन एवं अनुसन्धान कितना व्यापक एवं गहराई लिए
हुए है एवं उनका घटनाओं को देखने का नजरिया एक आम कथाकार से कितना भिन्न है , जैसा
है, जहाँ है और जिस हाल में है वही चित्रण है कोई अलंकरण या सजावट नहीं है, वे
अपनी कहानियों में विभिन्न भाषाओं का प्रयोग बड़ी ही खूबसूरती से करते है, मूलतः क्षेत्रीय भाषाओँ को तो बहुत ही प्रमुखता से कथानक में पिरो देते
हैं। कहानियों में व्यंग्य का भरपूर पुट देखा जा सकता है एवं कथानक का भाग बनकर कई
कवितायेँ भी मौजूद हैं जो कि आम तौर पर किसी अन्य कथाकार कि शैली में दृष्टिगोचर
नहीं होता ।
उनकी कहानियों में जीवन
के सुख दुःख, जीवन शैली, अनुभव, रिक्तता, सभी कुछ है एवं यूँ लगता है मानो उन्होंने अपने हर अनुभव को शब्द दे दिए
हैं। समाज को, उसकी घटनाओं को बेहद बारीकी से देखते हुए हैं
सरल, आसान आम बोलचाल कि भाषा में सहज बोधनीय वाक्यों संग
इतना सजीव रोमांच निर्मित कर प्रस्तुत कर देते है की कहानियां आरम्भ से अंत तक
पाठक को बाँध कर रखती हैं। वहीं कहानी “सरनेम” दर्शाती है की
किस प्रकार कोई व्यक्ति एक अख़बार में प्रकाशित खबर में अपने गलत सरनेम को लेकर
गंभीर हो सकता है एवम लगभग तीस वर्ष बाद भी वह उस घटना को भूलता नहीं
है। एक अनावश्यक से अंतर्द्वंद में उलझते
, स्वयं में ही परेशान व्यक्ति की मनोदशा का खाका झींचा है। कथानक अपनी सम्पूर्ण समग्रता में बिना किसी
विशिष्ठता के भी निरंतर बाँध कर रखता है । “खिड़की के उस पार”
शहर में किसी बहुमंजिला ईमारत के एक फ़्लैट की
बालकनी में बैठ कर बाहर के विभिन्न दृश्यों को देखते हुए आँखों देखा विवरण है ,
संग संग कुछ मनोभाव , कुछ रोचकता के पुट भी हैं किन्तु किसी विशिष्ठ घटना या दृश्य
की बात नहीं है न ही किसी दृश्य विशेष पर कोई भिन्न नजरिया , जैसा की शीर्षक से
संभावित था, एवं किसी भी विशिष्ठ कथानक की मौजदगी के रोचक कहानी लिख जाना , मौर्य
जी की विशिष्टता को खूबसूरती से प्रस्तुत करती ।
संग्रह की पहली ही कहानी “खूबसूरत मोड़” जो की इस ग्रन्थ की शीर्षक कथा है
व्यक्ति की एक विशेष मानसिक अवस्था को लेकर चलती है जहाँ व्यक्ति अपने ही किसी
व्यक्ति विशेष के प्रति आग्रह अथवा आकर्षण से ग्रसित होता है एवं मुलाकात के पश्चात मोहभंग की अवस्था और बैचैनी ,स्वयं
के निर्णय पर सोचने हेतु विवश करती हैं।
कहानी , बचपन की धनाढ्य परिचित (
दी गयी अवस्था में मित्र कहना तो युक्तियुक्त प्रतीत नहीं होता ) के अचानक मिल
जाने पर अपनी पुस्तकें उसे भेंट करने के उद्देश्य से या संभवतः कहीं बचपन के किसी
आकर्षण से वशीभूत हो उसके घर तक पहुँचने पर उन्हें उन परिचित महिला का व्यवहार थोड़ा अचंभित करता है एवं लेखक बंधु
स्वयं भी आशा के विपरीत उनकी वर्तमान कमज़ोर
आर्थिक दशा देख थोड़ा व्यथित होते
हैं व घर आ कर पुस्तकें भेंट करने के अपने
निर्णय पर पछताते भी है वहीं अंत में इस
मुलाकात को जिंदगी का एक “खूबसूरत मोड़ समझ कर भूल जाना ही अच्छा” वाली सोच एक
सकारात्मक जीवन का सन्देश देती है। नन्हे मासूम बच्चे का रोना एक बहुत ही सामान्य
सी बात है किन्तु इस पर अगर कहानी लिख दी जाये तो जो कारनामा शब्दों की शक्ल में
पेश होता है वह है संग्रह की अगली कहानी “शास्त्रीय संगीत “ जिसमें नव दंपत्ति के बच्चे से सम्बंधित नवीन
विभिन्न अनुभव हैं तो लोगों के सुझाव,
टोटके के साथ स्वयं की परेशानियाँ व आपसी प्यार एवं नोकझोंक भी समाविष्ट है।
संग्रह की कहानी “गुरुमंत्र” सच और झूठ को लेकर सृजित एक व्यंग्य से परिपूर्ण
कृति है जहाँ एक रिटायर हो चुके सज्जन अपने कनिष्ठ को विभिन्न उद्वरणों के
द्वारा, काम न करने एवं झूठ से सब साध
लेने के अचूक गुर सिखलाते नज़र आते हैं जिनसे प्रभवित हो एवं उनकी बातों को
गुरुमंत्र मानते हुए कनिष्ठ अपने दैनिक कार्यालयीन जीवन में उन्हें प्रयोग कर उसके
परिणामों से चमत्कृत हो जाता है। कहा जाता है की इन्सान तो मात्र कठपुतली है वह तो
नियति के द्वारा निर्देशित होता है कहानी “आदर्श शहरी “ में
भी अंततः कुछ ऐसे ही भाव सामने आते हैं जहाँ एक व्यक्ति आपराधिक दुनिया को छोड़ कर
सभ्य समाज में वापस आना चाहता है किन्तु शायद कुदरत को मंज़ूर ही कुछ और है जो सोचो
वह हमेशा हो ही जाये यह तो असंभव है।
कथा संग्रह की अन्य
कहानियां भी रोचक हैं व मौर्य जी की विशिष्ठ शैली में सामान्य जन की सामान्य बातों
से परिचय करवाती हैं।
सविनय
अतुल्य
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